भीष्म साहनी की कहानियों में बच्चे मनोवैज्ञानिक तौर पर अपने परिवेश व समाज की वास्तविकता का बोध कराते हैं। वास्तविकता का संदर्भ धर्म की सामाजिक रूढ़ मान्यताओं से रहा है, धर्म को जिसने संकीर्ण परिभाषा में बांधा। पहला पाठ कहानी का पात्र देवव्रत है जिसके संदर्भ में भीष्म साहनी कथावाचक की शुरूआती भूमिका में बताते हैं। एक कहानीकार के रूप में भीष्म साहनी का जन्म उनकी परिस्थितियों और प्रतिभा दोनों का मिला-जुला रूप रहा है। अपने जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत उन्होंने बहुत कुछ देखा और अनुभव किया इन कहानी संग्रहों में सम्मिलित अधिक से अधिक कहानियाँ भीष्म साहनी की लेखन क्षमता से परिचित कराती हैं।
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