कल्पनाओं को मिले उड़ान मिले यहां एक पहचान शब्दों की लड़ियों में सजाए अपने अहसास इस मंच में कुछ तो है खास हर कविता कहानी किस्सों को मिला यहां सम्मान पूरा हुआ अहसासो को शब्दों के सांचे में ढालने का अरमान
'धूप और धुआँ' में मेरी 1947 ई० से इधर वाली कुछ ऐसी स्फुट रचनाएँ संगृहीत हैं, जो प्राय: समकालीन अवस्थाओं के विरुद्ध मेरी भावनात्मक प्रतिक्रिया के रूप में प्रकट हुई हैं। स्वराज्य से फूटने वाली आशा की धूप और उसके विरुद्ध जन्मे हुए असन्तोष का धुआँ, ये दो
रामधारी सिंह दिनकर की कविता गीत अगीत कविता का सार – Geet Ageet कवि रामधारी सिंह दिनकर जी ने इस कविता में गीत-अगीत के माध्यम से प्रकृति का बड़ा ही मनोहर वर्णन किया है। इस कविता में मुखर भावना (दृश्य) और छुपी भावना (अदृश्य) की तुलना की गई है। यहाँ कवि
'समानांतर' अनूदित होते हुए भी नितान्त मौलिक होने वाली कालजयी कविताओं का अनूठा संकलन है, जो निश्चित ही पाठकों को पसंद आने की सामर्थ्य रखता है। एक मजेदार क़िस्सा सुनाते हुए दिनकरजी कहते हैं कि "कई वर्ष पहले की बात है, एक बार, शौक में आकर, मैंने कुछ विद
देशप्रेम से ओतप्रोत कहानी
मेरी राजनीती की परिभाषा में देस है और देश में सभी कुछ है.
ये बुक शायरी पसंद लोगों के लिए है, इस बुक में मैंने अपनी खुद बनाई रचनाएं लिखी हैं, अगर आपको भी शायरी और गजल पसंद है तो आप ये बुक खरीद सकते हैं, और पढ़ सकते हैं। धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Maa Ki Mamta koi nahi jaanta yeh to Maa hi jaanti Hai Maa se pucho beta ko ager chote lag jaati to Maa Raat din seva karti beta jab videsh chala jaata Hai to Maa shochti Hai Ki beta kab aayga ek baar ko beta bhool jaata Hai lekin Maa nahi bhoolti hai
प्रस्तुत है प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में पूंजपतियों के हस्तक्षेप को दृष्टि गोचित करती हुई व्ययांगात्मक कविता " डेमोक्रेटिक बग"।