shabd-logo

बाई बाई

8 अप्रैल 2022

26 बार देखा गया 26

नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था।

दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थी जिस में ये पन चक्की लगाई गई थी। फातो के बाप को दो तीन रुपय रोज़ाना मिल जाते जो उस के लिए काफ़ी थे। फातो अलबत्ता उन को नाकाफ़ी समझती थी इस लिए कि उस को बनाओ सिंघार का शौक़ था। वो चाहती थी कि अमीरों की तरह ज़िंदगी बसर करे।

काम काज कुछ नहीं करती थी बस कभी कभी अपने बूढ़े बाप का हाथ बटा देती थी। उस को आटे से नफ़रत थी। इस लिए कि वो उड़ उड़ कर उस की नाक में घुस जाता था। वो बहुत झुँझलाती और बाहर निकल कर खुली हवा में घूमना शुरू कर देती या चनाब के किनारे जा कर अपना मुँह हाथ धोती और अजीब क़िस्म की ठंडक महसूस करती।

उस को चनाब से प्यार था उस ने अपनी सहेलियों से सुन रखा था कि ये दरिया इश्क़ का दरिया है जहां सोहनी महींवाल हीर रांझा का इशक़ मशहूर हुआ।

बहुत ख़ूबसूरत थी और बड़ी मज़बूत जिस्म की जवान लड़की। एक पन-चक्की वाले की बेटी शानदार लिबास तो पहन नहीं सकती मैली शलवार ऊपर फिरन कुर्ता....... दुपट्टा नदारद।

नज़ीर सचेत गढ़ से लेकर बानिहाल तक और भद्रवा से किश्तवाड़ तक ख़ूब घूमा फिरा था। उस ने जब पहली बार फातो को देखा तो उसे कोई हैरत न हुई जब उस ने देखा कि फातो के कुर्ते के निचले तीन बटन नहीं हैं और उस की जवान छातियां बाहर झांक रही हैं।

नज़ीर ने इस इलाक़े में एक ख़ास बात नोट की थी कि वहां की औरतें ऐसी क़मीसें या कुरते पहनती हैं जिन के निचले बटन ग़ायब होते हैं उस की समझ में नहीं आता था कि आया ये दानिस्ता हटा दिए जाते हैं या वहां के धोबी ही ऐसे हैं जो उन को उतार लेते हैं।

नज़ीर ने जब पहली बार सैर करते हुए फातो को अपनी तीन कम बटनों वाली क़मीस में देखा तो उस पर फ़रेफ़्ता हो गया। वो हसीन थी नाक नक़्शा बहुत अच्छा था ताज्जुब है कि वो मैली होने के बावजूद चमकती थी उस का लिबास बहुत गंदा था मगर नज़ीर को ऐसा महसूस हुआ कि यही उस की ख़ूबसूरती को निखार रहा है।

नज़ीर वहां एक आवारागर्द की हैसियत रखता था वो सिर्फ़ कश्मीर के देहात देखने और उन की सयाहत करने आया था और क़रीब क़रीब तीन महीने से इधर उधर घूम फिर रहा था। उस ने किश्तवाड़ देखा भद्रवा देखा कुद और बटोत में कई महीने गुज़ारे मगर उसे फातो ऐसा हुस्न कहीं नज़र नहीं आया था।

बानिहाल में पन-चक्की के बाहर जब उस ने फातो को तीन बटनों से बेनयाज़ कुरते में देखा तो उस के जी में आया कि अपनी क़मीस के सारे बटन अलाहिदा कर दे और उस की क़मीस और फातो का कुरता आपस में ख़लत-मलत हो जाएं। कुछ इस तरह कि दोनों की समझ में कुछ भी न आए।

