भविष्य पुराण प्रथम भाग मध्यमपर्व में एक अध्याय आता है जिसका शीर्षक है --- ब्राह्मणों की महिमा तथा छब्बीस दोषों का वर्णन......!!
विद्वानों ने नरकगामी मनुष्यों के छब्बीस दोष बतलाए हैं, जिन्हें त्याग कर शुद्धता पूर्वक निवास करना चाहिए.....
👉 अधम:- जो व्यक्ति गुरु तथा देवताओं के सम्मुख जूता और छाता धारणकर जानेवाला, गुरु के सम्मुख उच्च आसन पर बैठनेवाला, यान पर चढ़ कर तीर्थ यात्रा करनेवाला, तीर्थ में ग्राम्य धर्म का आचरण करने वाला, अधम कहलाता है !
👉 विषम:- मुख ऊपर प्रिय और मधुरवाणी बोलने वाले परंतु हृदय में जहर धारण करने वाले, जो कहते कुछ और है तथा आचरण कुछ और ही करते हैं, विषम कहलाता है !
👉 पशु:- मोक्ष की चिंता छोड़ कर सांसारिक चिंताओं में रमने वाला, ईश्वर भक्ति विमुख, प्रयाग में रहते हुए अन्य जगह स्नान करने वाला, प्रत्येक्ष देव को छोड़कर अदृष्ट की सेवा करने वाला, तथा शास्त्रों के सार तत्वों को न जानने वाला, पशु कहलाता है!
👉 पिशुन:- बल से अथवा छल - छद्म से, झूठ प्रेम प्रदशर्न कर ठगने वाला व्यक्ति, पशुन कहलाता है!
👉 कृपण:- देव और पितृ सम्बन्धी कर्मों में मधुर अन्न की व्यवस्था रहते हुए भी म्लान और तिक्त अन्न का भोजन करने वाला, अप्रसन्न मन से कुत्सित वस्तु का दान करना, क्रोध के साथ देवताओं की पूजा करना, सभी धर्मों से बहिष्कृत दुर्बुद्धी व्यक्ति, कृपण कहलाता है!
👉 पापिष्ठ:- माता - पिता और गुरु का त्याग करने वाला, पवित्र विचार रहित, पिता के सम्मुख नि:संकोच भोजन करनेवाला, जीवित माता - पिता का परित्याग करनेवाला, उनकी कभी सेवा न करने वाला, होम - यज्ञ आदि से लोप व्यक्ति, पापिष्ठ कहलाता है!
👉 नष्ट:- साधु आचरण का परित्याग कर झूठी सेवा का प्रदर्शन करना, वेश्यागामी, देवताओं के नाम धन पर जीवन यापन करना, अपनी स्त्री के व्यभिचार द्वारा धन से जीवन यापन करना, कन्या को बेच कर अथवा स्त्री के धन से जीवन यापन करने वाला व्यक्ति, नष्ट कहलाता है!
👉 रूष्ट:- जिसका मन सदा क्रोध में रहता है, अपनी हीनता की देख कर क्रोध करता है, जिसकी भौंहें कुटिल तथा को क्रुद्ध स्वभाव का हो, वह व्यक्ति रूष्ट कहलाता है!
👉 दुष्ट:- सदा निंदित आचार में ही जीवन व्यतीत करने वाला, धर्म कार्य में अस्थिर, निद्रालु, दुर्व्यवहार में आसक्त, शराबी, स्त्री सेवक, सदा दुष्ट लोगों की संगति - ये सात प्रकार के व्यक्ति, दुष्ट कहलाते है!
👉 पुष्ट:- अकेले की मधुर भोजन भक्षण करना, सदा सज्जन लोगों की निन्दा करना, शूकर के समान वृतिवाला व्यक्ति, पुष्ट कहलाता है!
👉 ह्रष्ट:- जो आगम निगम का अध्ययन नहीं करता, न ही सुनता हैै, वह पापी व्यक्ति, ह्रष्ट कहलाता है!
👉 काना / अंधा:- श्रुति और स्मृति ब्राह्मणों के ये दो नेत्र हैै! एक आंख से रहित काणा और दिनों से हीन व्यक्ति, अंधा कहलाता है!
