चंद्रमा
मेरा यज्ञ कुंड है,
शोभा के हाथ
हवि अर्पित करते हैं !
भावना कल्पना
स्वप्न प्रेरणा
सभी चरु हैं,
समिधा हैं,
आहुति हैं !
ओ आनंद की लपटो,
उठो !
ओ प्रीति, ओ प्रकाश,
जगो !
यह सौन्दर्य यज्ञ है,
कला यज्ञ !
शांति ही होत्री है ।
आत्मा
इंद्रियों की
रुपहली लपटों का
अमृत पान कर रही है !
प्राणों की
स्वत: जलने वाली समित्
जल जल उठती है !
अवचेतन की गुहाएं
औषधियों से दीप्त हैं !
यह सूक्ष्म यज्ञ है,
भाव यज्ञ ।
चंद्रमा ही
यज्ञ वेदी है !