अमावस्या की वह रात हवेली के इतिहास की सबसे काली रात बनने वाली थी। चारों ओर एक अजीब-सी खामोशी थी, लेकिन हवेली के भीतर कुछ और ही हलचल चल रही थी। सूरजभान ने चंद्रिका की आत्मा को मुक्त करने के लिए यज्ञ की पूरी तैयारी कर ली थी। उसने गाँव के सबसे विद्वान और अनुभवी पंडितों को बुलाया था, जो अपनी मंत्र शक्ति से चंद्रिका की काली शक्तियों का सामना कर सकें।
हवेली के आँगन में यज्ञ मंडप स्थापित किया गया। आग जल चुकी थी, और यज्ञ का आरंभ मंत्रों के उच्चारण के साथ हुआ। चारों ओर धुएँ और हवन सामग्री की खुशबू फैल रही थी, लेकिन उसी के साथ वातावरण में एक अजीब-सा तनाव भी महसूस हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने हवेली को अपनी गिरफ्त में ले लिया हो।
जैसे-जैसे मंत्रोच्चार तेज हुआ, यज्ञ कुंड के पास बिछाए गए अष्टधातु के पात्रों से हल्की-हल्की चमक निकलने लगी। यह संकेत था कि मंत्र अपनी शक्ति को जागृत कर रहे हैं। सूरजभान, जो यज्ञ मंडप के पास बैठा था, घबराए हुए लेकिन ध्यानमग्न था।
कुछ ही पल में, पंडितों ने एक विशेष मंत्र का उच्चारण शुरू किया। जैसे ही उस मंत्र का पहला अक्षर गूंजा, यज्ञ अग्नि से एक तेज़ चमक निकली और आकाश में सीधी उठ गई। उसी पल, अष्टधातु के पाँच पात्रों से धुआं-सा उठने लगा, और उनमें से रहस्यमय संकेत-चिन्ह उभरने लगे।
पहला संकेत-चिन्ह, जो त्रिकोण के आकार का था, अग्नि के ऊपर मंडराने लगा। वह लाल रोशनी से दमक रहा था। दूसरा चिन्ह, जो वृत्त के आकार का था, हल्की नीली चमक के साथ आकाश में ऊपर उठने लगा। तीसरा चिन्ह, जो एक वर्ग के आकार का था, यज्ञ मंडप के चारों ओर घूमने लगा। चौथा संकेत-चिन्ह, जो अर्धचंद्र के आकार में था, चमकीले पीले प्रकाश के साथ प्रकट हुआ। और पाँचवाँ चिन्ह, जो एक रहस्यमय प्रतीक (चक्र) के जैसा था, गाढ़ी हरी रोशनी के साथ मंडप के ठीक ऊपर स्थिर हो गया।
पंडितों ने मंत्रोच्चार को और तेज़ किया। यह संकेत-चिन्ह अब आकाश में एक पंक्ति में खड़े हो गए थे। यज्ञ के बीच रहस्यमय शक्ति का संचार होने लगा था। सूरजभान की आँखों में उम्मीद की एक किरण जगी। वह जानता था कि ये संकेत-चिन्ह चंद्रिका की आत्मा को मुक्त करने की कुंजी हैं।
लेकिन तभी, हवेली के ऊपर का तांत्रिक चक्र तेज़ी से घूमने लगा। चंद्रिका की काली शक्तियाँ जाग उठीं। हवेली के हर कोने से उसकी कर्कश हँसी गूंजने लगी। संकेत-चिन्ह अभी भी मंडप के ऊपर मंडरा रहे थे, लेकिन चारों ओर अजीब-सी हलचल बढ़ने लगी। दीवारों पर काले साए नाचने लगे, और हवेली की फर्श पर दरारें पड़ने लगीं।
पंडितों ने सूरजभान को इशारा किया कि संकेत-चिन्हों को जल्दी से उठाकर उस कमरे में ले जाए, जहाँ चंद्रिका की आत्मा को मुक्त करने का प्रयास करना था। सूरजभान ने काँपते हुए उन संकेत-चिन्हों को अपने हाथ में लिया। लेकिन जैसे ही उसने उन्हें उठाया, एक अजीब-सी जलन उसके शरीर में दौड़ गई। ऐसा लगा जैसे चंद्रिका की काली शक्तियाँ उसे रोकने की कोशिश कर रही थीं।
