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बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022

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शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मुतअल्लिक़ मैं कुछ नहीं कह सकता। वो सय्यद थे और मैं एक महज़ कश्मीरी।

बहर-हाल, उन से मेरी बे-तकल्लुफ़ी बहुत बढ़ गई। उन को अदब से कोई शग़फ़ नहीं था। लेकिन जब उन को मालूम हुआ कि मैं अफ़्साना निगार हूँ तो उन्हों ने मुझ से मेरी चंद किताबें मुस्तआर लीं और पढ़ीं।

ये किताबें जो अफ़्सानों के मजमुए थीं, उन्हों ने पढ़ीं, और मुझे बहुत तअज्जुब हुआ कि उन्हों ने चंद अफ़्सानों की बहुत तारीफ़ की। इत्तिफ़ाक़ से ये अफ़साने ऐसे थे जो दुनिया में शाहकार तस्लीम किए जा चुके थे।

शाह साहब मेरे पड़ोसी थे। उन्हों ने एक मकान अलॉट करा रखा था, लेकिन ख़ानदान के अफ़राद चूँकि ज़्यादा थे इस लिए उन्हों ने अपने फ़्लैट के नीचे मोटर गैराज पर भी क़ब्ज़ा कर लिया था। इस में उन्हों ने अपनी बैठक का इंतिज़ाम किया था। ऊपर ज़नाना था। शाह साहब के दोस्त बे-शुमार थे इस लिए इस गैराज में वो उन की ख़ातिर मदारत करते थे।

एक दिन उन से अफ़्सानों के बारे में बातें हुईं तो उन्हों ने मुझ से कहा: “मेरी ज़िंदगी में ऐसी कई हक़ीक़तें हैं जिन को तुम अफ़्साने बना कर पेश कर सकते हूँ।”

मैं हर वक़्त अफ़्सानों की तलाश में रहता हूँ, चुनांचे मैं फ़ौरन मुतवज्जा हुआ और शाह साहब से कहा: “मुझे उम्मीद है कि आप अच्छा मवाद देंगे।”

शाह साहब ने जवाबन कहा: “मैं अफ़्साना निगार नहीं........ लेकिन मेरी ज़िंदगी में एक ऐसा वाक़िया हुआ है जो क़ाबिल-ए-ज़िक्र है........ मैंने क़ाबिल-ए-ज़िक्र इस लिए कहा है कि आप बहुत बड़े अफ़्साना निगार हैं, वर्ना ये वाक़िया जो अब मैं बयान करने वाला हूँ, मेरे नज़दीक बे-हद हैरत-अंगेज़ है।”

मैं ने शाह साहब से कहा: “ऐसा भी क्या हैरत-अंगेज़ होगा!” फिर थोड़े से वक़्फ़े के बाद इस में थोड़ी सी इस्लाह की: “लेकिन हो सकता है कि आप के लिए वो वाक़ई हैरत-अंगेज़ हो।”

शाह साहब ने कहा। “जी! मैं नहीं कह सकता कि जो वाक़िया मैं आप को सुनाने वाला हूँ, हर शख़्स के लिए हैरत का बाइस होगा........ मैं अपनी ज़ात के मुतअल्लिक़ आप से अर्ज़ कर रहा हूँ........ और ये हक़ीक़त है कि मैं जो दास्तान आप को सुनाऊंगा, उस वक़्त तक मेरी ज़िंदगी में मुहैय्यर-उल-उक़ूल हैसियत रखती है।”

शाह साहब ने नील-कटर से अपने नाख़ुन काटने शुरू किए। मैं उन की दास्तान सुनने के लिए बेताब था, मगर शायद वो आग़ाज़ के मुतअल्लिक़ सोच रहे थे कि अपनी दास्तान को कहाँ से शुरू करूं। मेरा ख़्याल दुरुस्त था कि जो कुछ उन पर बीता था, उस को कई बरस हो चुके थे। वो तमाम वाक़ियात की याद अपने ज़हन में ताज़ा कर रहे थे।

मैं ने सिगरेट सुलगाया। उन्हों ने अपनी दस उंगलियों के नाख़ुन काट कर नील-कटर तिपाई पर रखा और मुझ से मुख़ातब हुए। “मैं उन दिनों काबुल में था। ये कह कर चंद लम्हात ख़ामोश रहे, इस के बाद बोले........ मेरी वहां बहुत बड़ी दुकान थी जिस में बढ़िया से बढ़िया सामान मौजूद रहता था।”

मैं ने शाह साहब से पूछा। “आप जनरल मरचैंट थे?”

शाह साहब ने जवाब दिया। “जी हाँ........ काबुल का सब से बड़ा जनरल मरचैंट........ मेरी दुकान में काबुल की क़रीब क़रीब हर औरत सौदा लेने आती थी........ आप से एक बात अर्ज़ करूं........ साथ के दुकानदार जब ये देखते थे कि किसी रोज़ औरतों की बजाय मेरी दुकान में मर्द गाहक आए हैं तो वो मुझ से फ़ारसी ज़बान में अफ़्सोस का इज़हार करते थे कि आग़ा आज ये क्या हुआ........ काबुल की औरतें और लड़कियां मर गईं या तुम्हारे नसीब सो गए।”

