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अध्याय 10: हाँ , अब फिर लिखूंगा

24 अगस्त 2023

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गृहदाह के बाद वह कलकत्ता आया । साथ में पत्नी थी और था उसका प्यारा कुत्ता। अब वह कुत्ता लिए कलकत्ता की सड़कों पर प्रकट रूप में घूमता था । छोटी दाढ़ी, सिर पर अस्त-व्यस्त बाल, मोटी धोती, पैरों में चट्टी, बदन पर चाइना कोट, कोई भी देखकर बता सकता था कि यह व्यक्ति शहरी नहीं हैं।

इस बार खोज-खोजकर उसने मित्रों से भेंट की। सौरीन्द्रमोहन मुकर्जी 'भारती' का सम्पादन कर रहे थे। वह उनसे मिलने के लिए गया । कलकत्ता छोड़ने के बाद यह शायद उनकी पहली भेंट थी। दोनों ने एक-दूसरे को बहुत कुछ कहा-सुना। शरत् ने कहा, ने “चिकित्सा के लिए मैं कलकत्ता आया था। तुम्हारी बहुत खोज की, लेकिन भेंट न हो सकी।"

सौन्द्रमोहन ने कहा, "तुमने लिखना क्यों छोड़ दिया? समझ में नहीं आता। तुम नहीं जानते कि तुम्हारे लिखने से बंगला साहित्य की कितनी समृद्धि होगी ? तुम्हारे भाग्य में महान होना लिखा है। 'भारती' में जब 'बडी दीदी' छपी थी तो बहुत शोर मचा था कि वह रवीन्द्रनाथ की रचना है।"

उन्होंने विस्तार से वह कहानी पढ़ सुनाई । यह भी बताया कि रवीन्द्रनाथ ने क्या कहा था। शरत् जानता न हो यह बात नहीं, लेकिन विश्वस्त रूप में एक मित्र के मुख से सुनना और ही बात है। बोला, “जहां जा पड़ा हूं और रोजगार की चेष्टा में जिस प्रकार फंस गया हूं, उससे अब मन टूट गया है।”

मुकर्जी महोदय बड़े आग्रह के साथ उसे घर ले गए। मामा उपेन्द्रनाथ गांगुली, एक युवक साहित्यिक फणीन्द्रनाथ पाल तथा और कई व्यक्ति भी आ जुटे थे। कालीपूजा का पर्व था। दोपहर के दो बज चुके थे। घर के बच्चे आतिशबाज़ी लेकर धमाचौकड़ी मचा रहे थे। लेकिन शरत् ने सौरीन्द्रमोहन से कहा, “एक बार 'बड़ी दीदी' पढ़ो तो सुनूंगा। ठीक याद नहीं, क्या कहानी लिखी थी।

उसके बाद बैठक में बिछे तख्तपोश 2 पर लेट गया और बोला, “तुम पढ़ो, मैं सुनता हूं।"

सौरीन्द्रमोहन कहानी पढ़ने लगे। सुनते-सुनते शरत् अभिभूत हो उठा। आंखों में पानी भर आया। बीच-बीच में बोल उठता, “रुको-रुको क्या यह मेरा ही लिखा हुआ है? बहुत खराब तो नहीं लिखा। सुनकर मन भर आया है। यह कहानी मैंने अपनी ही हाथ से लिखी है ! आश्चर्य होता है। "

मुकर्जी बोले, "यही तो, लोग ऐसा लिख पाते हैं वे ही यदि लिखना छोड़कर हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाएं तब उनका अपराध क्षमा नहीं किय जा सकता। तुम अगर नहीं लिखोगे तो मैं समझता हूं कि आत्महत्या करोगे । रवीन्द्रनाथ ने कहा था, 'तुम यदि नहीं लिखते तो निष्ठुरता ही होगी।”

कहानी में जिस जगह रोग - शय्या पर लेटे हुए सुरेन्द्रनाथ ने अपनी स्त्री शान्ति की दीवार पर टंगी हुई अपनी छवि दिखाकर कहा था, “यह तस्वीर अगर चार ब्राह्मणों के द्वारा नदी के किनारे जला सको, नाम की कीमत समझने के लिए.. " उस स्थान पर जब मुकर्जी पढ़ रहे थे, तब आखें बन्द किए शरत् पागलों की तरह उठ बैठा। और उसका हाथ पकड़कर बोला, रुको।'

उसे कण्ठावरोध हो आया था। कई क्षण वह चुपचाप बैठा रहा। उसके बाद दीर्घ निःश्वास छोड़कर बोला, “अब पढ़ो।”

मुकर्जी ने फिर पढ़ना शुरू किया। वह लेट गया और लेटे-लेटे आखें बन्द किए उसने बाकी कहानी सुनी। समाप्त होने पर बोला, “अच्छा तो लिखा है। हां, अब मैं फिर लिखूंगा। तुम लोगों का विश्वास है कि मैं अच्छी कहानी लिखता हूं?”

मुकर्जी बोल, फणीन्द्र पाल ने इस वर्ष बी०ए० पास किया है, सरकारी नौकरी नहीं करना चाहता । 'यमुना नाम की एक पत्रिका निकालने का विचार कर रहे हैं। उसी के संपादन में जीवन समर्पण कर देने कई कामना है। इनके पत्र में तुम्हें लिखना होगा।”

शरत् बोला, "हां, लिखूंगा, यदि तुम लोग भी लिखो। तुम लोग यानी निरुपमा, सुरेन, गिरीन विभूति, तुम, तुम्हारी छोटी बहन और उपेन, तब मैं भी निश्चय ही लिखूंगा। मैंने एक अद्भुत रचना लिखी थी, 'नारी का इतिहास' । लगभग पांच सौ पन्ने फुलस्केप साइज़ के थे। घर जल जाने पर सब राख हो गया। कहानी नहीं थी, लेकिन गल्प - उपन्यास से भी बहुत अधिक रोचक थे। अनेक इतिहास और पुरातत्व की पुस्तकें तथा अनेक जीवनियों का अनुशीलन करके उसे लिखा था। उसके भस्मसात् हो जाने पर मन को बड़ी चोट लगी है।" मुकर्जी ने कहा, “क्या कुछ भी याद नहीं ?"

शरत् बोला, "कुछ-कुछ याद है।”

मुकर्जी ने कहा, “जितना याद है, उसी के आधार पर लिखना शुरू कर दो!”

