भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा।
हमारे दिल में कोई ख़्वाब पल बैठा तो हंगामा।।
अभी तक डूबकर सुनते थे सब क़िस्सा मुहब्बत का,
मैं क़िस्से को हक़ीक़त में बदल बैठा तो हंगामा।।
कभी कोई जो खुलकर हंस लिया दो पल तो हंगामा।
कोई ख़्वाबों में आकर बस लिया दो पल तो हंगामा।।
मैं उससे दूर था तो शोर था साज़िश है, साज़िश है,
उसे बाहों में खुलकर कस लिया दो पल तो हंगामा।।
जब आता है जीवन में ख़यालातों का हंगामा।
ये जज़्बातों, मुलाक़ातों हंसी रातों का हंगामा।।
जवानी के क़यामत दौर में यह सोचते हैं सब,
ये हंगामे की रातें हैं या है रातों का हंगामा।।
कलम को ख़ून में ख़ुद के डुबोता हूँ तो हंगामा।
गिरेबां अपना आंसू में भिगोता हूँ तो हंगामा।।
नहीं मुझ पर भी जो ख़ुद की ख़बर वो है ज़माने पर,
मैं हंसता हूँ तो हंगामा, मैं रोता हूँ तो हंगामा।।
इबारत से गुनाहों तक की मंज़िल में है हंगामा।
ज़रा-सी पी के आये बस तो महफ़िल में है हंगामा।।
कभी बचपन, जवानी और बुढ़ापे में है हंगामा।
जेहन में है कभी तो फिर कभी दिल में है हंगामा ।।
हुए पैदा तो धरती पर हुआ आबाद हंगामा।
जवानी को हमारी कर गया बर्बाद हंगामा।।
हमारे भाल पर तकदीर ने ये लिख दिया जैसे।
हमारे सामने है और हमारे बाद हंगामा।।