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भाग -5

7 जून 2022

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संध्या का समय था जब नकली प्रभाकर सिंह इंदुमति को बहका कर और धोखा देकर भूतनाथ की विचित्र घाटी से उसी सुरंग की राह ले भागा जिधर से वे लोग गए थे। उस समय इंदुमति की वैसी ही सूरत थी जैसी कि हम पहिले बयान में लिख आए हैं अर्थात् मर्दानी सूरत में तीर-कमान और ढाल

तलवार लगाए हुए थी। संभव था कि नकली प्रभाकर सिंह को उसके पहिचानने में धोखा होता परन्तु नहीं, उसको इंदुमति से कुछ ऐसा संबंध था कि उसने उसके पहिचानने में जरा भी धोखा नहीं खाया बल्कि इंदुमति को हर तरह से धोखे में डाल दिया। इंदुमति ने प्रभाकर सिंह को वैसे ही ढंग और पोशाक में पाया जैसा छोड़ा था परन्तु यदि वह विकल दुखित और घबड़ाई हुई न होती तो उनके लिए नकली प्रभाकर सिंह को पहिचान लेना कुछ कठिन न था।

सुरंग के बाहर होने बाद आसमान की तरफ देखकर इंदुमति को इस बात का खयाल हुआ कि रात हुआ ही चाहती है। वह सोचने लगी कि इस भयानक जंगल में क्यों कर पार होंगे और रात-भर कहाँ पर आराम से बिता सकेंगे, साथ ही उसे यकायक इसी तरह पर गुलाबसिंह को छोड़ना और भूतनाथ की घाटी से निकल भागना भी ताज्जुब में डाल रहा था। पूछने पर भी प्रभाकर सिंह ने उसको ठीक-ठीक सबब नहीं बताया था, हाँ बताने का वादा किया, मगर इससे उसकी बेचैनी दूर नहीं हुई थी। उसका जी तरह-तरह के खुटकों में पड़ा हुआ था और यह जानने के लिए वह बेचैन हो रही थी कि गुलाबसिंह ने उनका क्या नुकसान किया था जो उसको भी छोड़ दिया गया।

सुरंग के मुहाने से थोड़ी दूर आगे जाने बाद इंदुमति ने प्रभाकर सिंह से कहा, “आपकी चाल इतनी तेज है कि मैं आपका साथ नहीं दे सकती।”

नकली प्रभाकर : (धीमी चाल करके) अच्छा लो मैं धीरे-धीरे चलता हूँ मगर जहाँ तक जल्दी हो सके यहाँ से निकल ही चलना चाहिए।

इंदुमति : आखिर इसका सबब क्या है, कुछ बताओ भी तो सही?

नकली प्रभाकर : अभी नहीं, थोड़ी देर के बाद इसका सबब बताऊँगा।

इंदुमति : यही कहते-कहते तो यहाँ तक आ पहुँचे। अच्छा यही बताओ कि हम लोगों को कहाँ जाना होगा और कितना बड़ा सफर करना पड़ेगा?

नकली प्रभाकर : कुछ नहीं, थोड़ी ही दूर और चलना है। इसके बाद सवारी तैयार मिलेगी जिस पर चढ़कर हम लोग निकल जाएँगे।

सवारी का नाम सुन इंदुमति चौकी और उसके दिल में तरह-तरह की बातें पैदा होने लगी। कई सायत सोचने के बाद उसने पुन: नकली प्रभाकर सिंह से पूछा, “ऐसे मुसीबत के जमाने में यकायक आपको सवारी कैसे मिल गई?”

नकली प्रभाकर : इसका जवाब भी आगे चलकर देंगे।

प्रभाकर सिंह की इस बात ने इंदुमति को और भी तरद्दुद में डाल दिया। वह चलते-चलते रुककर खड़ी हो गई और इस बीच में नकली प्रभाकर सिंह जो आगे जा रहा था कई कदम आगे निकल गया।

हम नहीं कह सकते कि अब यकायक इंदुमति के जी में क्या आया कि वह प्रभाकर सिंह के साथ जाते-जाते एकदम रुक ही नहीं गई बल्कि जब प्रभाकर सिंह अपनी तेजी और जल्दबाजी में पीछे की सुध न करके इंदुमति से कुछ आगे बढ़ गया तो दाहिनी तरफ हटकर एक गुंजान पेड़ पर चढ़ गई और छिपकर इंतजार करने लगी कि देखें अब जमाना क्या दिखाता है।