👉 खण्ड:- अपने सहोदर अर्थात एक ही गर्भ से पैदा हुए भाई बहन के साथ विवाद करना, माता पिता को अप्रिय वचन बोलने वाला व्यक्ति, खण्ड कहलाता है!
👉 चंड अर्थात चांडाल:- शास्त्र की निन्दा करने वाला, चुगलखोर, राजगामी, शूद्र का सेवक, शुद्र की पत्नी से अनाचरण करना, शूद्र के घर पर भोजन करना, शूद्र के घर पर पांच दिनों तक निवास करने वाला व्यक्ति, चंड दोष वाला अर्थात चंड कहलाता है!
👉 कुष्ठ:- आठ प्रकार के कुष्ठों से समन्वित, त्रिकुष्ठी, शास्त्र वर्जित व्यक्तियों के साथ वार्तालाप करने वाला अधम व्यक्ति, कुष्ठ कहलाता है!
👉 दत्तपहारक:- कीट के समान भ्रमण करनेवाला और कुत्सित दोष से युक्त व्यापार करनेवाला व्यक्ति, दत्तपहारक कहलाता है!
👉 वक्ता:- कुपंडित और अज्ञानी अगर धर्म पर उपदेश दे, वह व्यक्ति वक्ता कहलाता है!
👉 कदर्य ( कंजूस):- गुरुजनों की वृत्ति हरण करने की चेष्टा, काशी निवासी व्यक्ति यदि बहुत दिनों तक काशी को छोड़ कर अन्य जगह निवास करने वाला व्यक्ति, कदर्य कहलाता है!
👉 उद्दंड:- मिथ्या क्रोध का प्रदर्शन करना, राजा न होते हुए भी दंड - विधान करनेवाला व्यक्ति, उद्दंड कहलाता है!
👉 नीच:- ब्रह्मण, राजा, और देव सम्बन्धी धन का हरण कर, उस धन से अन्य देवताओं या ब्राह्मणों को संतुष्ट करनेवाला, या धन का भोजन या अन्न को देने वाला व्यक्ति, खर कहलाता है!
👉 पशु:- जो अक्षर - अभ्यास में तत्पर व्यक्ति केवल पढ़ता है, परंतु समझता नहीं, व्याकरण - शास्त्र शून्य व्यक्ति, पशु कहलाता है!
👉 नीच:- जो गुरु और देवताओं के आगे कहता कुछ है और करता कुछ और है, अनाचारी - दुराचारी व्यक्ति, नीच कहलाता है!
👉 खल:- गुणवान एवम् सज्जन व्यक्तियों में जो दोष अन्वेषण करता है, वह व्यक्ति खल कहलाता है!
👉 वाचाल:- भाग्य हीन व्यक्तियों को मजाक उड़ाने वाला तथा चांडालों के साथ निर्लज्ज होकर वार्तालाप करनेवाला व्यक्ति, वाचाल कहलाता है!
👉 चपल:- पक्षियों को पालने में तत्पर, मांस भक्षण करने वाला, पराई स्त्री में आसक्त रहना व्यक्ति, चपल कहलाता है!
👉 मलीमस:- तैल, उबटन आदि न लगानेवाला, गंध और चंदन से रहित, नित्य कर्म को न मानने वाला व्यक्ति, मलीमस कहलाता है!
👉 चोर:- अन्याय से अन्य घर का धन लेे लेने वाला, अन्याय से धन कमाना, शास्त्र - निषिद्ध धनों को ग्रहण करना, देव पुस्तक, रत्न, मणि - मुक्ता, अश्व, गौ, भूमि, तथा स्वर्ण हरण करने वाला व्यक्ति, चोर कहलाता है!
👉 तथा साथ ही देव चिंतन तथा परस्पर कल्याण चिंतन न करने वाला, गुरु तथा माता पिता का पोषण न करना, उनके प्रति पालनिय कर्त्तव्य आचरण न करनेवाला, उपकारी व्यक्ति के साथ समुचित व्यवहार न करने वाला व्यक्ति भी स्तेयी कहा गया है!
इन सभी दोषों से युक्त व्यक्ति रक्तपुर्ण नरक में निवास करता है!
जय मां भगवती नैना देवी......!!
✍️... पवन सुरोलिया "उपासक"