शरत् बोला, “लिखूंगा। एक और कहानी लिखी है। वह प्रकाण्ड उपन्यास होगा। चौथाई हिस्सा लिखा पड़ा है। वह भी तुमको पढ़ने को दूंगा। कहानी का नाम है 'चरित्रहीन' । यदि उसे पूरा कर सका तो वह एक नई चीज़ होगी। दो-तीन महीने बाद फिर एक बार कलकत्ता आना ही है। साथ लेता आऊंगा। यदि 'नारी का इतिहास' लिख सका, तो उसके भी लेता आऊंगा। इस बार आकर कुछ दिन कलकत्ता रहूंगा।”

'चरित्रहीन' के कुछ पृष्ठ वह अपने साथ लाया भी था। उस समय 'साहित्य' पत्रिका बड़ी धूम थी । समाजपति महोदय उसके सम्पादक थे। वे पृष्ठ लेकर शरत् उपेन्द्र मामा के साथ उनसे भी मिला। फणीन्द्रनाथ से भी चर्चा हुई। लेकिन अभी तक उसकी पूरी रूपरेखा स्पष्ट नहीं हुई थी । शरत् स्वयं भी कुछ नहीं कह सकता था। इसलिए कोई अन्तिम निर्णय नही हो सका। और फिर से लिखने का आश्वासन देकर वह रंगून लौट गया। आने से पूर्व इस बार बहरामपुर जाकर विभूतिभूषण भट्ट और निरुपमा देवी से भी मिलना वह नहीं भूला।

शीघ्र ही छुट्टी लेकर वह फिर कलकत्ता आया। यद्यपि मित्रों से परिचय हो गया था लेकिन इस बार भी वह किसी के पास नहीं ठहरा। वहीं ठहरा जहां भले आदमी नहीं ठहरा करते। पिछली बार वह हावड़ा के एक वेश्यालय में ठहरा था। खोजते खोजते जब मामा उपेन्द्रनाथ वहां पहुंचे तो देखा पास ही एक मकान में शीशे के सामने खड़ी एक स्त्री बाल संवार रही है। उसी से पूछा, क्या यहां कोई शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय ठहरे है? वे रंगून से आये हैं"।

स्त्री ने उत्तर दिया, “ओह, दादा ठाकुर के बारे में पूछते है? “वे ना ऊपर है। यह जो जीना है, इससे आप ऊपर चले जाएं। सामने ही मिलेंगे।”

ऊपर जाकर उपेन्द्रनाथ ने देखा कि शरत् 'चरित्रहीन' लिखने में व्यस्त है।

बहुत दिनों बादबहुत दिनों बाद फणीन्द्रनाथ पाल ने लिखा, “उस दिन की बात याद आती है। श्रीयुत उपेन्द्रनाथ गंगोपाध्याय ने सूचना दी - शरत् कलकत्ता आया है। कल वह मेरे घर आया था, कहां ठहरा है बताकर नहीं गया। उसे कैसे खोजा जाय, इस पर बहुत सोचा। जो भी हो अनन्तः हमने उसे खोज ही लिया।”

इस बार वह 'चरित्रहीन' की पाण्डुलिपि साथ लेकर आया था। बादामी रंग के फुलस्केप नाप के कोई 70-80 पृष्ठ होंगे। मुकर्जी से उसने कहा, “पढ़कर देखो, चल सकता है या नहीं। प्रकाण्ड उपन्यास होगा। तुम लोगों की राय जानने के बाद ही इसे पूरा करूंगा। अभी तक तो कथा में नायिका का प्रवेश ही नहीं हुआ है। इसकी नायिका 'किरणमयी' है। यह एक नयी चीज़ होगी।"

. वे पृष्ठ उसने यमुना' के सम्पादक फणीन्द्रनाथ पाल को भी पढ़कर सुनाए थे। सुनते- सुनते पाल महाशय तन्मय हो उठे और बार बार उसे पूरा करने का अनुरोध करने लगे। कहा, “मैं इस उपन्यास को निश्चय ही 'यमुना' में प्रकाशित करना चाहता हूं।”

'भारती' और 'साहित्य' के संपादकों, से भी उसके प्रकाशन की चर्चा हुई। किसी कारणवश उस समय साहित्य के संपादक उसे स्वीकार नहीं कर सके। 'भारती' का दावा सबसे पहला था, क्योंकि प्रकाश मे आनेवाली, उसकी एकमात्र रचना 'बड़ी दीदी' उसी में छपी थी। कहना चाहिए कि 'भारती' के संपादक सबसे पहले शरत् को प्रकाश में लाए थे। मुकर्जी महाशय ने 'चरित्रहीन' के वे अंश स्वयं पढ़े और फिर स्वर्णाकुमारी देवी को दिए । वह तो पढ़कर गद्गद हो उठी। बोली, “रचना चमत्कार है। लेकिन पूरी पढ़ लेने पर ही कुछ कहा जा सकेगा। उसके बाद मुझे देना। मैं इसके लिए 100 रुपये पेशगी दे सकती हूं।”

इस प्रस्ताव से शरत् तनिक भी उत्साहित नहीं हुआ। कहा “यह रचना जल्दी में पूरी नहीं हो सकती, बहुत सोच समझकर लिखता हूं।” लेकिन किरणमयी की कथा जब लिखी जायेगी तब क्या यह एक महिला द्वारा सम्पादित साहित्य में प्रकाशित करने योग्य रह जायेगी ? शायद नहीं।”

अब केवल यमुना ही शेष रह गई थी। निश्चय हुआ कि इसे धारावाहिक रूप में प्रकाशित किया जाए। फणीन्द्रनाथ पत्रिका में पृष्ठ संख्या बढ़ाने के लिए राज़ी हो गए। लेकिन अभी तो रचना पढ़ी नहीं हुई थी। इसलिए यमुना में उसकी एक पुरानी कहानी 'बोझा' प्रकाशित हुई । 'बड़ी दीदी' के बाद उसके नाम से किसी पत्र में प्रकाशित होने वाली उसकी यह सर्वप्रथम रचना थी। लेकिन इसके लिए भी किसी ने उससे नहीं पूंछा था था। सुरेन्द्रनाथ से लेकर सौरीन्द्रमोहन ने यह रचना 'यमुना' के लिए दे दी थी इस बात से शरत् बहुत दुखी हुआ। उसने तुरन्त अपने मित्रो को लिखा, “अब बिना मेरी अनुमति के मेरी कोई पुरानी रचना प्रकाशित नहीं की जानी चाहिए।”

