नई दिल्लीः नोटबंदी के बाद देशभर के सहकारी बैंकों से नेता कालाधन को सफेद बनाने की तैयारी में थे , मगर भनक लगते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मास्टरस्ट्रोक चलकर तैयारी पर पानी फेर दिया। नोट बदलने से लेकर जमा करने की पूरी प्रक्रिया में देश के सिर्फ राष्ट्रीयकृत बैंकों को ही मौका दिया गया, सहकारी बैंकों को इससे दूर रखने का फैसला हुआ। वजह कि देश के सभी राज्यों में सहकारी बैंकों का संचालन सत्ताधारी दलों के हाथ में होता है। यूपी में नेताओं के लिए इन बैंकों के जरिये गुपचुप मैनुअल ट्रांजेक्शन करवाए जाने की आशंका थी। बकाया अदा करने की आड़ में अरबों का कालाधन सफेद करने की तैयारी थी। क्योंकि ज्यादातर सहकारी समितियों व बैंकों से रसूखदारों ने लोन रखे हैं। यूपी मे सहकारिता विभाग पर शिवपाल यादव के परिवार का कब्जा है। उनके बेटे आदित्य यादव पीसीएफ चेयरमैन हैं।
आरबीआई ने क्यों सहकारी बैंकों को नोटबंदी से अलग किया
दरअसल वित्त मंत्रालय ने आरबीआई को इस बाबत अलर्ट किया था। कहा था कि यूपी सहित देश के सभी राज्यों में सहकारी बैंकों का संचालन वहां के सत्ताधारी दलों से जुड़े नेताओं के हाथ में हैं। वही पदाधिकारी बनकर संचालन करते हैं। इस पर आरबीआई ने सहकारी बैंकों को पूरे सिस्टम से अलग रखा। रिजर्व बैंक ने तर्क दिया कि इन सहकारी बैंकों के पास जाली नोटों की पहचान के लिए संसाधन ही नहीं हैं। वहीं माली हालत भी खराब है। जिससे नोटबंदी के बाद पुराने नोटों के बदलने और इन सहकारी बैंको के पास बैंकिंग की आधुनिक व्यवस्थाएं मौजूद नहीं है और न ही असली और नकली नोटों के पहचान करने वाले यंत्र है। ऐसे में इन बैंकों को नकली नोट को पहचान कर पाना मुश्किल काम है।
यूपी के बैंक घाटे से जूझ रहे
यूपी में जौनपुर सहित पूर्वांचल के कुल 16 सहकारी बैंक बिल्कुल मृतप्राय हो चुके हैं। रिजर्व बैंक भी इनके लाइसेंस निरस्त करने की संस्तुति कर चुका है। जिससे केंद्रीय वित्त मंत्रालय में इन बैंकों का वित्तीय रिकार्ड अच्छा नहीं है। लिहाजा वित्त मं त्रालय की संस्तुति पर रिजर्व बैंक ने नोटबंदी सिस्टम से सहकारी बैंकों को पूरी तरह अलग रखा है।
केरल में 50 हजार करोड़ कालाधन सफेद बनाने की थी तैयारी
केरल में सहकारी समितियों पर कांग्रेसियों और वामपंथियों का कब्जा है। यहां करीब 50 हजार करोड़ रुपये सफेद करने की तैयारी थी। यहां तक कि केरल के मंत्री ने वित्त मंत्रालय को पत्र भी लिखा। मगर वित्त मंत्रालय और आरबीआई ने साफ मना कर दिया कि सहकारी बैंकों को नोट बदलने की स्कीम से नहीं जोड़ा जाएगा।