बिखरा बिखरा है जुल्फों का,
मुझपर एक हसीन सा साया,
कहते है लोग देखकर उसे,
वो खुदा का अजीज हमसाया।
देखती है जब भी मेरी तरफ,
दर्द भाग जाते खुशी की तरफ,
जब पूकारती है आवाज देकर,
पूरे अरमान जी उठते एक होकर।
जो खामोश इशारों में बात करती,
कौन सी मंजिल जो मुझे रोक पाती,
नाराज जो होती पल भर के लिए,
साँसे मेरी मुझसे बगावत है करती।
दो नयनों में उसके जहाँ मैनें पाया,
क्या जन्नत का है कोई ओर ठिकाना,
रहती है जब भी मेरे आस पास वो,
तो वक्त को भी लग जाते है पर जो।
क्या सुनाऊँ मैं आपको उसके किस्से,
है शामिल वो मेरे जिंदगी के हर हिस्से,
सुबह से लेकर शाम तक दिदार को तरसे,
बिते बस साथ उसके मेरे जीवन के अरसे।
ज्यादा कुछ ना बया करता है मेरा सबकुछ,
एक पापा की परी, इकलौती वहीं सलोनी,
डाँट भी लगाती बडों सी, प्यार करती खुब,
कडकडाती हुँवी ठंड में है वो गर्मी की ऊब।