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राम नरेश त्रिपाठी की प्रसिद्ध कविताएँ

राम नरेश पाठक

52 अध्याय
0 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
2 पाठक
25 अगस्त 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

कविता, संस्मरण, साहित्य सभी पर उन्होंने कलम चलाई। अपने जीवन काल में उन्होंने ग्राम गीतों का संकलन करने वाले वह हिंदी के जिसे 'कविता इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर, रात-रात भर घरों के पिछवाड़े बैठकर सोहर और विवाह गीतों को सुना और चुना। वह गांधी के जीवन और कार्यो से अत्यन्त प्रभावित थे। उनका कहना था कि मेरे साथ गांधी जी का प्रेम 'लरिकाई को प्रेम' है और मेरी पूरी मनोभूमिका को सत्याग्रह युग ने निर्मित किया है। प्रति रुचि प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करते समय जाग्रत हुई थी।  

ram naresh tripathi ki prasiddh kavitayen

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पुस्तक के भाग

1

हम न बोलेंगे, कमल के पात बोलेंगे

18 अगस्त 2022
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हम न बोलेंगे, कमल के पात बोलेंगे। कीच का क्या रंग, क्या है उत्स कादो का जेठ की है धूप कैसी मेघ भादो का ये रहस्य वैसे समय के गात खोलेंगे हम न बोलेंगे, कमल के पात बोलेंगे किन वनों, मरू प्रांतरो

2

पांच जोड़ बांसुरी कहाँ

18 अगस्त 2022
1
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एक जोड़ का पता नहीं पांच जोड़ बांसुरी कहाँ ? सीपियाँ प्रतीक्षिता रहीं रेत, रेत, रेत रह गयी मोतियाँ तिजोरियों पड़ीं दस्तकें वनालिका गयीं एक गीत का पता नहीं पांच जोड़ गीतिमा कहाँ ? चांदनी

3

महुए के पीछे से झाँका है चाँद

18 अगस्त 2022
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महुए के पीछे से झाँका है चाँद पिया आ आँगन में बिखराए जूही के फूल पलकों तक तीर आये सपनों के कूल नयन मूँद लो, बड़ा बांका है चाँद पिया आ बाँट गयी सान्झिल हवाएं पराग बांकी स्वर लौट गए, शेष वही

4

यह शहर

18 अगस्त 2022
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यह शहर एक लम्बे अरसे से मेरा घर जब छोड़ रहा हूँ तो मैं उतना ही उदास हूँ जितना नैहर छोडती हुई कोई लड़की उदास हो जाती है या कोई परदेशी गाँव छोड़ते हुए अपनी उदासी के समंदर में डूब जाता है य

5

एक बूँद जल

18 अगस्त 2022
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मेरे गौशाला के खूंटों पर दम तोड़ते तीन जोड़ी बैलों की आँखों की गहराई में रुका हुआ एक बूँद जल हर क्षण दिखता है मुझे नींद नहीं आती। टूटी खात पर हताश पड़े मेरे बापू की पथरायी, निर्निमेष आखों

6

फूल लड़ाई

18 अगस्त 2022
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लोग रौशनी से डरते हैं सच से कतराते हैं टेसू कहाँ फूलें ? देह देह के आ जाने को डरती है कोहबर घर से कतराती है गुलाब कहाँ उगें ? गीत के पोखर आदमी से डरते हैं अपनी ही मेंड़ से कतराते हैं कम

7

बंधू रे

18 अगस्त 2022
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बंधु रे! नाग सोख गया धरती का रस, बीज, मिहनत, कमाई मेरी छाती दरक गयी बंधु रे! संज्ञा बदल गयी विशेषण बदल गए कर्म और अधिकरण, बदल गए मेरी बाजी पलट गयी बंधु रे! जहर अब भी घोला जा रहा है भ

8

गुलाब के गीतों में

18 अगस्त 2022
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आज आई है चांदनी यह चैत की मेरी आँखों के सामने केवल तुम हो आकाश धूमिल है राका की मदिरा फैली है तुम्हारी चुटकी में एक ताजा गुलाब है और पहली बार मेरे सामने तुम हो वर्षों पहले गंगा की र

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प्रसरण

18 अगस्त 2022
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एक सिलसिला है नदी एक मोड़ है झील एक सागर का तनाव इन्हें जोड़ देता है यह नदी, सागर और झील मुझमे ही सिलसिला, मोड़ और तनाव बनकर प्रसृत होते है!

