27 फरवरी, 1948 को नेहरू को लिखे पत्र में तत्कालीन गृहमंत्री पटेल ने भी लिखा था—गवाहियों से
यह स्पष्ट उभरकर आ रहा है कि सावरकर के नेतृत्व में हिन्दू महासभा के एक कट्टरपंथी धड़े ने
गांधी-हत्या का षड़्यंत्र रचा और इसे अंजाम दिया।गोपाल गोडसे की रिहाई के बाद उसके स्वागत में 11 नवम्बर, 1964 को पूना में आयोजित एक सभा
में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए लोकमान्य तिलक के नाती और केसरी के पूर्व सम्पादक जी.वी. केतकर
के इस दावे के बाद उठे हंगामे के बाद कपूर आयोग का गठन किया गया था कि नथूराम उनसे गांधी
की हत्या के परिणामों पर चर्चा किया करता था और 20 जनवरी के बम विस्फोट के बाद भडगे ने
उनसे भविष्य की योजनाओं के बारे में चर्चा की थी।
केतकर ने यह भी कहा था कि उसने यह जानकारी उस समय पूना के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता बालूकाका
कानितकर को दे दी थी, जिन्होंनेन्हों इस बारे में बम्बई के तत्कालीन मुख्यमंत्री बी.जी. खेर और मोरारजी
देसाई को पत्र लिखकर सूचित किया था। इसी अवसर पर राष्ट्री य स्वयंसेवक संघ के एन.जी. अभ्यंकर
ने गोडसे की तारीफ़ करते हुए उसकी तुलना भगवान् कृष्ण और शिव से की ।
पी.वी. दावरे और हिन्दू महासभा की महिला विंग की शान्ताबाई गोखले ने भी इस सभा में गोडसे की
तारीफ़ की थी। कपूर आयोग की रिपोर्ट ने अन्ततः नागरवाला और पटेल को सही साबित किया। लाल
क़िला ट्रा यल के फ़ैसले में प्रमाणित करने वाले (corroborative) साक्ष्यों के अभाव में सावरकर को
‘दोषी क़रार करना असुरक्षित पाया गया था।’ लेकिन कपूर आयोग की रिपो र्ट पढ़ते हुए पता चलता है
कि सरकारी गवाह दिगम्बर भडगे के कहे को प्रमाणित करने वाले ही नहीं बल्कि ऐसे साक्ष्य भी पहले
से मौज़ूद थे जो यह बताते थे कि गांधी-हत्या के लिए दिल्ली आने से पहले गोडसे और आप्टे सावरकर
से मिले थे।