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चूहे-दान

20 अप्रैल 2022

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शौकत को चूहे पकड़ने में बहुत महारत हासिल है। वो मुझ से कहा करता है ये एक फ़न है जिस को बाक़ायदा सीखना पड़ता है और सच्च पूछिए तो जो जो तरकीबें शौकत को चूहे पकड़ने के लिए याद हैं, उन से यही मालूम होता है कि उस ने काफ़ी मेहनत की है। अगर चूहे पकड़ने का कोई फ़न नहीं है तो उस ने अपनी ज़ेहानत से उसे फ़न बना दिया है। उस को आप कोई चूहा दिखा दीजिए, वो फ़ौरन आप को बता देगा कि इस तरकीब से वो इतने घंटों में पकड़ा जाएगा और इस तरीक़े से अगर आप उसे पकड़ने की कोशिश करें तो इतने दिन लग जाऐंगे।

चूहों की नसलों और उन की मुख़्तलिफ़ आदात-ओ-अत्वार का शौकत बहुत गहरा मुताला कर चुका है। उस को अच्छी तरह मालूम है कि किस ज़ात के चूहे जल्दी फंस जाते हैं और किस नसल के चूहे बड़ी मुश्किल के बाद क़ाबू में आते हैं और फिर हर क़िस्म के चूहों को फांसने की एक सौ एक तरकीब शौकत को मालूम है।

मोटे मोटे उसूल उस ने एक रोज़ मुझे बताए थे कि छोटी छोटी चूहियां अगर पकड़ना हों तो हमेशा नया चूहेदान इस्तिमाल करना चाहिए। चूहेदान की साख़त किसी क़िस्म की भी हो, उस की कोई परवाह नहीं ख़याल इस बात का रखना चाहिए कि चूहेदान ऐसी जगह पर न रखा जाये जहां आप ने चूहिया या चूहियां देखी थीं। ट्रंकों के पीछे। अलमारियों के नीचे, कहीं भी जहां आप ने चूहिया न देखी हो। चूहेदान रख दिया जाये और उस में तली हुई मछली का छोटा सा टुकड़ा रख दिया जाये। टुकड़ा बड़ा न हो। अगर चूहेदान खट से बंद होने वाला है तो उस में खासतौर पर बड़ा टुकरा नहीं लगाना चाहिए कि चूहिया अंदर आकर उस टुकरे का कुछ हिस्सा कतर कर बाहर चली जाएगी। टुकड़ा छोटा होगा तो वो उसे उतारने की कोशिश करेगी और यूं झटपट पिंजरे में क़ैद हो जाएगी..... एक चूहीया पकड़ने के बाद चूहेदान को गर्म पानी से धो लेना चाहिए। अगर आप उसे अच्छी तरह न धोएँगे तो पहली चूहिया की बू उस में रह जाएगी जो दूसरी चूहियों के लिए ख़तरे के अलार्म का काम देगी। इस लिए इस बात का खासतौर पर ख़याल रखना चाहिए। हर चूहे या चूहिया को पकड़ने के बाद चूहेदान को धो लेना चाहिए। अगर घर में ज़्यादा चूहे चूहियां हों और उन सब को पकड़ना हो तो एक चूहेदान काम नहीं देगा। तीन चार चूहेदान पास रखने चाहिऐं जो बदल बदल कर काम में लाए जाएं चूहे की ज़ात बड़ी सयानी होती है, अगर एक ही चूहेदान घर में रखा जाएगा तो चूहे उस से ख़ौफ़ खाना शुरू करदेंगे और उस के नज़दीक तक नहीं आयेंगे.......... बाअज़ औक़ात इन तमाम बातों का ख़याल रखने पर भी चूहे चूहियां क़ाबू में नहीं आतीं। उस की बहुत सी वजहें होती हैं। बहुत मुम्किन है कि आप से पहले जो मकान में रहता था उस ने इसी क़िस्म का चूहेदान इस्तिमाल किया था जैसा कि आप कर रहे हैं, ये भी हो सकता है कि उस ने चूहे पकड़ कर बाहर गली या बाज़ार में छोड़ दिया हो और वो चंद दिनों के बाद फिर वापस घर आगया है। ऐसे चूहे जो एक बार चूहेदान में फंस कर फिर अपनी जगह पर वापस आजाऐं इस क़दर होशियार हो जाते हैं कि बड़ी मुश्किल से क़ाबू में आते हैं। ये चूहे दूसरे चूहों को भी ख़बरदार कर देते हैं जिस का नतीजा ये होता है कि आप की तमाम कोशिशें बेसूद साबित होती हैं और चूहे बड़े इत्मिनान से इधर उधर दौड़ते रहते हैं और आप का और आपके चूहेदान का मुँह चढ़ाते रहते हैं.......... चूहे के बिल के पास तो चूहेदान हर्गिज़ हर्गिज़ नहीं रखना चाहिए, इस लिए कि इतनी बड़ी चीज़ अपने घर के पास देख कर जो पहले कभी नहीं होती थी चूहा फ़ौरन चौकन्ना हो जाता है और उस को दाल में काला काला नज़र आ जाता है..... जब किसी हीले से चूहे न पकड़े जाएं तो गिर्द-ओ-पेश की फ़िज़ा का मुताला-ओ-मुशाहिदा करके ये मालूम करना चाहिए कि आस पास के लोग कैसे हैं, किस क़िस्म की चीज़ें खाते हैं और उन के घरों के चूहे किस चीज़ पर जल्दी गिरते हैं। ये तमाम बातें मालूम करके आपको तजुर्बे करना पड़ेंगे और ऐसी तरकीब ढूंढना पड़ेगी जिसके ज़रिया से आप अपने घर के चूहे गिरफ़्तार कर सकें।


