उत्तरपूर्वी भारत में सक्रिय ढ़ेर सारे आतंकवादी संगठनों में से एक आतंकवादी संगठन उल्फा है। उल्फा का पूरा नाम यूनाइटेड लिबरेशन फ़्रण्ट ऑफ़ असम है। लेकिन संगठन उल्फा के नाम से ही प्रचलित है। सैन्य संघर्ष के जरिये सम्प्रभु समाजवादी असम को स्थापित करने मकसद से भीमकान्त बुरागोहाँइ, राजीव राजकोँवर अर्फ अरबिन्द राजखोवा, गोलाप बरुवा उर्फ अनुप चेतिया, समिरण गोगई उर्फ प्रदीप गोगई, भद्रेश्वर गोहाँइ और परेश बरुवा ने 7 अप्रैल 1979 में शिवसागर के रंघर में उल्फा की स्थापना की। ऐसा माना जाता है कि 1986 में उल्फा का सम्पर्क नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैण्ड (एनएससीएन) और म्यान्मार में सक्रिय संगठन काछिन रेबेल्स से हुआ। 1989 में इसे बांग्लादेश में कैम्प लगाने की छूट मिल गयी और 1990 के आते-आते उल्फा ने कई हिंसक वारदातों को अंजाम दिया। अमेरिकी गृह मन्त्रालय ने अन्य सम्बन्धित आंतकवादी संगठनों की सूची में उल्फा को भी शामिल किया है। संगठन के प्रमुख नेता परेश बरुवा (कमाण्डर-इन-चीफ), अरबिन्द राजखोवा (चेयरमैन) अनुप चेतिया (जनरल सेक्रेटरी) (वर्तमान में बांग्लादेश सरकार की कस्टडी में है), प्रदीप गोगोई (वाइस चेयरमैन) (असम सरकार की कस्टडी में) स्वयं को क्रान्तिकारी संगठन मानता है। उल्फा स्वयं को भारत के विरुद्ध सम्प्रभु और स्वतन्त्र असम की स्थापना में संघर्षरत क्रान्तिकारी राजनीतिक संगठन कहता है। उल्फा का कहना है कि असम कभी भी भारत का हिस्सा नहीं था। उल्फा का दावा है कि असम जिन ढेर सारी परेशानियों का सामना कर रहा है। उनमें राष्ट्रीय पहचान सबसे प्रमुख समस्या है। इसलिए उल्फा स्वतन्त्र दिमाग से संघर्षरत लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहा है। ऐस लोग जो नस्ल, जनजाति, जाति, धर्म और राष्ट्रीयता से प्रभावित नहीं हैं।
प्रमुख वारदातें
1990 में व्यवसायी लॉर्ड स्वराज पॉल के भाई सुरेन्द्र पॉल की हत्या
1991 में रूसी इंजीनियर का अपहरण और बाद में अन्य लोगों के साथ उसकी हत्या
1997 में सामाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ भारतीय कूटनीतिज्ञ का अपहरण कर हत्या
2000 में वरिष्ठ सरकारी अधिकारी नगेन शर्मा की हत्या
1997 में असम गण परिषद के मुख्यमन्त्री प्रफुल्ल कुमार महन्त की हत्या की कोशिश
2003 में असम में कार्यरत बिहारी मजदूरों की हत्या
15 अगस्त 2004 में कुछ बच्चों समेत बम विस्फोट में 15 लोगों की हत्या
जनवरी 2007 में 62 हिन्दी भाषियों विशेषकर बिहारी मजदूरों की हत्या