आशा और विश्वास लिये
झूमती बलखाती मदमाती
अपनी मस्ती में मस्त होकर
किनारे की ओर आती हैं
टकराती हैं, संघर्ष करती हैं
कुछ वहीं पर खत्म हो जाती हैं
कुछ वापस लौट जाती हैं
ये सागर की लहरें हैं साहब
ये हार कहां मानती हैं ।
लौटकर फिर
दुगने जोश से आती हैं
बार बार आती हैं
टकरा टकरा कर
चकनाचूर हो जाती हैं
मगर , ये कोमल सी लहरें
बड़ी हिम्मतवाली होती हैं
दृढ निश्चय के साथ
अपनी ही धुन में मगन
लक्ष्य की ओर निरंतर अग्रसर होती हैं
ये सागर की लहरें हैं, साहब
ये हार कहां मानती हैं ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
5.11.21