शौकत चूहे पकड़ने के फ़न पर एक तवील लकचर दे सकता है। किताब लिख सकता है मगर चूँकि वो तबअन ख़ामोशी पसंद है इस लिए उस के मुतअल्लिक़ ज़्यादा बातचीत नहीं करता। सिर्फ़ मुझे मालूम है कि वो इस फ़न में काफ़ी महारत रखता है, मुहल्ले के दूसरे आदमियों को उस की मुतलक़ ख़बर नहीं, अलबत्ता उस के पड़ोसी उस के यहां से कभी कभी चूहेदान आरियतन ज़रूर मंगाया करते हैं और उस ने इस ग़रज़ के लिए एक पुराना चूहेदान मख़सूस कर रखा है।

पिछली बरसात की बात है। मैं शौकत के यहां बैठा था कि उस के पड़ोसी ख़्वाजा अहमद सादिक़ साहब डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट पुलिस का बड़ा लड़का अरशद सादिक़ आया, मैंने जब उठ कर दरवाज़ा खोला तो उस ने कहना शुरू किया। “इन कमबख़्त चूहों ने नाक में दम कर रखा है। अब्बा जी से बार-हा कह चुका हूँ कि ज़हर मंगवाईए उन को मारने के लिए मगर उन्हें अपने कामों ही से फ़ुर्सत नहीं मिलती और यहां हर रोज़ मेरी किताबों का सत्यानास होरहा है.......... आज अलमारी खोली तो ये बड़ा चूहा मेरे सर पर आन गिरा.......... तुम्हें क्या बताऊं उन चूहों ने मुझे कितना तंग किया है। किसी किताब की जिल्द सलामत नहीं। बाअज़ बड़ी किताबों की जल्द तो इस सफ़ाई से इन कमबख़्तों ने कतरी है कि मालूम होता है किसी ने आरी से काट दी है।”

मैं अरशद को शौकत के पास ले गया और कहा। “अरशद साहब तशरीफ़ लाए हैं। चूहों की शिकायत लेकर आए हैं।”

अरशद कुर्सी पर बैठ गया और पेशानी पर से पसीना पूंछ कर कहने लगा। “शौकत साहब, मैं क्या अर्ज़ करूं। अभी अलमारी की तमाम किताबें मैं बाहर निकाल कर आया हूँ। एक भी इन में ऐसी नहीं जिस पर चूहों ने अपने दाँत तेज़ न किए हों। बावर्चीख़ाना मौजूद है, दूसरी अलमारीयां हैं जिन में हरवक़त खाने पीने की चीज़ें पड़ी रहती हैं, समझ में नहीं आता कि मेरी किताबें कतरने में उन को क्या मज़ा आता है.......... यानी काग़ज़ और दफ़ती भला कोई ग़िज़ा है.......... अजी साहब एक अंबार कतरे हुए गत्ते और धुन्के हुए काग़ज़ों का मैंने अलमारी में से निकाला है।”

शौकत मुस्कुराया। “डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट पुलिस के घर में चूहे हर रोज़ सेंध लगाते फिरें.......... ये कैसे हो सकता है?”