वह अपनी पुरानी रचनाओं को अच्छा नहीं समझता था और उसके मित्र उन्हें प्रकाश में लाने के लिए कटिबद्ध हो चुके थे। लेकिन यह समझ नहीं आता कि पांच वर्ष पूर्व 'बड़ी दीदी' प्रकाशन के अवसर पर वे सब लोग क्यों चुप रहे। न तो उन्होंने शरत् की तलाश की और न स्वयं शरत् ने ही लिखने की पहल की। क्या वह आश्चर्य की बात नहीं कि 'बड़ी दीदी' के अभूतपूर्व स्वागत और रवीन्द्रनाथ की प्रशंसा की बात सुनकर भी नई रचनाएं लिखने या पुरानी छपवाने की प्रवृत्ति उसमें नहीं जागी ।

ऐसा लगता है तब तक भी वह अपने लिखने के बारे में आश्वस्त नहीं हा पाया था। संभवत: रवीन्द्रनाथ द्वारा अपनी प्रशंसा सुनकर उसके मन में, उनके जैसा लिखने की प्रवृत्ति और भी सघन हो उठी। कुछ दिन पूर्व ही उन्हें नोबेल पुरस्कार मिल चुका था। और उनकी इस अभूतपूर्व ख्याति ने देश का मस्तक ऊंचा किया था। शरत् के सामने वही ऊंचा लक्ष्य रहा होगा। 'चरित्रहीन' की रचना के पीछे साधना का जो इतिहास है, वह उसकी इस कामना का साक्षी है।

इस बार कलकत्ता आने के बाद उसका अज्ञातवास प्रायः समाप्त हो चुका था । और वह अपरिचय के अन्धकार से बाहर आ गया था। होनहार लेखक के रूप में उसकी प्रतिष्ठा भी हो चुकी थी। यहां तक कि उसने नौकरी छोड़ देने का विचार कर लिया। कहा, “यदि लिखने से सौ रुपये मासिक का भी प्रबन्ध हो सकता है, तो मैं नौकरी छोड़कर कलकत्ता आ बसूंगा।"

'भारती' की संपादिका स्वर्णकुमारी देवी और ‘यमुना' के संपादक फणीन्द्रनाथ पाल इतना प्रबन्ध करने के लिए सहमत हो गए। पाल महाशय शरत् के पूर्ण भक्त हो गए थे। उसके लिए कुछ भी करने को तैयार थे। उनकी मां भी उससे स्नेह करने लगी थीं। सामने बिठाकर खाना खिलाती थीं। अपनी मां की मृत्यु के 15-16 वर्ष बाद उसे ऐसा प्यार मिला था। उसने कहा, “फणीन्द्र, तुम्हारी मां के रूप में मानो मैंने अपनी मां का स्नेह फिर पा लिया है।”

उसके रंगून लौट जाने पर जब उसकी बीमारी की सूचना मिली तो मां कुशल- समाचार पाने को बड़ी व्यग्र हो उठी। तब फिर शरत् ने फणि को लिखा, “आपकी माता मेरे बारे में पूछताछ करती हैं, मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात है। उनसे कह दें, मैं बिलकुल ठीक हो गया हूं। मेरे बारे में पूछताछ करनेवाला संसार में एक प्रकार से कोई नहीं है। इसलिये अगर कोई मेरे बारे में भला-बुरा जानना चाहता है तो सुनकर हृदय कृतज्ञता से भर जाता है। मेरे जैसे हतभाग्य संसार में बहुत ही कम हैं ....

इसके कुछ दिन बाद ही, उसने रंगून से अपने मित्र प्रमथनाथ को एक पत्र लिखा। उससे भी स्पष्ट होता है कि उसने अपनी शक्ति को पहचान लिया था और नियमित रूप से लिखने का मार्ग प्रशस्त हो गया था। उसने लिखा, “प्रमथ, एक अहंकार की बात कहता हूं। माफ करना, यदि करो तो कहूं। मुझसे अच्छे उपन्यास और कहानी रवि बाबू को छोड़कर और कोई नहीं लिख सकेगा। जब यह बात समझ लो, उसी दिन मुझसे लिखने के लिए कहना, उससे पहले नहीं । तुमसे मेरा यही अनुरोध है। इस विषय में मैं किसी की झूठी खातिरदारी नहीं चाहता, सच्ची चाहता हूं।”

मामा उपेन्द्रनाथ को और भी स्पष्ट शब्दों में लिखा, “मुझसे अच्छा मर्मज्ञ आज के युग एक रवि बाबू को छोड़कर और कोई नहीं है। यह मत सोचना कि मैं गर्व कर रहा हूं। लेकिन चाहे मेरी निर्भरता कहा, चाहे गर्व ही कहो, मेरी धारणा यही है।”

और उसकी यह धारणा अन्त तक बनी रही। बहुत वर्षों बाद कथाशिल्पी शरत्चन्द्र ने कहा था, “मेरी उमर हो गई। रवीन्द्रनाथ की भी उमर हो गई। बीच-बीच में आशंका होती है। कि इसके बाद बंगला भाषा के उपन्यास साहित्य का स्थान शायद नीचा हो जाए।”

इसी समय बंगला साहित्य जगत् में एक क्रान्तिकारी घटना का सूत्रपात हुआ। सूचना प्रसारित हुई कि शीघ्र ही 'भारतवर्ष नाम का एक पत्र प्रकाशित होने जा रहा है। सुप्रसिद्ध नाटककार द्विजेन्द्रलाल राय उसके संपादक मनोनीत हुए और उसका वार्षिक मूल्य रखा गया 6 रुपये। उस समय तक किसी भी पत्रिका का वार्षिक मूल्य तीन रुपये छः आने से अधिक नहीं था। अपने मूल्य मात्र से ही 'भारतवर्ष' ने विस्मय और कौतूहल पैदा कर दिया।

