बजते नूपुर रुनझुन रुनझुन
कहता मेरा मन उनको सुन
'पहचानूँ उसको पहचानूँ'।
बहती मधुऋतु की वायु ।
लेती कुँजों को छाय ।
वे कलश और वे कंगन ।
उसके चरणों से धरणी
रह-रह उठती सिहराय ।।
पूछे पारुल, वो कौन ?
किस वन के तुम माया-मृग ।
अर्पित होते हैं फूल,
सहलाता केश पवन ।
हर्षित हैं तारागण ।
झिल्ली स्वर उठते झिन झिन।