नकली प्रभाकर सिंह लगभग दो-सौ कदम से भी ज्यादा आगे बढ़ गया तब उसे मालूम हुआ कि उसके पीछे इंदुमति नहीं है। वह घबराकर पीछे की तरफ लौटा और “इंदुमति, इंदुमति” कह कर कुछ ऊँचे स्वर से पुकारने लगा।

इंदुमति पेड़ पर चढ़कर छिपी हुई उसकी आवाज सुन रही थी मगर उसे खूब याद था कि उसे प्यारे पति ने आवश्यकता पड़ने पर कभी उसे इंदुमति कहकर नहीं पुकारा। यह एक ऐसी बात थी जो केवल उन दोनों पति-पत्नी ही से संबंध रखती थी, कोई तीसरा आदमी इसके जानने का अधिकारी न था।

नकली प्रभाकर सिंह इंदुमति को पुकारता हुआ उससे ज्यादा पीछे हट गया जहाँ इंदु छिपी हुई थी और इस बीच में उसने तीन दफे जफील (सीटी) भी बुलाई, साथ ही इसके यह भी उसके मुँह से निकल पड़ा, “कमबख्त ठिकाने पहुँचकर गायब हो गई!” यह बात इंदुमति ने भी सुन ली।

जफील की आवाज से वहाँ कई आदमी और भी आ पहुँचे तथा नकली प्रभाकर सिंह के साथी बन गये जिन्हें देख इंदुमति को विश्वास हो गया कि जो कुछ उसने यहाँ आकर सोचा था वही ठीक निकला, वास्तव में उसने पूरा धोखा खाया, और अब वह बेतरह दुश्मनों के काबू में पड़ी हुई है।

इंदुमति को खोजने वाली अब कई आदमी हो गये और वे इधर-उधर फैलकर पेड़ों की आड़ तथा झुरमुट में उसे खोजने लगे।

तिथि के अनुसार रात की पहिली कालिमा (अँधेरी) बीत चुकी थी और चन्द्रदेव उदय होकर धीरे-धीरे ऊँचे उठने लगे थे जिससे इंदु घबरा गई और मन में सोचने लगी कि यह तो बड़ा अँधेर हुआ चाहता हैं एक छिपे हुए इंदु को यह अपना-सा किया चाहता है! अब मैं क्या करूँ?”

प्रभाकर सिंह के साथ ही साथ जमाने ने भी उसे बहुत कुछ सिखला दिया था। तलवार चलाना और तीर का निशाना लगाना वह बखूबी जानती थी, बल्कि तीरंदाज़ी में उसे एक तरह का घमंड था और इस समय उसके पास यह सामान मौजूद भी था। जैसा कि हम ऊपर इशारा कर चुके हैं कि ‘इस समय इसकी पोशाक और सूरत वैसी ही थी जैसी कि हम पहिले बयान में दिखा चुके हैं।’

जब कई दुश्मनों ने इंदुमति को घेर लिया और चाँदनी भी फैल कर वहाँ की हर एक चीज को दिखाने लगी तब उसे विश्वास हो गया कि अब वह किसी तरह छिपी नहीं रह सकती, लोग जरूर उसे देख लेंगे और गिरफ्तार कर लेंगे। अतएव उसने कमान पर तीर चढ़ाया और संभल कर बैठ गई, सोच लिया कि जब तक तरकश में एक भी तीर मौजूद रहेगा किसी को अपने पास फटकने न दूँगी।

इसी बीच में मौका पाकर उसने नकली प्रभाकर सिंह को अपने तीर का निशाना बनाया। इंदु के हाथ से निकला हुआ तीर नकली प्रभाकर सिंह के पैर में लगा और वह, “हाय” करके बैठ गया। उसके साथी उसके चारों तरफ जमा हो गए और बोले, “बेशक् वह इसी जगह कहीं है और यह तीर उसी ने मारा है। अब उसे हम जरूर पकड़ लेंगे। तीर पूरब तरफ से आया है!”