अरशद ने इस मज़ाक़ से लुत्फ़ न उठाया इस लिए कि वो वाक़ई बहुत परेशान था। “शौकत साहब, वो मामूली चूहे थोड़े हैं। मोटे मोटे संडे हैं जो खुले बंदों फिरते रहते हैं.......... मेरे सर पर एक आन पड़ा। ख़ुदा की क़सम अभी तक दर्द होरहा है।”

शौकत और मैं दोनों खिलखिला कर हंस पड़े। “अरशद भी मुस्कुरा दिया। आप तो दिल लगी कर रहे हैं और यहां ग़ुस्सा के मारे मेरा बुरा हाल हो रहा है।”

शौकत ने उठ कर अरशद को सिगरट पेश किया। “अपने दिल का गुबार इस के धोएँ के साथ बाहर निकालिये और मुझे बताईए कि मैं आपकी क्या ख़िदमत कर सकता हूँ।”

अरशद ने सिगरट सुलगाया और कहा। “मैं आप से चूहेदान मांगने आया था। अम्मी जान ने मुझ से कहा था कि शौकत के घर में मैंने दो तीन पड़े देखे हैं।”

शौकत ने फ़ौरन नौकर को आवाज़ दी और उसे कहा। “वो चूहेदान जो तुम ने कल गर्म पानी से धोकर ख़ूब साफ़ किया था अरशद साहब के घर दे आओ और देखो उन के नौकर से कहना कि उस अलमारी के नीचे उस कोना में रखे जहां अरशद साहब अपनी किताबें रखते हैं.......... उस अलमारी से दूर भी नहीं। इस में मछली या तेल में तली हुई किसी चीज़ का टुकड़ा लगा कर रख दिया जाये।” फिर अरशद से मुख़ातब हो कर कहा। “आप भी अच्छी तरह सुन लीजिएगा.......... बाज़ार से अगर पकौड़े मिल जाएं तो एक पकैड़ा काफ़ी रहेगा..... और जब चूहा पकड़ा जाये तो ख़ुदा के लिए उसे मेरे घर के पास न छोड़ दीजिएगा और बहुत जगहें आपको मिल जाएंगी जहां से वो फिर वापस न आसके।”

देर तक अरशद हमारे पास बैठा रहा। शौकत उसको मज़ीद हिदायात देता रहा। जब नौकर चूहेदान उस के घर पहुंचा कर वापस आगया तो उस ने इजाज़त चाही और चला गया।

इस वाक़िया के चार रोज़ बाद अरशद मेरे घर आया। मैं और वो चूँकि इकट्ठे कॉलिज में पढ़ते रहे हैं। इसी लिए वो मेरे बेतकल्लुफ़ दोस्त हैं, शौकत से उस का तआरुफ़ मैंने ही कराया था। आते ही उस ने इधर उधर देखा जैसे मुझ से कोई राज़ की बात तख़लिया में कहना चाहता है। मैंने पूछा। “क्या बात है। तुम इतने परेशान क्यों हो?”

“मैं तुम्हें एक बड़ी दिलचस्प बात सुनाने आया हूँ मगर यहां नहीं सुनाऊंगा तुम बाहर चलो।” ये कह कर उस ने मुझे बाज़ू से पकड़ा और बाहर ले गया।

रास्ते में उस ने मुझे अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। “अजीब-ओ-गरीब कहानी है जो मैं तुम्हें सुनाने वाला हूँ। बख़ुदा ऐसी बात हुई कि मेरी हैरत की कोई इंतिहा नहीं रही..... यानी किसे यक़ीन था कि इतनी ज़िद्दी और नफ़ासत-पसंद लड़की एक चूहेदान के ज़रीया से मेरे क़ाबू में आजाएगी.......... उसी चूहे दान के ज़रीया से जो उस रोज़ तुम्हारे सामने मैंने शौकत से लिया था।”

मैंने हैरतज़दा होकर पूछा। “कौन सी लड़की इस चूहेदान में फंस गई.......... लड़की न हुई चूहिया होगई..... आख़िर बताओ तो सही लड़की कौन है।”

“अम्मां वही सलीमा जिस की नफ़ासत पसंदियों की बड़ी धूम है और जिस की ज़िद्दी तबीयत के बड़े चर्चे हैं।”

मेरी हैरत और ज़्यादा बढ़ गई। “सलीमा.......... झूट?”

