अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध
अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का जन्म उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ ज़िले के निज़ामाबाद में 1865 ई० में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई जहाँ उन्होंने उर्दू, संस्कृत, फ़ारसी, बांग्ला और अंग्रेज़ी भाषा और साहित्य का अध्ययन किया था। उनके कार्य-जीवन का आरंभ मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक के रूप में हुआ और बाद में क़ानूनगो के रूप में भी कार्य किया। इसके बाद फिर उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अवैतनिक प्राध्यापक के रूप में सेवा दी। उनकी प्रतिष्ठा खड़ी बोली को काव्य-भाषा के रूप में स्थापित करने वाले प्रमुख कवियों के रूप में है और इस क्रम में उनकी कृति ‘प्रिय प्रवास’ को खड़ी बोली का पहला महाकाव्य कहा जाता है। यही कृति उनकी सर्वाधिक प्रसिद्धि का भी कारण है। हिंदी के तीन युगों—भारतेंदु युग, द्विवेदी युग और छायावादी युग—में विस्तृत उनका रचनात्मक योगदान उन्हें हिंदी कविता के आधार-स्तंभों में से एक के रूप में स्थान दिलाता है।
प्रिय प्रवास
प्रियप्रवास अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध" की हिन्दी काव्य रचना है। हरिऔध जी को काव्यप्रतिष्ठा "प्रियप्रवास" से मिली। इसका रचनाकाल सन् 1909 से सन् 1913 है। "प्रियप्रवास" विरहकाव्य है। कृष्णकाव्य की परंपरा में होते हुए भी, उससे भिन्न है। "हरिऔध" जी ने
प्रिय प्रवास
प्रियप्रवास अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध" की हिन्दी काव्य रचना है। हरिऔध जी को काव्यप्रतिष्ठा "प्रियप्रवास" से मिली। इसका रचनाकाल सन् 1909 से सन् 1913 है। "प्रियप्रवास" विरहकाव्य है। कृष्णकाव्य की परंपरा में होते हुए भी, उससे भिन्न है। "हरिऔध" जी ने
प्रतिनिधि कविताएँ
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी काव्य को लोकगीत एवं मानव कल्याण के साधन के रूप में स्वीकार करते थे | वह कविता को ईश्वर प्रदत्त अलौकिक वरदान समझकर काव्य रचना करते थे | इसीलिए उनके काव्य में सर्व मंगल का स्वर मुखरित होता है उनके काव्य में पौराणिक एवं
प्रतिनिधि कविताएँ
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी काव्य को लोकगीत एवं मानव कल्याण के साधन के रूप में स्वीकार करते थे | वह कविता को ईश्वर प्रदत्त अलौकिक वरदान समझकर काव्य रचना करते थे | इसीलिए उनके काव्य में सर्व मंगल का स्वर मुखरित होता है उनके काव्य में पौराणिक एवं
चुभते चौपदे
प्रत्येक भाषा के लिये स्थायी साहित्य की आव-श्यकता होती है। जो विचार व्यापक और उदात्त होते हैं, जिन का सम्बन्ध मानवीय महत्त्व अथवा सदा-चार से होता है, जो चरित्रगठन और उल की चरितार्थता के सम्बल होते हैं, जिन भावों का परम्परागत सम्बन्ध किसी जाति की सभ्य
चुभते चौपदे
प्रत्येक भाषा के लिये स्थायी साहित्य की आव-श्यकता होती है। जो विचार व्यापक और उदात्त होते हैं, जिन का सम्बन्ध मानवीय महत्त्व अथवा सदा-चार से होता है, जो चरित्रगठन और उल की चरितार्थता के सम्बल होते हैं, जिन भावों का परम्परागत सम्बन्ध किसी जाति की सभ्य
चोखे चौपदे
प्रत्येक भाषा के लिये स्थायी साहित्य की आव-श्यकता होती है। जो विचार व्यापक और उदात्त होते हैं, जिन का सम्बन्ध मानवीय महत्त्व अथवा सदा-चार से होता है, जो चरित्रगठन और उल की चरितार्थता के सम्बल होते हैं, जिन भावों का परम्परागत सम्बन्ध किसी जाति की सभ्य
चोखे चौपदे
प्रत्येक भाषा के लिये स्थायी साहित्य की आव-श्यकता होती है। जो विचार व्यापक और उदात्त होते हैं, जिन का सम्बन्ध मानवीय महत्त्व अथवा सदा-चार से होता है, जो चरित्रगठन और उल की चरितार्थता के सम्बल होते हैं, जिन भावों का परम्परागत सम्बन्ध किसी जाति की सभ्य
