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चन्द मुकालमे

20 अप्रैल 2022

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“अस्सलाम-ओ-अलैकुम”

“वाअलैकुम अस्सलाम”

“कहीए मौलाना क्या हाल है”

“अल्लाह का फ़ज़ल-ओ-करम है हर हाल में गुज़र रही है”

“हज से कब वापस तशरीफ़ लाए”

“जी आप की दुआ से एक हफ़्ता होगया है”

“अल्लाह अल्लाह है आप ने हिम्मत की तो ख़ान-ए-काअबा की ज़यारत कर ली। हमारी तमन्ना दिल ही में रह जाएगी दुआ कीजिए ये सआदत हमें भी नसीब हो।”

“इंशाअल्लाह वर्ना मैं गुनहगार किस क़ाबिल हूँ।”

“मेरे लायक़ कोई ख़िदमत”

“किसी तकलीफ़ की ज़रूरत नहीं हाँ देखिए ज़रा कान कीजिए उधर मेरे हाँ खांड की दो बोरियां हैं। मेरी बे-शुमार लोगों से जान पहचान है किसी को ज़रूरत हो तो मुझ से फ़र्मा दीजिए। आप मेरा मतलब समझ गए होंगे। दाम वाजिबी होंगे”


+++

“लीजिए जनाब हमारी ख़िदमात का सिला मिल गया”

“क्या वैसे मुबारक हो”

“सौ सौ मुबारक कंपनी ने नौकरी से जवाब दिया।”

“हाएं ये कब की बात है”

“एक महीना हो गया है”

“ला-हौल-व-ला मुझे मालूम ही नहीं था ”

“दो सौ मुलाज़िमों की छांटी हुई थी ना ”

“बहुत अफ़सोस की बात है कोई एहतिजाज वग़ैरा हुआ था।”

“सैकड़ों हड़तालें हुईं जलूस निकले कई मर्तबा लोगों ने भूक हड़ताल की, वादे हुए मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात।”

“तअज्जुब है किसी के कान पर जूं तक न रेंगी”

“अल्लाह रहम करे।”

“अल्लाह रहम नहीं करेगा। वो दिन लद गए। जब वो माइल-ए-ब-करम हुआ करता था। इतने आदमी हैं वो किस किस की हाजत-रवाई करे। मेरा तो ख़याल है ऊपर आसमानों पर भी राशनिंग सिस्टम हो गया है”


+++

“मैं इस बद-ज़ात से क्या कहूं साफ़ मुझे दग़ा दे गया ”

“कैसे ?”

“हराम-ज़ादे ने वादा किया। और दोनों गाड़ियां ठिकाने लगा दीं।”

“इस की वजह”

“मैंने उस का एक काम किया था इस के इव्ज़ में उस ने मुझ से वादा किया था कि वो मुझे एक बयोक कार जो उस के पास आने वाली थी आधी क़ीमत पर दे देगा”

“और जो तुम ने उस का काम किया था वो लाखों का था।”

“इसी लिए तो कहता हूँ ब्लडी स्वाइन ने मेरे साथ धोका किया लेकिन मैं उस से बदला लूंगा। ख़ुद बयोक मेरे घर पहुंचा के जाएगा।”


+++

“बावर्ची को बुलाओ जल्दी बुलाओ हम उस से बात करना मांगता है।”

“हुज़ूर हाज़िर हूँ”

“ये तुम ने आज कैसे वाहियात खाने पकाए हैं”

“हुज़ूर।”

“हुज़ूर के बच्चे इस प्लेट से बेगम साहब ने एक ही निवाला उठाया था कि उन्हें मतली आ गई।”

“हुज़ूर मुम्किन है कोई गड़बड़ होगई हो। माफ़ी चाहता हूँ”

“माफ़ी के बच्चे उठाओ सालन बाहर फेंक आओ ”

“हम नौकर खालेंगे सरकार।”

“नहीं बाहर डस्टबिन में डाल दो और तुम सज़ा के तौर पर भूके रहो।”

“उठिए बेगम हम किसी होटल में चलते हैं।”


+++

“अम्मां अब गुज़ारा कैसे होगा यहां लते बदन पर झूलने का ज़माना आगया है।”

“तू ठीक कहती है बेटा”

“सारा बाज़ार ही मंदा है”

“क्यों ?”