उस से मिलना नज़ीर के लिए मुश्किल नहीं था इस लिए कि उस का बाप दिन भर गंदुम मकई और ज्वार पीसने में मशग़ूल रहता था और वो थी हँसमुख हर आदमी से खुल कर बात करने वाली। बहुत जल्द घुल्लू मिट्ठू हो जाती थी चुनांचे नज़ीर को उस की क़ुरबत हासिल करने में कोई दिक्कत महसूस न हुई। चंद ही दिनों में उस ने उस से राह-ओ-रस्म पैदा कर ली। ये राह-ओ-रस्म थोड़ी देर में मुहब्बत में तबदील हो गई पास ही चनाब जिसे इश्क़ का दरिया कहते हैं और जिस के पानी से फातो के बाप की पन-चक्की चलती थी इस दरिया के किनारे बैठ कर नज़ीर उस को अपना दिल निकाल कर दिखाता था जिस में सिवाए मुहब्बत के और कुछ भी नहीं था। फातो सुनती इस लिए कि वो इस के जज़्बात का मज़ाक़ उड़ाना चाहती थी असल में वो थी ही हन्सोड़। सारी ज़िंदगी वो कभी रोई न थी, उस के माँ बाप बड़े फ़ख़्र से कहा करते थे कि हमारी बच्ची बचपन में कभी नहीं रोई।

नज़ीर और फातो में मुहब्बत की पेंगें बढ़ती गईं। नज़ीर फातो को देखता तो उसे यूं महसूस होता कि उस ने अपनी रूह का अक्स आईने में देख लिया है और फातो तो उस की गरवीदा थी इस लिए कि वो उस की बड़ी ख़ातिरदारी करता था उस को ये चीज़ जिसे मुहब्बत कहते हैं पहले कभी नसीब नहीं हुई थी इस लिए वो ख़ुश थी।

बानिहाल में तो कोई अख़बार मिलता नहीं था इस लिए नज़ीर को बटोत जाना पड़ता था। वहां वो देर तक डाकख़ाना के अंदर बैठा रहता डाक आती तो अख़बार पढ़ के पन-चक्की पर चला आता। क़रीब क़रीब छः मील का फ़ासिला था मगर नज़ीर इस का कोई ख़याल न करता। ये समझता कि चलो वरज़िश ही हो गई है।

जब वो पन-चक्की के पास पहुंचता तो फातो किसी न किसी बहाने से बाहर निकल आती और दोनों चनाब के पास पहुंच जाते और पत्थरों पर बैठ जाते।

फातो उस से कहती “बख़ैर – आज की ख़बरें सुनाओ”

उस को ख़बरें सुनने का ख़बत था। नज़ीर अख़बार खोलता और उस को ख़बरें सुनाना शुरू कर देता। उन दिनों फ़िर्क़ा-वाराना फ़सादाद थे। अमृतसर से ये क़िस्सा शुरू हुआ था जहां सिखों ने मुस्लमानों के कई मुहल्ले जला कर राख कर दिए थे। वो ये सब ख़बरें उस को सुनाता वो सिखों को अपनी गंवार ज़बान में बुरा भला कहती। नज़ीर ख़ामोश रहता।

एक दिन अचानक ये ख़बर आई कि पाकिस्तान क़ायम हो गया है और हिंदूस्तान अलाहिदा हो गया है। नज़ीर को तमाम वाक़ियात का इल्म था मगर जब उस ने पढ़ा कि हिंदूस्तान ने रियासत मांगरोल और मानावा वार पर ज़बरदस्ती क़ब्ज़ा कर लिया है तो वो बहुत परेशान हुआ मगर उस ने अपनी इस परेशानी को फातो पर ज़ाहिर न होने दिया।

दोनों का इश्क़ अब बहुत उस्तिवार हो चुका था इस का इल्म फातो के बाप को भी हो गया था। वो ख़ुश था कि मेरी लड़की एक मुअज़्ज़ज़ और शरीफ़ घराने में जाएगी मगर वो चाहता था कि उस की बेटी स्यालकोट न जाये जहां का नज़ीर रहने वाला था। उस की ये ख़्वाहिश थी कि नज़ीर उस के पास रहे।

