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बाल-विमर्श

hindi articles, stories and books related to Bal-vimarsh


जब छोटी थी मैं, घर घर खेला करती थी मैं।   आँखों में काजल लगा कर,   माथे पर बड़ी सी बिन्दी। गहरी गहरी लगा के लिपस्टिक, पाउडर पोत लेती थी मैं। मम्मी की चुनरी को, साड़ी की तरह लपेट कर

बचपन में सोचते थे, हम बड़े कब होऐंगे। तब हमें नहीं पता था, जीवन झमेले की। उलझन में उलझ कर, सिर पकड़कर रोऐंगे। बड़े होकर कुछ बड़ा करेंगे, सबसे आगे हम रहेंगे। जो चाहेंगे हासिल होगा, सपने सच पूरे होऐंगे।

बेड टच.....आखिर होता क्या हैं ये टच.... जब हम छोटे थे तो हमारे बड़े हमें समझाते थे... आज हम बड़े हुए हैं तो हम अपने बच्चों को समझाते हैं...। जब कोई हमारे अंत: अंगों को हमारी इजाजत बिना छुए औ

कुनाल की मौत से कभी पर्दा नहीं उठ पाता.... उसकी मौत को सामान्य मृत्यु मान कर सभी अपने आप में व्यस्त हो जाते.... और ब्रजमोहन की दरीदंगी कभी सामने ना आतीं अगर उस संस्था में एक और किस्सा ना होता तो...।&n

बात अगर किसी बड़े से शहर की हो तो छोटी सी खबर भी तमाशा बन जातीं हैं... पर वो ही बात किसी छोटे से गाँव या कस्बे में हो तो...? ग्रामीण बाल सुधार गृह, करौली, राजस्थान.. ( काल्पनिक) अक्सर ऐसे बा

दोपहर का समय था, दरवाजे पर आवाज आई। दरवाजा खोल के बोली, क्या काम है भाई।। दस बारह साल का लड़का, हाथ जोड़कर बोला। दस रुपये दे दो, शक्ल से दिख रहा था भोला।। मैंने कहा तुम, स्कूल क्यूँ नहीं जाते। पढ़ने

चॉकलेट बिस्किट आइसक्रीम, कुछ भी मत लाना। कोरोना आ गया है, पापा बाहर मत जाना। गुड़िया मेरी हो गई पुरानी, टूटा मेरा खिलौना। नई साइकिल के लिए, पापा बाहर मत जाना है। गर्मियों में आ गए, मैंगो और बनाना। हमक

आई आई नई नवेली, रंग बिरंगे तितली रानी। देखने में लगती है बहुत अच्छी और मस्तानी।। देखने से लगे छोटी, लेकिन इसकी बड़ी कहानी। जितनी सीधी लगती है, कही उससे ज्यादा शैतानी।। इसके है छोटे–छोटे से बाल–ब

कोमल :- भाभी इतना चुप तो ये कभी नहीं होतीं हैं...। बिमार तो इससे पहले भी बहुत बार हुई हैं लेकिन ऐसे चुप तो कभी नहीं होतीं...। हम बड़ी हास्पिटल लेकर चले क्या इसे...? हीरा :- ठीक हैं कोमल... तुम चि

आखिर होता क्या है ये bad touch...? अगर ये सवाल किसी औरत या लड़की से पुछा जाए तो उसके पास जवाब जरूर होगा...। क्योंकि हम सभी औरतें अपनी जिंदगी में एक ना एक बार इस ओछी चीज को महसूस कर चुकी हैं...।&n

लेख- बच्चे को अपाहिज न बनाएंआज बहुत सी माँ व परिवार के लोग मोहवश आत्मसंतुष्टि के लिए अपने बच्चे के व्यक्तित्व को पनपने नहीं देते हैं। उसकी हर बात का फैसला खुद करते हैं। वह क्या पहनेगा, क्या खायेगा, कब

लेख-अच्छे माता पिता कैसे बनें माता पिता बनना हमारे जीवन का सबसे पुरस्कृत व परिपूर्ण कर देने वाला अनुभव है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं की यह आसान है । हमारे बच्चे या बच्चों की उम्र चाहे कितनी भी हो। हमार

लेख- "बच्चे हमारी नहीं सुनते पर हमारी नकल करते हैं " आज हर माता पिता की एक ही शिकायत है कि बच्चे हमारी बात नहीं सुनते हैं। हर समय मोबाइल का उपयोग करते हैं। टी.वी देखते रहते हैं। हमारी बात तो बिल्कुल

4-  बच्चों को समझना जरूरी है                            

-"बच्चों को भी होता है तनाव"मुस्कुराते बच्चे किसे अच्छे नहीं लगते। हालांकि आजकल की तनाव भरी जिंदगी में उन पर भी तनाव की छाया पड़ सकती है। 2-3 साल तक के बच्चों से लेकर 16-17 साल की उम्र पार करने तक उन्

 बच्चे क्या चाहते हैं ?                             &nb

               बचपन से ही बहुत शरारती थी मनु। कुछ ना कुछ खुराफ़ात चलती रहती थी उसके दिमाग में। कभी वह छोटों को परेशान करती तो कभी बड़ों की टांग खिंचाई करती थी।

कहानी- पतंग सिर्फ खेल नहीं बारह वर्ष का विहान रोते-रोते दादा जी के पास आया। दादा जी- दादा जी देखो न ! सबकी पंतग तो आकाश में कलाबाजी खा रही है। पर मेरी पंतग तो ऊपर जाती ही नहीं है। बार-बार नीचे गिर जा

फिर बाहर की दुनिया सेपुलकित हो जाये बचपनलेकर इनके हाथों सेमोबाइल के सम्मोहनआओ इनके हाथो मे गुल्लि-डन्डा फिर थमाएंआओ मिलकर बचपन बचाएं टी.वी. कंप्यूटर बन्द करायें आँखो से चश्में हटवाएंउलझ

चौराहों पर नन्हें बच्चे, भूख-प्यास से तड़प रहे।तन पर वसन ना पग में चप्पल, नंगे तन में घूम रहे।जीवन उनका कैसा दुनिया में ,पीड़ा क्या मन की होगी।आंखों में सपना रोटी का,एक कामना जीवन की होगी।मंदिर की सीढ

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