एक और तीर आया और वह एक आदमी की पीठ को छेद कर छाती की तरफ से पार निकल गया।

अब तो उन लोगों में खलबली पड़ गई और खोजने की हिम्मत जाती रही बल्कि जान बचाने की फिक्र पड़ गई, मगर इस खयाल से कि तीर पूरब तरफ से आया है और मारने वाला भी उसी तरफ किसी पेड़ पर छिपा हुआ होगा, दोनों व्यक्तियों को छोड़कर बाकी के लोग इंदु की तरफ झपटे और चाँदनी की मदद पाकर बहुत जल्दी उस पेड़ को घेर लिया जिस पर इंदु छिपी हुई थी।

अब इंदु ने अपने को जाहिर कर दिया और जरा ऊँची आवाज में उसने दुश्मनों से कहा, “हाँ, हाँ बेशक् मैं इसी पेड़ पर हूँ, मगर याद रखो कि तुम लोगों को अपने पास आने न दूँगी बल्कि देखते ही देखते इस दुनिया को उठा दूंगी।”

इतना कहकर उसने पेड़ के नीचे के और भी एक आदमी को तीर से घायल किया। इसी समय ऊपर की तरफ से आवाज आई, “शाबाश इंदु, शाबाश! इन लोगों की बातचीत से मैं पहिचान गया कि तू इंदुमति है!”

यह बोलने वाला भी उसी पेड़ पर था जिस पर इंदु थी मगर उससे ऊपर की एक ऊँची डाल पर बैठा हुआ जिसकी आवाज सुन कर इंदुमति घबड़ा गई और सोचने लगी कि यह कोई दुश्मन तो नहीं है! उसने पूछा, “तू कौन है और यहाँ कब से बैठा हुआ है?”

जवाब : मैं तुमसे थोड़ी देर पहिले यहाँ आया हूँ बल्कि यों कहना चाहिए कि दूर से तुम लोगों को आते देखकर इस पेड़ पर चढ़ बैठा था, मैं तुम्हारा पक्षपाती हूँ और मेरा नाम भूतनाथ है। तुम तीर-कमान मुझको दो, मैं अभी तुम्हारे दुश्मनों को जहन्नमुम में पहुँचा देता हूँ।

इंदुमति : बस-बस-बस, मैं ऐसी बेवकूफ नहीं हूँ कि इस समय तुम्हारी बातों पर विश्वास कर लूँ जो अपना तीर-कमान, जिससे मैं अपनी रक्षा कर सकती हूँ। तुम्हारे हवाले करके अपने को तुम्हारी दया पर छोड़ दूँ। यद्यपि मैं औरत हूँ और मेरी कमान कड़ी नहीं है तथा मेरे फेंके तीर दूर तक नहीं जाते, तथापि मेरा निशाना नहीं चूक सकता और मैं नजदीक के दुश्मनों को बच कर नहीं जाने दे सकती। खैर तुम जो कोई भी हो समझ रखो कि इस समय मैं तुम्हारी बातों पर विश्वास न करूँगी और तुम्हें कदापि नीचे न उतरने दूंगी, जरा भी हिलोगे तो मैं तीर मारकर तुम्हें दूसरी दुनिया में पहुँचा दूंगी।

इतने ही में नीचे कोलाहल बढ़ा और इंदुमति ने तीर मारकर और एक आदमी को गिरा दिया। फिर ऊपर से आवाज आई-“शाबाश इंदु शाबाश! तू मुझे नीचे उतरने दे, फिर देख मैं तेरे दुश्मनों से कैसा बदला लेता हूँ!”

इंदुमति : कदापि नहीं, मैं अपने दुश्मनों से आप समझ लूँगी।

आवाज : और जब तुम्हारे तीर खत्म हो जाएँगे तब तुम क्या करोगी?

इंदुमति : मेरे तीरों की गिनती दुश्मनों की गिनती से बहुत ज्यादा है, तुम इसकी चिंता मत करो और चुपचाप बैठे रहो।

आवाज : नहीं इंदु नहीं, तुम्हें मालूम नहीं है कि तुम्हारे दुश्मन यहाँ बहुत ज्यादा हैं। थोड़ी देर में वे सब इकट्ठे हो जाएँगे और तब तुम्हारे तीरों की गिनती कुछ काम न करेगी।

इंदुमति : ऐसी अवस्था में तुम्हीं क्या कर सकते हो जो एक औरत का मुकाबला करके नीचे नहीं उतर सकते! खबरदार! व्यर्थ की बकवास करके मेरा समय नष्ट न करो!!

फिर नीचे कोलाहल बड़ा और इंदुमति के तीर ने पुन: एक आदमी का काम तमाम किया। इंदु के ऊपर की तरफ बैठा हुआ आदमी नीचे उतरने लगा और बोला, “खबरदार इंदु, मुझ पर तीर न चलाइये और सच जानियो कि मैं भूतनाथ हूँ और अब नीचे उतरे बिना नहीं रह सकता!”

