लखनऊ ब्यूरो-: सपा मुखिया अखिलेश यादव ने अब कुछ ऐसी सियासी जुमलेबाजी शुरू कर दी है, जिसे सुनकर लगता है कि मुलायम सिंह यादव के इस होनहार को अब क्या हो गया है? बहकी बहकी सी बातें? नेताजी के साथ में रहने पर पार्टी और सरकार की हर बिगडी बन जाया करती थी। कभी फटकार कर तो कभी पुचकार कर। लेकिन, अब उनकी साया के दूर चले जाने से अखिलेश यादव की सारी सियासी अक्लमंदी सामने आती जा रही है। चाचा प्रो0 रामगोपाल यादव अब इनके गद्दी से उतर कर सडक पर आने के हालात में कितनी मदद कर सकेंगे? यह तो वक्त ही बता सकेगा?
बमुश्किल दो दिन पहले की बात है। अखिलेश यादव की राजनीति क परिपक्वता और दूरदर्शिता की एक मिसाल सामने आ ही गयी। अपनी पार्टी के विधायकों और विधान परिषद के सदस्यों की बैठक में उनकी हौसला आफजाई करते हुए इन्होंने अपनी पूर्ववर्ती सरकार और योगी आदित्य नाथ की सरकार की बडी बेबाकी से तुलना करते हुए कह दिया था कि जनता वादे निभाने वाली समाजवादी सरकार और बहकाने वाली भाजपा सरकार में जल्द ही फर्क महसूस करेगी। बैठक खत्म होने के बाद पार्टी मुख्यालय के बाहर सडक पर खडे एक बुजुर्ग तक, लगता है, यह बात पहुंच गयी। पुराना सपाई लगता था वह और मुलायम सिंह यादव का करीबी भी। उसने बडी तल्खी से यह तंज किया कि अखिलेश! लोगों को इस बात का बहुत अच्छी तरह एहसास हो गया है कि तुम्हारी और योगी की सरकार में क्या फर्क है? कुछ सनकी सा लग रहा यह बुजुर्ग चुपचाप धीरे से एक ओर सरक लिया।
हाँ, जाते जाते पल भर के लिये पीछे मुडकर यह फब्ती कसने से भी वह नहीं चूका कि नेता जी से दूरी बनाते ही उनका यह अब अपनी असली सियासी औकात पर आता जान पड रहा है। कौन था यह शख्स? नेताजी से उसका क्या रिश्ता रहा है? नाम क्या था उसका? यह जानने के लिये कुछ दूर तक पीछे जाने के बाद भी उसने ऐसे एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया। बस इतना ही कहा कि ‘जाओ अपना काम करो। मेरे पीछे मत पडो।
यह बुजुर्ग भले ही सनकी रहा हो लेकिन था बडा खुर्राट। बोली और अंदाज से एटा अथवा मैनपुरी की तरफ का लग रहा था। कहीं का भी रहा हो वह। लेकिन, उसकी बातें हवा में उडा देने लायक नहीं थी। उनमें दम था। उसकी बातों से कुछ ऐसा लगा कि सियासत के घाट घाट का पानी पी चुके मुलायम सिंह यादव से अखिलेश यादव का बढ गया यह फासला अब इन पर भारी पड सकता है। इस शून्य को उनके चाचा प्रो0 रामगोपाल यादव नहीं भर सकते हैं।
यही वजह है कि उस दिन की इस महत्वपूर्ण बैठक में शिवपाल सिंह यादव का न रहना तो अस्वाभाविक नही था। लेकिन, सपा के दूसरे सबसे ज्यादा ताकतवर नेता समझे जाने वाले मो0 आजम खाँ और उनके विधायक पुत्र अब्दुल्ला आजम की गैरमौजूदगी अच्छी नहीं कही जा सकती है। इससे अब यह सवाल उठाया जा रहा है कि नेता विपक्ष के पद से मरहूम कर दिया गया। ऐसे में फायरब्रांड कहे जाने वाले आजम खाँ क्या चुप होकर बैठ सकते हैं? एक सवाल यह भी कि प्रायः किसी न किसी बात पर नाराज हो जाने वाले मो0 आजम खाँ को मनाने के लिये अखिलेश यादव नंगे पांव उनके घर दौडे चले जाते थे। यह भी चिंता नहीं की कि कुछ भी हो आखिर वह मुख्य मंत्री थे। क्या अब भी यह बेहद खफा खाँ साहब को मनाने के लिये जाना चाहेंगे?
अखिलेश यादव और योगी आदित्य नाथ में एक बडा अंतर यह भी है कि इस चुनाव में इतनी जबरदस्त शिकस्त खाने के बाद सपा बिखरने और पारिवारिक महाभारत की ओर तेजी से बढ रही है। वहीं दूसरी ओर, मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ अपनी सरकार और पार्टी को पूरी तरह से एकजुट और मजबूत रखते हुए 2019 में होने वाले आमचुनाव में भाजपा का परचम फहराने के लिये रफ्तार पकडते ही जा रहे हैं।
बहरहाल, पूर्व मंत्री और बलिया से चुनकर आये विधायक रामगोविंद चैधरी के नेता विपक्ष चुने जाने को लेकर राज्यपाल राम नाइक ने एक बडा ज्वलंत सवाल उठा दिया है। उन्होंने निवर्तमान विधान सभा के अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय की ओर से समाजवादी विधान मंडल दल के नेता रामगोविंद चैधरी को नेता विरोधी दल के रूप में मान्यता दिये जाने पर आपत्ति जतायी है। इसके लिये राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद175(2) के तहत नवगठित विधान सभा को संदेश भेजकर निवर्तमान विधान सभाध्यक्ष के इस निर्णय के लोकतांत्रिक तथा संवैधानिक औचित्य पर विचार करने को कहा है। उनके पत्र में इस बात का विस्तार से उल् लेख किया गया है।
एक बात और। आम आदमी के नजरिये में अखिलेश यादव और योगी आदित्य नाथ की सरकार में अब एक और बडा फर्क उजागर होता जा रहा है कि पूर्ववर्ती सरकार गले तक भ्रष्टाचार के दलदल में धंसी हुई थी। दूसरी ओर, योगी आदित्य नाथ ने अपनी सिर्फ आठ दिनों की सरकार में सूबे के आम आदमी को इस बात का बडी अच्छी तरह एहसास कराने में कामयाब होते जा रहे हैं कि केंद्र की मोदी सरकार की ही तरह प्रदेश में उनकी भी सरकार पूरी तरह पारदर्शी है और रहेगी। इसके लिये सबसे ताजी सिर्फ एक ही मिसाल काफी होंगी।
आरोप है कि निवर्तमान अखिलेश सरकार में बालविकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग में बिना टेंडर के ही सात सौ करोड रु की पंजीरी बांट दी गयी। इतना ही नहीं, शासन की मंजूरी के बिना ही 312 करोड रु का भुगतान कर दिया गया। इतनी बडी धनराशि का बंदरबांट कर लिया गया। यह तो शुरुआत है। देखते रहिये आगे होता है क्या क्या? भ्रष्टाचार में मामले में बुआजी मायावती और भतीजे अखिलेश सरकार में बुनियादी तौर परकितना फर्क रहा है, जल्दी ही इसका खुलासा हो जाने की संभावना है। फिलहाल, इतना तो कहा ही जा सकता है कि इनमें से एक सरकार डंके की चोट पर उगाही करती थी, तो दूसरी मेज के नीचे से हाथ बढाकर उसे समेटती रही है।