तभी अचानक, हवेली के वातावरण में बदलाव आने लगा। हवेली का हर कमरा और गलियारा डरावनी आवाज़ों और चीखों से गूंजने लगा। हवेली धीरे-धीरे श्मशान में बदलने लगी। चारों ओर चिताएँ जलने जैसी रोशनी दिखाई देने लगीं। दीवारों पर अजीब-अजीब आकृतियाँ उभरने लगीं, जैसे कोई अदृश्य शक्ति हर कोने पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हो।
यज्ञ मंडप के पास बैठे पंडित भी असहज होने लगे। मंत्रों की शक्ति से चंद्रिका की आत्मा को रोकने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन उसकी काली शक्ति हर मंत्र को दबा रही थी। तभी यज्ञ के बीच, हवेली में अचानक से एक भयानक ठहाका गूंजा। यह चंद्रिका की हँसी थी। उसकी हँसी ने सबको अंदर तक झकझोर दिया।
सूरजभान समझ चुका था कि चंद्रिका ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। अचानक, यज्ञ की अग्नि तेज़ लपटों में बदल गई। चंद्रिका ने अपनी काली शक्तियों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। मंडप के पास बैठे पंडितों ने अपनी मंत्र शक्ति से उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन चंद्रिका ने मंत्रों के बल से एक-एक करके सभी पंडितों को मारना शुरू कर दिया। कोई पंडित जलकर राख हो गया, तो किसी की चीखों के साथ उसका शरीर हवा में गायब हो गया। कुछ ही पलों में, पूरा यज्ञ मंडप खून और राख का मैदान बन गया।
सूरजभान यह सब देखकर अंदर तक काँप गया। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। वह जानता था कि चंद्रिका को रोकने के लिए अष्टधातु के उन पाँच संकेत-चिन्हों को जोड़ना होगा। वह पंडितों की चीखों को अनसुना करते हुए हवेली के अंदर दौड़ा। उसके हाथों में वे पाँचों संकेत-चिन्ह थे, जिनसे चंद्रिका की आत्मा को मुक्त किया जा सकता था।
हवेली के मुख्य कक्ष में पहुँचते ही सूरजभान ने वह भयानक दृश्य देखा जिसने उसके होश उड़ा दिए। चंद्रिका की आत्मा अब पूरी तरह प्रकट हो चुकी थी। उसकी परछाई कक्ष की दीवारों पर बड़ी-बड़ी आकृतियों में फैल रही थी। उसकी लाल जलती हुई आँखें और बिखरे हुए बाल उसे और भी डरावना बना रहे थे। उसके चारों ओर एक घना काला धुआँ था, जो उसकी शक्ति को दर्शा रहा था।
जैसे ही सूरजभान कक्ष में पहुँचा, चंद्रिका ने अपनी काली हँसी के साथ उसकी ओर देखा। उसने अपने मंत्रों का उच्चारण तेज कर दिया। वह हवा में तैरती हुई सूरजभान के सामने आ गई। सूरजभान ने काँपते हुए संकेत-चिन्ह आगे बढ़ाए। लेकिन चंद्रिका पहले से ही सब कुछ जान चुकी थी। उसने एक झटके में उन संकेत-चिन्हों को अपनी ओर खींच लिया।
चंद्रिका के हाथ में आते ही, संकेत-चिन्ह एक रहस्यमयी रोशनी में चमकने लगे। चंद्रिका ने अपने मंत्रों का इस्तेमाल करके उन चिन्हों को अपनी शक्ति का हिस्सा बना लिया। वह और भी ताकतवर हो गई।
अब सूरजभान के पास कोई विकल्प नहीं बचा था। चंद्रिका ने उसकी ओर घूरते हुए कहा,
"तुमने मुझे मारकर जो भूल की थी, अब उसका अंजाम भुगतने के लिए तैयार हो जाओ!"