कुछ वर्ष पूर्व कलकत्ता में 'इवनिंग क्लब' नाम से एका सांध्य समिति स्थापित हुई थी। इसके सभापति थे द्विजेन्द्रलाल राय और संपादक पद पर प्रतिष्ठित हुए प्रमथनाथ भट्टाचार्य । प्रसिद्ध प्रकाशक गुरुदास चट्टोपाध्याय एण्ड सन्स के मालिक श्री हरिदास चट्टोपाध्याय इसके प्रधान सभ्य और पृष्ठपोषक बने। दूसरे सदस्यों में अनेक गण्यमान्य विद्वान थे। प्रमथ ने प्रस्ताव किया कि समिति की ओर से एक पत्रिका प्रकाशित की जाए।

अध्यक्ष द्विजेन्दलालराय ने कहा, “लेकिन इससे तो क्लब की हानि होगी। जब सदस्य संख्या सौ तक सीमित हो तब पत्र निकालना मूर्खता है।”

दूसरे सदस्यों ने भी उनका समर्थन किया। किन्तु प्रमथ बाबू तो हठी थे। न सही क्लब की ओर से लेकिन पत्र तो निकल सकता है। बस, उन्होंने निश्चय किया कि राय महोदय के संपादकत्व में 'भारतवर्ष' नाम का एक पत्र प्रकाशित किया जाए। उन्होंने अपने सहपाठी और मित्र श्री हरिदास चट्टोपाध्याय को शामिल होने के लिए राज़ी कर लिया। विश्वास दिलाया कि यदि शरत् को लिखने के लिए विवश करने में सफल हो गया तो फिर चिन्ता की कोई बात नहीं। कोई दूसरी पत्रिका इसका मुकाबल नहीं कर सकेगी।

शरत् की लेखनी में जब उसके मित्रों को इतना विश्वास था तब यदि उसके मन में रवीन्द्रनाथ के जैसा लिखने की भावना पैदा हुई तो स्वाभाविक ही है। प्रमथ उसके परम मित्र थे और उनके दल के पास धन भी था। इस बात से फणीन्द्र पाल डर गए। शरत् यदि 'भारतवर्ष' में लिखने लगा तो 'यमुना' का क्या होगा? क्या वह बिना पैसा लिए यमुना' में लिख सकेंगे?

शरत् को जब इस बात का पता लगा तो उसने फणि को विश्वास दिलाया कि वह 'यमुना' में लिखेगा। पैसे का गुलाम नहीं होगा। 'भारतवर्ष' का तो प्रकाशन भी अभी नहीं हुआ है।

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रचनाएँ
आवारा मसीहा
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मूल हिंदी में प्रकाशन के समय से 'आवारा मसीहा' तथा उसके लेखक विष्णु प्रभाकर न केवल अनेक पुरस्कारों तथा सम्मानों से विभूषित किए जा चुके हैं, अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद प्रकाशित हो चुका है और हो रहा है। 'सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार' तथा ' पाब्लो नेरुदा सम्मान' के अतिरिक्त बंग साहित्य सम्मेलन तथा कलकत्ता की शरत समिति द्वारा प्रदत्त 'शरत मेडल', उ. प्र. हिंदी संस्थान, महाराष्ट्र तथा हरियाणा की साहित्य अकादमियों और अन्य संस्थाओं द्वारा उन्हें हार्दिक सम्मान प्राप्त हुए हैं। अंग्रेजी, बांग्ला, मलयालम, पंजाबी, सिन्धी , और उर्दू में इसके अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं तथा तेलुगु, गुजराती आदि भाषाओं में प्रकाशित हो रहे हैं। शरतचंद्र भारत के सर्वप्रिय उपन्यासकार थे जिनका साहित्य भाषा की सभी सीमाएं लांघकर सच्चे मायनों में अखिल भारतीय हो गया। उन्हें बंगाल में जितनी ख्याति और लोकप्रियता मिली, उतनी ही हिंदी में तथा गुजराती, मलयालम तथा अन्य भाषाओं में भी मिली। उनकी रचनाएं तथा रचनाओं के पात्र देश-भर की जनता के मानो जीवन के अंग बन गए। इन रचनाओं तथा पात्रों की विशिष्टता के कारण लेखक के अपने जीवन में भी पाठक की अपार रुचि उत्पन्न हुई परंतु अब तक कोई भी ऐसी सर्वांगसंपूर्ण कृति नहीं आई थी जो इस विषय पर सही और अधिकृत प्रकाश डाल सके। इस पुस्तक में शरत के जीवन से संबंधित अंतरंग और दुर्लभ चित्रों के सोलह पृष्ठ भी हैं जिनसे इसकी उपयोगिता और भी बढ़ गई है। बांग्ला में यद्यपि शरत के जीवन पर, उसके विभिन्न पक्षों पर बीसियों छोटी-बड़ी कृतियां प्रकाशित हुईं, परंतु ऐसी समग्र रचना कोई भी प्रकाशित नहीं हुई थी। यह गौरव पहली बार हिंदी में लिखी इस कृति को प्राप्त हुआ है।
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भूमिका

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संस्करण सन् 1999 की ‘आवारा मसीहा’ का प्रथम संस्करण मार्च 1974 में प्रकाशित हुआ था । पच्चीस वर्ष बीत गए हैं इस बात को । इन वर्षों में इसके अनेक संस्करण हो चुके हैं। जब पहला संस्करण हुआ तो मैं मन ही म

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भूमिका : पहले संस्करण की

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कभी सोचा भी न था एक दिन मुझे अपराजेय कथाशिल्पी शरत्चन्द्र की जीवनी लिखनी पड़ेगी। यह मेरा विषय नहीं था। लेकिन अचानक एक ऐसे क्षेत्र से यह प्रस्ताव मेरे पास आया कि स्वीकार करने को बाध्य होना पड़ा। हिन्दी

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तीसरे संस्करण की भूमिका

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लगभग साढ़े तीन वर्ष में 'आवारा मसीहा' के दो संस्करण समाप्त हो गए - यह तथ्य शरद बाबू के प्रति हिन्दी भाषाभाषी जनता की आस्था का ही परिचायक है, विशेष रूप से इसलिए कि आज के महंगाई के युग में पैंतालीस या,

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" प्रथम पर्व : दिशाहारा " अध्याय 1 : विदा का दर्द

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किसी कारण स्कूल की आधी छुट्टी हो गई थी। घर लौटकर गांगुलियो के नवासे शरत् ने अपने मामा सुरेन्द्र से कहा, "चलो पुराने बाग में घूम आएं। " उस समय खूब गर्मी पड़ रही थी, फूल-फल का कहीं पता नहीं था। लेकिन घ

