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जीवन ऐसे चल रहा, ज्यों बाजी शतरंज,  जब लगता सब ठीक है, त्यों होवे बदरंग।  (c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"                    

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चौराहे पर आ खड़े, अब जायें किस ओर,  नहीं पता था आएगा, जीवन में ये भी दौर।  (c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"                      

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बर्फ़ पिघल गई दर्द की, निकली आशा की धूप,  अँधेरा तब तक रहा, जब तक न निकले कूप।         (c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"       

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अश्रु मोती आँख के, रखियो इन्हें सम्भाल, जरा-जरा सी बात पे, काहे रहे निकाल।               (c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"   

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आँखों में अश्रु बसें,  और बसे हृदय में पीर,  नग्न पीर हो जात है, बहें अश्रु फटे ज्यों चीर।  (c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"                         

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अश्रु छोड़ें नैन जब,  छूटे तब दुःख का साथ,  मन हल्का तब और हो, जब कोई बढ़ाये हाथ।       (c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"                 

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दो अश्रु नैनन ढले, किया समन्दर खार,  मन कितना हल्का किया, ये मन पर उपकार।              (c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "         

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जब-हम तुम!एक दुसरे से,मिले थे,तब- हमारी, उम्मीदें!मिलकर-सतरंगी!हो गयी थीं।लेकिन-धीरे-धीरे, यही उम्मीदें,हमारे! रंग भरने के,बाद भी,बदरंग! होती गयीं।शायद!हमीं में से,किसी ने,हुन

उसके रक्तिम कपोल! शर्म से इस क़दर रक्ताभ हुए।  कैसे लगाऊं?रंग उस गौरी को........  सौंदर्य से उसके ,सभी वर्ण फीके हुए ।  होली कैसे खेलूं ? सखी री !रंग पुष्पों सा, रूप देख उ

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है चन्द्र छिपा कबसे, बैठा सूरज के पीछे, लम्बी सी अमावस को, पूनम से सजाना है। चमकाना है अपनी, हस्ती को इस हद तक, कि सूरज को भी हमसे, फीका पड़ जाना है। ये आग जो बाकी है, उसका तो नियंत्रण ही,

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पिय की सखी ने द्वार, खोला जाये खेलें होली, खेलें होली सर्वप्रथम, पिय संग जाय के। द्वार खुलत ही भई प्रगट, सखियाँ सखी की, बोली सखियाँ होली, खेलो चलो आय के, सखी दुविधा में पड़ी, भई पीत-वर्ण की

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होली रंग एक ना था जीवन के। होली ने रंगे सबके तन मन चोल के।। कितना उत्सव और उल्लास भरा। थिरकते पाँव गीत मीठे बोल के ।। बौराई आम मदहोश का संदेश देते। मानवता में मीठे रस घोल के।। ऐसा प्र

नीलाक्षी                   ------------                      © ओंकार नाथ त्रिपाठी   ध

            आज होली का दिन है।श्री राम और लक्ष्मण माता सीता की खोज करते हुए किष्किंधा राज्य में हैं।यहां वानरराज सुग्रीव से उनकी मित्रता हो चुकी है।श्री राम और लक्ष्

फिज़ा में खुशबु, हवा में बिखरा हुआ कमाल का रंग,निखर के गाल पर उसके, बड़ा इतरा रहा गुलाल का रंग।उड़ा के रंग-ए-इश्क़... हवा में, लिख दूँ मैं नाम तेरा,कभी जो बरसे मुझ पर, तेरे हुस्न-ओ-जमाल का रंग।।-दिनेश

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प्रणाम सद्गुरू,                      हाँ, जिस प्रकार से एक बीज में विशाल वृक्ष छिपा है। उसी प्रकार से हमारे अंदर ही असली राज छिपा है। आप अंदर से कैसे हैं वही बाहर शरीर मन व आपका जीवन शैली निर्भर

मुझे पता नहीं किसने रचाया इस ब्रह्माण्ड को लेकिन मेरे एक बात जरुर समझ आ रही है। प्रकृति के हर रूप ने बनाया है मुझको । मैंने इसे ही ईश्वर मान लिया है। जल वायु धरा गगन, आग पंच तत्व प्रकृति में ह

तेरी मोहब्बत का रंग, कुछ ऐसा है कीअब और कोई रंग, उस पर चढ़ता ही नहीं-दिनेश कुमार कीर

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प्रणाम सिस्टर,                   होली के त्यौहार का महत्व हमे समझना चाहिए। होली के एक दिन पूर्व होली जलाई जाती है ।लकड़ी,कन्डा या घास फुस को एकत्र कर जलाया जाता है। हमे इस आग में अपनी बुराइयां व

फूल क्यूँ सारे खिलके महकने लगे आज भँवरों के दिल भी धड़कने लगेदिल की खिड़की खुली मिल गई लो नजर आज मालुम हुआ आपका है ये घर प्यार का रंग चढ़ता उतरता रहा नूर चेहरे का उनके निखरता रहा&nbs

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