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मेरा गाँव

18 अगस्त 2022
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मैं कहीं का नहीं हो सका न तन से, न मन से, न धन से, न कर्म से, न वाक् से किसी अक्षांश देशांतर के समवेत बिंदु पर टिक नहीं पाया किसी समतल या उदग्रता की सिम्फनी में जुड़ नहीं सका किन्तु मुझे प्

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अशीर्षक

18 अगस्त 2022
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कहीं से टूटने और जुड़ने के बीच एक ठूंठ वाक्य, एक जर्जर पुल एक चर्राता चौखटा होता है. पड़ोसी आँख और दूर कान के बीच एक इतिहास की छटपटाहट एक अनदेखे की रपट एक टेप रिकार्डर की हलचल होती है. वक़्

12

ब्रह्मपिशाच

18 अगस्त 2022
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एक खारे जल के पहाड़ ने लील लिया वह निस्पंद महानगर कमरे में टंगे प्रेमिकाओं के चित्र स्याह पंखों में बदल गए सभी मेज़ों के कागज़ात और दस्तावेज़ सोये बच्चों के सिरहाने पतंग या वसीयत बन कर रख

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वापसी की मांग

18 अगस्त 2022
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प्रभू! वापस ले लो इन बंजर फासलों वीरान सूखी स्थितियों और मेरी उठी हुई भुजाओं के बीच से दैवी सत्ता को अभी मेरी छाती में एक उछलती नदी भरी है दोनों कूल !

14

फूल लड़ाई

18 अगस्त 2022
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लोग रौशनी से डरते हैं सच से कतराते हैं टेसू कहाँ फूलें ? देह देह के आ जाने को डरती है कोहबर घर से कतराती है गुलाब कहाँ उगें ? गीत के पोखर आदमी से डरते हैं अपनी ही मेंड़ से कतराते हैं कम

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बंधू रे

18 अगस्त 2022
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बंधु रे! नाग सोख गया धरती का रस, बीज, मिहनत, कमाई मेरी छाती दरक गयी बंधु रे! संज्ञा बदल गयी विशेषण बदल गए कर्म और अधिकरण, बदल गए मेरी बाजी पलट गयी बंधु रे! जहर अब भी घोला जा रहा है भ

16

लहसन

18 अगस्त 2022
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तुम्हारी कोमल मांसल बाँह पर एक लहसन है उसे चूमें पलकों छुए कई प्रकाश वर्ष बीत गए हैं

17

गुलाब के गीतों में

18 अगस्त 2022
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आज आई है चांदनी यह चैत की मेरी आँखों के सामने केवल तुम हो आकाश धूमिल है राका की मदिरा फैली है तुम्हारी चुटकी में एक ताजा गुलाब है और पहली बार मेरे सामने तुम हो वर्षों पहले गंगा की र

18

फागुन

18 अगस्त 2022
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मेरे चारों ओर गीत की जवान नदी बह रही है सबेरे सबेरे मत जगाओ मुझे तुम्हारे कुन्तलों से मधु की बूँदें टपक रही हैं मेरे रक्त की ताँ पंचम पर है देखो, मत उठाओ मुझे फागुन आ गया है !

19

पछवा

18 अगस्त 2022
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आँचल संभाल कर जुड़ा बांधो देहरी, ड्योढ़ी विकल खड़ी न रहो नदी रंगों से भरी है (वैकुण्ठ की राह खो गयी है इस नदी में) मुझे मत उकसाओ पछवा बह रही है

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रंग भरी नदी

18 अगस्त 2022
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पलाशों की देह में चिनगी फूली है आम और महुए का दर्द धरती पर लोट रहा है कच्ची कचनार के पोर पोर में तृष्णा जग गयी है कोयल ने दारु पी लिया है बाहर मत निकलो आओ मेरे पास खुले कुंतल, नग्न तन, स्वस्थ मन

21

शहर छोड़ते हुए (कविता)

18 अगस्त 2022
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यह शहर एक लम्बे अरसे से मेरा घर जब छोड़ रहा हूँ तो मैं उतना ही उदास हूँ जितना नैहर छोडती हुई कोई लड़की उदास हो जाती है या कोई परदेशी गाँव छोड़ते हुए अपनी उदासी के समंदर में डूब जाता है य

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तू कहाँ है?

