दिल्ली : आने वाले समय में आज की पत्रकारिता के इतिहास में TRP प्रधान एंकरों को माहौल भड़काने के लिए ज्यादा याद किया जाएगा. लेकिन इसी देश का एक पत्रकार ऐसा भी था जो हिंदू और मुस्लिम दंगे मे बेगुनाहों को बचाने के लिए खुद दंगो की ही भेंट चढ़ गया. वो पत्रकार दंगो के दौरान अस्पताल मे लाशो के ढेंर मे खो गया. तब कुछ लोगो ने बड़ी मुश्किल से पहचाना था.
जी हां पत्रकारिता के पुरोधा कहे जाने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी का आज जन्मदिन है. गणेश शंकर विद्यार्थी ऐसे पत्रकार थे, जिन्होंने अपनी लेख नी से भारत में अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी. इस महान स्वतंत्रता सेनानी ने कलम और वाणी के साथ-साथ महात्मा गांधी के अहिंसावादी विचारों और क्रांतिकारियों को समान रूप से समर्थन और सहयोग दिया. अपने छोटे जीवन-काल में उन्होंने उत्पीड़न, क्रूर व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई. विद्यार्थी जी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को इलाहाबाद के अतरसुइया मोहल्ले में एक कायस्थ परिवार में हुआ था. इनके पिता जयनारायण हथगाँव, (फतेहपुर, उत्तरप्रदेश) के निवासी थे.
महज 16 साल की उम्र में 'हमारी आत्मोसर्गता' नाम की एक किताब लिखी.
उन्होंने कानपुर के करेंसी ऑफिस में नौकरी की लेकिन अंग्रेज अधिकारियों से अनबन की स्थिति में वहां से इस्तीफा दे दिया.
उन्हें प्रताप अखबार की शुरुआत करने का श्रेय जाता है. इस अखबार में उन्होंने भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल जैसे कई क्रांतिकारियों के लेख छापे.
अंग्रेजों के खिलाफ लगातार समाचार पत्रों में लिखने की वजह से उन्हें कई माह जेल में काटने पड़े.
25 मार्च 1931 में हिंदू-मुस्लिम दंगे के दौरान उन्होंने असहायों की मदद करते हुए अपने प्राणों की आहूति दे दी. वे साम्प्रदायिकता की भेंट चढ़ गए.