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10:घुटन

23 जुलाई 2023

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भाग 10:घुटन

                      (23)

 

नेहा के साथ आगे की घटना भी कुछ उसी तरह से घट रही थी,जैसी पुराने ढर्रे पर हमेशा से घटती आई है।

 

थाने में रिपोर्ट तो लिखी गई लेकिन उसे लगा कि जैसे रिपोर्ट लिखाने के समय भी त्यज्य जैसा व्यवहार हो रहा है। शायद इस तरह की  शिकार महिला कोरोनावायरस से भी ज्यादा संक्रमित हो गई हो और उससे बात करना तक पाप हो गया हो। रिपोर्ट लिख रहे हवलदार की बेरुखी देखकर इंस्पेक्टर रागिनी ने उसे झिड़का। अब आप हट जाइए। इस तरह के फालतू प्रश्न कर और इस तरह नाक भौं सिकोड़ कर रिपोर्ट लिखी जाती है? यही रवैया है आपका?यही संवेदनशीलता है आपकी?

-सॉरी मैडम।

इंस्पेक्टर रागिनी ने स्वयं अपने सामने सारी रिपोर्ट लिखाई। दो महिला पुलिसकर्मी भी हवलदार साहब के साथ थी लेकिन वह भी अजीबोगरीब व्यवहार कर रही थीं। इसे लेकर नेहा के मन में यह सवाल उठा कि अगर महिला ही महिला की पीड़ा नहीं समझेंगी तो दूसरा कौन समझेगा?

 

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      अपराधियों को पकड़ने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया गया। मामला विधानसभा में उठा और मुख्यमंत्री महोदय ने स्वयं अपराधियों को शीघ्र पकड़ने और कड़ी कार्यवाही का आश्वासन दिया था। डीजीपी साहब दूसरे दिन से ही हरकत में थे। जिले के चुस्त एसपी भी प्रत्येक दिन की प्रगति की जानकारी लेते थे।व्यापक खोज अभियान चला। रेलवे स्टेशन के आसपास के दस किलोमीटर के एरिया के हर झुरमुट, बगीचे से लेकर भीड़ भरी तंग गलियों और संदिग्ध इलाके  की गतिविधियों पर नजर रखी गई। रेलवे स्टेशन एरिया के हजारों फोन कॉल की डिटेल निकाली गई।दो दिन बीत गए। कहीं से कोई सुराग नहीं मिला।पुलिस के मुखबिर भी कोई ठोस सुराग नहीं दे पा रहे थे।

 

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   प्रेस और मीडिया ने इस मामले को हाथों-हाथ लपक लिया एक चैनल वाले ने नेहा के घर पर दस्तक दी। नेहा के पिता ने उनसे साफ कहा कि वे मामले को सनसनीखेज बनाकर प्रस्तुत ना करें। रिपोर्टर ने प्रस्ताव रखा नेहा का इंटरव्यू प्रसारित करेंगे और इससे पूरे देश में तहलका मच जाएगा।

पापा ने जोर देकर कहा-हमें सनसनीखेज नहीं बनाना है इस घटना को। मेरे परिवार और मेरी बेटी पर क्या बीत रही है, इसकी चिंता आपको नहीं है। होगी भी कैसे? आपको तो केवल टीआरपी से मतलब है।

 

रिपोर्टर- नहीं सर यह मामला सामने आएगा तो ऐसी घटनाओं का जल्दी संज्ञान लिया जाएगा और फिर हम आपकी बेटी का साक्षात्कार उसके मुंह को ढंककर ही दिखाएंगे।

   पापा कुछ कह पाते, इससे पहले बिना अपना चेहरा छिपाए, भीतर से बाहर ड्राइंग रूम में आते हुए नेहा ने कहा- नहीं! अगर साक्षात्कार लेना है तो मैं बिना चेहरा ढँके साक्षात्कार दूंगी।मैंने कोई पाप नहीं किया है कि चेहरा छुपाऊँगी।बोलो? हो तैयार ?इंटरव्यू लेने के लिए?