“ख़ुदा की क़सम.......... झूट बोलने वाले पर लानत। और भला मैं तुम से झूट क्यों कहने लगा..... यही सलीमा, शौकत के दिए हूए चूहेदान के ज़रिया से मेरे क़ाबू में आगई और बख़ुदा ये मेरे वहम-ओ-गुमान में भी न था कि वो ऐसी आसानी से फंस जाएगी..... ”

मैंने फिर उस से हैरत भरे लहजा में कहा। “लेकिन ये हुआ क्यों कर। तुम मुझे पूरी दास्तान सुनाओ तो कुछ पता चले..... चूहे दानों से भी कभी किसी ने लड़कियां फांसी हैं। बड़ी बेतुकी सी बात मालूम होती है मुझे।”

मैं सलीमा को अच्छी तरह जानता हूँ। हमारे यहां उस का अक्सर आना जाना है। वो सिर्फ़ नफ़ासतपसंद ही नहीं बल्कि बड़ी ज़हीन लड़की है। अंग्रेज़ी ज़बान पर उसे ख़ूब उबूर हासिल है। तीन चार मर्तबा उस से मुझे गुफ़्तुगू करने का इत्तिफ़ाक़ हुआ तो मैंने मालूम किया कि अदब और शेअर के मुतअल्लिक़ उस की मालूमात बहुत वसीअ हैं। मुसव्विर भी है, प्यानो बजाने में बड़ी महारत रखती है। उस की ज़िद्दी और नफ़ासतपसंद तबीयत के बारे में भी चूँकि मुझे बहुत कुछ मालूम है, इसी लिए मुझे अरशद की ये बात सुन कर सख़्त तअज्जुब हुआ। वो तो किसी को ख़ातिर ही में लानेवाली नहीं। अरशद जैसे चुग़द को उस ने कैसे पसंद करलिया। ये मुअम्मा मेरी समझ में नहीं आता था।

अरशद बेहद ख़ुश था। उस ने मेरी तरफ़ फतहमंद नज़रों से देखा और कहा। “मैं तुम्हें सारा वाक़िया सुना देता हूँ। इस के बाद किसी क़िस्म की वज़ाहत की ज़रूरत न रहेगी.......... क़िस्सा ये है कि परसों रात को अम्मी जान और अब्बा जी और दूसरे लोग सब सिनेमा देखने चले गए। मैं घर में अकेला था। कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करूं। आराम कुर्सी में टांगें फैलाए लेटा यही सोच रहा था कि एक मोटा सा चूहा मुझे नज़र आया। उस को देखना था कि मारे ग़ुस्सा के मेरा ख़ून खोलने लगा। फ़ौरन उठा और उस को पकड़ने की तरकीब सोचने लगा। उसे हाथ से पकड़ना तो ज़ाहिर है बिलकुल मुहाल था, मैं किसी तरीक़े से उस को मार भी नहीं सकता था, इस लिए कि कमरे में बेशुमार फ़र्नीचर और ट्रंक वग़ैरा पड़े थे। मैंने शौकत के दिए हुए चूहेदान का ख़याल किया जिस से आठ चूहे हम लोग पकड़ चुके थे मगर शौकत की हिदायात के मुताबिक़ उस को गर्म पानी से धोना ज़रूरी था। मुझे कोई काम तो था नहीं और वक़्त भी काफ़ी था, चुनांचे मैंने ख़ुद ही समावार में पानी गर्म किया और चूहेदान को धोना शुरू कर दिया। अभी मैंने लौटे से गर्म पानी की धार उस के आहनी तारों पर डाली ही थी कि दरवाज़े पर दस्तक हुई। दरवाज़ा खोला तो क्या देखता हूँ कि सलीमा खड़ी है। मैंने कहा। “आईए , आईए।” वो अन्दर चली आई और कहने लगी। “क्या कर रहे हैं आप? ” मैंने झेंप कर जवाब दिया। “जी चूहेदान धो रहा हूँ।” वो बेइख़्तियार हंस पड़ी। “चूहेदान धो रहे हैं..... ये सफ़ाई आख़िर किस लिए हो रही है..... कोई बड़ा चूहा इन्सपैकशन के लिए तो नहीं आरहा।” ये सुन कर मेरी झेंप दूर हो गई और मैंने क़हक़हा लगा कर कहा। “जी हाँ.......... एक बहुत बड़ा चूहा इन्सपैकशन के लिए आना चाहता है ये सफ़ाई इसी सिलसिले में हो रही है।”

