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अब्जी डूडू

8 अप्रैल 2022

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“मुझे मत सताईए....... ख़ुदा की क़सम, मैं आप से कहती हूँ, मुझे मत सताईए”

“तुम बहुत ज़ुल्म कर रही हो आजकल!”

“जी हाँ बहुत ज़ुल्म कर रही हूँ”

“ये तो कोई जवाब नहीं”

“मेरी तरफ़ से साफ़ जवाब है और ये मैं आप से कई दफ़ा कह चुकी हूँ”

“आज मैं कुछ नहीं सुनूंगा”

“मुझे मत सताईए। ख़ुदा की क़सम, मैं आप से सच्च कहती हूँ, मुझे मत सताईए मैं चिल्लाना शुरू कर दूँगी।”

“आहिस्ता बोलो। बच्चियां जाग पड़ेंगी”

“आप तो बच्चियों के ढेर लगाना चाहते हैं।”

“तुम हमेशा मुझे यही ताना देती हो।”

“आप को कुछ ख़्याल तो होना चाहिए....... मैं तंग आचुकी हूँ।”

“दुरुस्त है....... लेकिन....... ”

“लेकिन वेकिन कुछ नहीं!”

“तुम्हें मेरा कुछ ख़याल नहीं....... असल में अब तुम मुझ से मोहब्बत नहीं करतीं....... आज से आठ बरस पहले जो बात थी वो अब नहीं रही....... तुम्हें अब मेरी ज़ात से कोई दिलचस्पी नहीं रही।”

“जी हाँ”

“वो क्या दिन थे जब हमारी शादी हुई थी। तुम्हें मेरी हरबात का कितना ख़याल रहता था। हम बाहम किस क़दर शेर-ओ-शकर थे....... मगर अब तुम कभी सोने का बहाना कर देती हो। कभी थकावट का उज़्र पेश कर देती और कभी दोनों कान बंद कर लेती हो। कुछ सुनती ही नहीं।”

“मैं कुछ सुनने के लिए तैय्यार नहीं!”

“तुम ज़ुल्म की आख़िरी हद तक पहुंच गई।”

“मुझे सोने दीजीए।”

“सो जाईए....... मगर मैं सारी रात करवटें बदलता रहूँगा....... आप की बला से!”

“आहिस्ता बोलिए....... साथ हमसाए भी हैं”

“हआ करें”

“आप को तो कुछ ख़याल ही नहीं....... सुनेंगे तो क्या कहेंगे।”

“कहेंगे कि इस ग़रीब आदमी को कैसी कड़ी बीवी मिली है।”

“ओह हो”

“आहिस्ता बोलो....... देखो बच्ची जाग पड़ी!”

“अल्लाह अल्लाह....... अल्लाह जी अल्लाह....... अल्लाह अल्लाह....... अल्लाह जी अल्लाह....... सो जाओ बेटे सो जाओ.......अल्लाह, अल्लाह....... अल्लाह जी अल्लाह....... ख़ुदा की क़सम आप बहुत तंग करते हैं, दिन भर की थकी माँदी को सोने तो दीजीए!”

“अल्लाह, अल्लाह....... अल्लाह जी, अल्लाह....... अल्लाह अल्लाह....... अल्लाह जी अल्लाह....... तुम्हें अच्छी तरह सुलाना भी नहीं आता....”

“आप को तो आता है ना....... सारा दिन आप घर में रह कर यही तो करते रहते हैं”

“भई में सारा दिन घर में कैसे रह सकता हूँ....... जब फ़ुरसत मिलती है आजाता हूँ और तुम्हारा हाथ बटा देता हूँ।”

“मेरा हाथ बटाने की आप को कोई ज़रूरत नहीं। आप मेहरबानी करके घर से बाहर अपने दोस्तों ही के साथ गुलछड़े उड़ाया करें।”

“गुल छड़े?”

