किस्सा है अमरावती का जो की अभी 72-73 वर्ष की है, पर यह किस्सा 2-3 साल पुराना है | किस्सा शुरू करने के पहले अमरावती छोटा सा परिचय जरूरी है | अमरावती के पति राम अमोल पाठक जी एक पब्लिकेशन हाउस के सम्पादक
'मां मुझे कोख मे ही रहने दो'डरती हूं बाहर आने से ,मां मुझे कोख मे ही रहने दो।पग - पग राक्षसीं गिद्ध बैठे हैं,मां मुझे कोख में ही मरने दो।कदम पड़ा धरती पर जैसे,मिले मुझे उपहार मे ताने।लोग देने लगे नसीह
विश्व हिन्दी दिवस और हिन्दी दिवस दोनों ही हिन्दी भाषा को प्रोत्साहित करने और उसकी समृद्धि को सुनिश्चित करने का उद्देश्य रखते हैं, लेकिन इनके दृष्टिकोण और प्रयास में भिन्नता है। इन उत्सवों का साझा लक
प्रस्तावना: भाषा हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो हमें समृद्धि और एकता की ओर बढ़ने में सहारा प्रदान करती है। हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है और इसका महत्व अधिकता में हमारे सांस्कृतिक और भाषाई ध
चाहत किस-की...? एक समय की बात है, एक व्यक्ति अपनी हाल ही में एक कार खरीदी वो उस को बड़ी चाहत से धुलाई करके चमका रहा था। उसी समय उसका पांच वर्षीय लाडला बेटा, किसी नुकीली चीज से कार पर कुछ लिखने लग
मस्तिष्क में उपजते आभा सम, वीचारों को छिन्न करती हो, प्रेम से बंधे सुंदर बन्धन को, तुम आकर भिन्न करती हो। तू कुशाग्र बुद्धि की अवरोधक, हर दुःख का तुम सुंदर सपना, तेरे ही आ जाने से जग में, खोती चि
प्रातः स्मरणेय शिक्षक वृंद के चरणों में कोटिशः नमन। गुरु का स्थान तो कबीरदास जी के इन दोहों से ही स्पष्ट हो जाती है:- गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय? बलिहारी गुरु आपकी, गोविन्द दियो बताय। वै
गुरु का स्थान तो कबीरदास जी के इन दोहों से ही स्पष्ट हो जाती है:- गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय? बलिहारी गुरु आपकी, गोविन्द दियो बताय। वैसे तो इस अखिल ब्रम्हांड के सबसे बड़े गुरु शिव हैं। हर
विश्व हिंदी दिवस: विश्वभर में हिंदी के महत्व का उत्सव परिचय :- विश्व हिंदी दिवस, हर वर्ष 10 जनवरी को मनाया जाता है, जो हिंदी भाषा की महत्वपूर्णता को विश्वभर में बढ़ावा देने के लिए समर्पित है।
'विश्व हिंदी दिवस', किस दिन आता है? इसका पता लगते से ही मन में स्वतः ही राष्ट्रभक्ति जाग उठती है। 'इंडिया' को 'भारत' बोलने का मन करता है और तो और २ से ५ मिनट के लिए अनायास ही सीना गर्व से चौड़ा हो जात
किसकी कमी जो मै लिखूंगा कौन सी गाठ पड़ गया जो कलम की स्याही बनकर उतर रहा है । अपूर्णता का भाव या अतीत का दमन जो नासूर बनकर उभरता तराजू सन्तुलन में नही किसी एक तरफ झुका रहता था बाजार में
असम्भव से सम्भव तक का सफर आसान न था । प्रजा की रक्षा और अपने ही लोगो से लड़ना, रंक से राजा तक का सफ़र आसान न था । असम्भव---------------------------------------। भूखा रहकर कठिन परिश्रम किए,
अब माथे की तकदीर नहीं , तस्वीर बोलती है अब सच नहीं, साहब झूठ की तोती बोलती है रहा होगा कभी जमाना पाप पुण्या धर्म आस्था का अब तो राजनीति का धर
स नः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव । सचस्वा नः स्वस्तये॥ हे गार्हपत्य अग्ने ! जिस प्रकार पुत्र को पिता (बिना बाधा के) सहज ही प्राप्त होता है, उसी प्रकार आप भी (हम यजमानों के लिये) बाधारहित होकर
राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दीदिविम् । वर्धमानं स्वे दमे॥ " हम गृहस्थ लोग दीप्तिमान्, यज्ञों के रक्षक, सत्यवचनरूप व्रत को आलोकित करने वाले, यज्ञस्थल में वृद्धि को प्राप्त करने वाले अग्निदेव के नि
आधार छंद प्रदीप गीतिका मात्रा भार १६+१३ =२९ चाल ==चौपाई +दोहा का विषम चरण ] शीर्षक ==भारत की पहचान धर्म सनातन ज्ञान पुरातन ,भारत की पहचान हैं l चार वेद की गौरव गाथा , बोध
अ॒ग्निः पूर्वे॑भि॒र्ऋषि॑भि॒रीड्यो॒ नूत॑नैरु॒त। स दे॒वाँ एह व॑क्षति॥ ( ऋग्वेद मंडल १, सूक्त १, मंत्र २ ) प्रथम मंत्र में अग्नि की स्तुति क्यों करनी चाहिए, यह बताया गया था। द्वितीय मंत्र में उक्
ऋग्वेद को प्रथम वेद माना जाता है। ऋग्वेद में विभिन्न देवी–देवताओं के स्तुति संबंधित मंत्रों का संकलन है। ऋग्वेद के मंत्रों का प्रादुर्भाव भिन्न-भिन्न समय पर हुआ। कुछ मंत्र प्राचीन हैं और कुछ आध
अगर तुम हमसे नाराज नहीफिर खफा खफा से क्यो होकह दो जो भी कहना है तुमकोनही कुछ कहना तो फिर चुप क्यों हो। हुई है गर हमसे कोई नादानियाँनादान समझ कर दुलार कर दोदिल की आवाज को समझे हम कैसेऐसा कोई
हिन्दी में न कोई भेदभाव हैन कोई अक्षर है असमानन बड़ा न कोई छोटा है होतासारे अक्षर होते हैं एक समान।आधे अक्षर का न मान है कमदेता लेखन में योगदान है समपूरे अक्षर का पूरक बनकरभाषा सुन्दर बनती है हरदम।न को