ये कह कर अरशद ख़ामोश होगया। इस पर मैंने इस से कहा। “सुनाते जाओ। रुको नहीं..... तुम्हारी दास्तान बहुत दिलचस्प है.......... हाँ तो फिर सलीमा ने क्या कहा।

“कुछ नहीं। मेरी बात सुन कर वह सहन ही में चौकी पर बैठ गई और कहने। “आप सफ़ाई कीजीए। इस सफ़ाई की इन्सपैकशन मैं करूंगी..... हाँ ये तो बताईए आज ये सब लोग कहाँ गए हैं।” मैंने जवाब दिया “सिनेमा गए हैं, मैं बे-कार बैठा था कि एक चूहा अपने कमरे में मुझे नज़र आया। मैं क्या अर्ज़ करूं हमारे घर में किस तरह बड़े बड़े मोटे संडे चूहे सेंध मारते फिरते हैं। मेरी किताबों का तो उन्हों ने सत्यानास कर दिया है। अब उन के ज़ुल्म-ओ-सितम से मेरे अंदर एक इंतिक़ामी जज़्बा पैदा होगया है। ये चूहेदान ले आया हूँ इस से हर रोज़ दो तीन चूहे पकड़ता हूँ और उन को काले पानी भेज देता हूँ।” सलीमा ने मेरी गुफ़्तुगू में दिलचस्पी ज़ाहिर की। “ख़ूब, ख़ूब..... लेकिन ये तो बताईए काला पानी यहां से कितनी दूर है।” मैंने कहा। “बहुत दूर नहीं। कोतवाली पास ही जो गंदा नाला बहता है उसी को फ़िलहाल मैंने काला पानी बना लिया है। चूहों ने इस पर एतराज़ नहीं किया, क्योंकि इस मोरी का पानी काला ही है।” हम दोनों ख़ूब हंसे। फिर मैंने लौटा उठाया और चूहेदान को बरशश के साथ धोना शुरू कर दिया। जब छींटे उड़े तो मैंने सलीमा से कहा। “आप यहां से उठ जाईए, छींटे उड़ रहे हैं.......... वैसे भी ये मेरी बड़ी बदतमीज़ी है कि मैं आप के सामने ऐसी ग़लीज़ चीज़ साफ़ करने बैठ गया हूँ।” उस ने फ़ौरन ही कहा। “आप तकल्लुफ़ न कीजीए और अपना काम करते चले जाईए। छींटों के मुतअल्लिक़ भी आप कोई फ़िक्र न करें।”

जब मैंने चूहेदान अच्छी तरह धो कर साफ़ कर लिया तो सलीमा ने पूछा। “अच्छा, अब आप ये बताईए कि इस को धोने की क्या ज़रूरत थी, बग़ैर धोए क्या आप इस ज़ालिम चूहे को नहीं पकड़ सकते।” मैंने कहा। “जी नहीं.......... इस से पहले चूँकि इस चूहेदान में हम एक चूहा पकड़ चुके हैं और उस की बू इस में अभी तक बाक़ी है इस लिए धोना ज़रूरी है। गर्म पानी से पहले चूहे की बू ग़ायब हो जाएगी। इस लिए दूसरा चूहा आसानी के साथ फंस जाएगा।” मेरी ये बात सुन कर सलीमा ने बिलकुल बच्चों की तरह कहा। “अगर चूहेदान में चूहे की बू रह जाये तो दूसरा चूहा नहीं आता।” मैंने स्कूल मास्टरों का सा अंदाज़ इख़्तियार कर लिया। “बिलकुल नहीं, इस लिए कि चूहों की नाक बड़ी तेज़ होती है। आप ने सुना नहीं आम तौर पर ये कहा करते हैं कि फ़ुलां आदमी की तो चूहे की नाक है। यानी उस की क़ुव्वत-ए-शाम्मा बड़ी तेज़ है.......... समझीं आप? ” सलीमा ने मेरी तरफ़ जब देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने एक बहुत बड़ी बात इस से कह दी है जिस को सुन कर वो बहुत मरऊब होगई है। उस की निगाहों में मुझे अपने मुतअल्लिक़ क़दर-ओ-मंजिलत की झलक नज़र आई। इस से मुझे शह मिल गई। चुनांचे वो तमाम बातें जो मैंने शौकत से उस रोज़ सुनी थीं। एक लैक्चर की सूरत में दुहराना शुरू करदीं और वो।”