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अध्याय 2: भागलपुर में कठोर अनुशासन

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भागलपुर आने पर शरत् को दुर्गाचरण एम० ई० स्कूल की छात्रवृत्ति क्लास में भर्ती कर दिया गया। नाना स्कूल के मंत्री थे, इसलिए बालक की शिक्षा-दीक्षा कहां तक हुई है, इसकी किसी ने खोज-खबर नहीं ली। अब तक उसने

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अध्याय 3: राजू उर्फ इन्दरनाथ से परिचय

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नाना के इस परिवार में शरत् के लिए अधिक दिन रहना सम्भव नहीं हो सका। उसके पिता न केवल स्वप्नदर्शी थे, बल्कि उनमें कई और दोष थे। वे हुक्का पीते थे, और बड़े होकर बच्चों के साथ बराबरी का व्यवहार करते थे।

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अध्याय 4: वंश का गौरव

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मोतीलाल चट्टोपाध्याय चौबीस परगना जिले में कांचड़ापाड़ा के पास मामूदपुर के रहनेवाले थे। उनके पिता बैकुंठनाथ चट्टोपाध्याय सम्भ्रान्त राढ़ी ब्राह्मण परिवार के एक स्वाधीनचेता और निर्भीक व्यक्ति थे। और वह

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अध्याय 5: होनहार बिरवान .......

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शरत् जब पांच वर्ष का हुआ तो उसे बाकायदा प्यारी (बन्दोपाध्याय) पण्डित की पाठशाला में भर्ती कर दिया गया, लेकिन वह शब्दश: शरारती था। प्रतिदिन कोई न कोई काण्ड करके ही लौटता। जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया उस

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अध्याय 6: रोबिनहुड

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तीन वर्ष नाना के घर में भागलपुर रहने के बाद अब उसे फिर देवानन्दपुर लौटना पड़ा। बार-बार स्थान-परिवर्तन के कारण पढ़ने-लिखने में बड़ा व्याघात होता था। आवारगी भी बढ़ती थी, लेकिन अनुभव भी कम नहीं होते थे।

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अध्याय 7: अच्छे विद्यार्थी से कथा - विद्या - विशारद तक

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शरत् जब भागलपुर लौटा तो उसके पुराने संगी-साथी प्रवेशिका परीक्षा पास कर चुके थे। 2 और उसके लिए स्कूल में प्रवेश पाना भी कठिन था। देवानन्दपुर के स्कूल से ट्रांसफर सर्टिफिकेट लाने के लिए उसके पास पैसे न

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अध्याय 8: एक प्रेमप्लावित आत्मा

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इन दुस्साहसिक कार्यों और साहित्य-सृजन के बीच प्रवेशिका परीक्षा का परिणाम - कभी का निकल चुका था और सब बाधाओं के बावजूद वह द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हो गया था। अब उसे कालेज में प्रवेश करना था। परन्तु

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जिस समय शरत्चन्द का जन्म हुआ क वह चहुंमुखी जागृति और प्रगति का का था। सन् 1857 के स्वाधीनता संग्राम की असफलता और सरकार के तीव्र दमन के कारण कुछ दिन शिथिलता अवश्य दिखाई दी थी, परन्तु वह तूफान से पूर्व

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शरत जब दूसरी बार भागलपुर लौटा तो यह दलबन्दी चरम सीमा पर थी। कट्टरपन्थी लोगों के विरोध में जो दल सामने आया उसके नेता थे राजा शिवचन्द्र बन्दोपाध्याय बहादुर । दरिद्र घर में जन्म लेकर भी उन्होंने तीक्ष्ण

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उस वर्ष वह परीक्षा में भी नहीं बैठ सका था। जो विद्यार्थी टेस्ट परीक्षा में उत्तीर्ण होते थे उन्हीं को अनुमति दी जाती थी। इसी परीक्षा के अवसर पर एक अप्रीतिकर घटना घट गई। जैसाकि उसके साथ सदा होता था, इ

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अध्याय 12: राजू उर्फ इन्द्रनाथ की याद

22 अगस्त 2023
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इसी समय सहसा एक दिन - पता लगा कि राजू कहीं चला गया है। फिर वह कभी नहीं लौटा। बहुत वर्ष बाद श्रीकान्त के रचियता ने लिखा, “जानता नहीं कि वह आज जीवित है या नहीं। क्योंकि वर्षों पहले एक दिन वह बड़े सुबह

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अध्याय 13: सृजिन का युग

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इधर शरत् इन प्रवृत्तियों को लेकर व्यस्त था, उधर पिता की यायावर वृत्ति सीमा का उल्लंघन करती जा रही थी। घर में तीन और बच्चे थे। उनके पेट के लिए अन्न और शरीर के लिए वस्त्र की जरूरत थी, परन्तु इस सबके लि

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अध्याय 14: 'आलो' और ' छाया'

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इसी समय निरुपमा की अंतरंग सखी, सुप्रसिद्ध भूदेव मुखर्जी की पोती, अनुपमा के रिश्ते का भाई सौरीन्द्रनाथ मुखोपाध्याय भागलपुर पढ़ने के लिए आया। वह विभूति का सहपाठी था। दोनों में खूब स्नेह था। अक्सर आना-ज

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अध्याय 15 : प्रेम के अपार भूक

22 अगस्त 2023
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एक समय होता है जब मनुष्य की आशाएं, आकांक्षाएं और अभीप्साएं मूर्त रूप लेना शुरू करती हैं। यदि बाधाएं मार्ग रोकती हैं तो अभिव्यक्ति के लिए वह कोई और मार्ग ढूंढ लेता है। ऐसी ही स्थिति में शरत् का जीवन च

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अध्याय 16: निरूद्देश्य यात्रा

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गृहस्थी से शरत् का कभी लगाव नहीं रहा। जब नौकरी करता था तब भी नहीं, अब छोड़ दी तो अब भी नहीं। संसार के इस कुत्सित रूप से मुंह मोड़कर वह काल्पनिक संसार में जीना चाहता था। इस दुर्दान्त निर्धनता में भी उ

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एक दिन क्या हुआ, सदा की तरह वह रात को देर से लौटा और दरवाज़ा खोलने के लिए धक्का दिया तो पाया कि भीतर से बन्द है । उसे आश्चर्य हुआ, अन्दर कौन हो सकता है । कोई चोर तो नहीं आ गया। उसने फिर ज़ोर से धक्का

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अध्याय 5: चित्रांगन

24 अगस्त 2023
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शरत् ने बहुमुखी प्रतिभा के धनी रवीन्द्रनाथ के समान न केवल साहित्य में बल्कि संगीत और चित्रकला में भी रुचि ली थी । यद्यपि इन क्षेत्रों में उसकी कोई उपलब्धि नहीं है, पर इस बात के प्रमाण अवश्य उपलब्ध है

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अध्याय 6: इतनी सुंदर रचना किसने की ?

