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अंधा युग (नाटक)

धर्मवीर भारती

1 अध्याय
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5 पाठक
25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

धर्मवीर भारती का “अंधा युग” नयी कविता की प्रतिनिधि रचना है । यह रचना नयी-कविता की काव्य संवेदना, शिल्पगत नवीनता और भाषा सौष्टव की स्वायत्तता की परिचायक भी है । 'अँधा युग' नाटक में धर्मवीर भारती ने पौराणिक कथा के माध्यम से आधुनिक भावबोध को स्थापित किया है। इस नाटक में अमर्यादित और अनैतिक आचरण का विरोध दिखाई देता है। अंधा युग का रचना काल सन् 1954 ई. में हैं । कवि ने महाभारत के युद्ध का आश्रय लेकर महाभारत कालीन आत्म पीडन, अविश्वास अनास्था, विघटन, गिरते मानवीय मूल्यों और नैतिक मानदण्डों की पृष्ट भूमि में युगीन निराशा, अनास्था, विसंगति, प्रतिहिंसा का चित्रण किया है । विशेषतः युगीन मूल्यों के संघर्ष और विघटन के प्रश्नों को बौद्धक धरातल पर गहनता से प्रस्तुत किया है । “अंधा युग” भारती की सर्जनात्मक और आधुनिक संवेदना का निरुपक काव्य नाटक है । इस में आया प्रबन्धन जिस शिल्प में ढ़लकर आया है वह ऐसा नहीं है जिसे परम्परा की आवृत्ति मात्र मानकर छोड दिया जाए । यह वह काव्य नाटयात्मक प्रबन्ध है जिस में महाभारतीय संदर्भों के शिलापट्ट पर आधुनिक संवेदना का आस्थामय आलोक विकीरित हुआ है । ऐसी स्थिति में “अधायुग” मात्र किसी अन्धेयुग की कथा नहीं है, अपितु अंधत्व के सहारे आस्थापूरित आलोक की ओर ले जानेवाली वह कृति है जिस में परस्पर पीठिका भर है और उसके सहारे अभिव्यक्त संदर्भ-संवेदनायें नवीन और युग सापेक्ष हैं  

andha yug natak

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