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अमृतलाल नागर के बहुचर्चित उपन्यास

अमृत लाल नागर

15 अध्याय
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2 पाठक
28 जुलाई 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

अमृतलाल नागर हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। उनका जन्म '(17 अगस्त, 1916 - 23 फरवरी, 1990) उन्हें भारत सरकार द्वारा १९८१ में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। 1932 में निरंतर लेखन किया। अमृतलाल नागर के भाषा सहज, सरल दृश्य के अनुकूल है। भावात्मक, वर्णनात्मक, शब्द चित्रात्मक शैली का प्रयोग इनकी रचनाओं में हुआ है। मानस का हंस', 'खंजन नयन', 'नाच्यौ बहुत गोपाल', 'बूंद और समुद्र', तथा 'अमृत और विष' जैसी बहुचर्चित और पुरस्कृत-सम्मानित कृतियों की श्रृंखला में यशस्वी उपन्यासकार अमृतलाल नागर ने इस उपन्यास में 'बिखरे हैं |  

amritlal nagar ke bahucharchit upanyas

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पुस्तक के भाग

1

मानस का हंस

25 जुलाई 2022
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श्रावण कृष्णपक्ष की रात। मूसलाधार वर्षा, बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की कड़कन से धरती लरज-लरज उठती है। एक खण्डहर देवालय के भीतर बौछारों से बचाव करते सिमटकर बैठे हुए तीन व्यक्ति बिजली के उजाले में पलभ

2

शतरंज के मोहरे भाग 1

25 जुलाई 2022
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होशियार ! होशियार हुइ जाओ होऽजुम्मन काका ! फौजैं आवति हयिं।’’ दो फ़र्लाग दूर से गोहराते और दौड़कर आते हुए युवक का सन्देश सुनकर गढ़ी रुस्तमनगर की बाहरी बस्सी में कुहराम मच गया। उड़ती ख़बर आनन-फानन में

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शतरंज के मोहरे भाग 2

25 जुलाई 2022
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उसके बाद तीनों कुछ दूर तक खामोश चले गये। रुस्तअली का चेहरा विचारों से भारी होकर झुक गया था। उसकी माँ ने अकसर उसकी पत्नी की बदचलनी के बारे में शिकायतें की थीं। उसके सौतले भाई फतेअली के ख़िलाफ़ उसकी माँ

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नाच्यौ बहुत गोपाल

25 जुलाई 2022
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ऊंचे टीले पर बने मन्दिर के चबूतरे से देखा तो सारी बस्ती मुझे अपनी वर्णमाला के ‘द’ अक्षर जैसी ही लगी। शिरोरेखा की तरह सामने वाली गली के दाहिनी ओर से मैंने प्रवेश किया था। ‘द’ की कंठरेखा वाली गली सुलेख

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भूख

25 जुलाई 2022
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 बर्मा पर जापानियों का कब्जा हो गया। हिन्दू स्तान पर महायुद्घ की परछाई पड़ने लगी।  हर शख्स के दिल से ब्रिटिश सरकार का विश्वास उठ गया। ‘कुछ होनेवाला है, -कुछ होगा !’-हर एक के दिल में यही डर समा गया। 

6

बिखरे तिनके

25 जुलाई 2022
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गुरसरन बाबू का मन ऊंचा-नीचा हो रहा है। साढ़े आठ बज रहे हैं। रघबर महाराज के यहाँ बिल्लू को भेजा है कि बुला लाए। पता नहीं...कनागत में बाम्हन और चढ़ती उमरिया में लौंडियों के नक्शे नहीं मिलते हैं।–स्साले 

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खंजन नयन

25 जुलाई 2022
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वृन्दावन से लगभग दो कोंस पहले ही पानीगांव के पास वाले किनारे पर खड़े चार-छह लोगों ने सुरीर से आती हुई नाव को हाथ हिला-हिलाकर अपने पास बुला लिया :  ‘‘मथुरा मती जइयों। आज खून की मल्हारें गाई जा रही हैं

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एकदा नैमिषारण्ये

25 जुलाई 2022
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‘अरी मैया तेरे पायँ लागूँ मोकूँ क्षमा करदे, जाइबे दे। मेरो बड़ो अकाज ह्यै रह्यै है। नारायण तेरो अपार मंगल  करेंगे।’’  लेकिन हाथ में साँट लेकर खडी़ हुई हट्टीकट्टी लंबी-तड़ंगी तुलसी मैया की पुजारिन, मह

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सुहाग के नूपुर

25 जुलाई 2022
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ब्राह्म मुहूर्त में ही कावेरीपट्टम के नौकाघाट की ओर आज विशेष चहल-पहल बढ़ रही है। सजे-बजे सुंदर बैलोंवाले शोभनीय रथों, पालकियों और घोड़ों पर नगर के गण्यमान्य चेट्टियार, प्रौढ़ और युवक, कावेरी नदी के नौ

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चक्रतीर्थ

25 जुलाई 2022
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‘एकदा नैमिषारण्ये’ और ‘चक्रतीर्थ’ के कथानक एवं सामाजिक संदर्भ देश-काल की दृष्टि से लगभग एक से हैं। अमृतलाल नागर ने ‘चक्रतीर्थ’ के सृजन में जैसे कौशल का प्रदर्शन किया है। उससे हिन्दी उपन्यास की श्रीवृद

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पीढ़ियां भाग 1

25 जुलाई 2022
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युधिष्ठिर अपनी मां के साथ कार में सआदतगंज से घर लौट रहा है। लगभग एक माह से जिस समाचार ने शहर और राजनीति को अपने सच-झूठ की अफवाहों से घटाटोप ढक रखा है और जिससे एक गहरा साम्प्रदायिक तनाव इतने दिनों से क

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पीढ़ियां भाग 2

25 जुलाई 2022
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वजीरगंज थाने से कुछ ही दूर पर बने ‘मुश्ताकविला’ के सामने हसन जावेद और युधिष्ठिर टण्डन के ‘वेस्पा’ और ‘विजयसुपर’ स्कूटर आकर रुके। गली में हरे-भरे लॉन और पेड़-फूलों सहित यह जगह युधिष्ठिर को अनोखी और आश्

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करवट

25 जुलाई 2022
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लक्खी सराय की रसूलबांदी दो घड़ी दिन चढे़ ही घर से निकल गई थी। हैदरीखां जब घर से आए तो अज्जो ने बतलाया कि कल रात शाही महलों से उसके लिए बुलावा आया था।  हैदरीखां घबरा कर झल्ला उठेः ‘‘तो आज ही के दिन सग

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अमृत और विष भाग 1

25 जुलाई 2022
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एकऐन कानों के पास अलार्म इतनी जोर से घनघना उठी कि कानों ही के क्या, मेरे अन्तर तक के पर्दे दर पर्दे हिल उठे। आँखें खोलते ही माया का हँसता मुखड़ा देखा, बोली :  ‘‘उठिये शिरीमान्, उमर के साठ बज गये।’’

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अमृत और विष भाग 2

25 जुलाई 2022
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गुपालदास निरुतर हो, सिर झुकाये बैठे रहे। शेखजी ने भाँपा कि अभी कुछ और शिकायत है; पूछा- ‘‘तुम्हें मेम से खास शिकायत क्या है ? वह तुम्हारा माकूल अदब नहीं करती ?’’ ‘‘जी हाँ, यही बात है।’’ गुपालदास खु

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