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9:दंश

17 जुलाई 2023

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( 9) दंश        

           

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     यशस्विनी से परामर्श के लिए अनेक लड़कियां मिलती हैं। उनमें नेहा भी है….. जब यशस्विनी नेहा से पहली बार मिली तो वह उसे देखकर हैरान रह गई थी क्योंकि नेहा देखने में यशस्विनी की कार्बन कॉपी लगती है…. चेहरा, रूप - रंग, बोलने की शैली, ऊंचाई, कद काठी सब उसी की तरह…मानो वे दोनों जुड़वा बहनें हों.. नेहा की कहानी भी त्रासद है।आज भी समाज के अनेक घटिया लोगों ने नारी की सीमा बस घर की चहारदीवारी तक सीमित कर दी है और यह हजारों हजारों साल से उसके लिए बनाई गई लक्ष्मणरेखा की तरह है कि अगर सुरक्षित रहना है तो इसके भीतर रहो…अगर तुमने इसे लांघ कर सार्वजनिक क्षेत्र में कदम रखा और घर से बाहर अपनी पढ़ाई लिखाई और बेहतरी की गतिविधियों में शामिल हुई तो तुम्हारा भी वही हश्र कर दिया जाएगा….. और इसके लिए नारी लोलुप लोग जिम्मेदार नहीं हैं,बल्कि तुम स्वयं जिम्मेदार हो…. क्योंकि घर की चहारदीवारी तुमने लांघी है…..

योग शिविर शुरू होने की पूर्व संध्या पर अपने परामर्श कक्ष में बैठी यशस्विनी नेहा की बातों को बड़े ध्यान से सुन रही है…….

      देश के इस महानगर की उपनगरीय ट्रेन अभी ही रेलवे स्टेशन पहुंची है।रात्रि के 8:30 बज रहे हैं। कॉलेज की एक लड़की नेहा ट्रेन से नीचे उतरती है।वह महानगर के एक हिस्से में स्थित यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी से वापस लौट रही है।आज ट्रेन लगभग एक घंटा लेट हो गई है।

       नेहा ने ब्रिज की सीढ़ियां चढ़ते हुए ही   पापा को फोन लगाया कि वे उन्हें लेने आ जाएं लेकिन फिर नेटवर्क की समस्या। वह तेजी से प्लेटफार्म एक से होते हुए मुख्य द्वार तक पहुंची।यह एक उपनगरीय रेलवे स्टेशन है। है तो महानगर का एक हिस्सा लेकिन बहुत बड़ा नहीं,और मुख्य द्वार से निकलते ही बस थोड़ी ही दूर पर एक मैदान शुरू होता है ।बीच में सड़क से कुछ हटकर अनेक पेड़ भी हैं।पास ही एक नाला बहता है। मुख्य द्वार के पास आते-आते पापा का फोन आ गया कि वे उसे लेने के लिए रेलवे स्टेशन पहुंच रहे हैं। नेहा कुछ देर तक स्टेशन के मुख्य द्वार के पास चहलकदमी करती है। टैक्सी ऑटो रिक्शावाले उससे कहीं चलने के लिए कहते हैं तो वह मना कर देती है क्योंकि वह पापा की प्रतीक्षा कर रही है।

 

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      रात्रि के लगभग 9:00 बजे पापा का फोन आया।रेलवे स्टेशन के लगभग एक किलोमीटर पहले ही उसकी बाइक बिगड़ गई है।उसने एक मैकेनिक  हायर किया है और वह गाड़ी की मरम्मत कर रहा है।पापा ने कहा -तुम रेलवे स्टेशन पर ही रुको।मैं बस 10 से 15 मिनटों में तुम्हें लेने के लिए आ जाऊंगा। नेहा अपने पापा के होने का डायरेक्शन समझ गई थी।कुछ यात्री पैदल भी आगे बढ़ रहे थे, इसलिए उसने सोचा कि उनके साथ- साथ वह भी पैदल चलेगी और पापा के पास पहुंच जाएगी।इससे दोनों का समय भी बच जाएगा।

 