शाह साहब मुस्कुरा देते थे........ इस के इलावा और वो क्या जवाब दे सकते थे। लेकिन उन को इस बात का पूरा एहसास था कि उन की दुकान में ग्राहकों की अक्सरीयत औरतों और लड़कियों की होती है, और वो ये भी जानते थे कि ये सब उन की चर्ब-ज़बानी का मोजिज़ा है।

उन्हों ने मुझ से कहा। “मंटो साहब! मैं बेहतरीन सेल्ज़ मैन हूँ........ खासतौर पर औरतों के साथ तो मैं इस तरह सौदा कर सकता हूँ कि यहां लाहौर में कोई भी नहीं कर सकता। बी ए हूँ........ थोड़ी बहुत साईकालोजी भी मैं ने पढ़ी है, इस लिए मुझे मालूम है कि औरतों से किस तरह डील किया जा सकता है........ यही वजह थी कि सारे काबुल में एक मेरी दुकान ही ऐसी थी जिस में हर-वक़्त कोई न कोई गाहक मौजूद होता था।”

मैं ने शाह साहब की ये ख़ुद तारीफ़ी सुनी और उन से कहा। यक़ीनन आप बेहतरीन सेल्ज़ मैन हैं कि आप की गुफ़्तुगू का अंदाज़ ही इस का सबूत है।”

शाह साहब मुस्कुराए। “मगर मुझे अफ़्सोस है कि मैं अपनी दास्तान बेहतरीन सेल्ज़ मैन के अंदाज़-ए-बयान में बयान नहीं कर सकूंगा।”

मैं ने उन से कहा। “आप शुरू तो कीजिए!”

शाह साहब ने चंद लम्हात अपने हाफ़िज़े को फिर टटोला और अपनी दास्तान शुरू की “मंटो साहब! जैसा कि मैं आप से पहले अर्ज़ कर चुका हूँ कि मैं काबुल में था। ये कोई दस बरस पहले की बात है जब मेरी सेहत बहुत अच्छी थी। यूं तो मैं अब भी तन-ओ-मंद कहलाता हूँ, मगर उस ज़माने में मेरा जिस्म आज के मुक़ाबले में दोगुना था। हर रोज़ वरज़िश करता था सैकड़ों डंड पेलता था, मुगदर घुमाता था। सिगरेट पीता था न शराब, बस एक अच्छा खाने की आदत थी। अफ़्ग़ानी नहीं, हिंदूस्तानी। चुनांचे मैं अमृतसर से अपने साथ एक बहुत अच्छा कश्मीरी बावर्ची ले गया था जो हर रोज़ मेरे लिए लज़ीज़ से लज़ीज़ खाने तैय्यार कर के मेज़ पर रखता था। मेरी ज़िंदगी बड़ी हम-वार गुज़रती थी। आमदनी बहुत माक़ूल थी। बैंक में लाखों अफ़्ग़ानी रुपय जमा थे........ लेकिन........ ”

शाह साहब थोड़ी देर के लिए ख़ामोश हो गए। मैं ने उन से पूछा। “लेकिन कह कर आप चुप हो गए........ इस का ये मतलब नहीं निकलता कि आप फिर भी ना-ख़ुश थे।”

शाह साहब ने एतराफ़ क्या “जी हाँ! मैं इन तमाम आसाइशों के बावजूद ना-ख़ुश था। इस लिए कि मैं अकेला था........ मुजर्रद था........ अगर मेरी दुकान में औरतें और लड़कियां ज़्यादा न आतीं तो बहुत मुम्किन है कि मुझे अपने तजर्रुद का एहसास न होता........ लेकिन मुआमला इस के बरअक्स था। काबुल की हर साहब-ए-सरवत औरत मेरी दुकान में आती थी........ दुकान में दाख़िल होते ही ये औरतें और लड़कियां अपना बुर्क़ा उतार कर एक तरफ़ रखतीं और सौदा ख़रीदने में मसरूफ़ हो जातीं........ मंटो साहब! आप का शायद ये ख़याल हो कि वो बड़ा शरई क़िस्म का लिबास पहनती होंगी, मगर हक़ीक़त इस के बिलकुल बरअक्स है। यूं तो वहां की औरतें और लड़कियां पर्दा करती हैं मगर लिबास ठेट यूरोपीयन पहनती हैं। स्कर्ट, कटे हुए बाल, रंगे हुए नाख़ुन, पिंडुलियां नंगी........ जब वो मेरी दुकान में आती थीं तो अपने बुर्के उतार कर एक तरफ़ रख देती थीं और माल देखने में मसरूफ़ हो जाती थीं।”

शाह साहब ने बोलना बंद किया तो मैं ने उन से पूछा। “आप को इन में से किसी से मोहब्बत तो यक़ीनन हो गई होगी?”

शाह साहब बहुत संजीदा हो गए। “जी हाँ! एक लड़की से हो गई थी जो अपना बुर्क़ा नहीं उतारती थी, हत्ता कि निक़ाब भी नहीं उठाती थी।”

मैं ने उन से पूछा। “कौन थी वो?”

उन्हों ने जवाब दिया। “एक बहुत बड़े घराने से मुतअल्लिक़ थी। उस का बाप फ़ौज का आला अफ़्सर था। बड़ा सख़्त गीर........ मुझे उस से सिर्फ़ इस लिए मोहब्बत हुई कि वो हाथों के इलावा अपने जिस्म का कोई हिस्सा नहीं दिखाती थी।”

मैं ने पूछा। “इस की क्या वजह?”