24 अगस्त 2023
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रंगून जाने से पहले शरत् अपनी सब रचनाएं अपने मित्रों के पास छोड़ गया था। उनमें उसकी एक लम्बी कहानी 'बड़ी दीदी' थी। वह सुरेन्द्रनाथ के पास थी। जाते समय वह कह गया था, “छपने की आवश्यकता नहीं। लेकिन छापना

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अध्याय 7: प्रेरणा के स्रोत

24 अगस्त 2023
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एक ओर अंतरंग मित्रों के साथ यह साहित्य - चर्चा चलती थी तो दूसरी और सर्वहारा वर्ग के जीवन में गहरे पैठकर वह व्यक्तिगत अभिज्ञता प्राप्त कर रहा था। इन्ही में से उसने अपने अनेक पात्रों को खोजा था। जब वह

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अध्याय 8: मोक्षदा से हिरण्मयी

24 अगस्त 2023
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शांति की मृत्यु के बाद शरत् ने फिर विवाह करने का विचार नहीं किया। आयु काफी हो चुकी थी । यौवन आपदाओं-विपदाओं के चक्रव्यूह में फंसकर प्रायः नष्ट हो गया था। दिन-भर दफ्तर में काम करता था, घर लौटकर चित्र

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अध्याय 9: गृहदाद

24 अगस्त 2023
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'चरित्रहीन' प्रायः समाप्ति पर था। 'नारी का इतिहास प्रबन्ध भी पूरा हो चुका था। पहली बार उसके मन में एक विचार उठा- क्यों न इन्हें प्रकाशित किया जाए। भागलपुर के मित्रों की पुस्तकें भी तो छप रही हैं। उनस

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अध्याय 10: हाँ , अब फिर लिखूंगा

24 अगस्त 2023
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गृहदाह के बाद वह कलकत्ता आया । साथ में पत्नी थी और था उसका प्यारा कुत्ता। अब वह कुत्ता लिए कलकत्ता की सड़कों पर प्रकट रूप में घूमता था । छोटी दाढ़ी, सिर पर अस्त-व्यस्त बाल, मोटी धोती, पैरों में चट्टी

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अध्याय 11: रामेर सुमित शरतेर सुमित

24 अगस्त 2023
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रंगून लौटकर शरत् ने एक कहानी लिखनी शुरू की। लेकिन योगेन्द्रनाथ सरकार को छोड़कर और कोई इस रहस्य को नहीं जान सका । जितनी लिख लेता प्रतिदिन दफ्तर जाकर वह उसे उन्हें सुनाता और वह सब काम छोड़कर उसे सुनते।

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अध्याय 12: सृजन का आवेग

24 अगस्त 2023
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‘रामेर सुमति' के बाद उसने 'पथ निर्देश' लिखना शुरू किया। पहले की तरह प्रतिदिन जितना लिखता जाता उतना ही दफ्तर में जाकर योगेन्द्रनाथ को पढ़ने के लिए दे देता। यह काम प्राय: दा ठाकुर की चाय की दुकान पर हो

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अध्याय 13: चरितहीन क्रिएटिंग अलामिर्ग सेंसेशन

25 अगस्त 2023
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छोटी रचनाओं के साथ-साथ 'चरित्रहीन' का सृजन बराबर चल रहा था और उसके प्रकाशन को 'लेकर काफी हलचल मच गई थी। 'यमुना के संपादक फणीन्द्रनाथ चिन्तित थे कि 'चरित्रहीन' कहीं 'भारतवर्ष' में प्रकाशित न होने लगे।

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अध्याय 14: ' भारतवर्ष' में ' दिराज बहू '

25 अगस्त 2023
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द्विजेन्द्रलाल राय शरत् के बड़े प्रशंसक थे। और वह भी अपनी हर रचना के बारे में उनकी राय को अन्तिम मानता था, लेकिन उन दिनों वे काव्य में व्यभिचार के विरुद्ध आन्दोलन कर रहे थे। इसलिए 'चरित्रहीन' को स्वी

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अध्याय 15 : विजयी राजकुमार

25 अगस्त 2023
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अगले वर्ष जब वह छः महीने की छुट्टी लेकर कलकत्ता आया तो वह आना ऐसा ही था जैसे किसी विजयी राजकुमार का लौटना उसके प्रशंसक और निन्दक दोनों की कोई सीमा नहीं थी। लेकिन इस बार भी वह किसी मित्र के पास नहीं ठ

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अध्याय 16: नये- नये परिचय

25 अगस्त 2023
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' यमुना' कार्यालय में जो साहित्यिक बैठकें हुआ करती थीं, उन्हीं में उसका उस युग के अनेक साहित्यिकों से परिचय हुआ उनमें एक थे हेमेन्द्रकुमार राय वे यमुना के सम्पादक फणीन्द्रनाथ पाल की सहायता करते थे। ए

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अध्याय 17: ' देहाती समाज ' और आवारा श्रीकांत

25 अगस्त 2023
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अचानक तार आ जाने के कारण शरत् को छुट्टी समाप्त होने से पहले ही और अकेले ही रंगून लौट जाना पड़ा। ऐसा लगता है कि आते ही उसने अपनी प्रसिद्ध रचना पल्ली समाज' पर काम करना शरू कर दिया था, लेकिन गृहिणी के न

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अध्याय 18: दिशा की खोज समाप्त

25 अगस्त 2023
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वह अब भी रंगून में नौकरी कर रहा था, लेकिन उसका मन वहां नहीं था । दफ्तर के बंधे-बंधाए नियमो के साथ स्वाधीन मनोवृत्ति का कोई मेल नही बैठता था। कलकत्ता से हरिदास चट्टोपाध्याय उसे बराबर नौकरी छोड़ देने क

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" तृतीय पर्व: दिशान्त " अध्याय 1: ' वह' से ' वे '

