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Anumita M. के बारे में

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Anumita M. की पुस्तकें

Anumita M. के लेख

मेरी गुड़िया ...

8 जून 2022
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ना किसी महफिल की चमक अच्छी लगती है ।  ना किसी फूल की महक अच्छी लगती है ।  चहक उठता है जिसकी गूंज से सारा घर मेरा ।  मुझे तो बस मेरी गुड़िया की पायल की वो खनख अच्छी लगती है ।                       

दिल पर वार ..

6 जून 2022
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मिला नज़रों से वो नज़रें दिल पर वार करते हैं ।  हमारे सामने ही उनसे आंखें चार करते हैं ।।    कि रहते हैं दिल में उनके वो जिनका हाथ थामे हैं ।  वो कहते हैं मगर हमसे कि तुमसे प्यार करते हैं ।।      

ज़ख्मी दिल ..

6 जून 2022
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कि, ज़ुदा होकर भी वो तुझसे  कभी मायूस ना होता ।  ज़ख्म दिल पर लगा था जो, वो भी महसूस ना होता ।  अगर मिलती वफा के बदले में ना बेवफाई तो ।  यूं मोहब्बत में कोई आशिक़ कभी जासूस ना होता ।।            

शिकवा ख़ुदा से. .

5 जून 2022
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जो मिलेख़ुदातो पूछ लेंगे हम भी   मिट्टी का जिस्म देकर शीसे सा दिल क्यूं दिया तूने ,  फिर मिलाकर किसी से सिखा कर मोहब्बत   आदत लगा उसकी  उसे जुदा क्यूं किया तूने ।  मैं तो जी रहा था अछा भला ,  बगै

दुआ ...

5 जून 2022
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हां दुआ मांगी थी ये रब से कि मेरा तू हो जाए ।  जो लिपटी रहती फूलों  से तू वो खुशबू हो जाए ।  जो बहता है निगाहों से खुशी या ग़म में ही हर दम ।  कि मेरी आंखों से बहने वाला तू वो आंसू हो जाए ।       

तुझसा ना कोई ..

5 जून 2022
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निगाहों  में मेरे यारा तेरी ये राज़ कैसा है ।  तेरा हर शब्द ओ यारा एक साज़ जैसा है ।  नहीं कोई मुझे चाहत रही अब इस ज़माने की ।  कि,  ज़हान् में दूसरा कोई ना मेरे यार जैसा है ।                     

तेरी याद

4 जून 2022
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मोहब्बत में मेरे यारा तेरी ख़ुद को भुलाया है ।  पहले उस ख़ुदा से भी सदां तुझको बुलाया है ।  नहीं ग़म कोई अब मुझको ज़हां की ठोकरों का है ।  एक बस याद ने तेरी मुझे इतना रुलाया है ।।                 

तज़ुर्बा

4 जून 2022
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तेरी पलकों के साये में खुद को,   महफूज़पाता हूं मैं .  जब भी याद आती है, , तुमको मेरी तो चला आता हूं मैं ।  गीत मोहब्बत के गा सकूं ,  इतना तो अब मुझमें दम नहीं .  मगर तेरी  यादों के नग्में गुनग

मुसाफिर

3 जून 2022
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मैं मुसाफिर हूं , मोहब्बत का   मुझे , राहगीर ना समझ लेना ,  मैं मंजिल हूं , तेरी   मुझे जागीर ना समझ लेना ।।            ,,  ,     ,,, ,   

ज़जबात

3 जून 2022
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वफा के बदले , ज़फा मिली .  क्याइश्क़ करने की सज़ा मिली ।  अपनी यादों का घर बसाकर ,  इस दिल से,, चले गए तुम .  एक बार किये गुनाह की सज़ा ,  हमें कई दफ़ा मिली ।  ज़ख्म  जो सूखे भी  नहीं थे अब

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