शाह साहब ने कहा। “मुझे मालूम नहीं, और न मैं ने उस से कभी इस बारे में इस्तिफ़सार ही किया........ लेकिन मेरे तसव्वुर में वो इंतिहा दर्जे की हसीन थी। गौरी चिट्टी........ जिस्म ख़्वाह बुर्क़ा में लिपटा हो, लेकिन उस के तनासुब के मुतअल्लिक़ अंदाज़ा लगाना ज़्यादा मुश्किल नहीं था........ मैं ने चोर आँखों से देख लिया था कि वो जवानी का आदर्श मुजस्समा है........ लेकिन मुसीबत ये थी कि वो चंद मिनटों के लिए मेरी दुकान में आती थी। चीज़ें ख़रीदने और उन की क़ीमतों के बारे में फ़ैसला करने में चंद मिनट सर्फ़ करती थी और चली जाती थी।”

मैं ने शाह साहब से कहा। “ये सिलसिला कब तक जारी रहा........ ”

“क़रीब के छः महीने तक मुझ में इतनी हिम्मत ही नहीं थी कि मैं उस से अपनी मोहब्बत का इज़हार करूं। मैं उस से बहुत मरऊब था इस लिए वो दूसरों से मुख़्तलिफ़ थी। उस में एक अजीब किस्म की राऊनत थी........ मैं उस को बे-तरह घूरता था, हालाँकि ये शाइस्तगी नहीं थी लेकिन मैं अपने दिल के हाथों मजबूर था........ मंटो साहब! एक दिन मैं दुकान में बैठा था उस के मुतअल्लिक़ सोच रहा था कि टेलीफ़ोन की घंटी बजी। नौकर ने रीसीवर उठाया और मुझ से कहा कि कोई ख़ातून आप से बात करना चाहती हैं........ मैं ने सोचा कि कोई गाहक होगी और नए माल के मुतअल्लिक़ पूछना चाहती होगी। उठ कर मैं ने रीसीवर हाथ में लिया और पूछा। मादाम! आप क्या चाहती हैं? उधर से आवाज़ आई क्या आप सय्यद मुज़फ़्फ़र अली हैं? मैं ने जवाब दिया, जी हाँ........ इरशाद!

अब मैं ने आवाज़ पहचान ली थी........ ये उसी की थी........ उसी की जो मेरी दुकान में बुर्क़ा नहीं उतारती थी........ मैं घबरा गया........ मंटो साहब! ये आशिक़ होना भी एक अजीब लानत है।”

ये सुन कर मैं मुस्कुरा दिया। “आप ठीक फ़रमाते हैं शाह साहब........ लेकिन अफ़्सोस है कि मैं इस लानत में अभी तक गिरफ़्तार नहीं हुआ।”

शाह साहब को बहुत अफ़्सोस हुआ। “हद हो गई........ इंसान अपनी जवानी में कम-अज़-कम एक मर्तबा तो ज़रूर इशdक़ में गिरफ़्तार होता है........ ख़ैर, आप को अभी तक इशdक़ नहीं हुआ तो ख़ुदा करे कि बहुत जल्द हो जाये, क्यों कि ये मर्ज़ बहुत दिलचस्प है।”

मैं ने मुस्कराकर शाह साहब से कहा। “आप अपनी दास्तान बयान कीजिए........ मुझे इश्क़ होगा तो मैं आप से वाअदा करता हूँ कि आप को उस की पूरी रूदाद सुना दूंगा।”

शाह साहब कुर्सी पर से उठ कर पलंगड़ी पर लेट गए और आँखें बंद कर लीं। “मंटो साहब........ मैं उस लड़की के इश्क़ में इस बुरी तरह गिरफ़्तार हुआ कि वर्ज़िश करना भूल गया........ वो मेरी दुकान पर अक्सर आती थी........ मैं उस को घूरता था........ लेकिन देखिए मेरा दिमाग़ कितना ख़राब हो गया है, ये इसी इश्क़ ख़ाना-ख़राब का बाइस है........ मैं आप से उस के टेलीफ़ोन की बात कर रहा था........ जब मैं ने रीसीवर उठाया और उस की आवाज़ पहचान ली तो उस ने मुझ से कहा। देखो मैं जब भी तुम्हारी दुकान पर आती हूँ, तुम मुझे घूरते हो। अगर अपनी ख़ैरीयत चाहते हो, तो ठीक हो जाओ वर्ना तुम्हारे हक़ में बुरा होगा........ मंटो साहब! मैं जवाब सोच ही रहा था कि उस ने टेलीफ़ोन का सिलसिला मुनक़ते कर दिया। मैं देर तक गूंगे रीसीवर को कान के साथ लगाए खड़ा रहा, और सोचता रहा कि इस धमकी का मतलब क्या है?”

मैं ने शाह साहब से पूछा। “क्या वो धमकी अस्ली थी?”

