[दोपहर का समय। हुसैन अपने खेमे में खड़े है, जैनब, कुलसूम, सकीना, शहरबानू, सब उन्हें घेरे खड़े हैं।]
हुसैन– जैनब, अब्बास के बाद अली अकबर दिल को तस्कीन देता था। अब किसे देखकर दिल को ढाढ़स दूं? हाय! मेरा जवान बेटा प्यासा तड़प-तड़पकर मर गया! किस शान से मैदान की तरफ़ गया था। कितना हंसमुख, कितना हिम्मत का धनी! जैनब, मैंने उसे कभी उदास नहीं देखा, हमेशा मुस्कुराता रहता था। ऐ आंखों! अगर रोई, तो तुम्हें निकालकर फेंक दूंगा। खुदा की मर्जी में रोना कैसा! मालूम होता है, सारी कुदरत मुझे तबाह करने पर तुली हुई है। यह धूप कि उसकी तरफ ताकने ही से आंखें जलने लगती है! यह जलता हुआ बालू, ये लू के झूलसाने वाले झोंके, और यह प्यास! यों जिंदा जलना तीरों और भालों के जख्मों से कहीं ज्यादा सख्त है।
[अली असगर आता है, और बेहोश होकर गिर पड़ता है।]
शहरबानू– हाय, मेरे बच्चे को क्या हुआ!
हुसैन– (असगर को गोद में उठाकर) आह! यह फूल पानी के बग़ैर मुर्झाया जा रहा है। खुदा, इस रंज में अगर मेरी जबान से तेरी शान में कोई बेअदबी हो जाये, तो माफ कीजिए, मैं अपने होश में नहीं हूं। एक कटोरे पानी के लिए इस वक्त मैं जन्नत के हाथ धोने को तैयार हूं।
[असगर को गोद में लिए खेमे से बाहर आकर।]
ऐ जालिम क़ौम, अगर तुम्हारे खयाल में गुनहगार हूं, तो इस बच्चे ने तो कोई खता नहीं की है, इसे एक घूंट पानी पिला दो। मैं तुम्हारी नबी को नेवासा हूं, अगर इसमें तुम्हें शक है, तो काबा का बेकस मुसाफिर तो हूं। इससे भी अगर तुम्हें ताम्मुल हो, तो मुसलमान तो हूं। यह भी नहीं, तो अल्लाह का एक नाचीज बंदा तो हूं। क्या मेरे मरते हुए बच्चे पर तुम्हें इतना रहम भी नहीं आता?
मैं यह नहीं कहता हूं कि पानी मुझे ला दो,
तुम आन के चिल्लू से इसे आब पिला दो।
मरता है यह, मरते हुए बच्चे को जिला दो,
लिल्लाह, कलेजे की मेरी आग बुझा दो।
जब मुंह मेरा तकता है यह हसरत की नजर से,
ऐ जालिमो, उठता है धुआं मेरे जिगर से।
[शिमर एक तीर मारता है, असगर के गले को छेदता हुआ हुसैन के बाजू में चुभ जाता है। हुसैन जल्दी से तीर को निकालते हैं और तीर निकलते ही असगर की जान निकल जाती है। हुसैन असगर को लिये फिर खेमे में आते हैं।]
शहरबानू– यह मेरा फूल-सा बच्चा!
हुसैन– हमेशा के लिये इसकी प्यास बुझ गई। (खून से चिल्लू भरकर आसमान की तरफ उछालते हुए।) इस सब आफ़तों का गवाह खुदा हैं। अब कौन है, जो जालिमों से इस खून का बदला लें।
[सज्जाद चारपाई से उठकर, लड़खड़ाते हुए मैदान की तरफ चलते हैं।]
जैनब– अरे बेटा, तुम में तो खड़े होने की भी ताब नहीं, महीनों से आंखें नहीं खोली, तुम कहाँ जाते हो।
सज्जाद– बिस्तर पर मरने से मैदान में मरना अच्छा है। जब सब जन्नत पहुंच चुके, तो मैं यहां क्यों पड़ा रहूं।?
हुसैन– बेटा, खुदा के लिये बाप के ऊपर रहम करो, वापस जाओ। रसूल की तुम्हीं एक निशानी हो। तुम्हारे ही ऊपर औरतों की हिफ़ाजत का भार है। आह! और कौन है, जो इस फ़र्ज को अदा करे। तुम्हीं मेरे जांनसीन हो, इन सबको तुम्हारे हवाले करता हूं। खुदा हाफिज! ऐ जैनब, ऐ कुलसूम, ऐ सकीना, तुम लोगों पर मेरा सलाम हो कि यह आखिरी मुलाकात है।
[जैनब रोती हुई हुसैन से लिपट जाती है।]
सकीना– अब किसका मुंह देखकर जिऊंगी।
हुसैन– जैनब!
मरकर भी न भूलूंगा मैं एहसान तुम्हारे;
बेटों को भला कौन बहन भाई पै वारे।
प्यार न किया उनको, जो थे जान से प्यारे;
बस, मा की मुहब्बत के थे ये अंदाज हैं सारे।
फ़ाके में हमें बर्छियां खाने की रज़ा दो;
बस, अब यही उल्फ़त है कि जाने की रज़ा़ दो।
हमशीर का ग़म है किसी भाई को गवारा?
मजबूर है लेकिन असद अल्लाह का प्यारा।
रंज और मुसीबत से कलेजा है दो पारा;
किससे कहूं, जैसा मुझे सदमा है तुम्हारा।
इस घर की तबाही के लिये रोता है शब्बीर।
तुम छूटती नहीं मां से जुदा होता है शब्बीर।
[हाथ उठाकर दुआ करते हैं।]
या रब, है यह सादात का घर तेरे हवाले,
रांड हैं कई खस्ता जिग़र तेरे हवाले,
बेकस है बीमार पिसर तेरे हवाले,
सब हैं मेरे दरिया के गुहरे तेरे हवाले।
[मैदान की तरफ जाते हैं।]
शिमर– (फौज से) खबरदार, खबरदार, हुसैन आए। सब-के-सब संभल जाओ। समझ लो, अब मैदान तुम्हारा है।
[हुसैन फ़ौज के सामने खड़े होकर कहते हैं।]
बेटा हूं अली का व नेवासा रसूल का!
मां ऐसी कि सब जिसकी शफा़अत के हैं मुहताज,
बाप ऐसा, सनमखानों को जिसने किया ताराज;
बेटा हूं अली का व नेवासा रसूल का।
लड़ने को अगर हैदर सफ़दर न निकलते,
बुत घर से खुदा के कभी बाहर न निकलते।
बेटा हूं अली का व नेवासा रसूल का।
किस जंग में सीने को सिपर करके न आए?
किस फौ़ज की सफ़ जेर व ज़बर करके न आए?
बेटा हूं अली का व नेवासा रसूल का।
हम पाक न करते, तो जहां पाक न होता,
कुछ खाक की दुनिया में सिवा खाक न होता।
बेटा हूं अली का व नेवासा रसूल का।
यह शोर अजां का सहरोशाम कहां था।
हम फर्श पै जब थे, तो यह इस्लाम कहां था?
बेटा हूं अली का व नेवासा रसूल का।
लाजिम है कि सादात की इमदाद करो तुम।
ऐ जालिमों, इस घर को न बरबाद करो तुम।
बेटा हूं अली का व नेवासा रसूल का।
[फौज पर टूट पड़ते हैं।]
शिमर– अरे नामर्दो, क्यों भागे जाते हो, कोई शेर नहीं, जो सबको खा जायेगा।
एक सिपाही– जरा सामने आकर देखो, तो मालूम हो। पीछे खड़े-खड़े मुंह के आगे खंदक क्या है।
दूसरा– अरे, फिर इधर आ रहे हैं! खुदा बचाना!
तीसरा– उन पर तलवार चलाने को तो हाथ भी नहीं उठते। उनकी सूरत देखते ही कलेजा थर्रा जाता है।
चौथा– मैं तो हवा में तीर छोड़ता हूं, कौन जाने, कहीं मेरे ही तीर से शहीद हो जायें, तो आक़बत में कौन मुंह दिखाऊंगा।
पांचवा-मैं भी हवा ही में छोड़ता हूं।
शिमर– (तीर चलाकर) क्यों भागते हो? क्यों अपने मुंह में कालिख लगाते हो? दुनिया क्या कहेगी, इसकी भी तुम्हें शर्म नहीं?
क़ीस– सारी फौ़ज दहल गई, उसको खड़ा रखना मुश्किल हैं।
शीस– अली के सिवा और किसी को यह दम-खम नहीं देखा।
शिमर– (तीर चलाकर) सफ़ो को खूब फैला दो, ताकि दौड़ते-दौड़ते गिर पड़ें।
हुसैन– साद और शिमर, मैं तुम्हें फिर मौका देता हूं, मुझे लौट जाने दो, क्यों इन गरीबों की जान के दुश्मन हो रहे हो? तुम्हारा मैदान खाली हो गया। तुम्हीं सामने आ जाओ, जंग का फैसला हो जाये।
साद– शिमर, जाते हो?
शिमर– क्यों न जाऊंगा, यहां जान देने नहीं आया हूं।
साद– मैं जाऊं भी, तो लड़ नहीं सकता।
[हुसैन दरिया की तरफ़ जाते हैं।]
शिमर– अब और भी गजब हो गया, पानी पीकर लौटे, तो खुदा जाने क्या करेंगे। हज्जात को ताकीद करनी चाहिए कि दरिया का रास्ता न दे।
[हज्जाज को बुलाकर]
हज्जाज, हुसैन को हर्गिज दरिया की तरफ न जाने देना।
हज्जाज– (स्वगत) यह अजाब क्यों अपने सिर लूं। मुझे भी तो रसूल से कयामत में काम पड़ेगा। (प्रकट) जी हां, आदमियों को जमा कर रहा हूं।
[हुसैन घोड़े की बाग ढीली कर देते हैं, पर वह पानी की तरफ गर्दन नहीं बढ़ाता, मुंह फेरकर हुसैन की रकाब को खींचता है।]
हुसैन– आह! मेरे प्यारे बेजबान दोस्त! तू हैवान होकर आक़ा का इतना लिहाज करता है, ये इंसान होकर अपने रसूल के बेटे के खून के प्यासे हो रहे हैं। मैं तब तक पानी पीऊंगा, जब तक तू न पिएगा।
(पानी पीना चाहते हैं।)
हज्जा– हुसैन, तुम यहां पानी पी रहे हो, और लश्कर खेमों में घुसा जाता है।
हुसैन– तू सच कहता है?
हुसैन– यकीन न आए, जो जाकर देख आओ।
हुसैन– (स्वगत) इस बेकली की हालत में कोई मुझसे दग़ा नहीं कर सकता। मरते हुए आदमी से दग़ा करके कोई क्यों अपनी इज्जत से हाथ धोएगा।
[घोड़े को फेर देते हैं, और दौड़ते हुए खेमे की तरफ़ आते हैं।]
आह! इंसान उसने कहीं ज्यादा कमीना और कोरबातिन है, जितना मैं समझता था। इस आखिरी वक्त में मुझसे दग़ा की और महज इसलिए कि मैं पानी न पी सकूं।
[फिर मैदान में आकर लश्कर पर टूट पड़ते हैं, सिपाही इधर-उधर भागने लगते हैं।]
शिमर– (तीर चलाकर) तुम मेरे ही हाथों मरोगे।
[तीर हुसैन के मुंह में लगता है, और वह घोड़े से गिर पड़ते हैं। फिर संभलकर उठते हैं, और तलवार चलाने लगते हैं।]
साद– शिमर, तुम्हारे सिपाही हुसैन के खेमों की तरफ़ जा रहे हैं, यह मुनासिब नहीं।
शिमर– औरतों का हिफाजत करना हमारा काम नहीं है।
हुसैन– (दाढ़ी से खून पोछते हुए) साद, तुम्हें दीन का खौफ़ नहीं है, तो इंसान तो हो, तुम्हारी भी तो बाल-बच्चे हैं। इन बदमाशों को मेरे खेमों में आने से क्यों नहीं रोकते ?
साद– आपके खेमों में कोई न जा सकेगा, जब तक मैं जिंदा हूं।
[खेमो के सामने आकर खड़ा हो जाता है।]
जैनब– (बाहर निकलकर) क्यों साद! हुसैन इस बेकसी से मारे जायें, और तुम खड़े देखते रहो? माल और दुनिया तुम्हें इतनी प्यारी है!
[साद मुंह फेरकर रोने लगता है।]
शिमर– तुफ् है तुम पर ऐ जवानों! एक प्यादा भी तुमसे नहीं मारा जाता! तुम अब नाहक डरते हो। हुसैन में अब जान नहीं है, उनके हाथ नहीं उठते, पैर थर्रा रहे हैं, आँखें झपकी जाती है, फिर भी तुम उनको शेर समझ रहे हो।
हुसैन– (दिल में) मालूम नहीं, मैंने कितने आदमियों को मारा, और अब भी मार सकता हूं, है तो मेरे नाना ही की उमत्त, हैं तो सब मुसलमान, फिर इन्हें मारूं, तो किसलिये? अब कौन है, जिसके लिये जिंदा रहूं? हाय, अकबर! किससे कहें, जो खूने-जिगर हमने पिया है, बाद ऐसे पिसर के भी कहीं बाप जिया है।
हाय अब्बास!
अब्बास–
गश आता है हमें प्यास के मारे,
उलफ़त हमें ले आई है फिर पास तुम्हारे।
इन सूखे हुए होठों से होठों को मिला के,
कुछ मशक में पानी हो, तो भाई पिला दो।
लेटे हुए हो रेत में क्यों मुंह को छिपाए?
ग़ाफिल हो बिरादर तुम्हें किस तरह जगाएं?
खुश हूंगा में, आगे जो अलम लेके बढ़ोगे,
क्या भाई के पीछे न नमाज आज पढ़ोगे?
लड़ते-लड़ते शाम हो गई, हाथ नहीं उठते। आखिरी नमाज पढ़ लूं। काश नमाज पढ़ते हुए सिर कट जाता, तो कितना अच्छा होता!
[हुसैन नमाज में झुक जाते है, अशअस पीछे आकर उनके कंधे पर तलवार मारता है। क़ीस दूसरे कंधे पर तलवार चलाता है। हुसैन उठते हैं, फिर गिर पड़ते हैं, फौज़ में सन्नाटा छा जाता है। सबके सब आकर उन्हें घेर लेते हैं।]
शिमर– खलीफा यजीद ने हुसैन का सिर मांगा था, कौन है यह फख हासिल करना चाहता है?
[एक सिपाही आगे बढ़कर तलवार चलाता है। मुसलिम की छोटी लड़की दौड़ी हुई खेमे से आती है, और हुसैन की पीठ पर हाथ रख देती है।]
नसीमा– ओ खबीस, क्या तू मेरे चचा का कत्ल करेगा?
[तलवार नसीमा के दोनों हाथों पर पड़ती है, और हाथ कट जाते हैं।]
[शीस तलवार लेकर आगे बढ़ता है, हुसैन का मुंह देखते ही तलवार उसके हाथ से छूटकर गिर पड़ती हैं।]
शिमर– क्यों, तलवार क्यों डाल दी?
शीस– उन्होंने जब आंखें खोलकर मुझे देखा, तो मालूम हुआ कि रसूल की आंखें हैं। मेरे होश उड़ गए।
कीस– मैं जाता हूं।
[तलवार लेकर जाता है, तलवार हाथ से गिर पड़ती हैं और उल्टे कदम कांपता हुआ लौट आता है।]
शिमर– क्यों, तुम्हें क्या हो गया?
क़ीम– यह हुसैन नहीं, खुद रसूल पाक हैं। रोब से मेरे होश गायब हो गए या खुदा जहन्नुम की आग में न डालियो।
शिमर– इनकी मौत मेरे हाथों लिखी हुई है। तुम सब दिल के कच्चे हो
[तलवार लेकर हुसैन के सीने पर चढ़ बैठता है।]
हुसैन– (आंखें खोलते हैं, और उसकी तरफ ताकते हैं।)
शिमर– मैं उन बुजदिलों में नहीं हूं, जो तुम्हारी निगाहों से दहल उठे थे।
हुसैन– तू कौन है?
शिमर– मेरा नाम शिमर है।
हुसैन– मुझे पहचानता है?
शिमर– खूब पहचानता हूं, तुम अली और फ़ातिमा के बेटे और मुहम्मद के नेवासे हो।
हुसैन– यह जानकर भी तू तुझे कत्ल करता है?
शिमर– मुझे जन्नत से जागीरें ज्यादा प्यारी हैं।
[तलवार मारता है, हुसैन का सिर जुदा हो जाता है।]
साद– रोता हुआ शिमर जियाद से कह देना, मुझे ‘रै’ की जागीर से माफ़ करें। शायद अब भी नजात हो जाय।
[अपने सीने में नेजा चुभा लेता है, और बेजान होकर गिर पड़ता है। फौज के कितने ही सिपाही हाथों में मुंह छिपाकर रोने लगते हैं। खेमों से रोने की आवाजें आने लगती हैं।]
।। समाप्त।।