कविता मेरे लिए ज्यादा कुछ नहीं
हृदय के उद्गारों को
कागज पर उतारने की प्रक्रिया भर है।
कविता मेरे लिए ज्यादा कुछ नहीं
विचारों के तूफान में भटकी हुई
बुद्धि के लिए मार्गदर्शक भर है।
कविता मेरे लिए ज्यादा कुछ नहीं
सर्द पूर्णिमा रात की बहती समीर में
आह्लादित होती चांदनी भर है।
कविता मेरे लिए ज्यादा कुछ नहीं
दो जवाँ दिलों में उठे सैलाब को
थामने के लिए बांध भर है।
कविता मेरे लिए ज्यादा कुछ नहीं
अनन्त ज्ञान के सागर में भटके हुए
पाठक के लिए कंपास भर है।
कविता मेरे लिए ज्यादा कुछ नहीं
तन्हा ढलती शामों में
सूर्यास्त की अरुणता भर है।
कविता मेरे लिए ज्यादा कुछ नहीं
सृजन हृदय की क्षुधा को शांत करने के लिए
झटपट तैयार की हुई गर्म चाय भर है।।
-प्रवीण कुमार शर्मा