18 अगस्त 2022
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तू कहाँ है, गीत ? शुष्क मरू की एक पीड़ा तू सजल था, शून्य मन की एक गाथा तू मधुर था, तप्त पथ पर का सुधानिधि तू कहाँ है, मीत ? दिग-दिगन्तों ध्वनि-प्रतिध्वनि ढूंढती मुझको, आ, तुझे भेंटूं हृ

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चुन लो

18 अगस्त 2022
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मेरे जीवन से प्यार की एक-एक दूब चुन लो. महावर के पात और उबटन की हल्दी-केसर, अक्षत, चौमुखी और सातों भांवरों की गति. मगर गीतों को न रोको जो प्रत्येक रस्म के साथ गाये गए थे, विशेषतः उन गीतों क

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कथा मेरी

18 अगस्त 2022
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कथा मेरी अधूरी ही रही, पूरी नहीं होगी. व्यथा मेरी असुनी ही रही, सुनी नहीं होगी. मीत के संग-संग तिरोहित प्राण होते. धरा के नभ में विलोपित गान होते. सांध्य से कुछ दूर की दूरी नहीं होगी. शि

25

मेरे ही आँगन

18 अगस्त 2022
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मेरे ही आँगन की एक पौध तुलसी की, मेरे ही खेतों की एक नीड़ टेसू की, दोनों के दोनों ही हुलसे हैं : मैं क्या करूँ ? मेरी ही बारी में खड़ी फसल सरसों की, मेरे ही आसपास कड़ी गजल पानों की, दोनों ही सह

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मैंने कहा

18 अगस्त 2022
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मैंने फागुन की हवा से कहा- 'वंशी, मेरा कोई अपना नहीं,' 'क्या? टूटा तुम्हारा कोई सपना कहीं,' 'नहीं, बंधा मेरे हाथ कोई कंगना नहीं.' मैंने हरसिंगार के फूलों से कहा 'गीत, मेरा कोई अपना नहीं.' 'क्य

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मैं न भूला

18 अगस्त 2022
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मैं न भूला, है न छूटी राह, मेरे पास हर दिन तो नया अर्थ आ लगा है; इति नहीं जिसकी. मैं न डूबा, है न खोया आज तक अस्तित्व. मेरी भुजाओं में हर दिन नया बल भर गया है; रिक्ति नहीं जिसकी. मैं न ऊ

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तू बादल बन

18 अगस्त 2022
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तुम बादल बन. मरू में बरसो, मधु क्षण सिरजो, तुम बादल बन. खेतों में गा, मदों पर छा, तुम बादल बन. तुम जीवन दो, तुम मधुवन दो, तुम बादल बन. गा, गा, मुसका, मुसका, गा, गा, तुम पाग

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हवा आओगी

18 अगस्त 2022
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हवा आओगी बाहों में ? अव सिमटोगी प्राणों में ? गीत स्वर में सध जाओगे ? मीत मरू से लग पाओगे ? छाँव सूरज को चूमेगी ? नाव झंझा से खेलोगी ? धरती नभ को भी छू लोगी, जकड़ोगी ? परती श्रम को भी सोख

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कुम्भ की अर्चा

18 अगस्त 2022
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स्वागत कवि, दीपित रवि, प्रभा पूर्ण. सृष्टि के दिव्य सौन्दर्य के गायक तुम स्नेह, ज्ञान, करुणा के अग्रदूत, दिव्यदूत, नमस्कार, सौ-सौ बार नमस्कार देखो तुम रक्त सने चीवर को हा.......हा.......हा......

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मेरे मित्र

18 अगस्त 2022
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मेरे मित्र, रात आये थे सुना मिलने मगर दुर्भाग्य ! हम तुम मिल न पाए, बज गए थे आठ अधजली सिगरेट सी इस ज़िन्दगी को राख पर बादल विचारों के घुमड़ते जा रहे हैं मूर्ती मेरी तैरती सहसा नज़र के सामने म

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निषेध

18 अगस्त 2022
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ये अलिखित ही रहें तनहाइयाँ, फिसलनें नाउम्मीदियाँ, उलझनें, तनाव, सिलवटें, सुझाव, करवटें, ये अलिखित ही रहें. कोरे कागज़ का दर्द यों ही बहुत होता है, स्याही पी पी कर वह और बड़ा होता है !!!