“जी हाँ........ चौथे रोज़ वो मेरी दुकान में आई तो मैं ने उस की निक़ाब की तरफ़ फिर उन्ही निगाहों से देखा तो उस ने झुँझला कर मेरे मुलाज़िमों के सामने मुझ से कहा........ “तुम्हें श्रम नहीं आती कि तुम मुझे इस तरह देखते हो”........ मैं सुन हो गया........ लेकिन इस ने चंद चीज़ें खरीदीं। दाम दिए और अपनी मोटर में बैठ कर चली गई।”

मैं शाह साहब की दास्तान में काफ़ी दिलचस्पी ले रहा था। “अजीब लड़की थी........ आप से उसे नफ़रत भी थी, मगर इस के बावजूद आप की दुकान में आती थी।”

शाह साहब ने आँखें खोलीं। “मंटो साहब! यही वजह थी कि मेरे दिल में ये ख़याल पैदा हुआ कि उस की नफ़रत-ओ-हक़ारत मस्नूई है दर-अस्ल वो मेरी मोहब्बत से मुतअस्सिर हो चुकी है और महिज़ बनावट के तौर पर ग़ुस्से का इज़हार करती है........ लेकिन जब एक रोज़ उस ने मुझे बहुत ज़ोर से लॉन तान की तो मैं सर्द हो गया........ पर उस की मोहब्बत थी जो मेरे दिल से जाती ही नहीं थी........ मैं ने बहुत कोशिश की कि उस को भूल जाऊं........ मैं ने ख़ुद को समझाया कि तुम अजीब बेवक़ूफ़ हो। एक लड़की जिस की तुम ने शक्ल नहीं देखी........ जो तुम से नफ़रत करती है, तुम उस से इश्क़ फ़र्मा रहे हो। बाज़ आओ, तुम्हारा कारोबार माशा अल्लाह बहुत अच्छा है। सारे अफ़्ग़ानिस्तान में तुम्हारी साख है। ये क्या झक मार रहे हो........ लेकिन मंटो साहब! इश्क़ बहुत बुरी बला है। मैं इस से अपना पीछा न छुड़ा सका........”

मैं ने उन से कहा। “आप ख़्वाह-मख़्वाह दास्तान तवील बनाते जा रहे हैं। अंजाम पर पहुंचीए।”

शाह साहब पलंगड़ी पर से उठे और कुर्सी पर बैठ गए। “हज़रत! ऐसी दास्तानें अक्सर तवील हुआ करती हैं। इशdक़ एक मर्ज़ है और जब तक तूल ना पकड़े, मर्ज़ नहीं होता। महज़ एक मज़ाक़ होता है........ ख़ैर! अब जब कि आप चाहते हैं कि मैं अपनी दास्तान तवील न बनाऊं तो मुख़्तसर तौर पर अर्ज़ करता हूँ कि मेरा इश्क़ जब बहुत शिद्दत इख़्तियार कर गया तो एक रोज़ मैं बे-इख़्तियार रोने लगा।”

मेरे शहर अमृतसर का एक बाशिंदा सरदार बलवंत सिंह था जो मजीठ के एक अच्छे ख़ानदान का फ़र्द था। वो काबुल में एक इंजीनीयरिंग फ़र्म में मुलाज़िम था। खाने पीने वाला आदमी था, इस लिए वो हर महीने मुझ से पच्चास साठ रुपय क़र्ज़ ले जाता था। मज़ीद क़र्ज़ लेने की ग़रज़ ही से वो उस वक़्त मेरी दुकान में आया, जब कि मेरी आँखें नमनाक थीं। वो मेरे पास कुर्सी पर बैठ गया। इस ने मालूम नहीं मुझ से किया पूछा और मैं ने जाने क्या जवाब दिया। लेकिन जब इस ने मुझ से ये कहा। “दोस्त! तुम को कोई रोग लग गया है। तो मैं चौंक पड़ा, नहीं नहीं........ ऐसी कोई बात नहीं........ सरदार बलवंत सिंह मजीठिया अपनी घनी मोंछों के अंदर मुस्कुराया........ “तुम झूट बोलते हो, साफ़ साफ़ बताओ, तुम्हें यहां किसी से इश्क़ हुआ है........ मैं ख़ामोश रहा तो वो फिर बोला, देखो अगर कोई मुश्किल दरपेश है तो हम सब ठीक कर देंगे........ जब उस ने इसी क़िस्म की चंद और बातें कीं तो मैं ने सारा मुआमला उस को बता दिया।”

मैं ने पूछा। “तो उस ने मुश्किल आसान करने का क्या गुर बताया?”

शाह साहब ने कहा। “उस ने मुझे एक मंत्र बताया।”

“मंत्र!”

“जी हाँ।”

“आप सय्यद हैं........ क्या आप मंत्र जंतर यर ईमान ला सकते हैं?”

शाह साहब ने कहा। “लाना तो नहीं चाहिए था कि ये हमारे मज़हब में जायज़ नहीं........ लेकिन उस वक़्त सरदार बलवंत सिंह का मश्वरा मानना ही पड़ा, इस लिए कि इश्क़ बुरी बला है........ उस ने मुझे एक मंत्र बताया कि सात रंगों के फूल लो। उन में से हर एक पर ये मंत्र पढ़ कर फूंको और मंगल के रोज़ उसी लड़की को किसी न किसी तरीक़े से सुन्घा दो........ ये मंत्र मुझे अभी तक याद है।”

मैं ने उन से कहा। “ज़रा सनाईए तो!”

शाह साहब ने एक लहज़े के लिए अपने हाफ़िज़े को टटोला और कहा:

“को रो दस मुखिया देवी

फल खिड़े फल हसे

फल चुग्गे ना हर सिंह प्यारे

जो कोई ले फूलों की बॉस

कभी ना छोड़े हमारा साथ

हमें छोड़ा किसी और को करे

पेट फूल भस्म हो मरे

दुहाई सुलेमान पीर पैग़ंबर की!