“लोगों के पास रुपया जो नहीं”

“लेकिन जो सड़कों पर इतनी शानदार मोटरें चलती हैं ये जो औरतें तन पर ज़र्क़-बर्क़ लिबास पहने होती हैं ये कहाँ से आता है (अम्मां)”

“उन लोगों के पास है”

“तो फिर बाज़ार क्यों मंदा है”

“अब उन लोगों ने अपने आपस ही में हमारा धंदा शुरू कर दिया है।”

“डार्लिंग ”

“जी ”

“सारी दुकानें छान मारीं मगर तुम्हारे साइज़ की मीदम फ़ोर्म बरीज़र न मिल सकी”

“ओह ! हाओ सैड मेरा साइज़ ही किया वाहियात सा है।”

“दावत तो जनाब ऐसी होगी कि यहां की तारीख़ में यादगार रहेगी। लेकिन एक अफ़सोस है कि फ़्रांस से जो मैंने शैम्पेन मंगवाई थी वक़्त पर न पहुंच सकेगी”

“अजी सुनिए तो ”

“ओह आप मुझे बड़ा ज़रूरी काम है। माफ़ फ़रमाईए।”

“माफियां तुम लाख मर्तबा मांग चुके हो। वो मेरा सौ रुपय का क़र्ज़ अदा करो जो तुम ने आज से क़रीब क़रीब एक साल हुआ लिया था।”

“मैं फिर माफ़ी चाहता हूँ मेरी बीवी बीमार है दवा लेने जा रहा हूँ”

“मैं इन घुस्सों में आने वाला नहीं ख़ुदा की क़सम अगर आज मेरा क़र्ज़ अदा न हुआ तो सर फोड़ दूंगा तुम्हारा।”

“आप क्यों इतनी ज़हमत उठाएँ मैं ख़ुद ही इस दीवार के साथ टक्कर मार के अपना सर फोड़े लेता हूँ। ये लीजिए।”

“ये चरस की लत तुम्हें कहाँ से पड़ी”

“क्या बताऊं यार अब तो इस के बग़ैर रहा ही नहीं जाता।”

“मैंने तुम से पूछा था कि लत कहाँ से पड़ी तुम ने कुछ और ही हाँकना शुरू कर दिया है”

“भाई ये लत मुझे जेल में लगी”

“जेल में वहां तो एक मक्खी भी अंदर नहीं जा सकती”

“भाई मेरे वहां मगरमच्छ भी जा सकते हैं हाथी भी जा सकते हैं अगर तुम्हारे पास दौलत है तो आप वहां एक दो हाथी भी साथ रख सकते हैं”

“पहेलियां न भुजवाओ। बताओ ये चरस वहां कैसे पहुंच सकती है”

“वैसे ही जैसे हम वहां पहुंच सकते हैं मेरे अज़ीज़ जेल ख़ाना सिर्फ़ उन लोगों के लिए जेल ख़ाना है जो साहब-ए-इस्तिताअत नहीं जो दौलतमंद मुजरिम हैं उन को वहां हर क़िस्म की मुराआत मिल सकती हैं और मिलती हैं”

“अगर तुम चाहो तो तुम्हें वहां शराब मिल सकती है गांजा मिल सकता है अफ़यून दस्तयाब हो सकती है। अगर तुम बड़े रईस हो तो अपनी बीवी को भी वहां बुला सकते हो। जो रात भर तुम्हारी मुट्ठी चापी करती रहेगी।”

“जेल ख़ानों में एक ख़ाकी मार्कीट होती है जो ब्लैक मार्कीट से ज़्यादा ईमानदार है।”

“कर्नल साहब आप की उम्र कितनी होगी।”

“मेरा ख़्याल है पैंसठ के क़रीब होगी आप की”