उसने अपने मंत्रों का इस्तेमाल करके सूरजभान को हवा में उठा लिया। सूरजभान दर्द से चिल्ला उठा, लेकिन चंद्रिका की क्रूरता थमने का नाम नहीं ले रही थी। उसने अपने मंत्रों के जरिए सूरजभान के शरीर को हवा में घुमाया और बेरहमी से दीवार पर पटक दिया।
सूरजभान दर्द से कराहते हुए नीचे गिर पड़ा। उसने अपनी बची-खुची ताकत से चंद्रिका को रोकने की कोशिश की, लेकिन अब वह पूरी तरह उसकी दया पर था। चंद्रिका ने एक आखिरी मंत्र पढ़ा, और सूरजभान का शरीर झटके के साथ जमीन पर निर्जीव हो गया।
हवेली में अब सिर्फ चंद्रिका की हँसी गूंज रही थी। उसने संकेत-चिन्हों को अपने पास रखा और अपने तांत्रिक चक्र को फिर से सक्रिय कर दिया। हवेली अब पूरी तरह से उसकी काली शक्तियों का अड्डा बन चुकी थी।
अमावस्या की उस रात के बाद हवेली की स्थिति पूरी तरह बदल गई। जिस हवेली में कभी उत्सव और रौनक की आवाजें गूंजती थीं, वह अब सन्नाटे और भय का अड्डा बन गई थी। उसके काले इरादे और तांत्रिक शक्तियाँ और भी अधिक भयानक हो गई थीं।
हवेली के आसपास के गांववालों ने अगली सुबह जब यज्ञ का हाल देखा, तो वे डर से कांप उठे। यज्ञ स्थल खंडहर की तरह बर्बाद था। आँगन में टूटी-फूटी सामग्री और चारों ओर जले हुए राख के निशान थे। पंडितों के शव वहाँ से गायब थे, और केवल हवेली की दीवारों पर अजीब-सी लाल धारियाँ उभर आई थीं, जो मानो किसी अभिशाप का संकेत दे रही थीं।
गांववालों ने हवेली से दूरी बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने इसे 'भूतिया हवेली' करार दिया। बच्चों को सख्त हिदायत दी गई कि वे हवेली के आस-पास भी न जाएँ। अमावस्या की हर रात हवेली से आती कर्कश हँसी, चीख-पुकार, और कभी-कभी मंत्रों का अस्पष्ट स्वर सुनाई देने लगा। यह हवेली अब गाँववालों के लिए खौफ और रहस्य का केंद्र बन गई थी।
दूसरी ओर, चंद्रिका की आत्मा हवेली के अंदर और भी ताकतवर होती जा रही थी। अमावस्या की रात के बाद से, चंद्रिका ने अपनी काली शक्तियों का विस्तार करना शुरू कर दिया। वह अपने तांत्रिक चक्र को हर रात और भी मजबूत बनाती। हवेली के अंदर दीवारों पर अजीबोगरीब चिह्न उभरने लगे थे, जिनसे रहस्यमय ऊर्जा फूटती। इन चिह्नों के माध्यम से चंद्रिका ने अपनी आत्मा को और अधिक शक्तिशाली बनाना शुरू कर दिया था।
हवेली अब केवल एक मकान नहीं, बल्कि काले जादू और बुरी शक्तियों का अड्डा बन चुकी थी। कहा जाता है कि हवेली के अंदर जाने की कोशिश करने वाले लोग कभी लौटकर बाहर नहीं आए। आसपास के गाँववालों ने हवेली को पूरी तरह छोड़ दिया और अपने घरों को भी उससे दूर बसाने लगे।
लेकिन चंद्रिका को अब किसी का डर नहीं था। वह अपनी काली शक्तियों के साथ हवेली के हर कोने को अपने वश में कर चुकी थी। उसके पास अब केवल एक ही उद्देश्य था—अपनी ताकत को इतना प्रबल करना कि वह पूरी तरह अमर हो जाए और अपने मार्ग में आने वाले हर व्यक्ति को नष्ट कर दे।
हवेली का अतीत धीरे-धीरे धुंधलाने लगा, लेकिन चंद्रिका का आतंक और भी गहरा होता चला गया। वह अमावस्या की हर रात हवेली को तांत्रिक चक्र में बदल देती और अपनी शक्ति को मजबूत करने के लिए नए-नए मंत्र और तंत्र साधनाओं का अभ्यास करती।
गांववालों ने इसे नियति मान लिया। उन्होंने सुरजबान और चंद्रिका की कहानी को बस एक भूतिया कथा की तरह याद रखना शुरू कर दिया, लेकिन कोई भी उस हवेली का सामना करने की हिम्मत नहीं करता था।
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इस कहानी को स्थायी रूप से यही खत्म किया गया है, आगे की कहानी को पढ़ना है तो "श्रापित मोबाइल" कहानी पढ़िए क्योंकि वो इसी कहानी का वर्तमान भाग है। आशा है कि आपको यह कहानी अच्छी लगी होगी, अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव मेरे साथ अवश्य साझा करें।
_____________समाप्त__________
लेखक: दीपक सिंह🖊️