मैंने उस की बात काट कर कहा। “ये सब मुझे अफ़साना मालूम होता है। तुम झूट कहते हो।”

तुम भी अजीब क़िस्म के मुनकिर हो।” अरशद ने बिगड़ कर कहा। भई क़सम ख़ुदा की , इस का एक एक लफ़्ज़ सच है। मुझे झूट बोलने की ज़रूरत ही क्या है। तुम्हें हैरत ज़रूर होगी, इस लिए कि मैं ख़ुद बहुत मुतहय्यर हूँ। सलीमा जैसी पढ़ी लिखी और ज़हीन लड़की ऐसी फ़ुज़ूल बातों से मुतअस्सिर होगई। ये बात मुझे हमेशा मुतहय्यर रखेगी, मगर भई हक़ीक़त से तो इनकार नहीं हो सकता। उस ने मेरी ऊटपटांग बातें बड़े ग़ौर से सुनीं जैसे उसे दुनिया का कोई राज़-ए-निहुफ़ता बता रहा हूँ.......... वल्लाह ये ज़हीन लड़कीयां भी प्रलय दर्जे की सादा लौह होती हैं। सादा लौह नहीं कहना चाहिए। ख़ुदा मालूम क्या होती है। तुम उन से कोई अक़ल की बात कहो तो बस बिगड़ जाएंगी ये समझेंगी कि हम ने उन की अक़ल-ओ-दानिश पर हमला कर दिया है और जब उन से कोई मामूली सी बात कहो जिस से ज़ेहानत का दूर से तअल्लुक़ भी न हो तो वो ये समझेंगी कि उन की मालूमात में इज़ाफ़ा होरहा है.......... तुम किसी फ़लसफ़ा दान और बाल की खाल उतारने वाली औरत से कहो कि ख़ुदा एक है तो वो नुक्ता चीनी शुरू करदेगी। अगर उस से ये कहो देखो मैंने तुम्हारे सामने माचिस की डिबिया से ये एक तीली निकाली है, ये हूई एक तीली, अब में दूसरी निकालता हूँ। मेज़ पर इन तीलियों को पास पास रख कर जब तुम उस से ये कहोगे, देखो, अब ये दो तीलियां होगई हैं तो वो इस क़दर ख़ुश होगी कि उठ कर तुम्हें चूमना शुरू कर देगी।

ये कह कर अरशद ख़ूब हंसा। मुझे भी हंसना पड़ा इस लिए कि बात ही हंसी पैदा करने वाली थी। जब हम दोनों की हंसी कम हुई मैंने उस से कहा। “अब तुम अपनी बक़ाया कहानी सुनाओ और हंसी मज़ाक़ को छोड़ो।”