“आप झूट बोलते हैं माशा अल्लाह अभी जवान हैं मेरी उम्र मेरी उम्र यही पच्चीस छब्बीस बरस के क़रीब होगी।”

“तो हम दोनों सच्च बोल रहे हैं”

“मुझे लिप स्टिक से नफ़रत है मालूम नहीं औरतें उसे क्यों इस्तिमाल करती हैं इस से होंटों का सत्यानास हो जाता है।”

“मुझे ख़ुद इस से नफ़रत है”

“लेकिन तुम्हारे होंटों पर तो ये वाहियात चीज़ मौजूद है ख़ून की तरह सुर्ख़ हो रहे हैं।”

“ये सुर्ख़ी मेरे अपने होंटों की है। यानी मस्नूई नहीं”

“तो आओ एक बोसा ले लूँ।”

“बड़े शौक़ से”

“परे हटिए अब मुझे नहीं मालूम था कि मर्द भी लिप स्टिक इस्तिमाल करते हैं।”

“वो कैसे”

“ज़रा आईने में अपने होंट मुलाहिज़ा फ़रमाईए”

“साहब आप से कोई मिलने आया है”

“कह दो साहब घर में नहीं हैं”

“बहुत अच्छा जनाब।”

“चला गया ”

“जी नहीं चली गई ”

“क्या मतलब।”

“जी वो एक ऐक्ट्रीयस थी जिस का नाम ................ ”

“भागो भागो जल्दी उस को बुला के लाओ और कहो तुम ने झूट बोला था कि मैं घर पर नहीं हूँ ”

“आप आजकल कहाँ ग़ायब रहते हैं”

“बेगम एक यतीम बच्चा है उस को देखने कभी कभी चला जाता हूँ”

“इस यतीम बच्चे से आप को इतनी दिलचस्पी क्यों है”

“यतीम जो हुआ ”

“आप की जेब में इस का फ़ोटो भी मौजूद रहता है”

“इस लिए इस लिए ”

“कि वो आप का यतीम बच्चा है”

“नॉन सेंस् ”

“आप की क़मीस पर सुर्ख़ धब्बा कैसे लगा।”

“मेरी क़मीस पर कहाँ है”

“दाहिने हाथ। गिरेबान के क़रीब ”

“ओह मैं जब दफ़्तर में किसी ज़रूरी मसले पर ग़ौर कर रहा होता हूँ तो मुझे किसी बात का होश नहीं रहता ये लाल पेंसिल का निशान है जिस से मैंने खुजला लिया होगा।”

“जी हाँ लेकिन इस में से तो मैक्स फैक्टर की ख़ुशबू आरही है।”

“तुम आजकल किस की बीवी हो”

“कल तो मिस्टर की थी आज छुट्टी पर हूँ”

“आप मैदान-ए-जंग में जा रहे हैं ख़ुदा आप का हाफ़िज़-ओ-नासिर हो लेकिन मुझे कोई निशानी देते जाईए।”

“मेरी निशानी तो तुम ख़ुद हो”

“नहीं कोई ऐसी चीज़ देते जाईए जिस को देख कर अपना दिल बहलाती रहूं”

“मैं वहां से भेज दूँगा।”

“क्या चीज़ ”

“वो ज़ख़्म जो मुझे लड़ने के दौरान आयेंगे”

“आप की बेगम कैसी हैं”

“ये तो आप को मालूम होगा। अपनी बेगम के बारे में मुझ से दरयाफ़्त फ़र्मा सकते हैं”

“वो कैसी हैं”

“पहले से बेहतर और ख़ुश हैं। उन की तबीयत बहुत पसंद आई।”

“यार तुम इतनी औरतों से याराना कैसे गांठ लेते हो”

“याराना कहाँ गांठता हूँ बाक़ायदा शादी करता हूँ”

“शादी करते हो”

“हाँ भाई मैं हराम-कारी का क़ाइल नहीं शादी करता हूँ और जब उकता जाता हूँ तो हक़-ए-महर अदा कर के उस से छुटकारा हासिल कर लेता हूँ”

“इस्लाम ज़िंदाबाद”

(1956)



