व्यंग्य के क्षेत्र में नरेंद्र कोहली ने अपनी अलग पहचान बनाई है व्यंग्य लेखन में जिस स्पष्टवादिता की आवश्यकता होती है वह कोहली जी के लेखन और व्यक्तित्व दोनों में देखने को मिलती है। व्यंग्य में कव्य-वैविध्य के अभाव को तोड़ती उनकी रचनाओं ने शिल्पगत वैविध्य को प्रस्तुत किया। उनके व्यंग्य करने के ढंग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों हैं। उन्होंने व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति के लिए फंतासी, कमेटी शैली, कोष्ठक, प्रतीकात्मकता, उपमा, रूपक, मानवीकरण, दृष्टांत आदि का सफल प्रयोग किया है व्यंग्य में शिल्प के विभिन्न कोणों एवं रूपों की प्रस्तुति उनकी व्यंग्य रचनाओं के महत्व को रेखांकित करती है। उनकी व्यंग्य रचनाओं ने व्यंग्य साहित्य की परंपरा को जीवित रखा है, उसे दृढ़ता एवं नवीनता प्रदान की है। प्रस्तुत संग्रह में उनकी 31 व्यंग्य रचनाओं को सम्मिलित किया गया है।
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