मैं ने ये मंत्र सुना तो मुझे अपना लड़कपन याद आ गया जब मैं ने मंत्रों की एक किताब ख़रीदी थी और “स में से एक मंत्र अज़बर इस ग़रज़ से किया था कि मैं स्कूल के तमाम इम्तहानों में पास होता चला जाऊं........ यै मंत्र मुझे अब तक याद है........ ओन्ग् नुमा कामशीरी उतमादे भर यंग परासवाह........ लेकिन इस के पढ़ने का नतीजा ये निकला कि मैं नौवीं जमात में फ़ेल हो गया था।

मैं ने इस मंत्र का ज़िक्र शाह साहब से न किया और उन से पूछा। “तो आप ने सात रंग के फूलों पर ये मंत्र पढ़ा?”

“जी हाँ........ मैं ने सात रंग के फूल सोमवार को इकट्ठे किए। उन पर ये मंत्र पढ़ा और उस लड़की को टेलीफ़ोन किया कि मेरी दुकान में चेकोस्लोवाकिया से बहुत अच्छा माल आया है। मंगल को वो आके देख ले।”

मैं ने शाह साहब से पूछा। “क्या वो आई?”

“जी हाँ........ वो आई........ उस ने मुझे टेलीफ़ोन पर कह दिया था कि वो आएगी। शाम को पाँच बजे के क़रीब। मैं इस का इंतिज़ार करता रहा। वो ठीक पाँच बज कर पाँच मिनट पर आई और उस ने चेकोस्लोवाकिया के माल के मुतअल्लिक़ इस्तिफ़सार किया। ग़रज़ ये है कि माल वाल का क़िस्सा बिलकुल फ़राड था........ मैं ने उस से कहा कि मुलाज़िमों ने अभी तक पेटियां नहीं खोलीं, आप कल तशरीफ़ लाईएगा। वो बहुत जुज़ बुज़ हुई। मैं मंत्र पढ़े फूलों की तरफ़ देख रहा था........ इत्तिफ़ाक़ की बात कि उस ने भी इन फूलों की तरफ़ देखा और मुझ से कहा ये फूल तुम्हारी मेज़ पर कहाँ से आगए?........ मैं ने जवाब दिया ये मैं ने आप के लिए ख़रीदे थे। अगर आप को पसंद हों........ मेरा मतलब है अगर आप को इन की ख़ुशबू पसंद होतो आप उन्हें क़बूल फ़रमाएं........ उस ने वो सात फूल उठाए और उन्हें सूँघा।

मैं ने उन से पूछा। “उस लड़की का रद्द-ए-अमल क्या था?”

शाह साहब ने जवाब दिया। “इस ने नाक भौं चढ़ा कर कहा........ ये फूल हैं? इन में न तो ख़ुश्बू है न बद-बू........ बहर-हाल, उस ने वो फूल सूंघे........ चंद चीज़ें खरीदीं और चली गई........ शाम को सरदार बलवंत सिंह मजीठिया मेरी दुकान पर आया। उस ने मुझ से पूछा कहो, वो फूल सुन्घा दिए?। मैं ने उस से कहा सुन्घा तो दिए लेकिन इस का नतीजा क्या निकलेगा, ये मुझे मालूम नहीं। सरदार बलवंत सिंह हंसा। उस ने बड़े ज़ोर से मेरा हाथ दबाया और कहा दोस्त! अब तुम्हारा काम समझो कि पंद्रह आने हो गया है।”

मुझे बड़ी हैरत थी कि मंत्र के ज़रिये ऐसा काम पंद्रह आने क्यों कर हो सकता है, मगर सय्यद साहब ने कहना शुरू किया। “मंटो साहब! आप यक़ीन मानिए कि मेरा काम पंद्रह आने मुकम्मल हो गया........ दूसरे दिन कूकू जान का टेलीफ़ोन आया कि वो कुछ चीज़ें ख़रीदने के लिए आ रही है। मैं ने उस का इस्तिक़बाल किया........वो कोई चीज़ ख़रीदना नहीं चाहती थी। बहुत देर तक वो मेरी दुकान में इधर उधर फुर्ती रही। इस के बाद वो मुझ से मुख़ातब हुई, तुम से मैं कई मर्तबा कह चुकी हूँ कि मुझे घूरा ना करो........ और वो जो तुम ने फूल सुंघाए थे, इस का क्या मतलब था........?”

मैं ने कूकू जान से लुकनत भरे लहजे में कहा। “मैं........ मैं........ वो फूल जो थे........ फूल थे........ मैं ने ........ मैं ने ........ माल जो चेकोस्लोवाकिया से आया था, खुला हुआ नहीं था, इस लिए मैं ने वो फूल आप की ख़िदमत में पेश कर दिए........ कूकू जान बुर्क़ा में सख़्त मुज़्तरिब थी........ उस ने इज़्तिराब भरे लहजे में कहा। “तुम ने मुझे फूल क्यों सुन्घाए?........ ” मैं ने उस से बड़े मासूमाना अंदाज़ में पूछा। “क्या आप को उस से कोई तकलीफ़ हुई........ ” वो बड़े गर्म अंदाज़ में बोली “तकलीफ़........? मैं सारी रात वो सात फूल देखती रही हूँ........ फूल आते थे और जब मैं उन्हें हासिल करना चाहती थी तो वो मुझ से परे हट जाते थे........ ये कैसे फूल थे?” मैं ने जवाब दिया। “मेरे वतन के थे........ चूँकि मेरे वतन के थे, इस लिए मैं ने आप की ख़िदमत में पेश किए........ लेकिन मुझे हैरत है कि वो रात भर आप को क्यों नज़र आते और सताते रहे।”

मैं ने शाह साहब से पूछा। “ये फूल आप ने कहाँ से मंगवाए थे?”