 

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की बदनाम कहानियाँ
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सआदत हसन मंटो की बदनाम कहानियाँ है कि मंटो की यथार्थ और घनीभूत पीड़ा के ताने-बानो से बुनी गयी हैं। 'बू', 'खुदा की कसम', 'बांझा' काली सलवार, समेत कई ढ़ेर सारी कहानियां हैं। इनमें कई कहानियां विवादित रही। 'बू' ने तो उन्हें अदालत तक घसीट लिया था।
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बाँझ

7 अप्रैल 2022
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मेरी और उसकी मुलाक़ात आज से ठीक दो बरस पहले अपोलोबंदर पर हुई। शाम का वक़्त था, सूरज की आख़िरी किरनें समुंदर की उन दराज़ लहरों के पीछे ग़ायब हो चुकी थी जो साहिल के बेंच पर बैठ कर देखने से मोटे कपड़े की तहे

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बदसूरती

7 अप्रैल 2022
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साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी।  उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात न करता। साजिदा ख़ुश शक्ल थी

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बादशाहत का ख़ात्मा

7 अप्रैल 2022
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टेलीफ़ोन की घंटी बजी, मनमोहन पास ही बैठा था। उसने रिसीवर उठाया और कहा, “हेलो... फ़ोर फ़ोर फ़ोर फाईव सेवन...”  दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई, “सोरी... रोंग नंबर।” मनमोहन ने रिसीवर रख दिया और किता

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फूजा हराम दा

7 अप्रैल 2022
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हाऊस में हरामियों की बातें शुरू हुईं तो ये सिलसिला बहुत देर तक जारी रहा। हर एक ने कम अज़ कम एक हरामी के मुतअ’ल्लिक़ अपने तास्सुरात बयान किए जिससे उसको अपनी ज़िंदगी में वास्ता पड़ चुका था। कोई जालंधर का था

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फुसफुसी कहानी

7 अप्रैल 2022
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सख़्त सर्दी थी। रात के दस बजे थे। शाला मार बाग़ से वो सड़क जो इधर लाहौर को आती है, सुनसान और तारीक थी। बादल घिरे हुए थे और हवा तेज़ चल रही थी। गिर्द-ओ-पेश की हर चीज़ ठिठुरी हुई थी। सड़क के दो रवैय्या पस्

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बर्फ़ का पानी

7 अप्रैल 2022
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“ये आप की अक़ल पर क्या पत्थर पड़ गए हैं” “मेरी अक़ल पर तो उसी वक़्त पत्थर पड़ गए थे जब मैंने तुम से शादी की भला इस की ज़रूरत ही क्या थी अपनी सारी आज़ादी सल्ब कराली।” “जी हाँ आज़ादी तो आप की यक़ीनन सल्ब हूई

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बलवंत सिंह

7 अप्रैल 2022
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शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

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बाई बाई

7 अप्रैल 2022
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नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

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बचनी

7 अप्रैल 2022
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भंगिनों की बातें हो रही थीं। खासतौर पर उन की जो बटवारे से पहले अमृतसर में रहती थीं। मजीद का ये ईमान था कि अमृतसर की भंगिनों जैसी करारी छोकरिया और कहीं नहीं पाई जातीं। ख़ुदा मालूम तक़सीम के बाद वो कहाँ

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फ़ूभा बाई

7 अप्रैल 2022
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हैदराबाद से शहाब आया तो इस ने बमबई सैंट्रल स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहला क़दम रखते ही हनीफ़ से कहा। “देखो भाई। आज शाम को वो मुआमला ज़रूर होगा वर्ना याद रखो में वापस चला जाऊंगा।” हनीफ़ को मालूम था कि वो मु

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फूलों की साज़िश

7 अप्रैल 2022
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बाग़ में जितने फूल थे। सब के सब बाग़ी होगए। गुलाब के सीने में बग़ावत की आग भड़क रही थी। उस की एक एक रग आतिशीं जज़्बा के तहत फड़क रही थी। एक रोज़ उस ने अपनी कांटों भरी गर्दन उठाई और ग़ौर-ओ-फ़िक्र को बालाए ताक़