“मैं ज़्यादा बातें नहीं करना चाहती”

“अच्छा देखो, मेरी एक बात का जवाब दो.... ”

“ख़ुदा के लिए मुझे तंग ना कीजीए।”

“कमाल है मैं कहाँ जाऊं”

“जहां आप के सींग समाएं चले जाईए”

“लो अब हमारे सींग भी होगए”

“आप चुप नहीं करेंगे”

“नहीं.... मैं आज बोलता ही रहूँगा। ख़ुद सोऊंगा न तुम्हें सोने दूंगा”

“सच्च कहती हूँ, मैं पागल हो जाऊंगी....... लोगो ये कैसा आदमी है.... कुछ समझता ही नहीं....... बस हरवक़्त। हरवक़्त। हरवक़्त....... ”

“तुम ज़रूर तमाम बच्चियों को जगह कर रहोगी।”

“ना पैदा की होतीं इतनी!”

“पैदा करने वाला मैं तो नहीं हूँ....... ये तो अल्लाह की देन है....... अल्लाह, अल्लाह....... अल्लाह जी, अल्लाह, अल्लाह....... अल्लाह जी, अल्लाह।”

“बच्ची को अब मैंने जगाया था?”

“मुझे अफ़्सोस है!”

“अफ़्सोस है, कह दिया....... चलो छुट्टी हुई....... गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाये चले जा रहे हैं। हमसायगी का कुछ ख़याल ही नहीं लोग क्या कहेंगे इसकी पर्वा ही नहीं....... ख़ुदा की क़सम मैं अनक़रीब ही दीवानी हो जाऊंगी!”

“दीवाने हूँ तुम्हारे दुश्मन”

“मेरी जान के दुश्मन तो आप हैं”

“तो ख़ुदा मुझे दीवाना करे”

“वो तो आप हैं!”

“मैं दीवाना हूँ, मगर तुम्हारा”

“अब चोंचले ना बघारीए”

“तुम तो न यूं मानती हो न वूं”

“मैं सोना चाहती हूँ”

“सो जाओ, मैं पड़ा बकवास करता रहूँगा”

“ये बकवास क्या अशद ज़रूरी है”

“है तो सही....... ज़रा इधर देखो....... ”

“मैं कहती हूँ, मुझे तंग न कीजीए। मैं रो दूंगी”

“तुम्हारे दिल में इतनी नफ़रत क्यों पैदा होगई....... मेरी सारी ज़िंदगी तुम्हारे लिए है। समझ में नहीं आता तुम्हें क्या होगया है....... मुझ से कोई ख़ता हुई हो तो बता दो।”

“आप की तीन ख़ताएं ये सामने पलंग पर पड़ी हैं”

“ये तुम्हारे कोसने कभी ख़त्म नहीं होंगे”

“आप की हट कब ख़त्म होगी?”

“लो बाबा मैं तुम से कुछ नहीं कहता। सो जाओ....... मैं नीचे चला जाता हूँ।”

“कहाँ?”

“जहन्नम में”

“ये क्या पागलपन है....... नीचे इतने मच्छर हैं, पंखा भी नहीं....... सच्च कहती हूँ, आप बिलकुल पागल हैं....... मैं नहीं जाने दूंगी आप को”

“मैं यहां क्या करूंगा....... मच्छर हैं पंखा नहीं है, ठीक है। मैंने ज़िंदगी के बुरे दिन भी गुज़ारे भी हैं। तन आसान नहीं हूँ....... सो जाऊंगा सोफ़े पर”

“सारा वक़्त जागते रहेंगे”

“तुम्हारी बला से”

“मैं नहीं जाने दूंगी आप को....... बात का बतंगड़ बना देते हैं”

“मैं मर नहीं जाऊंगा....... मुझे जाने दो”

“कैसी बातें मुँह से निकालते हैं!....... ख़बरदार जो आप गए!”

“मुझे यहां नींद नहीं आएगी”

“ना आए”

“ये अजीब मंतिक़ है....... मैं कोई लड़झगड़ कर तो नहीं जा रहा”

“लड़ाई झगड़ा क्या अभी बाक़ी है....... ख़ुदा की क़सम आप कभी कभी बिलकुल बच्चों की सी बातें करते हैं। अब ये ख़बत सर में समाया है कि मैं नीचे गर्मी और मच्छरों में जा कर सोऊंगा....... कोई और होती तो पागल हो जाती।”

“तुम्हें मेरा बड़ा ख़याल है”

“अच्छा बाबा नहीं है.......आप चाहते क्या हैं?”