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ज़िन्दगी

18 अगस्त 2022
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ज़िन्दगी; घिसी-पिटी टाईप, मोनो फेस नहीं; कार्नरफेसेड इलाहाबादी ब्रांड फेसेड बम्बईया ज़िन्दगी; गैली प्रूफ दुनिया प्रेस प्रूफरीडर-हीन.

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मुआर

18 अगस्त 2022
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सतनदिया तट के कई खेत सूखा आया, जल गए, कमर पर फूटते पौधों के समेत जाने कितने किस ठौर, किधर किस साईत में अपराध हुआ पानी चटका, आहर सूखा, विधना ने जीवन लूट लिया, हल-बैलों का सब श्रम उजड़ा दंवने-

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कविता सुनाओ

18 अगस्त 2022
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कविता सुनाओ, बोल देते हो, बड़ी हिम्मत तुम्हारी, बड़ी जुर्रत तुम्हारी बोल देते हो - जरा कविता सुनाओ. सुबह की ओस ने जो डूब पर अपना दरद खोया, शलभ जो साधना की आंच में जल मौन हो सोया, कुमुदिनी रात

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न अन्न

18 अगस्त 2022
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न अन्न, न वस्त्र, न घर, लहलहाती घाम, चिलचिलाती लू, सारा गाँव जल कर रख हो गया. ज़िन्दगी सो गयी, इंसान की खुशियों पर गर्म ख़ाक छा गयी, आग के समंदर में इंसानीयत की नाव डूब गयी, माँगे धुलीं, कोख भ

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कोयल बिकती है

18 अगस्त 2022
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कोयलें बिकती हैं बुलबुल का गीत तपी आंच पर भुनता है, चकई इंगोरा निगलतीं हैं, कोयलें बिकती हैं. फूल पिसता है, पत्थर भी दूब के गीतों को सहता है, मरुवन में झरनों का गीत भी सिसकता है, कोयलें बिकतीं

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रात भींग गयी है

18 अगस्त 2022
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रात भींग गयी है, भूखे स्तनों से सटी बच्ची अफार रही है स्टीमर केधुएं से लगकर भिखारी की आँख उठंग गयी है रात भींग गयी है नीली रौशनी में सेठ की मोती तिमंजिली तोंद से सटी जहूरन मनीबेग निकाल रही ह

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भीख नहीं

18 अगस्त 2022
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भीख नहीं मैं माँग रहा यह तेरी जयजयकार चिकनी काली उखड़ी रुखड़ी सडकों पर मैं जेठ माघ में शीत घाम में सावन भादो की झमझम में खड़ा अदा चलता फिरता घसीटता अपने को हूँ हार हार रहा मनाता जय मैं तेरी स

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तुम

18 अगस्त 2022
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तुम शीतल, कठोर, मौन पाषाण प्रतिमा. सौंदर्यहीन नहीं किन्तु निष्प्राण, आवेगहीन. जाने दो; मगर घड़ी भर के लिए मैं तुम्हारी उन आँखों को पुनः देखना चाहता हूँ जो मेरी ओर पहली बेर उठीं भर थीं कि उ

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एक कश

18 अगस्त 2022
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एक कश सिगरेट, चाय की एक चुसकी, आकाश पर तराशा हुआ चाँद, धुली मेक-अप में तारिकाएं, तुम और तुम्हारे जिस्म की गरम गरम फ्लेवर, दिसंबर की सांझ चूमती-सी! तुम्हारी छातियों पर बने हुए कोण गोरे चौड़े

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गंगई मिटटी सी

18 अगस्त 2022
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गंगई मिटटी-सी सुबह उतर रही है रिक्शे में दुबक कर सोया अस्थि-पंजर हिलने-डुलने लगा है गृहस्थिन बर्तन माँज रही है चूड़ियों की खनखनाहट से सास, ननद और पति जागने को सोच रहा है गौरैया का जोड़ा घिंड़

