ना दिखाई देते है मगर,
सच में शब्दों के पंख है,
कभी दिल का एहसास,
कभी किसीसे खास है!
मायूसी में उम्मीद के सहारे,
हौसले जो कोई व्यर्थ में हारे,
कभी अपनों के देते ये गम,
कभी हर मर्ज का है मरहम!
मन से तेज रप्तार है शब्दों की,
पल में सारे इंसान को जीत ले,
छूरी, कतार से तेज इसकी धार,
लाखों का एक साथ कत्ल करे!
क्रांती का नया हथियार है यहीं,
करो इसका तुम इस्तेमाल सही,
ना पर होते हुंवे भी रहते उडते,
चांद सितारों, सूरज पर लिखते!
मेरे शब्दों के तो पंख है,.
तभी तो खुबसुरत से है,.
मेरे परेशानियों में राहत,
तो कडवे बोल है आफत!
पंख है इसलिये तो शायद,
इतिहास के है वहीं साक्षी,
आज के मेरे वहीं पेहरेदार,
कल के खुशियों पर सवार!