रिपोर्टर की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। कैमरामैन को साथ लेकर वह तुरंत कमरे से बाहर हो गया।

 

                      (26)

 

  नेहा ने पिछले दो दिनों से स्वयं को कमरे में बंद कर रखा था।उसे हर पल ऐसा लगता था कि हजारों डंक वाले गंदे कीड़े उसके शरीर पर रेंग रहे हैं और इस गंदगी ने उसके मन और उसकी आत्मा तक को एक अजीब तरह की वितृष्णा से भर दिया है। घर के लोगों का मोहल्ले में आना-जाना दो दिनों से बंद है।                                                (27)

 

   पुलिस के अथक छानबीन के बाद भी अपराधी नहीं पकड़े जा पा रहे थे।वह तो भला हो इन अपराधियों के पड़ोस में रहने वाली एक बुढ़िया का, जिसने पुलिस को इनके एक घर में छिपे होने का संकेत कर दिया और अंततः अपराधी पकड़े गए। नेहा की फोरेंसिक जांच में घटना की पुष्टि तो हुई थी लेकिन अपराधियों ने कोई सुराग नहीं छोड़ रखा था।वे शातिर अपराधी थे और जुल्म करने के बाद कोई निशान न छोड़ने की गरज से पैकेट का उपयोग करते थे। वकील से इस बात की पूरी जानकारी मिलने पर नेहा का मन अपराधियों के प्रति क्षोभ से भर उठा। उसने सोचा क्यों न मेडिकल स्टोर में आसानी से इन पैकेटों को लेकर भी कोई नियम बनाया जाए या फिर ये केवल शादीशुदा लोगों द्वारा ही खरीदी जा सकें,ऐसा हो। लेकिन उसे लगा कि इसे बचकानी सोच बताकर एक पल में ही खारिज कर दिया जाएगा।

 

डॉ.योगेंद्र कुमार पांडेय

 

 

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रचनाएँ
देह से आत्मा तक(द फिफ्थ जेंडर)
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लेखक की कलम से….✍️      हमारे समाज में प्रेम को लेकर अनेक वर्जनाएं हैं। कुछ मनुष्य शारीरिक आकर्षण और दैहिक प्रेम को ही प्रेम मानते हैं,तो कुछ हृदय और आत्मा में इसकी अनुभूति और इससे प्राप्त होने वाली दिव्यता को प्रेम मानते हैं।कुछ लोग देह से यात्रा शुरू कर आत्मा तक पहुंचते हैं।      प्रेम मनुष्य के जीवन का एक ऐसा अनूठा एहसास है,जिससे अंतस् में एक साथ हजारों पुष्प खिल उठते हैं।यह लघु उपन्यास "देह से आत्मा तक" अपने जीवन में समाज के लिए कुछ कर गुजरने की अभिलाषा से अनुप्राणित यशस्विनी नामक युवती की गाथा है।उसमें सौंदर्य और बुद्धि का मणिकांचन मेल है। वह प्रगतिशील है।उसमें प्रतिभा है,भावना है,संवेदना है,प्रेम है।उसे हर कदम पर अपने धर्मपिता और उनके साथ-साथ एक युवक रोहित का पूरा सहयोग मिलता है।दोनों के रिश्तों में एक अजीब खिंचाव है, आकर्षण है और मर्यादा है….और कभी इस मर्यादा की अग्नि परीक्षा भी होती है।क्या आत्मा तक का यह सफर केवल देह से गुजरता है या फिर प्रेम, संवेदनाएं और दूसरों के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाली भावना का ही इसमें महत्व है….इस 21वीं सदी में भी स्त्रियों की स्थिति घर से बाहर अत्यंत सतर्कता, सुरक्षा और सावधानी बरतने वाली ही बनी हुई है।यह व्यक्तिगत प्रेम और अपने कर्तव्य के बीच संतुलन रखते हुए जीवन पथ पर आने वाले संघर्षों के सामने हथियार नहीं डालने और आगे बढ़ते रहने की भी कहानी है।          समाज की विभिन्न समस्याओं और मानवता के सामने आने वाले बड़े संकटों के समाधान में अपनी प्रभावी भूमिका निभाने का प्रयत्न करने वाले इन युवाओं के अपने सपने हैं,अपनी उम्मीदें हैं।इन युवाओं के पास संवेदनाओं से रहित पाषाण भूमि में भी प्रेम के पुष्पों को खिलाने और सारी दुनिया में उस एहसास को बिखेरने के लिए अपनी भावभूमि है।प्रेम की इस गाथा में मीठी नोकझोंक है,तो कभी आंसुओं के बीच जीवन की मुस्कुराहट है। कभी देह और सच्चे प्रेम के बीच का अंतर्द्वंद है,तो आइए आप भी सहयात्री बनिए, यशस्विनी और रोहित के इस अनूठे सफर में..... और आगे क्या - क्या होता है,और कौन-कौन से नए पात्र हैं..... यह जानने के लिए इस लघु उपन्यास देह से आत्मा तक(द फिफ्थ जेंडर) के प्रकाशित होने वाले भागों को कृपया अवश्य पढ़ते रहिए …. ✍️🙏 (आवरण चित्र freepik .com से साभार) डॉ. योगेंद्र पांडेय
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