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फुंदने

7 अप्रैल 2022
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कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

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फाहा

7 अप्रैल 2022
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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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बग़ैर इजाज़त

7 अप्रैल 2022
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नईम टहलता टहलता एक बाग़ के अन्दर चला गया उस को वहां की फ़ज़ा बहुत पसंद आई घास के एक तख़्ते पर लेट कर उस ने ख़ुद कलामी शुरू कर दी। कैसी पुर-फ़ज़ा जगह है हैरत है कि आज तक मेरी नज़रों से ओझल रही नज़रें ओझल इ

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बदतमीज़ी

7 अप्रैल 2022
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“मेरी समझ में नहीं आता कि आप को कैसे समझाऊं” “जब कोई बात समझ में न आए तो उस को समझाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए” “आप तो बस हर बात पर गला घूँट देते हैं आप ने ये तो पूछ लिया होता कि मैं आप से क्या कहना

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पेशावर से लाहौर तक

20 अप्रैल 2022
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वो इंटर क्लास के ज़नाना डिब्बे से निकली उस के हाथ में छोटा सा अटैची केस था। जावेद पेशावर से उसे देखता चला आ रहा था। रावलपिंडी के स्टेशन पर गाड़ी काफ़ी देर ठहरी तो वो साथ वाले ज़नाना डिब्बे के पास से कई

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क़ीमे की बजाय बोटियाँ

20 अप्रैल 2022
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डाक्टर सईद मेरा हम-साया था उस का मकान मेरे मकान से ज़्यादा से ज़्यादा दो सौ गज़ के फ़ासले पर होगा। उस की ग्रांऊड फ़्लोर पर उस का मतब था। मैं कभी कभी वहां चला जाता एक दो घंटे की तफ़रीह हो जाती बड़ा बज़्लास

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ख़ाली बोतलें, ख़ाली डिब्बे

20 अप्रैल 2022
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ये हैरत मुझे अब भी है कि ख़ास तौर पर ख़ाली बोतलों और डिब्बों से मुजर्रद मर्दों को इतनी दिलचस्पी क्यूं होती है?...... मुजर्रद मर्दों से मेरी मुराद उन मर्दों से है जिन को आम तौर पर शादी से कोई दिलचस्पी

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ख़ुवाब-ए-ख़रगोश

20 अप्रैल 2022
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सुरय्या हंस रही थी। बे-तरह हंस रही थी। उस की नन्ही सी कमर इस के बाइस दुहरी होगई थी। उस की बड़ी बहन को बड़ा ग़ुस्सा आया। आगे बढ़ी तो सुरय्या पीछे हट गई। और कहा “जा मेरी बहन, बड़े ताक़ में से मेरी चूड़ियो

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गर्म सूट

20 अप्रैल 2022
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गंडा सिंह ने चूँकि एक ज़माने से अपने कपड़े तबदील नहीं किए थे। इस लिए पसीने के बाइस उन में एक अजीब क़िस्म की बू पैदा होगई थी जो ज़्यादा शिद्दत इख़तियार करने पर अब गंडा सिंह को कभी कभी उदास करदेती थी। उस

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चन्द मुकालमे

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“अस्सलाम-ओ-अलैकुम” “वाअलैकुम अस्सलाम” “कहीए मौलाना क्या हाल है” “अल्लाह का फ़ज़ल-ओ-करम है हर हाल में गुज़र रही है” “हज से कब वापस तशरीफ़ लाए” “जी आप की दुआ से एक हफ़्ता होगया है” “अ

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गोली

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शफ़क़त दोपहर को दफ़्तर से आया तो घर में मेहमान आए हुए थे। औरतें थीं जो बड़े कमरे में बैठी थीं। शफ़क़त की बीवी आईशा उन की मेहमान नवाज़ी में मसरूफ़ थी। जब शफ़क़त सहन में दाख़िल हुआ तो उस की बीवी बाहर निकली

