आप समझ पाते, तो बात ही क्या थी।
मेरे सपनो की, औकात ही क्या थी।
क्यों अंदर चाहतों को दबाते हम।
क्यों अपने आप में ही घुट जाते हम।
अब तो सपने आना भी भूल गए।
खुशी में गुनगुनाना भी भूल गए।
24 सितम्बर 2024
आप समझ पाते, तो बात ही क्या थी।
मेरे सपनो की, औकात ही क्या थी।
क्यों अंदर चाहतों को दबाते हम।
क्यों अपने आप में ही घुट जाते हम।
अब तो सपने आना भी भूल गए।
खुशी में गुनगुनाना भी भूल गए।
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मुझे कविता और कहानी लिखना और पढ़ना बहुत पसंद है। मन में कुछ भावनाएं और विचार आते है, उन्हें लिख लेती हूं । उम्मीद करती हूं मेरा लिखा हुआ आप लोगो को पसंद आए। यदि अच्छा लगे तो कमेंट करके मेरा प्रोत्साहन बढ़ाइएगा।D