“हंसी मज़ाक़ मैं कैसे छोड़ सकता हूँ भाई।” अरशद ने बड़ी संजीदगी से कहा। “मैं तो उस से हंसी मज़ाक़ ही में बातें कर रहा था मगर वो बड़ी संजीदगी से सुन रही थी। हाँ तो जब मैंने चूहे पकड़ने के उसूल उस को बता दिए तो और ज़्यादा बच्चा बन कर उस ने मुझ से कहा। “अरशद साहब आप तो फ़ौरन चूहे पकड़ लेते होंगे?” मैंने बड़े फ़ख़्र के साथ जवाब दिया। “जी हाँ, क्यों नहीं।” इस पर सलीमा ने बड़े इश्तियाक़ के साथ कहा। “क्या आप इस चूहे को जो आप ने अभी अभी देखा था मेरे सामने पकड़ सकते हैं?” “अजी ये भी कोई मुश्किल बात है, यूं चुटकियों में उसे गिरफ़्तार किया जा सकता है।” सलीमा उठ खड़ी हुई। “तो चलीए, मेरे सामने उसे गिरफ़्तार कीजीए। मैं समझती हूँ आप कभी इस चूहे को पकड़ नहीं सकेंगे।” मैं ये सुन कर यूंही मुस्कुरा दिया। “आप ग़लत समझती हैं। पंद्रह नहीं तो बीस मिनट में वो चूहा इस चूहेदान में होगा। और आप की नज़रों के सामने बशर्तिके आप इतने अर्सा तक इंतिज़ार कर सकें।” सलीमा ने कहा। “मैं एक घंटे तक यहां बैठने के लिए तैय्यार हूँ मगर मैं आप से फिर कहती हूँ कि आप नाकाम रहेंगे?.......... वक़्त मुक़र्रर करके आप चूहे को कैसे पकड़ सकते हैं?.......... ” मैं उस वक़्त अजीब-ओ-ग़रीब मूड में था। अगर कोई मुझ से ये कहता कि तुम ख़ुदा दिखा सकते हो तो मैं फ़ौरन कहता, हाँ दिखा सकता हूँ। चुनांचे मैंने बड़े फ़ख़्रिया लहजा में सलीमा से कहा। “हाथ कंगन को आरसी क्या.......... मैं अभी आपको वो चूहा पकड़ के दिखाई देता हूँ मगर शर्त बांधीए।” उस ने कहा मैं हर शर्त बांधने के लिए तैय्यार हूँ, इस लिए कि हार आप ही की होगी।” इस पर ख़ुदा मालूम मुझ में कहाँ से जुर्रत आगई जो मैंने उस से कहा। “तो ये वाअदा कीजिए कि अगर मैंने चूहा पकड़ लिया तो आप से जो चीज़ तलब करूंगा आप बखु़शी दे देंगी।” सलीमा ने जवाब दिया। “मुझे मंज़ूर है।” चुनांचे मैंने काँपते हुए हाथों से चूहेदान में सुबह की तली हुई मछली का एक टुकड़ा लगाया और उस को अपनी किताबों की अलमारी से दूर सोफे के पास रख दिया। शर्त व्रत का मुझे उस वक़्त कोई ख़्याल नहीं था। लेकिन में दिल में ये दुआ ज़रूर मांग रहा था कि कोई न कोई चूहा ज़रूर फंस जाये ताकि मेरी सुर्ख़रूई हो। न जाने किस जज़्बा के मातहत मैंने गप हाँक दी। बाद में मुझे अफ़सोस हुआ कि ख़्वाह-मख़्वाह शर्मिंदा होना पड़ेगा। चुनांचे एक बार मेरे जी मीनाई कि उस से कह दूं, मैं तो आप से यूंही मज़ाक़ कर रहा था। चूहा पंद्रह मिनट में कैसे पकड़ा जा सकता है..........गांधी जी का सत्य गिरह ही होता तो उसे जब चाहे पकड़ लेते मगर ये तो चूहा है। आप ख़ुद ही ग़ौर फ़रमाएं। मगर मैं उस से ये न कह सका। इस लिए कि इस में मेरी शिकस्त थी।


ये कह कर अरशद ने जेब से सिगरट निकाल कर सुलगाया और मुझ से पूछा। “क्या ख़याल है तुम्हारा इस दास्तान के मुतअल्लिक़?”