दौलत-मंद का बेटा है। पन-चक्की के पास काफ़ी ज़मीन पड़ी है इस पर एक छोटा सा मकान बनवा ले और दोनों मियां बीवी इस में रहें जब चाहा पलक झपकते श्रीनगर पहुंच गए वहां एक दो महीने रहे फिर वापिस आ गए कभी कभार स्यालकोट भी चले गए कि वो भी इतनी दूर नहीं।

फातो के बाप से मुफ़स्सल गुफ़्तुगू की वो उस से बहुत मुतअस्सिर हुआ और उस ने अपनी रजामंदी का इज़हार कर दिया। नज़ीर और फातो बहुत ख़ुश हुए उस रोज़ पहली मर्तबा नज़ीर ने उस के होंटों को चूमा और ख़ुद अपने हाथ से इस के कुरते में तीन बटन लगाए।

दूसरे दिन नज़ीर ने अपने वालिदैन को लिख दिया कि वो शादी कर रहा है। कश्मीर की एक देहाती लड़की है जिस से उस की मुहब्बत हो गई है एक माह तक ख़त-ओ-किताबत होती रही आदमी रोशन ख़याल थे इस लिए वो मान गए हालाँकि वो अपने बेटे की शादी अपने ख़ानदान में करना चाहते थे।

उस के वालिद ने जो आख़िरी ख़त लिखा उस में इस ख़्वाहिश का इज़हार किया गया था कि नज़ीर फ़ातिमा का फ़ोटो भेजे ताकि वो अपने रिश्तेदारों को दिखाएंगे इस लिए कि वो उस के हुस्न की बड़ी तारीफ़ें कर चुका था।

लेकिन बानिहाल जैसे दूर उफ़्तादा इलाक़े में वो फातो की तस्वीर कैसे हासिल करता उस के पास कोई कैमरा नहीं था न वहां कोई फ़ोटोग्राफ़र, बटोत और कुद में भी इन का नाम-ओ-निशान नहीं था।

इत्तिफ़ाक़ से एक दिन सिरीनगर से मोटर आई नज़ीर सड़क पर खड़ा था उस ने देखा कि इस का दोस्त रणबीर सिंह ड्राईव कर रहा है इस ने बुलंद आवाज़ में कहा : “रणबीर यार – ठहरो”

मोटर ठहर गई दोनों दोस्त एक दूसरे को गले मिले। नज़ीर ने देखा कि उस की मोटर में कैमरा पड़ा है रोली फैक्स। नज़ीर ने उस से कुछ देर बातें कीं फिर पूछा “तुम्हारे कैमरे में फ़िल्म है?”

रणबीर ने हंस कर कहा “ख़ाली कैमरा और ख़ाली बंदूक़ किस काम की होती है मेरे कैमरे में सोला एक्सपोज़ेर मौजूद हैं”

नज़ीर ने फ़ौरन फातो को ठहराया और अपने दोस्त रणबीर से कहा : “यार इस के तीन चार अच्छे पोज़ ले लो और तुम मेरा ख़याल है स्यालकोट जा रहे हो वहां से डेवेलोप और प्रिंट करा के मुझे दो दो कापियां बटोत के डाकखाने की मार्फ़त भिजवा देना”

रणबीर ने बड़े ग़ौर और दिलचस्पी से फातो को देखा उस की मोटर में डोगरा फ़ौज के तीन चार सिपाही थे थ्री नाट थ्री बंदूक़ें लिए। रणबीर जो मुक़ाम फ़ोटो लेने के लिए पसंद करता ये मुसल्लह फ़ौजी इस के पीछे पीछे होते। नज़ीर उस के हमराह होना चाहता तो ये डोगरे उसे रोक देते। कश्मीर में हुल्लड़ मच रहा था उस के मुतअल्लिक़ नज़ीर को अच्छी तरह मालूम था कि हिंदूस्तान उस पर क़ाबिज़ होना चाहता है मगर पाकिस्तानी उस की मुदाफ़अत कर रहे हैं। फ़ोटो लेकर जब नज़ीर का दोस्त रणबीर अपनी मोटर के पास आया तो उस ने नज़ीर की तरफ़ आँख उठा कर भी न देखा फातो डोगरे फ़ौजियों की गिरिफ़त में थी उन्हों ने ज़बरदस्ती मोटर में डाला वो चीख़ी चलाई। नज़ीर को अपनी मदद के लिए पुकारा। मगर वो आजिज़ था। डोगरे फ़ौजी संगीनें ताने खड़े थे।

