गुलाबी नगरी की बसावट के बाद यहां के महाराजाओं ने कई आस्था के केन्द्रों का निर्माण करवाया जो वर्षों बाद भी जन जन की आस्था के केन्द्र बने हुए हैं। ऐसा ही एक मंदिर है गोपालजी का रास्ता में चौथ माता का। मंदिर की स्थापना जयपुर की स्थापना के समय की ही बताई जाती है। मंदिर भले ही विशाल न हो लेकिन हजारों लोगों की अपार आस्था का केंद्र बना हुआ है। कुछ साल पहले भक्तों ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया आैर नया स्वरूप प्रदान किया।मंदिर के गर्भगृह में चौथ माता के साथ गणेशजी विराजमान हैं। मंदिर के बाहर भैरव, हनुमानजी एवं शीतला माता प्रतिष्ठित हैं। शहर का एकमात्र प्राचीन मंदिर होने से यहांचौथ पर श्रद्धालुओं का तांता लगता है। मान्यता के अनुसार सुहागिन महिलाएं जहां अखंड सौभाग्य की कामना से यहां पर आती है, बहिनें भाई के लिए और निसंतान संतान पाने की कामना से मंदिर में रक्षासूत्र बांधते हैं। पुजारी चतुर्भुज शर्मा ने बताया कि मां के मंदिर में वैसे तो हर माह की चौथ पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन वर्ष में यहां चार उत्सव मनाए जाते हैं। महिलाएं मन्नते मांगने के लिए आती हैं। हिन्दू पंचांग में बड़े महीने माने जाने वाले वैशाख, भाद्रपद, माघ एवं कार्तिक माह की चौथ को व्रती महिलाएं यहां बड़ी संख्या में आती हैं और 16 शृंगार की सामग्री चढ़ाकर मन्नत मांगती हैं। इस दौरान माता का अभिषेक कर भव्य शृंगार किया जाता है। माता के दर्शनों के लिए मंगला आरती से रात्रि 12 बजे तक पट खुले रहते हैं।