शाह साहब ने जवाब दिया। “जी! मंगवाए कहाँ से थे, वहीं अफ़्ग़ानिस्तान के थे........ निहायत वाहियात क़िस्म के फूल जिन में ख़ुशबू नाम को भी नहीं थी........ शाम को सरदार बलवंत सिंह आया, मज़ीद क़र्ज़ लेने के लिए। उस ने मुझ से क़र्ज़ लेने से पहले दरयाफ़्त किया। “कहिए शाह साहब! उस मुआमले का क्या हुआ मैं ने उस को सारी बात बता दी........ वो क़र्ज़ लेना भूल गया। अपना बालों भरा हाथ मेरे कंधे पर ज़ोर से मार कर चिल्लाया........शाह जी! आप का काम सोला आने हो गया है........ विस्की की एक बोतल मनगाईए।”

शाह साहब ने मुझे बताया कि उन्हों ने विस्की की बोतल के इलावा एक डिब्बा सिगरेटों का भी मंगवाया, जिस में से सरदार बलवंत सिंह मजीठिया तंबाकू नोशों के ठेट अंदाज़ में पे-दर-पे कई सिगरेट फूंकते रहे। जब जाने लगे तो उन्हों ने शाह साहब से कहा कि देखो अभी थोड़ी सी कसर बाक़ी है। अगले मंगल को तुम और सात फूल लो और उन पर वही मंत्र पढ़ कर उस लड़की को सुन्घा दो........ बेड़ा पार हो जाएगा........।”

शाह साहब बहुत परेशान हुए। उस की समझ में नहीं आता था कि वो अब की कूकू जान को फूल कैसे सुन्घा सकेंगे जब कि वो इस मुआमले के मुतअल्लिक़ शाकी थी। लेकिन मुआमला इश्क़ का था, इस लिए शाह साहब मौत के मुँह में जाने के लिए भी तैय्यार थे।

शाह साहब ने पेशावर से फूल मंगवाए........ इन में से सात मुंतख़ब किए और हर एक पर मंत्र पढ़ा और अपने मेज़ के गुलदान में रख दिए। इस के इलावा उन्हों ने अपनी दुकान में जा-ब-जा गुलदान रखवाए और इन में फूल सजा दिए।

पीर को साहब ने कूकू जान को टेलीफ़ोन किया और उस से फिर झूट बोला कि चेकोस्लोवाकिया का माल खुल गया है। आप आईए और देख लीजिए। कूकू जान आई, मगर माल वाल मौजूद नहीं था........ शाह साहब थोड़ी देर के लिए बौखलाए, फिर ज़रा होश सँभाल कर अपने नौकरों को लॉन तान की कि तुम ने अभी तक माल क्यों नहीं खोला।

कूकू जान के साथ उस की वालिदा बूबू जान भी थी। वो एक तरफ़ टायलट का सामान देखने में मसरूफ़ थी। कूकू जान ने जब दुकान में जा-ब-जा फूल देखे तो वो मुतअज्जिब होने के इलावा मुज़्तरिब भी हुई।

मेरी मेज़ पर वो ख़ास फूल पड़े थे। वो उन के पास आई, गुलदान में से उठा कर इस ने उन्हें सूँघा और मुझ से कहा। “ये अफ़्ग़ानिस्तान के फूल नहीं।”

मैं ने जवाब दिया। “जी हाँ........ये मेरे वतन के हैं........ और मैं ने ख़ास आप के लिए मंगवाए हैं। बूबू जान ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त में मशग़ूल थी। इस दौरान में कूकू जान से मैं ने अपनी वालहाना मोहब्बत का इज़हार किया। वो सख़्त नाराज़ हुई और अपनी माँ के साथ चली गई........ शाम को सरदार बलवंत सिंह मजीठिया आया........ उस से बातचीत हुई। मैं ने उस को दस रुपय क़र्ज़ दिए। जब उस ने रुपय अपनी जेब में डाले तो मुझ से पूछा “आज मंगल है........ वो फूल सुन्घा दिए थे आप ने?” मैं ने सारा वाक़िया बयान कर दिया........ सरदार बलवंत सिंह ने अपना बालों भरा हाथ ज़ोर से मेरे हाथ पर मारा और कहा “शाह जी, अब काम सतरह आने पूरा हो गया है........ विस्की की एक बोतल मँगाओ।”

शाह साहब ने विस्की की बोतल मंगवाई। सरदार बलवंत सिंह मजीठिया ने आधी दुकान में पी और आधी अपने साथ ले गया। मैं ने शाह साहब से पूछा। “दूसरी दफ़ा फूल सुन्घाने से क्या नतीजा बरामद हुआ?”