जब मोटर स्टार्ट हुई तो नज़ीर ने अपने दोस्त रणबीर से बड़े आजिज़ाना लहजे में कहा :“यार रणबीर! ये क्या हो रहा है”

रणबीर सिंह ने जो कि मोटर चला रहा था नज़ीर के पास से गुज़रते हुए हाथ हिला कि सिर्फ़ इतना कहा :

“बाई बाई”

61
रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ
0.0
मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है
1

शो शो

8 अप्रैल 2022
7
0
0

घर में बड़ी चहल पहल थी। तमाम कमरे लड़के लड़कियों, बच्चे बच्चियों और औरतों से भरे थे। और वो शोर बरपा हो रहा था। कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई ना देती थी। अगर उस कमरे में दो तीन बच्चे अपनी माओं से लिपटे दूध पीने क

2

सहाय

8 अप्रैल 2022
2
0
0

“ये मत कहो कि एक लाख हिंदू और एक लाख मुस्लमान मरे हैं...... ये कहो कि दो लाख इंसान मरे हैं...... और ये इतनी बड़ी ट्रेजडी नहीं कि दो लाख इंसान मरे हैं, ट्रेजडी अस्ल में ये है कि मारने और मरने वाले किसी

3

हरनाम कौर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

निहाल सिंह को बहुत ही उलझन हो रही थी। स्याह-व-सफ़ैद और पत्ली मूंछों का एक गुच्छा अपने मुँह में चूसते हुए वो बराबर दो ढाई घंटे से अपने जवान बेटे बहादुर की बाबत सोच रहा था। निहाल सिंह की अधेड़ मगर तेज़

4

हामिद का बच्चा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा ना घाट का। उन्हों ने आते ही हामिद से कहा। “लो भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंद-ओ-बस्त करो।” हामिद ने कहा। “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए ह

5

सोने कि अंगूठी

8 अप्रैल 2022
1
0
0

सोने कि अंगूठी सआदत हसन मंटो “छत्ते का छत्ता होगया आप के सर पर मेरी समझ में नहीं आता कि बाल न कटवाना कहाँ का फ़ैशन है ” “फ़ैशन वेशन कुछ नहीं तुम्हें अगर बाल कटवाने पड़ें तो क़दर-ए-आफ़ियत मालूम हो जाये

6

हाफ़िज़ हुसैन दीन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

7

हारता चला गया

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लोगों को सिर्फ़ जीतने में मज़ा आता है। लेकिन उसे जीत कर हार देने में लुत्फ़ आता है। जीतने में उसे कभी इतनी दिक़्क़त महसूस नहीं हुई। लेकिन हारने में अलबत्ता उसे कई दफ़ा काफ़ी तग-ओ-दो करना पड़ी। शुरू शुर

8

अंजाम-ए-नजीर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

बटवारे के बाद जब फ़िर्का-वाराना फ़सादात शिद्दत इख़्तियार कर गए और जगह जगह हिंदूओं और मुस्लमानों के ख़ून से ज़मीन रंगी जाने लगी तो नसीम अख़तर जो दिल्ली की नौ-ख़ेज़ तवाइफ़ थी अपनी बूढ़ी माँ से कहा “चलो माँ यहां