इंदुमति : मैं जरूर तीर मारूँगी और भूतनाथ के नाम का मुलाहिजा न करूँगी।

इतना कहकर इंदु ने उसकी तरफ तीर सीधा किया मगर घबड़ा कर दिल में सोचने लगी कि कहीं वह भूतनाथ ही न हो। उसी समय किसी हर्बे की चमक उसकी आँखों में पड़ी और उसकी तेज अक्ल ने तुरन्त समझ लिया कि यह बरछी है जिससे कुछ आगे बढ़कर वह जरूर मुझ पर हमला करेगा, अस्तु दिल कड़ा करके इंदु ने उस पर तीर चला ही दिया जो कि उसके मोढ़े में लगा, मगर इस चोट को सहकर और कुछ नीचे उतरकर उसने इंदु पर बरछी का वार किया, साथ ही इंदु का दूसरा तीर पहुँचा जो कि न मालूम कहाँ लगा कि वह लुढ़क कर जमीन पर आ रहा और बेहोश हो गया। परन्तु उसकी बरछी का वार भी खाली नहीं गया। इंदु के जंघे में चोट आई। खून का तरारा बह चला और दर्द से वह बेचैन हो गई। कुशल हुआ कि वह बखूबी इंदु के पास नहीं पहुंचा था। अंदाज से कुछ दूर ही था इसलिए बरछी की चोट भी पूरी न बैठी, और कुछ और नजदीक आ गया होता तो इंदु भी पेड़ पर न ठहर सकती, जरूर नीचे गिर पड़ती।

इंदु जनाना थी मगर उसका दिल मर्दाना था। यद्यपि इस समय वह दुश्मनों से घिरी हुई थी और बचने की आशा बहुत कम थी तथापि उसने अपने दिल को खूब सम्हाला और दुश्मनों को अपने पास फटकने न दिया। पेड़ पर से जिस आदमी ने इंदु को जख्मी किया था, इंदु के हाथ से जख्मी होकर उसके गिरने के साथ ही नीचे वालों में खलबली मच गई। सभी ने गौर के साथ उसे देखना और पहिचानना चाहा। एक ने कहा, “यह तो भूतनाथ है!” दूसरे ने कहा, “फिर इंदु ने इसे क्यों मारा!”

इत्यादि बातें होने लगी जो इंदु के दिल में तरह-तरह का खुटका पैदा करने वाली थीं मगर उसने उसकी कुछ भी परवाह न की और दुश्मनों पर तीर का वार करने लगी। ग्यारह दुश्मनों में से सात को उसने जख्मी किया जिसमें उसके बारह तीर खर्च हुए मगर चार-पाँच दुश्मनों ने बड़ी चालाकी से अपने को बचाया और सर पर ढाल रख के इंदु को पकड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ने लगे। इंदु ने पुन: तीर मारना आरम्भ किया मगर उसका कोई अच्छा नतीजा न निकला क्योंकि उसके चलाए हुए तीर अब ढाल पर टक्कर खाकर बेकार हो जाते थे।

अब इंदु का कलेजा धड़कने लगा। वह जख्मी हो चुकी थी और उसका तरकस भी खाली हो चला था, पेड़ पर चढ़ने वाले बड़े ही कट्टर और लड़ाके आदमी थे अतएव उन्होंने इंदु के तीरों की कुछ भी परवाह न की और उसके पास पहुँचकर उसे गिरफ्तार करने पर ही तुल गए। ऐसी हालत देख इंदु ने भी अपने को उनके हाथ में फँसने की बनिस्बत जान दे देना अच्छा समझा। वह लुढ़क कर पेड़ के नीचे गिर पड़ी और सख्ख चोट खाकर बेहोश हो गई।

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रचनाएँ
भूतनाथ खण्ड -1
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भूतनाथ बाबू देवकीनंदन खत्री का तिलस्मि उपन्यास है। चन्द्रकान्ता सन्तति के एक पात्र को नायक का रूप देकर देवकीनन्दन खत्री जी ने इस उपन्यास की रचना की। किन्तु असामायिक मृत्यु के कारण वे इस उपन्यास के केवल छः भागों लिख पाये उसके बाद के अगले भाग को उनके पुत्र दुर्गाप्रसाद खत्री ने लिख कर पूरा किया।
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भाग -1

7 जून 2022
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मेरे पिता ने तो मेरा नाम गदाधर सिंह रखा था और बहुत दिनों तक मैं इसी नाम से प्रसिद्ध भी था परन्तु समय पड़ने पर मैंने अपना नाम भूतनाथ रख लिया था और इस समय यही नाम बहुत प्रसिद्ध हो रहा है। आज मैं श्रीमान