शाह साहब ने जवाब दिया। “वो बहुत बेचैन हो गई। उसे दिन रात इतने फूल नज़र आने लगे कि एक दिन वो सख़्त इज़्तिराब की हालत में आई। बुर्क़ा जो उस ने कभी उतारा नहीं था, केले के छिलके की तरह उतार कर एक तरफ़ फेंका और मुझ से मुख़ातब हुई। देखो शाह! तुम ने मुझ पर कोई जादू कर दिया है........ मैं ने उस के चेहरे की तरफ़ देखा जो मुझे पहली बार नज़र आया था मंटो साहब! मैं ने अपनी ज़िंदगी में उस जैसी हसीन लड़की अब तक नहीं देखी........ मैं उस को देखता रहा........ उस ने बड़े तेज़-ओ-तुंद लहजे में कहा। “तुम ने मुझे फूल क्यों सुन्घाए थे........ मैं पागल हुई जा रही हूँ........ दिन हो या रात, हर-वक़्त मुझे वो तुम्हारे फूल दिखाई देते हैं। मुझे मालूम है कि तुम मुझ से मोहब्बत करते हूँ। लेकिन तुम्हें मालूम होना चाहिए कि मैं एक शरीफ़ घराने की लड़की हूँ। मेरे वालिदैन अन-क़रीब मेरी शादी कर रहे हैं। तुम ने मुझ पर क्या जादू फूंका है........ये कह कर उस ने मेरे मेज़ पर से गुलदान में से फूल निकाले और फ़र्श पर फेंक कर अपनी सैंडल से मसल दिए। लेकिन मुझे महसूस होता था कि वो नाराज़ होने के बावजूद नाराज़ नहीं थी और चाहती थी कि मैं उस से बातें करूं। लेकिन मुझे इस का यक़ीन नहीं था इस लिए ख़ामोश रहा........ वो कुछ देर ग़ुस्से की हालत में खड़ी रही। इस के बाद उस ने बुर्क़ा पहना और चली गई।”

मैं ने शाह साहब से पूछा। “तो सरदार बलवंत सिंह मजीठिया का मंत्र काम कर गया!”

“जी हाँ, काम कर गया........ उस को फूल ही फूल नज़र आते थे। मैं ने कई मर्तबा सोचा कि ये सब बकवास है, मगर कूकू जान की बातों से मुझे यक़ीन हो गया कि मंत्र अपना असर कर गया है, हालाँकि जो मंत्र आप सुन चुके हैं, इस में ऐसी कोई बात नहीं जिस से आदमी को ये मालूम हो कि वो असर करेगा........ लेकिन वाक़िया ये है कि वो जब फिर मेरी दुकान में आई तो बुर्क़ा उतार कर मुझ से बग़ल-गीर हो गई और रोना शुरू कर दिया........ मैं ने उस को कई मर्तबा चूमा। इस ने कोई मुज़ाहमत न की। थोड़ी देर के बाद मेरी मेज़ पर गुलदान में जो फूल पड़े थे, उस ने निकाले और उन्हें नोच कर एक तरफ़ फेंक दिया। इस के बाद वो बुर्क़ा पहन कर तेज़ी से बाहर निकल गई।

दास्तान काफ़ी तवालत पकड़ रही थी। मैं ने साहब से कहा। “आप मुख़्तसर फ़रमाईए कि अंजाम क्या हुआ........ क्या वो लड़की आप को मिल गई?”

शाह साहब ने एक आह भरी। “जी नहीं। उस की शादी हो गई। मगर हजला-ए-अरूसी में दाख़िल होते ही मालूम नहीं क्या हुआ कि वो गिरी और गिरते ही मर गई........ इस के हाथ में सात फूल थे मुख़्तलिफ़ रंगों के।”

मैं ने देखा कि शाह साहब की पलंगड़ी के साथ तिपाई पर पीतल के फूलदान में सात मुख़्तलिफ़ रंगों के फूल अड़से हुए थे।

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ
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मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है
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शो शो

8 अप्रैल 2022
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घर में बड़ी चहल पहल थी। तमाम कमरे लड़के लड़कियों, बच्चे बच्चियों और औरतों से भरे थे। और वो शोर बरपा हो रहा था। कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई ना देती थी। अगर उस कमरे में दो तीन बच्चे अपनी माओं से लिपटे दूध पीने क

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सहाय

8 अप्रैल 2022
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“ये मत कहो कि एक लाख हिंदू और एक लाख मुस्लमान मरे हैं...... ये कहो कि दो लाख इंसान मरे हैं...... और ये इतनी बड़ी ट्रेजडी नहीं कि दो लाख इंसान मरे हैं, ट्रेजडी अस्ल में ये है कि मारने और मरने वाले किसी

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हरनाम कौर

8 अप्रैल 2022
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निहाल सिंह को बहुत ही उलझन हो रही थी। स्याह-व-सफ़ैद और पत्ली मूंछों का एक गुच्छा अपने मुँह में चूसते हुए वो बराबर दो ढाई घंटे से अपने जवान बेटे बहादुर की बाबत सोच रहा था। निहाल सिंह की अधेड़ मगर तेज़

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हामिद का बच्चा

8 अप्रैल 2022
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लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा ना घाट का। उन्हों ने आते ही हामिद से कहा। “लो भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंद-ओ-बस्त करो।” हामिद ने कहा। “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए ह