9

अब्जी डूडू

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मुझे मत सताईए....... ख़ुदा की क़सम, मैं आप से कहती हूँ, मुझे मत सताईए” “तुम बहुत ज़ुल्म कर रही हो आजकल!” “जी हाँ बहुत ज़ुल्म कर रही हूँ” “ये तो कोई जवाब नहीं” “मेरी तरफ़ से साफ़ जवाब है और ये मैं आप

10

इज़्ज़त के लिए

8 अप्रैल 2022
0
0
0

चवन्नी लाल ने अपनी मोटर साईकल स्टाल के साथ रोकी और गद्दी पर बैठे बैठे सुबह के ताज़ा अख़्बारों की सुर्ख़ियों पर नज़र डाली। साईकल रुकते ही स्टाल पर बैठे हुए दोनों मुलाज़िमों ने उसे नमस्ते कही थी। जिस का जवा

11

इफ़्शा-ए-राज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मेरी लगदी किसे न वेखी वे ते टुटदी नूँ जग जाणदा” “ये आप ने गाना क्यों शुरू कर दिया है” “हर आदमी गाता और रोता है कौनसा गुनाह किया है?” “कल आप ग़ुसल-ख़ाने में भी यही गीत गा रहे थे” “ग़ुसल-ख़ाने में तो ह

12

क़ब्ज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के

13

कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

14

कोट पतलून

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ज़बान

15

ख़ालिद मियां

8 अप्रैल 2022
1
0
0

मुमताज़ ने सुबह सवेरे उठ कर हसब-ए-मामूल तीनों कमरे में झाड़ू दी। कोने खद्दरों से सिगरटों के टुकड़े, माचिस की जली हुई तीलियां और इसी तरह की और चीज़ें ढूंढ ढूंढ कर निकालें। जब तीनों कमरे अच्छी तरह साफ़ होगए

16

ख़ुदकुशी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ज़ाहिद सिर्फ़ नाम ही का ज़ाहिद नहीं था, उस के ज़ुहद-ओ-तक़वा के सब क़ाइल थे, उस ने बीस पच्चीस बरस की उम्र में शादी की, उस ज़माने में उस के पास दस हज़ार के क़रीब रुपय थे, शादी पर पाँच हज़ार सर्फ़ हो गए, उतनी ह

17

गिलगित ख़ान

8 अप्रैल 2022
0
0
0

शहबाज़ ख़ान ने एक दिन अपने मुलाज़िम जहांगीर को जो उस के होटल में अंदर बाहर का काम करता था उस की सुस्त-रवी से तंग आकर बर-तरफ़ कर दिया। असल में वो सुस्त-रो नहीं था। इस क़दर तेज़ था कि उस की हर हरकत शहबाज़ ख़ान

18

घोगा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

19

चुग़द

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

20

जानकी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

21

तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
0
0
0

जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

22

दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

23

निक्की

8 अप्रैल 2022
0
0
0

तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

24

परी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

25

पसीना

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

26

पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

27

पीरन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

28

पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

29

फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
0
0
0

सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

30

फाहा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

31

फुंदने

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

32

बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
0
0
0

शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

33

बाई बाई

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

34

बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

35

बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

36

सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

37

मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
1
0
0

मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

38

मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

39

महमूदा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

40

मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
1
0
0

बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

41

मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
0
0
0

प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

42

मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
0
0
0

घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

43

वह लड़की

9 अप्रैल 2022
0
0
0

सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

44

वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
0
0
0

हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

45

शादी

9 अप्रैल 2022
0
0
0

जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

46

सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
0
0
0

“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

47

शारदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

48

सिराज

9 अप्रैल 2022
0
0
0

नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

49

हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
0
0
0

इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

50

सजदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

51

लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
0
0
0

अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

52

हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

53

संतर पंच

9 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

54

शैदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

55

राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

56

रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

57

मिस फ़र्या

9 अप्रैल 2022
0
0
0

शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

58

मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

59

बुड्ढ़ा खूसट

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

60

शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
0
0
0

वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

61

चुग़द

9 अप्रैल 2022
2
0
0

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए