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छठा बाब-मुए पर सौ दुर्रे

8 फरवरी 2022

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पूर्णा ने गजरा पहन तो लिया मगर रात भर उसकी आँखो में नींद नहीं आयी। उसकी समझ में यह बात न आती थी कि बाबू अमृतराय ने उसको गज़रा क्यों दिया। उसे मालूम होता था किपंडित बसंतकुमार उसकी तरफ निहायत कहर आलूद निगाहों से देख रहे है। उसने चाहा कि गजरा उतार कर फेंक दूं। मगर नहीं मालूम, क्यो उसके हाथ काँपने लगे। सारी रात उसने आँखो मेंकाटी। सुबह हुई, अभी सूरज भी न निकला था। पंडाइन व चौबाइन औरबाबू कमलाप्रसाद की बूढी महाराजिन मयसेठानी जी और कई दूसरी औरतों के पूर्णा के मकान में दाखिल हुई। उसने बड़े अदब से सबको बिठाया। सबके कदम छुए। बाद अजाँ, यह पंचायत होने लगी।
पंडाइन—(जो बुढ़ापे की वजह से सूखकर छुहारे की तरह होगयी थीं) क्यूँ दुल्हन, पंडित जी को गंगा लाभ हुएकितने दिनबीते?
पूर्णा—(डरते-डरते) तीन महीने से कुछ ज्यादा होता है।
पंडाइन—और अभी से तुम सबके घर आने जाने लगीं। क्या नाम कि कल तुम सरकार के घर चली गयी थीं। उनकी कुवारी कन्या के पास दिन भर बैठी रहीं। भला सोचो तो तुमने अच्छा किया याबुरा किया? क्या नाम, तुम्हारा औरउनका अब क्या साथ?जब वह तुम्हारी सखी थी तब थी। अब तो तुम विधवा हो गयीं। तुमको कम से कम साल भर तक घर से पांव बाहर नहींनिकलना चाहिए था। यह नहीं कि तुम दर्शन को नजाओ, स्नान को न जाओ: स्नान पूजा तो तुम्हारा धर्म है। हाँ, किसी सुहागन या किसी कुंवारी कन्या के ऊपर तुमको अपना साया नहीं डालना चाहिए।
पंडाइन खामोश हुई तो मुशी बदरीप्रसाद की महराजिन फरमाने लगीं—क्या बतलाऊँ, बडी सरकार और दुल्हन दोनो कल खून का घूँट पी के रह गयी। बड़ी सरकार तो ईश्वर जाने बिलख बिलख रो रही थीं कि एक तो बेचारी लड़की के यूँ ही जान के लाले पड़े हैदूसरे अबरॉँड बेवा के साथ उठना बैठना है, नहीं मालूम ईश्वर क्या करनेवाला है। छोटी सरकार मारे गुस्से के कापँ रही थी। बारे मैंने उनको समझाया कि आज मुआफ कीजिए। अभी वह बेचारी बच्चा है। रीत-ब्यौहार क्या जाने? सरकार का बेटा जिये, जब बहुत समझाया तब जानें मानीं। नहीं तो कहती थी कि मै अभी जाकर खड़े खडे निकाल देती हूं। सो बेटा, अब तुम सोहागिनों या कन्याओ के साथ बैठने जोग नहीं रही। अरे ईश्वर ने तो तुम परबिपत डाल दी। अब तुम्हारा धम यही है किचुपचाप अपने घर में पड़ी रहो। जो कुछ मयस्सर हो खाओ पियो और सरकार का बेटा जिये, जहाँ तक हो सके धर्म केकाम करो।
पूर्णा ने चाहा कि अब की कुछ जवाब दूँ किचौबाइन साहबाने पंद ओ नसायेह का दफ्तर खोला। ये एक मोटी, भदेसलऔर अधेड़ औरत थी, बात बात पर आखे मीचा करती थी और आवाज भी निहायत करख्त थी—भला इनसे पूछो कि अभी तुम्हारे दूल्हे को उटठे महीने भी नहीं बीते और तुमने अभी से आइना, कंघी, चोटी, सब करना शुरू कर दिया। क्या नाम कि तुम अब विधवा हो गयी। तुमको अब आइना-कंघी से क्या सरोकार है। क्या नाम कि मैंने हजारों औरतों को देखा जोपति के मरने के बाद गहना पाता नहीं पहनती। हंसना-बोलना तक छोड़ देती है। न कि आज तो सोहाग उठा और कल सिंगार पिटार होने लगा। क्या नाम कि मै लल्लो पत्तों की बात नहीं जानती। कहूंगी सच चाहे किसी को तीता लगे यामीठा। बाबू अमृतराय का रोज रोज यहां आना ठीक नहींहै, किनहीं सेठानी जी?
उस पर सेठानी जी ने हांक लगायी—(ये एक निहायत फ़रबा अदाम, मोटे-मोटे वजनी गहनों से लदी हुई बूढी थी। गोश्त के लोथड़े हडिडयों से अलग होकर नीचे लटक रहे थे। इसकी भी एक बहू बेवा होगयी थीजिसकी जिंदगी इसने अजीरन कर रखी थी। इसकी आदत थी कि बात करते वक्त हाथों से मटकाया करती थी) हय-हय जो बात सच होगी सब कोई कहेगा, भला किसी ने कभी रॉँड-बेवा को माथे पर बिंदी दिये देखा है। जबसोहाग उठ गया तो टीका कैसा। मेरी भी एक बहू विधवा है मगर उसको आज तक लाल साड़ी नहीं पहनने देती। नहीं मालूम इन छोकरियों का जी कैसा हैकि विधवा हो जाने पर सिंगार परललचाया करता है। अरे, उनको चाहिए कि बाबा अब हम रॉँड हो गये, हमको निगोड़े सिंगार से क्या लेना है।
महराजिन—सरकार का बेटा जिये, तुम बहुत ठीक कहती हो सेठानी जी, कल छोटी सरकार ने जो इनको मांग में टीका लगाये देखा तो खड़ी ठक रह गयी। सरकार का बेटा जिये, दॉँतो तले उँगली दबायी। अभी तीन दिन की विधवा और ये सिंगार करे।सोबेटा, अब तुमको समझ बूझकर काम करना चाहिए। तुम अब बच्च नहीं हो।
पूर्णा बेचारी बैठी बिसूर रही थी और यह सब बेरहम औरतें उसकी ले दे कर रही थी। उसने चाहा कि अब की बार कुछ अज्र माजरत करे मगर कौन सुनता है। सेठानी जी फिर गरज उठी औरहाथ चमका चमकाकर फरमाने लगी—औरक्या, जब कहने की बात होगी तो सब कोई कहेगा। चुप क्यों होपंडाइन? इनके लिए अब कोई राह-बाट निकाल दो।
पंडाइन—क्या नाम कि सांच के आंच नहीं। दुल्हन को चाहिए कि सबसे पहले ये लंबे लंबे केश कटवा डालें और क्या नाम कि दूसरों के घर आना जाना छोड़ दे।
चौबाइन—और बाबू अमृतराय को यहाँ रोज-रोज आना क्या जरूर?
महराजिन—सरकार का बेटा जिये, मैं भी यह बात कहने वाली थी। बाबू साहब के आने से बदनामी का डर है।
चंद और सिखावन कीबाते करके ये मस्मूरातें यहां से तशरीफ ले गयी और महराजिन भी मुंशी बदरीप्रसाद साहब के यहाँ खाना पकाने गयीं। उनसे औरछोटी सरकार से बहुत बनती थी।वो उनपर बहुत एतबार रखती थी। महराजिन ने जाते ही उनसे सारी कथा खूब रंगो रौगन नमक मिर्चलगाकर बयान की और छोटी सरकार ने इस वाकये को प्रेमा के जलाने और सुलगाने के लिए मुनासिब समझकर उसके कमरे की तरफ रूख किया।
यूं तो प्रेमा हर रोत रात जागा करती थी मगर कभी कभी घंटे आध घंटे के लिए नींद आ जाती थी। नींद क्या आ जाती थी, एक गशी सी आरिज हो जाती थी। मगर जब से उसने बाबू अमृतराय को बंगालियों की वजा में देखा था औरपूर्णा के घर से वापस आते वक्त उनकी कलाई पर उसको गजरा नजर नआया था उस वक्त से उसके पेट में खलबली पड़ी हुई थी कि कब पूर्णा आवे और कब सारा हाल मालूम हो। रात तो बडी बेचैनी से उठ उठ घड़ी पर नजर दौड़ाती, इस वक्त जो उसने पैरों की चाप सुनीतो समझी किपूर्णा आ रही है। फर्ते इश्तियाक से लपककर दरवाजे तक आयी मगर ज्यों ही अपनी भावज को देखा ठिठक गयी और बोली—कैसे चलीं भाभी?
दुल्हन साहबा तो चाहती थी कि छेड-छाड़ के लिए कोई जरिया हाथ आ जाय, यह सवाल सुनते ही तुनककर बोलीं—क्या बतलाऊँ कैसे चली? अब से जब तुम्हारे पास आया करूँगी तो इस सवाल का जवाब सोचकर आया करूँगा। तुम्हारी तरह सबका खून थोड़ा हीसफेद हो गया है कि चाहे घी काघड़ा ढलक जाये, घर में आग लगी है मगर अपने कमरे सेकदम बाहर न निकाले।
वो छोटा-सा जुमला प्रेम के मुँह से यूँ ही बिला किसी ख्याल के निकल आया था। उसके जो ये माने लगाये गये तो प्रेमा को निहायत नागवार गुजरा। बोली—भाभी तुम्हारी तो नाक परगुस्सा रहता है, जरा सी बात का बतंगड़ बना देती हो। भला मैंने कौन-सी बात बुरा मानने की कही थी।
भावज—कुछ नहीं, तुम तो जो कुछ कहती हो गोया मुंह से फूल झाड़ती हो। तुम्हारी जबान में शंकर घुली हुई है। दुनिया में जितने हैं उनकी नाक पर गुस्सा रहता है और तुम बड़ी सीता हो।
प्रेमा—(झल्लाकर) भावज, इस वक्त तुम्हारा मिजाज बिगड़ा हुआ है। ईश्वर के लिए मुझे दिक मत करों। मै तो यूँ ही अपनी जान को रो रहीहूँ।
भावज—(मटककर) हाँ, रानी, मेरा तो मिजाज बिगड़ा हुआ है, सर फिरा हुआ है। जरा सीधी हूँ न, मैं भी यारों को चोरी छुपे चिटठी पत्र लिखा करती, तसवीरें भेजा करती अँगूठियों का अदल बदल करती तो मैं भी होशियार कहलाती। मगर मान न मान मै तेरा मेहमान। तुम लाख चिटिठयाँ लिखो, लाख जतन करों मगर वो सोने की चिड़िया हाथ आने वाली नहीं।
ये जली-कटी सुनकर प्रेमासे जब्त न होसका। बेचारी कमजोर दिल की औरत थी और मुद्दतो से रंजो महन सहते सहते कलेजा और भी पक गया था, बे अख्तियार रोने लगी। भावज ने उसको रोते देखा तो आंखे जगमगा गयी। हत्तेरे की, यू सर करते हैं तीर को। बोली—बिलखती क्या हो, क्या अम्मा को सुनाकर देसिनिकाला करा दोगी? कुछ झुठ थोडा ही कहती हूँ। वही अमृतराय जिनके पास चुपके चुपके चिटिठयाँ लिखा करती थीं, अब आज दिनदहाड़े उस कहबा पूर्णा के घर आता है और घंटों वहीं रहता है। सुनती हूँ फूल के गजरे लाकर पिन्हाता है। शायद दो-एक कीमती जेवर भी दिये है।
प्रेमा इससे ज्यादा न सह सकी, गिड़गिड़ाकर बोली—भावज, मैं तुम्हारे पैरों पड़ती हूँ, मुझ परदया करो। मुझे जो चाहो कह लो। (रोकर) बड़ी हो मारपीट लो। मगर किसी का नाम लेकर और उस पर छुद्दे रखकर मेरे गरीब दिलको मत जलाओ।
प्रेमा ने तो निहायत लजाजत से ये अलफाज कहे मगर छोटी सरकार ‘छुद्दे रखकर’ पर बरअंगेख्ता हो गयी। चमककर बोली—हाँ रानी, जो कुछ मैं कहती हूँ वो छुद्दे रखती हूँ। मुझे निहायत सामने झूठ बोलने से मिठाई मिलती है न? तुम्हारे सामने झूठ बोलूंगी तो तुम सोने के तख्त पर बिठा दोगी। मगर मैं एक झूठी हूँ, सारा जमाना तो नहीं झूठा है। आज सारे मुहल्ले में घर-घरयही चर्चा हो रहा है। बहुत तो पढ़ी-लिखी हो, भला तुम्हीं सोचो एक तीस बरस के संडे मरदुए का पूर्णा से क्या काम है। माना कि वो उसकी मदद करते है। मगर ये तो दुनिया है। जब एक पर आ पड़ती है तो दूसरा उसके आड़े आता है मगर शरीफ आदमी इस तरह दूसरों को बहकाया नहीं करते। और उस छोकरी को क्या बहकायेगा कोई, वो तो आप ही सात घाट का पानी पिये है। मैने जिस दिन उसकी तसवीर देखी थी उसी दिन ताड़ गयी थी कि एक ही बिस की गाठ है। अभी तीन दिन भी दूल्हे को मरे हुए नहीं बीते कि ताड़ गयी थी कि एक ही बिस कीगांठ है। अभी तीन दिन भी दूल्हे को मरे हुए नहीं बीते कि सबको झमकड़ा दिखाने लगी गोया दूल्हा क्या मरा एक बला दूर हुई। कलजब उसके कब्ज कदम यहां आये तो मैं जरा बाल गूथा रही थी नहीं तो डयोढी के भीतर तो कदम धरने ही न देती, चुडैल नहीं तो। यहां आकर तुम्हारी सहेली बनती है, इसी ने अमुतराय को अपना जोबन दिखा दिखा कर अपना लिया है। कल कैसा लचक लचककर ठुमक ठुमककर चलती थी। देख देख जी जलती है, हरजाई नहीं तो। खबरदार जो अब कभी तुमने उस चुडैल को यहां बिठाया। मैं उसकी सूरत नहीं देखना चाहती।
ज़बान वह बला है कि झूठ बात का भी यकीन दिला देती हैं। बहू साहबा ने तो जो कुछ फरमाया हर्फ बहर्फ सही था, भला उसका असर क्यों न होता। पहले तो प्रेमा ने उनकी बातें को लगो व शरारत आमेंज ख्याल किया मगर आख्रिर ख्याल ने पलटा खाया। भावज की बातों मेंरास्ती की झलक पायी। यकील आ गया। ताहम वो ऐसी ओछी नहीं थी कि उसी वक्त अमृतराय औरपूर्णा को कोसने लगती। हॉ, वो सीने पर हाथ धरे यहाँ से उठकर चली गयी और छोटी सरकार भी खरामा खरामा अपने कमरे में तशरीफ लायी। आइने मेंरुखे अनवर का मुलाहिजा किया और आप ही आप बोली—लोग कहते है। कि मुझसे खूबसूरत है, अबवे खूबसूरती कहां गयीर?
प्रेमा को तो पलंग पर लेटकर भावज की बातों को वाकयात सेमिलाने दीजिए, हम मर्दाने में चले। यहां कुछ और ही गुल खिला हुआ है। निहायत आरास्ता ओ पीरास्ता औरवसी दीवानखाना है। जमीन पर मिर्जापुर कके साख्त की खूबसूरत कालदीन बिछी हुई र्है। वो सामने की तरफ मुंशी गुलजारीलाल है और उनकी बगल में बाबू दाननाथ। दाहिने जानिब बाबू कमलाप्रसाद, मुंशी झम्मनलाल से कुछ काना-फूसी कर रहे है। बायीं जानिब दो असहाब और जलवा अफ़रोज है जिनको हम नही पहचानते। कई मिनट तक मुंशी बदरी प्रसाद साहब अखबार बढ़ते रहे। आखिर उन्होने सर उठाया और संजीदगी से बोले—बाबू अमृतराय की हरकतें अब बर्दाश्त से बाहर होती जाती।
गुलजारीलाल—बर्दाश्त, जनाब, अब उनकी तहरीरों और तकरीरों से यहाँ की सोसायटी कीसख्त तौहीन हो रही है। हमारा फर्ते कौमी है कि अब हम उनके नशे को उतारने कीफिक्र करें।
बाबू कमलाप्रसाद—बेशक बाप बहुत दुरूस्त फरमाते है। हमारा फर्ज था कि इब्तिदा ही इसकी फिक्र करते, ताहम अभी कुछ नहीं बिगड़ा है।
झम्मनलाल—अगर बिगड़ा है तो इब्तिदा है कि स्कूल और कालिज के चंद लौंडो ने उनकी पैरवी अख्तियार की है और मद्रास, बंबई के चंद सरबरआवुर्दा अशखास ने उनकी इयानत करने का बीड़ा उठाया है। अगर हम बहुत जल्द उनकी खबर नलेगे तो फिर आगे चलकर बड़ी मुश्किल दरपेशा होगी। देखिए, इस अखबार मेंपांच हफ्ते से बराबर उनके मजामीन फिरते है। ये मखफी नहीं है कि देहकानी उमूमन कमफहम कमडमगज होते है। बाबू अमृतराय में खाह किसी किस्म की लियाकत हो या नहो इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि उनकी वकालत अंधाधुध बढ़ रही है। मुवक्किलों को तो वो श्चस शीशे में उतार लेता है।
गुलजारीलाल—सबसे पहले हमारा काम ये होना चाहिए कि उनकी दरखास्त जो कमेटी में पेश की गयी है उसे मंसूख करा दे।
बाबू दाननाथ ने जो इन मुबाहिसां मेंबराये नाम हिस्सा लिये हुए थे, पूछा—कैसी दरखास्त?
गुलजारीलाल—क्या आपको मालूम नहीं, हजरत चाहते है कि वो दरिया के किनारेवाला सरसब्ज खित्ता हाथ आ जाय। शायद वहां एक खैरातखाना तामीर करायेगे। सुनता हूं उसमें बेवाएं रखी जायगी और उनकी खुरिश पोशिश का इंतजाम किया जायगा। मगर ऐसी कीमती और फायदे की जमीन हरगिज इसतरह जायानही की जा सकती।
मुंशी बदरीप्रसाद—नहीं, नहीं, ऐसा हरगिज नहीं हो सकता। बच्चा (कमलाप्रसाद) तुम आज उसी जमीन के लिए एक दरखास्त कमेटी में पेश कर दो, हम वहां ठाकुरद्वारा और धर्मशाला बनवायेगे।
गुलजारीलाल—हमको ये कोशिश करनी चाहिए कि अगर प्रेसीडेंट साहब बाबू अमृतराय की तरफदारी करें तो उनके मुआफ़िक फैसला न हो। उन्होनें अंग्रेजों से खूब इर्तिबात पैदा कर रक्खी है। क्या रायों की तादाद हमारी तरफ जियादा न होगी?
कमलाप्रसाद—इसमें कोई शक भी है, यह देखिए मेम्बरों की फेहरिस्त कुल सत्ताईस हजरात है, उनमें सात असहाय यहीं रौनक अफरोज है।गालिबान दस बारह वोट और हासिल कर लेना कुछ मुश्किल न होगा।
झम्मनलाल—हमको इतने ही परसब नहीं करना चाहिए। इन मजामीन का ददाशिकन जवाब देना भी जरूरी है। मैंने मोतबर खबर सुनी है। कि लाला धनुखधारी साहब फिर तशरीफ ला रहे है। हमको कोशिश करनी चाहिए कि पब्लिक हॉल में तकरीर करने का मौका उनको न मिले।
यहां से हजरत बैठे हुए ये चेमीगोइयां कर रहे थे कि यकायक एक आदमी ने अंदर आकर कहा—बाबू अमृतराय तशरीफ लाये है।
अमृतराय का नाम सुनते ही करीब करीब कु ल हजरत के चेहरों पर हवाइयाँ उडने लगी। खुसूसन मुंशी गूलजारीलाल और बाबू दाननाथ के चेहरे का रंग फक हो गया। बगले झाकने लगे, अगर कोई जगह छुपने की होती तो वो दोनो जरूर छुप जाते। दाननाथ समझे कि हमको बेवफा ख्याल करेगे। वो अभी तक दिल से अमृतराय के हमदर्द और खैरखाह थे गो अपना मतलब निकालने के लिए मुंशी बदरीप्रसाद से रब्त जब्त बढाना शुरू कर दिया था।
एक लम्हे में बाबू अमृतराय कोट पतलून पहले, सोला हैट लगाये, जूता चरमराते हुए अंदर दाखिल हुए। उनको देखते ही बजुज मुशी बदरीप्रसाद साहब के और सब हजरात ताजीमन उठ खड़े हुए। अमृतराय ने जाते ही बिला तअम्मुल अलेक सलेक के बाद यू गुफ्तगू करना शुरू की कि मैं आप सहाब की खिदमत में इसलिए हाजिर हुआ हूं कि एक कौमी इल्तिजा पेश करूं। आप लोगों पररोशन है कि इस शहर में अभी तक कोईऐसा पनाह का मुकान नहीं है। जहां लावारिस औरतों की परवरिश व परदाख्त का इंतजाम हो सके। ऐसी औरतों को सढ़कों पर फटेहालों इधर उधर मारे मारे फिरते देखना वाकई, निहायत इबरतनाक व शर्मनाक है। इससे हमारी तहजीब पर निहायत बदनुमा धब्बा है। इस सूबे के बड़े-बड़े शहरों में कौमी मुखैयरों ने इस कौमी जरूरत को पूरा किया है। उन्हीं की देखा-देखी मैने भी यह कोशिश करनी चाही। कि अगर मुमकिन होतो इस शहर पर से धब्बा मिटा दू। मगर ये मोहतबिश्शान काम ऐसा नहीं हैं कि मुझसे हेचमीरज व हेचमंदा से अंजाम पर सके। ताक्वते कि आप हजरत मेरी मदद न फरमायें। इसी गरज से मैने एक चंदा खांलाहै। मुझे उम्मीदे कामिल है किऐसे मौके पर जरूर आपकी फय्याजी अपना जौहर दिखायेगी। मै बहुत जल्द प्रोग्राम शया करनेवालाहूं जिसमें एक खैरातखाने के इंतजाम व इंसराम के मुताल्लिक तजवीक पेश की जायेगी और उन पर हादियाने कौम की राये मदऊ की जायगी।
ये कहते कहते बाबू अमृतराय ने झटपट जेब से फेहरिस्त निकाली और बिना किसी को आपस में नजरबाजियां या सरगोशियां करने की मोहलत दिये हुए उसको मुंशी गुलजारीलाल साहब के सामने पेश कर दिया। अब मुंशी जी सख्त अजाब मुबतिला है। एक हब्बा देने की नीयत नहीं है। मगर यह खौफ है कि कहीं और हजरत कुछ फय्याजी दिखायें तो मैं खामखाह नक्कू बनूं। अलावा इसके बाप मिस्टर अमृतराय के सच्चे हमदर्द में थे और उनके इसलाह के मशगलात से बडी दिलचस्पी जताते थे। उन्होने एक मिनट तकतअम्मुल किया, चाहा कि इधर उधर से कुछ इशारे किनाये पा जाय मगर अमृतराय पहले से होशियार थे, वो उनके सामने निगाह रोककर खड़े हो गये और मुस्कराकर बोले—सोचिए नहीं, मुझे आपसे बहुत कुछ उम्मीद है।
आखिर मुंशी गुलजारीलाल ने कोई मफर न देखकर झेपते हुए अपने नाम के मकाबिल पांच सौ रूपये की रकम तहरीर फरमायी। अमृतराय ने उनका शुक्रिया अदा किया और गौ और हजरात कुछ कानाफुसकी करने लगे थे मगर इसका कुछ ख्याल न करके उन्होने फेहरिस्त बाबू दाननाथ के सामने रख दी।
हम पहले कह चुके है कि बाबू दाननाथ अमृतराय के मकासिद से इत्तफाक रखते थे। मगर पहले जब उन्होने चंदे की फेहरिस्त देखी तो बड़े पसोपेशमें थे कि क्या करूं, अगर कुछ देता हूं तो शायद मुंशी बदरीप्रसाद बुरा मान जाय। नहीं देता, तो अमुतराय के नाराज हो जाने का खौफ है। इसी हंस बैस में थे कि बाबू गुलजारीलाल की मुबरदिरत ने उनको तुरअत दिलायी। फौरन अपने नाम के मकाबिल एक हजार की रकम लिखी। अमृतराय को उनसे इतनी उम्मीद न थी। बड़े गर्मजोशी से उनका शुकिया अदा किया। अब ये तशवीश हुई कि फेहरिस्त किसके सामने पेश की जाय। अगर मुंशी बदरीप्रसाद की खिदमत मेंपेश करूं तो शायद वो कुछ न दे और उनका बुख्ल दूसरे असहाब को भी मुतासिर करेगा। अगर किसी दूसरे साहब को दिखाता हूं तो शायद मुँशी साहब बुरा मानें कि मेरी तौहीन की। एक लमहा वह इसी सोच में रहे मगर बला के हाजिरजवाब आदमी थे। दिमाग ने फौरन फैसला कर लिया। उन्होंने फेहरिस्त ली, अदब से मुंशी बदरीप्रसाद की खिदमत मेंपेश करके कहा—मुझे आपसे खास एआनत की जरूरत है। न सिर्फ कि आप मेरे बुजुर्गवार है बल्कि तजबीज है कि ये इमारत नामे नामी से तामीर करायी जावे। मैंने कमिश्नर साहब को बुनियादी पत्थर रखने पर रजामंदकर लिया है।
मुंशी बदरीप्रसाद जहाँदीदा आदमी थे, मगर उस वक्त गच्चा खा गये। देखा कि दो मामूली वकीलों ने एक एक हजार रूपये दिये है और अलावा इसके कमिश्नरसाहब भी जलसे में तशरीफ लावेगे। इमारत मेरे ही नाम से तामीर होगी और उसको तारूफ मे लाने अख्तियार भी मुझको होगा। यही सोचते सोचते अपने नामे नामी के रूबरू दो हजार की खासी रकम तहरीर फरमायी। फिर क्या था, तिलिस्म टूट गया। कुल हाजिरीन ने अपनी हैसियतों के मुआफिक मददकी। एक दस मिनट में कोई सोलह सत्रह हजार रूपये हाथ आ गये, मिस्टर अमृतराय को अपनी हिकमतेअमली से कामयाबी की उम्मीद तो जरूर थी मगर इस हद तक नहीं। वो मारे खुशी के उछले जाते थे। इस गैर मुतवक्को कामयाबी से चेहरा कुंदन की तरह दमक रहा था चंदे की फहरिस्त जेब में दाखिल करके बोले—आप असहाब ने मेरे ऊपर बडा एहसान किया और मेरे ऊपर क्या शहर की बेकस दुखिया बेवाओं पर। मुझे उम्मीद है कि जब आप लोगों ने माली एआनत फरमायी तो कल कमेटी में मेरी दरखास्त पेश होगी उस पर भी नजरे इनायत मजबूल के नहीं दे सकती। मैने भी उनसे अर्ज कीकि कल कमेटी के रुबरु मेरी दरखास्त पेश होगी, जो फैसला कमेटी करेगी उसके कबूल करने में मुझे कोई उज्र न होगा। मै उनकी कीमत अदा करने कोतैयार हूं। मगर मुझे कामिल तवक्को है कि जब आपने मेरी इमदाद दरियादिली से की है तो इस जमीन को हासिल करने में भी कोशिश फरमावेगे।
ये कहकर बाबू अमृतराय यहाँ सेतशरीफ ले गये। मगर अफसोस उन्हें क्या मालूम था कि इस पर्दे की आड़ से जो मुंशी बदरीप्रसाद की कुर्सी के पीछे पडा हुआ था औरजहां से बाल खाने पर जाने का रास्ता था, कोई बैठा हुआ एक एक बात को सुन रहा है। बाबू साहब को आते प्रेमा ने देख लिया था। 

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रचनाएँ
हमखुर्मा व हमसवाब
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संध्या का समय है, डूबने वाले सूर्य की सुनहरी किरणें रंगीन शीशो की आड़ से, एक अंग्रेजी ढंग पर सजे हुए कमरे में झॉँक रही हैं जिससे सारा कमरा रंगीन हो रहा है। अंग्रेजी ढ़ंग की मनोहर तसवीरें, जो दीवारों से लटक रहीं है, इस समय रंगीन वस्त्र धारण करके और भी सुंदर मालूम होती है।
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पहला बाब-सच्ची क़ुर्बानी

8 फरवरी 2022
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शाम का वक्त है। गुरुब होनेवाले आफताब की सुनहरी किरने रंगीन शीशे की आड़ से एक अग्रेजी वज़ा पर सजे हुए कमरे में झांक रही हैं जिससे तमाम कमरा बूकलूमूँ हो रहा है। अग्रेजी वजा की खूबसूरत तसवीरे जो दीवारों

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दूसरा बाब-हसद बुरी बला है

8 फरवरी 2022
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लाल बदरीप्रसाद साहब अमृतराय के वालिद मरहूम के दोस्तों में थे और खान्दी इक्तिदार, तमव्वुल और एजाज के लिहाज से अगर उन पर फ़ौकियत न रखते थे तो हेठ भी न थे। उन्होंने अपने दोस्त मरहूम की जिन्दगी ही में अमृ

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तीसरा बाब-नाकामी

8 फरवरी 2022
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बाबू अमृतराय रात-भर करवटें बदलते रहे । ज्यूँ-2 वह अपने इरादों और नये होसलों पर गौर करते त्यूँ-2 उनका दिल और मजबूत होता जाता। रौशन पहलुओं पर गौर करने के बाद जब उन्हौंने तरीक पहलूओं को सोचना शुरु किया त

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चौथा बाब-जवानामर्ग

8 फरवरी 2022
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वक्त हवा की तरह उड़ता चला जाता है । एक महीना गुजर गया। जाड़े ने रुखसती सलाम किया और गर्मी का पेशखीमा होली सआ मौजूद हुई । इस असना में अमृतराय नेदो-तीन जलसे किये औरगो हाजरीन की तादाद किसी बार दो –तीन से

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छठा बाब-मुए पर सौ दुर्रे

8 फरवरी 2022
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सातवाँ बाब-आज से कभी मंदिर न जाऊँगी

8 फरवरी 2022
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बेचारी पूर्णा पंडाइन व चौबाइन बगैरहूम के चले जाने के बाद रोने लगी। वो सोचती थी कि हाय, अब मै ऐसी मनहूस समझी जाती हूँ कि किसी के साथ बैठ नहीं सकती। अब लोगों को मेरी सूरत से नफरत है। अभी नहीं मालूम क्या

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आठवाँ बाब-देखो तो

8 फरवरी 2022
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आठवाँ बाब-देखो तो दिलफ़रेबिये अंदाज़े नक्श़ पा मौजे ख़ुराम यार भी क्या गुल कतर गयी। बेचारी पूर्णा ने कान पकड़े कि अब मन्दिर कभी न जाऊँगी। ऐसे मन्दिरों पर इन्दर का बज़ भी गिरता। उस दिन से वो सारे दिन

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नवाँ बाब-तुम सचमुच जादूगार हो

8 फरवरी 2022
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बाबू अमृतराय के चले जाने के बाद पूर्णा कुछ देर तक बदहवासी के आलम में खड़ी रही। बाद अज़ॉँ इन ख्यालात के झुरमुट ने उसको बेकाबू कर दिया। आखिर वो मुझसे क्या चाहते है। मैं तो उनसे कह चुके कि मै आपकी कामया

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दसवाँ बाब-शादी हो गयी

8 फरवरी 2022
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तजुर्बे की बात कि बसा औकात बेबुनियाद खबरें दूर-दूर तक मशहूर हो जाया करती है, तो भला जिस बात की कोई असलियत हो उसको ज़बानज़दे हर ख़ासोआम होने से कौन राक सकता है। चारों तरफ मशहूर हो रहा था कि बाबू अमृतरा

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ग्यारहवाँ बाब-दुश्मन चे कुनद चु मेहरबाँ बाशद दोस्त

8 फरवरी 2022
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मेहमानों की रूखमती के बाद ये उम्मीद की जाती थी कि मुखालिफीन अब सर न उठायेगें। खूसूसन इस वजह से कि उनकी ताकत मुशी बदरीप्रसाद और ठाकुर जोरावर सिंह के मर जाने से निहायत कमजोर-सी हो रही थी। मगर इत्तफाक मे

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बारहवाँ बाब-शिकवए ग़ैर का दिमाग किसे यार से भी मुझे गिला न रहा।

8 फरवरी 2022
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प्रेमा की शादी हुए दो माह से ज्यादा गुजर चुके है। मगर उसके चेहरे पर मसर्रत व इत्मीनान की अलामतें नजर नहीं आतीं। वो हरदम मुतफ़क्किर-सी रहा करती है। उसका चेहरा जर्द है। आँखे बैठी हुई सर के बाल बिखरे, पर

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तेरहवाँ बाब-चंद हसरतनाक सानिहे

8 फरवरी 2022
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हम पहले कह चुके है कि तमाम तरद्दुदात से आजादी पाने के बाद एक माह तक पूर्णा ने बड़े चैन सेबसर की। रात-दिन चले जाते थें। किसी क़िस्म की फ़िक्र की परछाई भी न दिखायी देते थी। हाँ ये था कि जब बाबू अमृतराय

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