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       अभी नेहा लगभग आधा किलोमीटर ही आगे बढ़ी थी कि पेड़ों के उस समूह के पास अचानक रास्ता सुनसान हो गया।एक-दो यात्री लिफ्ट लेकर आगे निकल गए। एक दो लोग टैक्सी में बैठकर बढ़ गए ।उसने एक बार टैक्सी में बैठने  के बारे में सोचा,लेकिन इससे पहले ही टैक्सी भी आगे बढ़ गई।नेहा कई तरह की आशंकाओं से भर उठी।वह तेज कदमों से चलने लगी लेकिन तभी न जाने कहां से तीन बदमाश प्रकट हुए। नेहा ने अज्ञात आशंका को भांपकर भागने की कोशिश की, लेकिन नेहा का पीछाकर वे लोग उसके पास आ गए और खींचकर उसे पेड़ों की ओर ले गए।

 

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  आधे घंटे तक पापा ने रेलवे स्टेशन के भीतर बाहर नेहा को ढूंढा और जब वह वापस लौट रहा था,तो पेड़ों वाले मैदान के कोने में बदहवास सी नेहा दिखाई दी।वह लगातार रो रही थी और घबराई हुई थी।उसे अस्त-व्यस्त कपड़ों में देखकर पापा सारा माजरा समझ गए।उन्होंने तुरंत मोटरसायकिल रोकी। वे नेहा की ओर दौड़े। नेहा रोते हुए पापा से लिपट गई। पापा स्तब्ध रह गए।नेहा बार-बार चीख रही थी।सब कुछ बर्बाद हो गया पापा।आई एम सॉरी पापा!

पापा ने कहा-क्या हुआ बेटी?.........??.... मैं तुम्हारे साथ हूं नेहा।..... अपनी बेटी को इस हाल में देखकर पापा बदहवास हो गए लेकिन उन्होंने सबसे पहले सूझबूझ और धैर्य से काम लिया.. उन्होंने नेहा को ढांढस बंधाते हुए कहा अभी तुम धीरज से काम लो।अभी तुम्हें आराम और जल्द घर पहुंचने की जरूरत है..... और जिसने तुम्हारे साथ गलत किया है, मैं किसी को नहीं छोडूंगा बेटी।…….

………. मैं किसी काम की नहीं रही पापा..

……... तुम ऐसा क्यों कहती हो बेटी? इसके बाद उन दोनों के बीच एक गहरी खामोशी छा गई।

                    

                     मम्मी द्वार पर खड़ी थीं। सुबकते हुए नेहा ने घर में प्रवेश किया……... बेटी को इस हालत में देखकर मां घबरा गई और थोड़ी ही देर में उन्होंने सारा माजरा ताड़ लिया।….. पापा का मन आत्म ग्लानि से भर रहा था कि काश मेरी गाड़ी नहीं बिगड़ती और मैं समय पर रेलवे स्टेशन पहुंच जाता, तो नेहा के साथ यह हादसा नहीं होता लेकिन वे यह भी सोचते हैं कि क्या महिलाओं की सुरक्षा केवल भाग्य के ऊपर आधारित है? उन्हें कहीं भी जाने आने के लिए क्या केवल पुरुषों की अभिरक्षा चाहिए?

  घर वापस आने के दौरान नेहा मानो मूक भाषा में उनसे प्रश्न कर रही थी कि वहशी दरिंदे इसी तरह पूरी दुनिया में खुले घूम रहे हैं कि …...महिलाओं! बच सको तो बचो…... या फिर घर में कैद हो जाओ…..

नेहा की स्थिति को देखकर मम्मी भी क्षोभ से भर उठीं। गुस्से के मारे वे आपे से बाहर होती गईं….. उनकी की आंखों से आंसुओं की धार निकलने लगी।यह क्या हुआ नेहा? इसी दिन के लिए तुम पढ़ लिख रही थी कि तुम्हें जीवन में इतनी बड़ी त्रासदी झेलनी पड़ी…धीरे-धीरे मम्मी ने स्वयं को नियंत्रित किया…. मम्मी ने बेटी को सीने से लगा लिया और उसके सिर पर हाथ फेरा।कहा- बेटा कुछ नहीं होगा, हम लोग तुम्हारे साथ हैं।सब ठीक कर देंगे।

   मम्मी और पापा पुलिस में एफ.आई.आर. करने को लेकर असमंजस में थे।आहत नेहा कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थी। घर के ड्राइंग रूम में लगभग 15 मिनट तक चारों जड़वत रहे।

 

मम्मी- "एक बार फिर सोच लो जी, आज यह घटना केवल हम लोगों तक है। कल को पूरे शहर में चर्चा का विषय होगी।मोहल्ले में हमारा रहना दूभर हो जाएगा।"

 

पापा की शून्य में झांकती दृष्टि नेहा पर पड़ी।

 

नेहा ने कहा- "पापा मैं गहरे सदमे में हूं लेकिन मैं लड़ूँगी। हम लड़ेंगे।….और उन अपराधियों को सबक सिखाएंगे।मैं पुलिस एफ. आई. आर. के लिए तैयार हूं पापा….."