अधखिला फूल
अधखिला फूल "अधखिला फूला उपाध्याय जी का दूसरा सामाजिक उपन्यास है है देवहूती एक विवाहित स्वी है । उसका पति देवस्वरूप संसार से विरक्त रहते के कारण कहीं बाहर चला जाता है । कहने की आवश्यकता नहीं कि आज के पाठक को यह भाषा कुछ कृत्रिम-सी लगेगी । सिर भी ऐसा न
अधखिला फूल
अधखिला फूल "अधखिला फूला उपाध्याय जी का दूसरा सामाजिक उपन्यास है है देवहूती एक विवाहित स्वी है । उसका पति देवस्वरूप संसार से विरक्त रहते के कारण कहीं बाहर चला जाता है । कहने की आवश्यकता नहीं कि आज के पाठक को यह भाषा कुछ कृत्रिम-सी लगेगी । सिर भी ऐसा न
पारिजात
हरिऔध जी पहले ब्रज भाषा में कविता किया करते थे | किंतु द्विवेदी जी के प्रभाव से खड़ी बोली के क्षेत्र में आए और खड़ी बोली को काव्य भाषा के रूप में प्रयुक्त किया | यह भारतेंदु के बाद सबसे अधिक प्रसिद्ध कवि थे | जो नए विषयों की काव्य जगत में स्थापना की
पारिजात
हरिऔध जी पहले ब्रज भाषा में कविता किया करते थे | किंतु द्विवेदी जी के प्रभाव से खड़ी बोली के क्षेत्र में आए और खड़ी बोली को काव्य भाषा के रूप में प्रयुक्त किया | यह भारतेंदु के बाद सबसे अधिक प्रसिद्ध कवि थे | जो नए विषयों की काव्य जगत में स्थापना की
वैदेही वनवास
यह उनकी विशेषता है कि उन्होंने कृष्ण-राधा, राम-सीता से संबंधित विषयों के साथ-साथ आधुनिक समस्याओं को भी लिया है और उन पर नवीन ढंग से अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। प्राचीन और आधुनिक भावों के मिश्रण से उनके काव्य में एक अद्भुत चमत्कार उत्पन्न हो गया है।
वैदेही वनवास
यह उनकी विशेषता है कि उन्होंने कृष्ण-राधा, राम-सीता से संबंधित विषयों के साथ-साथ आधुनिक समस्याओं को भी लिया है और उन पर नवीन ढंग से अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। प्राचीन और आधुनिक भावों के मिश्रण से उनके काव्य में एक अद्भुत चमत्कार उत्पन्न हो गया है।
फूल पत्ते
इस कविता में हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने ऊँचे कुल में जन्म लेने का घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि मनुष्य का वंश नहीं बल्कि उसके कर्म उसे संसार में प्रसिद्धि दिलाते हैं।
फूल पत्ते
इस कविता में हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने ऊँचे कुल में जन्म लेने का घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि मनुष्य का वंश नहीं बल्कि उसके कर्म उसे संसार में प्रसिद्धि दिलाते हैं।
कल्पलता
हरिऔधजी बड़े ही मेधावी, प्रतिभासम्पन्न कवि थे । उन्होंने कविता रचने की प्रेरणा अपने बाबा सुमेरसिंह के सम्पर्क में सीखी । बाल्यावस्था में उन्होंने कबीर की साखियों पर कुण्डलिया लिखकर चमत्कृत कर दिया था । उनका जन्म 15 अप्रैल, 1865 में निजामाबाद में हुआ
कल्पलता
हरिऔधजी बड़े ही मेधावी, प्रतिभासम्पन्न कवि थे । उन्होंने कविता रचने की प्रेरणा अपने बाबा सुमेरसिंह के सम्पर्क में सीखी । बाल्यावस्था में उन्होंने कबीर की साखियों पर कुण्डलिया लिखकर चमत्कृत कर दिया था । उनका जन्म 15 अप्रैल, 1865 में निजामाबाद में हुआ
प्रेमपुष्पोपहार
अयोध्या सिंह उपाध्याय का जन्म जिला आजमगढ़ के निजामाबाद नामक स्थान में सन् 1865 ई. में हुआ था। हरिऔध के पिता का नाम भोला सिंह और माता का नाम रुक्मणि देवी था। अस्वस्थता के कारण हरिऔध जी का विद्यालय में पठन-पाठन न हो सका, अतः इन्होंने घर पर ही उर्दू, सं
प्रेमपुष्पोपहार
अयोध्या सिंह उपाध्याय का जन्म जिला आजमगढ़ के निजामाबाद नामक स्थान में सन् 1865 ई. में हुआ था। हरिऔध के पिता का नाम भोला सिंह और माता का नाम रुक्मणि देवी था। अस्वस्थता के कारण हरिऔध जी का विद्यालय में पठन-पाठन न हो सका, अतः इन्होंने घर पर ही उर्दू, सं