25 अगस्त 2023
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जिस समय शरत् ने कलकत्ता छोडकर रंगून की राह ली थी, उस समय वह तिरस्कृत, उपेक्षित और असहाय था। लेकिन अब जब वह तेरह वर्ष बाद कलकत्ता लौटा तो ख्यातनामा कथाशिल्पी के रूप में प्रसिद्ध हो चुका था। वह अब 'वह'

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अध्याय 2: सृजन का स्वर्ण युग

25 अगस्त 2023
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शरतचन्द्र के जीवन का स्वर्णयुग जैसे अब आ गया था। देखते-देखते उनकी रचनाएं बंगाल पर छा गई। एक के बाद एक श्रीकान्त" ! (प्रथम पर्व), 'देवदास' 2', 'निष्कृति" 3, चरित्रहीन' और 'काशीनाथ' पुस्तक रूप में प्रक

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अध्याय 3: आवारा श्रीकांत का ऐश्वर्य

25 अगस्त 2023
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'चरित्रहीन' के प्रकाशन के अगले वर्ष उनकी तीन और श्रेष्ठ रचनाएं पाठकों के हाथों में थीं-स्वामी(गल्पसंग्रह - एकादश वैरागी सहित) - दत्ता 2 और श्रीकान्त ( द्वितीय पर्वों 31 उनकी रचनाओं ने जनता को ही इस प

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अध्याय 4: देश के मुक्ति का व्रत

25 अगस्त 2023
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जिस समय शरत्चन्द्र लोकप्रियता की चरम सीमा पर थे, उसी समय उनके जीवन में एक और क्रांति का उदय हुआ । समूचा देश एक नयी करवट ले रहा था । राजनीतिक क्षितिज पर तेजी के साथ नयी परिस्थितियां पैदा हो रही थीं। ब

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अध्याय 5: स्वाधीनता का रक्तकमल

26 अगस्त 2023
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चर्खे में उनका विश्वास हो या न हो, प्रारम्भ में असहयोग में उनका पूर्ण विश्वास था । देशबन्धू के निवासस्थान पर एक दिन उन्होंने गांधीजी से कहा था, "महात्माजी, आपने असहयोग रूपी एक अभेद्य अस्त्र का आविष्क

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अध्याय 6: निष्कम्प दीपशिखा

26 अगस्त 2023
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उस दिन जलधर दादा मिलने आए थे। देखा शरत्चन्द्र मनोयोगपूर्वक कुछ लिख रहे हैं। मुख पर प्रसन्नता है, आखें दीप्त हैं, कलम तीव्र गति से चल रही है। पास ही रखी हुई गुड़गुड़ी की ओर उनका ध्यान नहीं है। चिलम की

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अध्याय 7: समाने समाने होय प्रणयेर विनिमय

26 अगस्त 2023
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शरत्चन्द्र इस समय आकण्ठ राजनीति में डूबे हुए थे। साहित्य और परिवार की ओर उनका ध्यान नहीं था। उनकी पत्नी और उनके सभी मित्र इस बात से बहुत दुखी थे। क्या हुआ उस शरतचन्द्र का जो साहित्य का साधक था, जो अड

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अध्याय 8: राजनीतिज्ञ अभिज्ञता का साहित्य

26 अगस्त 2023
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शरतचन्द्र कभी नियमित होकर नहीं लिख सके। उनसे लिखाया जाता था। पत्र- पत्रिकाओं के सम्पादक घर पर आकर बार-बार धरना देते थे। बार-बार आग्रह करने के लिए आते थे। भारतवर्ष' के सम्पादक रायबहादुर जलधर सेन आते,

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अध्याय 9: लिखने का दर्द

26 अगस्त 2023
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अपनी रचनाओं के कारण शरत् बाबू विद्यार्थियों में विशेष रूप से लोकप्रिय थे। लेकिन विश्वविद्यालय और कालेजों से उनका संबंध अभी भी घनिष्ठ नहीं हुआ था। उस दिन अचानक प्रेजिडेन्सी कालेज की बंगला साहित्य सभा

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अध्याय 10: समिष्ट के बीच

26 अगस्त 2023
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किसी पत्रिका का सम्पादन करने की चाह किसी न किसी रूप में उनके अन्तर में बराबर बनी रही। बचपन में भी यह खेल वे खेल चुके थे, परन्तु इस क्षेत्र में यमुना से अधिक सफलता उन्हें कभी नहीं मिली। अपने मित्र निर

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अध्याय 11: आवारा जीवन की ललक

26 अगस्त 2023
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राजनीतिक क्षेत्र में इस समय अपेक्षाकृत शान्ति थी । सविनय अवज्ञा आन्दोलन जैसा उत्साह अब शेष नहीं रहा था। लेकिन गांव का संगठन करने और चन्दा इकट्ठा करने में अभी भी वे रुचि ले रहे थे। देशबन्धु का यश ओर प

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अध्याय 12: ' हमने ही तोह उन्हें समाप्त कर दिया '

26 अगस्त 2023
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देशबन्धु की मृत्यु के बाद शरत् बाबू का मन राजनीति में उतना नहीं रह गया था। काम वे बराबर करते रहे, पर मन उनका बार-बार साहित्य के क्षेत्र में लौटने को आतुर हो उठता था। यद्यपि वहां भी लिखने की गति पहले

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अध्याय 13: पथेर दाबी

26 अगस्त 2023
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जिस समय वे 'पथेर दाबी ' लिख रहे थे, उसी समय उनका मकान बनकर तैयार हो गया था । वे वहीं जाकर रहने लगे थे। वहां जाने से पहले लगभग एक वर्ष तक वे शिवपुर टाम डिपो के पास कालीकुमार मुकर्जी लेने में भी रहे थे

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अध्याय 14: रूप नारायण का विस्तार

26 अगस्त 2023
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गांव में आकर उनका जीवन बिलकुल ही बदल गया। इस बदले हुए जीवन की चर्चा उन्होंने अपने बहुत-से पत्रों में की है, “रूपनारायण के तट पर घर बनाया है, आरामकुर्सी पर पड़ा रहता हूं।" एक और पत्र में उन्होंने लिख