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चूहे-दान

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शौकत को चूहे पकड़ने में बहुत महारत हासिल है। वो मुझ से कहा करता है ये एक फ़न है जिस को बाक़ायदा सीखना पड़ता है और सच्च पूछिए तो जो जो तरकीबें शौकत को चूहे पकड़ने के लिए याद हैं, उन से यही मालूम होता है क

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चोरी

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स्कूल के तीन चार लड़के अलाव के गिर्द हलक़ा बना कर बैठ गए। और उस बूढ़े आदमी से जो टाट पर बैठा अपने इस्तिख़वानी हाथ तापने की ख़ातिर अलाव की तरफ़ बढ़ाए था कहने लगे “बाबा जी कोई कहानी सनाईए?” मर्द-ए-मुअम्म

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ऊपर नीचे और दरमियान

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मियां साहब! बहुत देर के बाद आज मिल बैठने का इत्तिफ़ाक़ हुआ है। बेगम साहिबा! जी हाँ! मियां साहब! मस्रूफ़ियतें... बहुत पीछे हटता हूँ मगर नाअह्ल लोगों का ख़याल करके क़ौम की पेश की हुई ज़िम्मेदारिय

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क़र्ज़ की पीते थे

20 अप्रैल 2022
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एक जगह महफ़िल जमी थी। मिर्ज़ा ग़ालिब वहां से उकता कर उठे, बाहर हवादार मौजूद था। उसमें बैठे और अपने घर का रुख़ किया। हवादार से उतर कर जब दीवानख़ाने में दाख़िल हुए तो क्या देखते हैं कि मथुरादास महाजन बैठ

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कबूतरों वाला साईं

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पंजाब के एक सर्द देहात के तकिए में माई जीवां सुबह सवेरे एक ग़लाफ़ चढ़ी क़ब्र के पास ज़मीन के अंदर खुदे हुए गढ़े में बड़े बड़े उपलों से आग लगा रही है। सुबह के सर्द और मटियाले धुँदलके में जब वो अपनी पानी भर

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काली कली

20 अप्रैल 2022
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जब उस ने अपने दुश्मन के सीने में अपना छुरा पैवस्त किया और ज़मीन पर ढेर होगया। उस के सीने के ज़ख़्म से सुर्ख़ सुर्ख़ लहू का चशमा फूटने लगा और थोड़ी ही देर में वहां लहू का छोटा सा हौज़ बन गया। क़ातिल पास ख

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क़ासिम

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बावर्चीख़ाना की मटमैली फ़िज़ा में बिजली का अंधा सा बल्ब कमज़ोर रोशनी फैला रहा था। स्टोव पर पानी से भरी हुई केतली धरी थी। पानी का खोलाओ और स्टोव के हलक़ से निकलते हुए शोले मिल जुल कर मुसलसल शोर बरपा कररह

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बासित

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बासित बिल्कुल रज़ामंद नहीं था, लेकिन माँ के सामने उसकी कोई पेश न चली। अव्वल अव्वल तो उसको इतनी जल्दी शादी करने की कोई ख़्वाहिश नहीं थी, इसके अलावा वो लड़की भी उसे पसंद नहीं थी जिससे उसकी माँ उसकी शादी

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तीन मोटी औरतें

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एक का नाम मिसेज़ रिचमेन और दूसरी का नाम मिसेज़ सतलफ़ था। एक बेवा थी तो दूसरी दो शौहरों को तलाक़ दे चुकी थी। तीसरी का नाम मिस बेकन था। वो अभी नाकतख़दा थी। उन तीनों की उम्र चालीस के लगभग थी। और ज़िंदगी क

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लालटेन

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मेरा क़ियाम “बटोत” में गो मुख़्तसर था। लेकिन गूनागूं रुहानी मसर्रतों से पुर। मैंने उसकी सेहत अफ़्ज़ा मुक़ाम में जितने दिन गुज़ारे हैं उनके हर लम्हे की याद मेरे ज़ेहन का एक जुज़्व बन के रह गई है जो भुलाये

