शरत चंद्र चट्टोपाध्याय बांग्ला के अमर कथाशिल्पी और सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे। उनकी अधिकांश कृतियों में गाँव के लोगों की जीवनशैली, उनके संघर्ष एवं उनके द्वारा झेले गए संकटों का वर्णन है। मुहल्ले में घूमने-फिरने के बाद रासमणि अपनी नातिन के साथ घर लौट रही थी। गाँव की सड़क कम चौड़ी थी, उस सड़क के एक ओर बंधा पड़ा मेमना (बकरी का बच्चा) सो रहा था। उसे देखते ही बुढ़िया नातिन चेतावनी देने के स्वर में सावधान करती हुई बोली ‘ऐ लड़की, कहीं आँख मींचकर चलती हुई मेमने की रस्सी लांधने की मूर्खता न कर बैठना। अरी, यह क्या, लांध गयी. तू भी हरामजादी बिना ध्यान दिये चल देती है। क्या तुझे रास्ते में बंधी बकरी दिखाई नहीं देती?’ नातिन बोली, ‘दादी, बकरी तो सो रही है।’ ‘तो क्या, सो रही बकरी की रस्सी टापने में दोष नहीं लगता? तुझे क्या इतना भी मालूम नहीं कि मंगल और शनि के दिन रस्सी लांधने का परिणाम अनर्थ होता है।’
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