 

पापा- बेटा तुम्हारा कैरियर….तुम्हारा विवाह….

 

नेहा- मुझे इन सबकी परवाह नहीं पापा।आत्म-सम्मान से बढ़कर कुछ नहीं……..

 

योगेंद्र ©

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रचनाएँ
देह से आत्मा तक(द फिफ्थ जेंडर)
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लेखक की कलम से….✍️      हमारे समाज में प्रेम को लेकर अनेक वर्जनाएं हैं। कुछ मनुष्य शारीरिक आकर्षण और दैहिक प्रेम को ही प्रेम मानते हैं,तो कुछ हृदय और आत्मा में इसकी अनुभूति और इससे प्राप्त होने वाली दिव्यता को प्रेम मानते हैं।कुछ लोग देह से यात्रा शुरू कर आत्मा तक पहुंचते हैं।      प्रेम मनुष्य के जीवन का एक ऐसा अनूठा एहसास है,जिससे अंतस् में एक साथ हजारों पुष्प खिल उठते हैं।यह लघु उपन्यास "देह से आत्मा तक" अपने जीवन में समाज के लिए कुछ कर गुजरने की अभिलाषा से अनुप्राणित यशस्विनी नामक युवती की गाथा है।उसमें सौंदर्य और बुद्धि का मणिकांचन मेल है। वह प्रगतिशील है।उसमें प्रतिभा है,भावना है,संवेदना है,प्रेम है।उसे हर कदम पर अपने धर्मपिता और उनके साथ-साथ एक युवक रोहित का पूरा सहयोग मिलता है।दोनों के रिश्तों में एक अजीब खिंचाव है, आकर्षण है और मर्यादा है….और कभी इस मर्यादा की अग्नि परीक्षा भी होती है।क्या आत्मा तक का यह सफर केवल देह से गुजरता है या फिर प्रेम, संवेदनाएं और दूसरों के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाली भावना का ही इसमें महत्व है….इस 21वीं सदी में भी स्त्रियों की स्थिति घर से बाहर अत्यंत सतर्कता, सुरक्षा और सावधानी बरतने वाली ही बनी हुई है।यह व्यक्तिगत प्रेम और अपने कर्तव्य के बीच संतुलन रखते हुए जीवन पथ पर आने वाले संघर्षों के सामने हथियार नहीं डालने और आगे बढ़ते रहने की भी कहानी है।          समाज की विभिन्न समस्याओं और मानवता के सामने आने वाले बड़े संकटों के समाधान में अपनी प्रभावी भूमिका निभाने का प्रयत्न करने वाले इन युवाओं के अपने सपने हैं,अपनी उम्मीदें हैं।इन युवाओं के पास संवेदनाओं से रहित पाषाण भूमि में भी प्रेम के पुष्पों को खिलाने और सारी दुनिया में उस एहसास को बिखेरने के लिए अपनी भावभूमि है।प्रेम की इस गाथा में मीठी नोकझोंक है,तो कभी आंसुओं के बीच जीवन की मुस्कुराहट है। कभी देह और सच्चे प्रेम के बीच का अंतर्द्वंद है,तो आइए आप भी सहयात्री बनिए, यशस्विनी और रोहित के इस अनूठे सफर में..... और आगे क्या - क्या होता है,और कौन-कौन से नए पात्र हैं..... यह जानने के लिए इस लघु उपन्यास देह से आत्मा तक(द फिफ्थ जेंडर) के प्रकाशित होने वाले भागों को कृपया अवश्य पढ़ते रहिए …. ✍️🙏 (आवरण चित्र freepik .com से साभार) डॉ. योगेंद्र पांडेय
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