भारत और मालदीव के बीच चल रहा विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। राष्ट्रपति कार्यालय के पब्लिक पॉलिसी सेक्रेटरी अब्दुल्ला नाज़िम इब्राहिम ने कहा कि, भारतीय सैन्यकर्मी मालदीव में नहीं रह सकते। यह राष्ट्रपति डॉ. मोहम्मद मुइज्जू और इस प्रशासन की नीति है। मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने भारत से अपने सैन्य कर्मियों को 15 मार्च तक अपने देश से वापस बुलाने की डेडलाइन दी है।
सभी के मन में ये सवाल चल रहा है कि, राष्ट्रपति मुइज्जू भारतीय सैनिकों को मालदीव छोड़ने पर क्यों जोर दे रहा हैं? मालदीव द्वीपसमूह पर भारतीय सैनिकों की कोई बड़ी टुकड़ी मौजूद नहीं है।मालदीव में सिर्फ 88 भारतीय सैन्यकर्मी मौजूद हैं। भारतीय सैनिकों को मालदीव के सैनिकों को युद्ध और टोही और बचाव-सहायता कार्यों में प्रशिक्षण देने के लिए विभिन्न मामलों में मदद के लिए मालदीव भेजा गया है।
भारत विरोधी भावनाएं मालदीव में हाल के राष्ट्रपति चुनावों के दौरान और अधिक भड़क गईं।जब यहां भारत के खिलाफ दुष्प्रचार और गलत सूचना को बड़े पैमाने पर वायरल किया गया।मालदीव में इन सैनिकों की भूमिका को नकारात्मक रूप में चित्रित किया जा रहा है।
भारत और मालदीव के बीच रक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग का एक लंबा इतिहास रहा है। नवंबर 1988 में तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम की सरकार के अनुरोध पर तख्तापलट की कोशिश को विफल करने के लिए भारत के सैनिकों ने सैन्य अभियान के लिए द्वीप में प्रवेश किया था। इस ऑपरेशन में, भारतीय सैनिक राष्ट्रपति को सुरक्षित करने और विद्रोहियों को पकड़ने में कामयाब रहे थे। उसके बाद के तीन दशकों में मालदीव ने आम तौर पर इस प्रकरण में भारत की भूमिका की सराहना की है।