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दूर कहीं बांसुरी बजाता है

18 अगस्त 2022
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रात है, मौन हैं, सन्नाटा है दूर कहीं बांसुरी बजाता है झील, चांदनी, हवा, तनिक सुनकी नाव डमन सी तैरे बह बहकी गाता है, क्रौंच है, अघाता है दूर कहीं बांसुरी बजाता है रतिक सुगबुगी ज़वा, क्षणिक

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बरसाती रात सावन की

18 अगस्त 2022
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बरसाती रात सावन की अभी आधी न बीती है गगन के पास जब आँखें पता तेरा गयीं लेने लगे तब मुस्कुरा कर तुम पता आना स्वयं देने पिघलती बात सावन की अभी सिहरी न बीती है गली में बादलों को जब भटकते द

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बांसुरी बज रही जंगलों में

18 अगस्त 2022
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बांसुरी बज रही जंगलों में चांदनी में नहायी नहायी पर्वतों में मधुर गूँज फैली माधवी बन गयी मुग्ध राफा नृत्यवंतिन पुलक-मधु लताएं छन्द मूर्तित सपन की वलाका रास का जागता है समंदर अम्बपाली ठगी वन

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अब अकेला मैं निपट हूँ

18 अगस्त 2022
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रेत पर वह भी रुकी है विष-बुझी पुरवा हवा अब अकेला मैं निपट हूँ आज सर्पिल कुंडली में बंध गया मन एक दीमक-ढूह-सा भारी हुआ तन धमनियों में बस गयी है निविड़ भादो की अमा अब अकेला मैं निपट हूँ अब

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बजी डफली रे

18 अगस्त 2022
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बजी डफली रे गूँजा वन, पर्वत गूँजी घाटी रे बजी डफली रे उमगी वन-पाँखी उमगी छाती रे बजी डफली रे चंदा सुधि बिसरा नन्हा मन बिखरा बोली हँसुली रे बजी डफली रे पत्थर परदेसी पग पग पर ह

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मीता! क्या याद कभी आता है नाम

18 अगस्त 2022
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मीता! क्या याद तुम्हें आता है नाम, क्या अब भी पड़ता है मुझसे कोई काम क्या अब भी बजते हैं गंध भरे गीत, आँखों में उगती है रह रह कर प्रीत कौंध कभी जाते क्या फूलों के दाम 'मीता'! क्या याद कभी आता

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खिड़की दरवाजे सब बंद ही रहे

18 अगस्त 2022
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खिड़की दरवाजे सब बंद ही रहे घर, आँगन कैसे मकरंद हो गए एक हंसी टुह-टुह पलाश पर टंगी एक हंसी पीत अमलतास पर पगी धमनी के तार-तार मन्द्र ही रहे घर, जंगल कैसे मकरंद हो गए नदियों की रेत लो अबीर ह

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दिन रेगिस्तान, रात और फिर पहाड़ हुई

18 अगस्त 2022
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दिन रेगिस्तान, रात और फिर पहाड़ हुई जंगल कटते, बनते गए रोज अलमीरा बंद हुए वाल्मीकि कालिदास औ' मीरा त्वचा, मांस, रक्त शेष, देह मात्र हाड़ हुई दिन रेगिस्तान, रात और फिर पहाड़ हुई अपराधों की

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कल्प मन्वंतर चुके यायावरी ढ़ोते

18 अगस्त 2022
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कल्प, मन्वंतर चुके यायावरी ढ़ोते वेद से दिन, उपनिषद सी सांझ का भोगी महाकाव्या यामिनी में सांख्य का योगी श्वेत शतदल पर कठिन यायावरी बोते कल्प, मन्वंतर चुके यायावरी ढ़ोते न्याय से पथ, द्वैघ द

52

एक अदद गीत के लिए

18 अगस्त 2022
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मैं कहाँ-कहाँ नहीं गया एक अदद गीत के लिए वन, पर्वत, नदी, तड़ाग वृक्ष, झील, निर्झरनी-कूल पंथ पंक, मरू, उर्वर, घाट ताल, ताल चोटियाँ, त्रिशूल वज्र-मौन, विष-बुझे नयन एक अदद गीत के लिए लोक ती

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