“अब सीधे रास्ते पर आई हो”

“चलीए हटीए....... मैं कोई रास्ता वास्ता नहीं जानती। मुँह धोके रखीए अपना”

“मुँह सुबह धोया जाता है....... लो, अब मन जाओ”

“तोबा!”

“साड़ी पर वो बोर्डर लग कर आगया?”

“नहीं!”

“अजब उल्लू का पट्ठा है दर्ज़ी....... कह रहा था आज ज़रूर पहुंचा देगा।”

“लेकर आया था, मगर मैंने वापस करदी....... ”

“क्यों?”

“एक दो जगह झोल थे।”

“ओह....... अच्छा, मैंने कहा, कल “बरसात” देखने चलेंगे। मैंने पास का बंद-ओ-बस्त कर लिया है।”

“कितने आदमीयों का?”

“दो का....... क्यों?”

“बाजी भी जाना चाहती थीं।”

“हटाओ बाजी को पहले हम देखेंगे फिर उस को दिखा देंगे....... पहले हफ़्ते में पास बड़ी मुश्किल से मिलते हैं....... चांदनी रात में तुम्हारा बदन कितना चमक रहा है”

“मुझे तो इस चांदनी से नफ़रत है। कमबख़्त आँखों में घुसती है। सोने नहीं देती”

“तुम्हें तो बस हर वक़्त सोने ही की पड़ी रहती है”

“आप को बच्चियों की देख भाल करना पड़े तो फिर पता चले। आटे दाल का भाव मालूम हो जाएगा। एक के कपड़े बदलो, तो दूसरी के मैले हो जाते हैं। एक को सुलाऊ, दूसरी जाग पड़ती है, तीसरी नेअमत ख़ाने की ग़ारतगरी में मसरूफ़ होती है।”

“दो नौकर घर में मौजूद हैं”

“नौकर कुछ नहीं करते”

“ले आऊं, नीचे से?”

“जल्दी जाईए रोना शुरू कर देगी”

“जाता हूँ!”

“मैंने कहा, सुनिए....... आग जला कर ज़रा कुनकुना कर कीजीएगा दूध”

“अच्छा, अच्छा....... सुन लिया है!”

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सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ
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बटवारे के बाद जब फ़िर्का-वाराना फ़सादात शिद्दत इख़्तियार कर गए और जगह जगह हिंदूओं और मुस्लमानों के ख़ून से ज़मीन रंगी जाने लगी तो नसीम अख़तर जो दिल्ली की नौ-ख़ेज़ तवाइफ़ थी अपनी बूढ़ी माँ से कहा “चलो माँ यहां

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चवन्नी लाल ने अपनी मोटर साईकल स्टाल के साथ रोकी और गद्दी पर बैठे बैठे सुबह के ताज़ा अख़्बारों की सुर्ख़ियों पर नज़र डाली। साईकल रुकते ही स्टाल पर बैठे हुए दोनों मुलाज़िमों ने उसे नमस्ते कही थी। जिस का जवा

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नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के

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कुत्ते की दुआ

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मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

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जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

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[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

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तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

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कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

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पढ़े कलिमा

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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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पीरन

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ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

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पढ़े कलिमा

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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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फ़रिश्ता

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सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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बलवंत सिंह मजीठिया

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शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

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नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

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बादशाहत का ख़ात्मा

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टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

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बिलाउज़

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कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

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सरकण्डों के पीछे

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कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

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मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

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मलबे का ढेर

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मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

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मिसेज़ डी सिल्वा

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बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

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प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

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मेरा और उसका इंतिक़ाम

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घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

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वह लड़की

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सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

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वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

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हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

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शादी

9 अप्रैल 2022
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जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

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सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
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“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

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शारदा

9 अप्रैल 2022
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नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

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सिराज

9 अप्रैल 2022
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नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

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हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
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इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

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सजदा

9 अप्रैल 2022
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गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

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लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
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अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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संतर पंच

9 अप्रैल 2022
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मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

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शैदा

9 अप्रैल 2022
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शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

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राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
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खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

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रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

9 अप्रैल 2022
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ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

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मिस फ़र्या

9 अप्रैल 2022
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शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

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मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
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कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

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बुड्ढ़ा खूसट

9 अप्रैल 2022
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ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

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शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
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वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

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चुग़द

9 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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