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आँसू

जय शंकर प्रसाद

6 अध्याय
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3 पाठक
20 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

इस कविता में कवि अपने जीवन में घटित सूख दुख अनुभूति के बारे में बताते हुए कहता है कि जीवन सुख और दुख की लीला भूमि है। यहां शोक और आनंद दोनों आते रहते हैं। कवि को हमेशा से अपनी वेदना पर विश्वास है। एक प्रेमी के लिए सूख दुख दोनों नियती का दान है और दोनों सामान्य है। 

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पुस्तक के भाग

1

आँसू (भाग 1)

20 अप्रैल 2022
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इस करुणा कलित हृदय में अब विकल रागिनी बजती क्यों हाहाकार स्वरों में वेदना असीम गरजती?   मानस सागर के तट पर क्यों लोल लहर की घातें कल कल ध्वनि से हैं कहती कुछ विस्मृत बीती बातें?   आती हैं शू

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आँसू (भाग 2)

20 अप्रैल 2022
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घन में सुंदर बिजली-सी बिजली में चपल चमक सी आँखो में काली पुतली पुतली में श्याम झलक सी प्रतिमा में सजीवता-सी बस गयी सुछवि आँखों में थी एक लकीर हृदय में जो अलग रही लाखों में।   माना कि रूप सी

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आँसू (भाग 3)

20 अप्रैल 2022
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हीरे-सा हृदय हमारा कुचला शिरीष कोमल ने हिमशीतल प्रणय अनल बन अब लगा विरह से जलने।   अलियों से आँख बचा कर जब कुंज संकुचित होते धुँधली संध्या प्रत्याशा हम एक-एक को रोते।   जल उठा स्नेह, दीपक-सा

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आँसू (भाग 4)

20 अप्रैल 2022
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यह पारावार तरल हो फेनिल हो गरल उगलता मथ डाला किस तृष्णा से तल में बड़वानल जलता।   निश्वास मलय में मिलकर छाया पथ छू आयेगा अन्तिम किरणें बिखराकर हिमकर भी छिप जायेगा।   चमकूँगा धूल कणों में सौ

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आँसू (भाग 5)

20 अप्रैल 2022
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सपनों की सोनजुही सब बिखरें, ये बनकर तारा सित सरसित से भर जावे वह स्वर्ग गंगा की धारा   नीलिमा शयन पर बैठी अपने नभ के आँगन में विस्मृति की नील नलिन रस बरसो अपांग के घन से।   चिर दग्ध दुखी यह

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आँसू (भाग 6)

20 अप्रैल 2022
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आशा का फैल रहा है यह सूना नीला अंचल फिर स्वर्ण-सृष्टि-सी नाचे उसमें करुणा हो चंचल   मधु संसृत्ति की पुलकावलि जागो, अपने यौवन में फिर से मरन्द हो कोमल कुसुमों के वन में।   फिर विश्व माँगता हो

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