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भाग -2

7 जून 2022
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प्रभाकर सिंह पीछे-पीछे चले आते थे, यकायक कैसे और कहाँ गायब हो गये? क्या उस सुरंग में कोई दुश्मन छिपा हुआ था जिसने उन्हें पकड़ लिया? या उन्होंने खुद हमें धोखा देकर हमारा साथ छोड़ दिया? इत्यादि तरह-तरह

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भाग -3

7 जून 2022
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बेचारी इंदुमति बड़े ही संकट में पड़ गई है। प्रभाकर सिंह का इस तरह यकायक गायब हो जाना उसके लिए बड़ा ही दुःखदायी हुआ इस समय उसके आगे दुनिया अंधकार हो रही है। उसे कहीं भी किसी तरह का सहारा नहीं सूझता। उस

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भाग -4

7 जून 2022
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अब हम यहाँ पर कुछ हाल प्रभाकर सिंह का लिखना जरूरी समझते हैं। पहिले बयान में हम लिख आए हैं कि ‘प्रभाकर सिंह इंदुमति और गुलाबसिंह को लेकर भूतनाथ अपनी घाटी में गया तो रास्ते में सुरंग के अन्दर से यकायक प

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भाग -5

7 जून 2022
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संध्या का समय था जब नकली प्रभाकर सिंह इंदुमति को बहका कर और धोखा देकर भूतनाथ की विचित्र घाटी से उसी सुरंग की राह ले भागा जिधर से वे लोग गए थे। उस समय इंदुमति की वैसी ही सूरत थी जैसी कि हम पहिले बयान म

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भाग -6

7 जून 2022
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जब इंदु होश में आई और उसने आँखें खोलीं तो अपने को एक सुन्दर मसहरी पर पड़े पाया और मय सामान कई लौडियों की खिदमत के लिए हाजिर देखकर ताज्जुब करने लगी। आँख खुलने पर इंदु ने एक ऐसी औरत को भी अपने सामने इज

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भाग -7

7 जून 2022
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प्रभाकर सिंह को इस घाटी में आए यद्यपि आज लगभग एक सप्ताह हो गया मगर दिली तकलीफ के सिवाय और किसी बात की उन्हें तकलीफ नहीं हुई। नहाने-धोने, खाने-पीने, सोने-पहिरने इत्यादि सभी तरह का आराम था परन्तु इंदु क

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भाग - 8

7 जून 2022
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आज प्रभाकर सिंह उस छोटी-सी गुफा के बाहर आए हैं और साधारण रीति पर वे प्रसन्न मालूम होते हैं। हम यह नहीं कह सकते कि वे इतने दिनों तक निराहार या भूखे रह गए होंगे क्योंकि उनके चेहरे से किसी तरह की कमजोरी

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भाग -9

7 जून 2022
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तीन दिन नहीं बल्कि पाँच दिन तक मेहमानी का आनन्द लूट कर आज प्रभाकर सिंह उस अद्भुत खोह के बाहर निकले हैं। इन पाँच दिनों के अन्दर उन्होंने क्या-क्या देखा-सुना, किस-किस स्थान की सैर की, किस-किस से मिले-जु

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भाग - 10

7 जून 2022
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रात लगभग ग्यारह घड़ी के जा चुकी है। भूतनाथ, गुलाबसिंह और प्रभाकर सिंह उत्कंठा के साथ उस (अगस्तमुनि की) मूर्ति की तरफ देख रहे हैं। एक आले पर मोमबत्ती जल रही है जिसकी रोशनी से उस मंदिर के अन्दर की सभी च

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भाग -11

7 जून 2022
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ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन उसी अगस्ताश्रम के पास आधी रात के समय हम एक आदमी को टहलते हुए देखते हैं। हम नहीं कह सकते कि यह कौन तथा किस रंग-ढंग का आदमी है, हाँ, इसके कद की ऊँचाई से साफ मालूम होता है कि

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भाग - 12

7 जून 2022
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दिन पहर-भर से ज्यादा चढ़ चुका था जब भूतनाथ की बेहोशी दूर हुई और वह चैतन्य होकर ताज्जुब के साथ चारों तरफ निगाहें दौड़ाने लगा। उसने अपने को एक ऐसा कैदखाने में पाया जिसमें से उसकी हिम्मत और जवाँमर्दी उसे

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भाग -13

7 जून 2022
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रात आधी से ज्यादा बीत जाने पर भी कला, बिमला और इंदुमति की आँखों में नींद नहीं है। न मालूम किस गंभीर विषय पर ये तीनों विचार कर रही हैं! संभव है कि भूतनाथ के विषय ही में कुछ विचार कर रही हों, अस्तु जो क

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