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अध्याय 15: देहाती शरत

26 अगस्त 2023
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गांव में रहने पर भी शहर छूट नहीं गया था। अक्सर आना-जाना होता रहता था। स्वास्थ्य बहुत अच्छा न होने के कारण कभी-कभी तो बहुत दिनों तक वहीं रहना पड़ता था । इसीलिए बड़ी बहू बार-बार शहर में मकान बना लेने क

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अध्याय 16: दायोनिसस शिवानी से वैष्णवी कमललता तक

26 अगस्त 2023
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किशोरावस्था में शरत् बात् ने अनेक नाटकों में अभिनय करके प्रशंसा पाई थी। उस समय जनता को नाटक देखने का बहुत शौक था, लेकिन भले घरों के लड़के मंच पर आयें, यह कोई स्वीकार करना नहीं चाहता था। शरत बाबू थे ज

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अध्याय 17: तुम में नाटक लिखने की शक्ति है

26 अगस्त 2023
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शरत साहित्य की रीढ़, नारी के प्रति उनका दृष्टिकोण है। बार-बार अपने इसी दृष्टिकोण को उन्होंने स्पष्ट किया है। प्रसिद्धि के साथ-साथ उन्हें अनेक सभाओं में जाना पडता था और वहां प्रायः यही प्रश्न उनके साम

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अध्याय 18: नारी चरित्र के परम रहस्यज्ञाता

26 अगस्त 2023
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केवल नारी और विद्यार्थी ही नहीं दूसरे बुद्धिजीवी भी समय-समय पर उनको अपने बीच पाने को आतुर रहते थे। बड़े उत्साह से वे उनका स्वागत सम्मान करते, उन्हें नाना सम्मेलनों का सभापतित्व करने को आग्रहपूर्वक आ

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अध्याय 19: मैं मनुष्य को बहुत बड़ा करके मानता हूँ

26 अगस्त 2023
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चन्दन नगर की गोष्ठी में उन्होंने कहा था, “राजनीति में भाग लिया था, किन्तु अब उससे छुट्टी ले ली है। उस भीड़भाड़ में कुछ न हो सका। बहुत-सा समय भी नष्ट हुआ । इतना समय नष्ट न करने से भी तो चल सकता था । ज

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अध्याय 20: देश के तरुणों से में कहता हूँ

26 अगस्त 2023
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साधारणतया साहित्यकार में कोई न कोई ऐसी विशेषता होती है, जो उसे जनसाधारण से अलग करती है। उसे सनक भी कहा जा सकता है। पशु-पक्षियों के प्रति शरबाबू का प्रेम इसी सनक तक पहुंच गया था। कई वर्ष पूर्व काशी में

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अध्याय 21:  ऋषिकल्प

26 अगस्त 2023
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जब कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर सत्तर वर्ष के हुए तो देश भर में उनकी जन्म जयन्ती मनाई गई। उस दिन यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट, कलकत्ता में जो उद्बोधन सभा हुई उसके सभापति थे महामहोपाध्याय श्री हरिप्रसाद शास्त

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अध्याय 22: गुरु और शिष्य

27 अगस्त 2023
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शरतचन्द्र 60 वर्ष के भी नहीं हुए थे, लेकिन स्वास्थ्य उनका बहुत खराब हो चुका था। हर पत्र में वे इसी बात की शिकायत करते दिखाई देते हैं, “म सरें दर्द रहता है। खून का दबाव ठीक नहीं है। लिखना पढ़ना बहुत क

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अध्याय 23: कैशोर्य का वह असफल प्रेम

27 अगस्त 2023
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शरत् बाबू की रचनाओं के आधार पर लिखे गये दो नाटक इसी युग में प्रकाशित हुए । 'विराजबहू' उपन्यास का नाट्य रूपान्तर इसी नाम से प्रकाशित हुआ। लेकिन दत्ता' का नाट्य रूपान्तर प्रकाशित हुआ 'विजया' के नाम से

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अध्याय 24: श्री अरविन्द का आशीर्वाद

27 अगस्त 2023
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गांव में रहते हुए शरत् बाबू को काफी वर्ष बीत गये थे। उस जीवन का अपना आनन्द था। लेकिन असुविधाएं भी कम नहीं थीं। बार-बार फौजदारी और दीवानी मुकदमों में उलझना पड़ता था। गांव वालों की समस्याएं सुलझाते-सुल

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अध्याय 25: तुब बिहंग ओरे बिहंग भोंर

27 अगस्त 2023
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राजनीति के क्षेत्र में भी अब उनका कोई सक्रिय योग नहीं रह गया था, लेकिन साम्प्रदायिक प्रश्न को लेकर उन्हें कई बार स्पष्ट रूप से अपने विचार प्रकट करने का अवसर मिला। उन्होंने बार-बार नेताओं की आलोचना की

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अध्याय 26: अल्हाह.,अल्हाह.

27 अगस्त 2023
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सर दर्द बहुत परेशान कर रहा था । परीक्षा करने पर डाक्टरों ने बताया कि ‘न्यूरालाजिक' दर्द है । इसके लिए 'अल्ट्रावायलेट रश्मियां दी गई, लेकिन सब व्यर्थ । सोचा, सम्भवत: चश्मे के कारण यह पीड़ा है, परन्तु

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अध्याय 27: मरीज की हवा दो बदल

27 अगस्त 2023
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हिरण्मयी देवी लोगों की दृष्टि में शरत्चन्द्र की पत्नी थीं या मात्र जीवनसंगिनी, इस प्रश्न का उत्तर होने पर भी किसी ने उसे स्वीकार करना नहीं चाहा। लेकिन इसमें तनिक भी संशय नहीं है कि उनके प्रति शरत् बा

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अध्याय 28: साजन के घर जाना होगा

27 अगस्त 2023
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कलकत्ता पहुंचकर भी भुलाने के इन कामों में व्यतिक्रम नहीं हुआ। बचपन जैसे फिर जाग आया था। याद आ रही थी तितलियों की, बाग-बगीचों की और फूलों की । नेवले, कोयल और भेलू की। भेलू का प्रसंग चलने पर उन्होंने म

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अध्याय 29: बेशुमार यादें

27 अगस्त 2023
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इसी बीच में एक दिन शिल्पी मुकुल दे डाक्टर माके को ले आये। उन्होंने परीक्षा करके कहा, "घर में चिकित्सा नहीं ही सकती । अवस्था निराशाजनक है। किसी भी क्षण मृत्यु हो सकती है। इन्हें तुरन्त नर्सिंग होम ले

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