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सोने कि अंगूठी

8 अप्रैल 2022
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सोने कि अंगूठी सआदत हसन मंटो “छत्ते का छत्ता होगया आप के सर पर मेरी समझ में नहीं आता कि बाल न कटवाना कहाँ का फ़ैशन है ” “फ़ैशन वेशन कुछ नहीं तुम्हें अगर बाल कटवाने पड़ें तो क़दर-ए-आफ़ियत मालूम हो जाये

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

8 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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हारता चला गया

8 अप्रैल 2022
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लोगों को सिर्फ़ जीतने में मज़ा आता है। लेकिन उसे जीत कर हार देने में लुत्फ़ आता है। जीतने में उसे कभी इतनी दिक़्क़त महसूस नहीं हुई। लेकिन हारने में अलबत्ता उसे कई दफ़ा काफ़ी तग-ओ-दो करना पड़ी। शुरू शुर

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अंजाम-ए-नजीर

8 अप्रैल 2022
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बटवारे के बाद जब फ़िर्का-वाराना फ़सादात शिद्दत इख़्तियार कर गए और जगह जगह हिंदूओं और मुस्लमानों के ख़ून से ज़मीन रंगी जाने लगी तो नसीम अख़तर जो दिल्ली की नौ-ख़ेज़ तवाइफ़ थी अपनी बूढ़ी माँ से कहा “चलो माँ यहां

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अब्जी डूडू

8 अप्रैल 2022
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“मुझे मत सताईए....... ख़ुदा की क़सम, मैं आप से कहती हूँ, मुझे मत सताईए” “तुम बहुत ज़ुल्म कर रही हो आजकल!” “जी हाँ बहुत ज़ुल्म कर रही हूँ” “ये तो कोई जवाब नहीं” “मेरी तरफ़ से साफ़ जवाब है और ये मैं आप

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इज़्ज़त के लिए

8 अप्रैल 2022
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चवन्नी लाल ने अपनी मोटर साईकल स्टाल के साथ रोकी और गद्दी पर बैठे बैठे सुबह के ताज़ा अख़्बारों की सुर्ख़ियों पर नज़र डाली। साईकल रुकते ही स्टाल पर बैठे हुए दोनों मुलाज़िमों ने उसे नमस्ते कही थी। जिस का जवा

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इफ़्शा-ए-राज़

8 अप्रैल 2022
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“मेरी लगदी किसे न वेखी वे ते टुटदी नूँ जग जाणदा” “ये आप ने गाना क्यों शुरू कर दिया है” “हर आदमी गाता और रोता है कौनसा गुनाह किया है?” “कल आप ग़ुसल-ख़ाने में भी यही गीत गा रहे थे” “ग़ुसल-ख़ाने में तो ह

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क़ब्ज़

8 अप्रैल 2022
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नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के

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कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

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कोट पतलून

8 अप्रैल 2022
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नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ज़बान

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ख़ालिद मियां

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मुमताज़ ने सुबह सवेरे उठ कर हसब-ए-मामूल तीनों कमरे में झाड़ू दी। कोने खद्दरों से सिगरटों के टुकड़े, माचिस की जली हुई तीलियां और इसी तरह की और चीज़ें ढूंढ ढूंढ कर निकालें। जब तीनों कमरे अच्छी तरह साफ़ होगए

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ख़ुदकुशी

8 अप्रैल 2022
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ज़ाहिद सिर्फ़ नाम ही का ज़ाहिद नहीं था, उस के ज़ुहद-ओ-तक़वा के सब क़ाइल थे, उस ने बीस पच्चीस बरस की उम्र में शादी की, उस ज़माने में उस के पास दस हज़ार के क़रीब रुपय थे, शादी पर पाँच हज़ार सर्फ़ हो गए, उतनी ह

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गिलगित ख़ान

8 अप्रैल 2022
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शहबाज़ ख़ान ने एक दिन अपने मुलाज़िम जहांगीर को जो उस के होटल में अंदर बाहर का काम करता था उस की सुस्त-रवी से तंग आकर बर-तरफ़ कर दिया। असल में वो सुस्त-रो नहीं था। इस क़दर तेज़ था कि उस की हर हरकत शहबाज़ ख़ान

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घोगा

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मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

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चुग़द

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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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जानकी

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पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

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तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
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जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

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दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
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[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

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निक्की

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तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

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परी

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कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

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पसीना

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“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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पीरन

8 अप्रैल 2022
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ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
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सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

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फाहा

8 अप्रैल 2022
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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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फुंदने

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कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

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बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
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शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

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बाई बाई

8 अप्रैल 2022
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नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

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बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
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टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

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बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
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कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

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सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
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कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

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मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
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मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

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मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
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कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

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महमूदा

8 अप्रैल 2022
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मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

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मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
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बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

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मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
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प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

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मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
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घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

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वह लड़की

9 अप्रैल 2022
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सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

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वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
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हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

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शादी

9 अप्रैल 2022
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जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

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सड़क के किनारे

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“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

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शारदा

9 अप्रैल 2022
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नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

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सिराज

9 अप्रैल 2022
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नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

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हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
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इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

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सजदा

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गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

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लाइसेंस

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अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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संतर पंच

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मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

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शैदा

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शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

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राम खेलावन

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खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

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रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

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ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

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मिस फ़र्या

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शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

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मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
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कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

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बुड्ढ़ा खूसट

9 अप्रैल 2022
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ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

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शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
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वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

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चुग़द

9 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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