क्या इसी को कहते हैं जिन्दगी
कैसी हैं ये अत्याचार्य कि जन्दगी |
कोई मरने से बचे तो मिलतीं हैं नई जिन्दगी
वैसे तो नाम से तो मौत बदनाम हैं |
जिन्दगी जीने से तो अच्छी हैं मौत
ऐ मालिक ये इंसाफ कैसा हैं तेरा |
किसी को अँधेरा किसी को उज्जला
तड़पता हैं कोई हंसी के लिए |
मिला है किसी को खुशीं का खजाना
कैसा ये अत्याचार्य है तेरा
कहाँ अब इंसाफ है तेरा ||