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क़ुदरत का उसूल

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क़ुदरत का ये उसूल है कि जिस चीज़ की मांग न रहे, वो ख़ुद-बख़ुद या तो रफ़्ता रफ़्ता बिलकुल नाबूद हो जाती है, या बहुत कमयाब अगर आप थोड़ी देर के लिए सोचें तो आप को मालूम हो जाएगा कि यहां से कितनी अजनास ग़ाय

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ख़त और उसका जवाब

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मंटो भाई ! तस्लीमात! मेरा नाम आप के लिए बिलकुल नया होगा। मैं कोई बहुत बड़ी अदीबा नहीं हूँ। बस कभी कभार अफ़साना लिख लेती हूँ और पढ़ कर फाड़ फेंकती हूँ। लेकिन अच्छे अदब को समझने की कोशिश ज़रूर करती हूँ

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ख़ुदा की क़सम

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उधर से मुसलमान और इधर से हिंदू अभी तक आ जा रहे थे। कैम्पों के कैंप भरे पड़े थे। जिनमें ज़रब-उल-मिस्ल के मुताबिक़ तिल धरने के लिए वाक़ई कोई जगह नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद उनमें ठूंसे जा रहे थे। ग़ल्ला न

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ख़ुशबू-दार तेल

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“आप का मिज़ाज अब कैसा है?” “ये तुम क्यों पूछ रही हो अच्छा भला हूँ मुझे क्या तकलीफ़ थी ” “तकलीफ़ तो आप को कभी नहीं हुई एक फ़क़त मैं हूँ जिस के साथ कोई न कोई तकलीफ़ या आरिज़ा चिमटा रहता है ” “य

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मम्मी

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नाम उसका मिसेज़ स्टेला जैक्सन था मगर सब उसे मम्मी कहते थे। दरम्याने क़द की अधेड़ उम्र की औरत थी। उसका ख़ाविंद जैक्सन पिछली से पिछली जंग-ए-अ’ज़ीम में मारा गया था, उसकी पेंशन स्टेला को क़रीब क़रीब दस बरस से

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इश्क़-ए-हक़ीक़ी

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इ’श्क़-ओ-मोहब्बत के बारे में अख़लाक़ का नज़रिया वही था जो अक्सर आ’शिकों और मोहब्बत करने वालों का होता है। वो रांझे पीर का चेला था। इ’श्क़ में मर जाना उसके नज़दीक एक अज़ीमुश्शान मौत मरना था। अख़लाक़ तीस

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यज़ीद

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सन सैंतालीस के हंगामे आए और गुज़र गए। बिल्कुल उसी तरह जिस मौसम में ख़िलाफ़-ए-मा’मूल चंद दिन ख़राब आएं और चले जाएं। ये नहीं कि करीम दाद, मौला की मर्ज़ी समझ कर ख़ामोश बैठा रहा। उसने उस तूफ़ान का मर्दाना

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उल्लू का पट्ठा

20 अप्रैल 2022
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क़ासिम सुबह सात बजे लिहाफ़ से बाहर निकला और ग़ुसलख़ाने की तरफ चला। रास्ते में, ये इसको ठीक तौर पर मालूम नहीं, सोने वाले कमरे में, सहन में या ग़ुसलख़ाने के अंदर उसके दिल में ये ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो किसी

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अब और कहने की ज़रुरत नहीं

20 अप्रैल 2022
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ये दुनिया भी अ’जीब-ओ-ग़रीब है... ख़ासकर आज का ज़माना। क़ानून को जिस तरह फ़रेब दिया जाता है, इसके मुतअ’ल्लिक़ शायद आपको ज़्यादा इल्म न हो। आजकल क़ानून एक बेमा’नी चीज़ बन कर रह गया है । इधर कोई नया क़ानून बनता

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नया क़ानून

20 अप्रैल 2022
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मंगू कोचवान अपने अड्डे में बहुत अक़लमंद आदमी समझा जाता था। गो उसकी तालीमी हैसियत सिफ़र के बराबर थी और उसने कभी स्कूल का मुँह भी नहीं देखा था लेकिन इसके बावजूद उसे दुनिया भर की चीज़ों का इल्म था। अड्ड

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