मैंने कहा। “बहुत दिलचस्प है, मगर इस का दिलचस्प तरीन हिस्सा तो अभी बाक़ी है। जल्दी जल्दी वो भी सुना दो।”

“क्या पूछते हो दोस्त.......... वो पंद्रह मिनट जो मैंने इंतिज़ार में गुज़ारे सारी उम्र मुझे याद रहेंगे। मैं और सलीमा कमरे के बाहर कुर्सियों पर बैठे थे। वो ख़ुदा मालूम क्या सोच रही थी। मगर मेरी बुरी हालत थी। सलीमा ने मेरी जेब घड़ी अपनी रान पर रखी हुई थी। में बार बार झुक कर उस में वक़्त देख रहा था। दस मिनट गुज़र गए मगर पास वाले कमरा में चूहेदान बंद होने की खट न सुनाई दी। ग्यारह मिनट गुज़र गए। कोई आवाज़ न आई। साढ़े ग्यारह मिनट होगए। ख़ामोशी तारी रही। बारह मिनट गुज़रने पर भी कुछ न हुआ। सवा बारह मिनट होगए, साढ़े बारह हुए कि दफ़्फ़ातन खट की आवाज़ बुलंद हुई। मुझे ऐसा महसूस हुआ कि चूहेदान मेरे सीने में बंद हुआ है। एक लम्हा के लिए मेरे दिल की धड़कन बंद सी होगई। लेकिन फ़ौरन ही हम दोनों उठे। दौड़ कर कमरे में गए और चूहेदान के तारों में से जब मुझे एक मोटे चूहे की थूथनी और उस की लंबी लंबी मूंछें नज़र आईं तो मैं ख़ुशी से उछल पड़ा। पास ही सलीमा खड़ी थी, उस की तरफ़ मैंने फ़त्हमंद नज़रों से देखा और झटपट उस के हैरत से खुले हुए होंटों को चूम लिया.......... ये सब कुछ इस क़दर जल्दी में हुआ कि सलीमा चंद लम्हात तक बिलकुल ख़ामोश रही, लेकिन इस के बाद उस ने ख़फ़्गी आमेज़ लहजा में मुझ से कहा “ये क्या बेहूदगी है?” उस वक़्त ख़ुदा मालूम में कैसे मूड में था कि एक बार मैंने फिर उसी अफ़रातफ़री में उस का बोसा ले लिया और कहा। “अजी मौलाना आप ने शर्त हारी है। और..... तीसरी मर्तबा उस ने अपने होंट बोसे के लिए ख़ुद पेश करदिए .......... जिस तरह चूहा हाथ आया इसी तरह सलीमा भी हाथ आगई, मगर भई में शौकत का बहुत ममनून हूँ। अगर मैंने चूहेदान को गर्म पानी से न धोया होता तो चूहा कभी न फंसता।

ये दास्तान सुन कर मुझे बहुत लुत्फ़ आया। लेकिन अफ़सोस भी हुआ, इस लिए कि शौकत उस लड़की सलीमा की मुहब्बत में बुरी तरह गिरफ़्तार है । (1941)



 

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हाऊस में हरामियों की बातें शुरू हुईं तो ये सिलसिला बहुत देर तक जारी रहा। हर एक ने कम अज़ कम एक हरामी के मुतअ’ल्लिक़ अपने तास्सुरात बयान किए जिससे उसको अपनी ज़िंदगी में वास्ता पड़ चुका था। कोई जालंधर का था

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फुसफुसी कहानी

7 अप्रैल 2022
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सख़्त सर्दी थी। रात के दस बजे थे। शाला मार बाग़ से वो सड़क जो इधर लाहौर को आती है, सुनसान और तारीक थी। बादल घिरे हुए थे और हवा तेज़ चल रही थी। गिर्द-ओ-पेश की हर चीज़ ठिठुरी हुई थी। सड़क के दो रवैय्या पस्

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बर्फ़ का पानी

7 अप्रैल 2022
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“ये आप की अक़ल पर क्या पत्थर पड़ गए हैं” “मेरी अक़ल पर तो उसी वक़्त पत्थर पड़ गए थे जब मैंने तुम से शादी की भला इस की ज़रूरत ही क्या थी अपनी सारी आज़ादी सल्ब कराली।” “जी हाँ आज़ादी तो आप की यक़ीनन सल्ब हूई

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बलवंत सिंह

7 अप्रैल 2022
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शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

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बाई बाई

7 अप्रैल 2022
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नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

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बचनी

7 अप्रैल 2022
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भंगिनों की बातें हो रही थीं। खासतौर पर उन की जो बटवारे से पहले अमृतसर में रहती थीं। मजीद का ये ईमान था कि अमृतसर की भंगिनों जैसी करारी छोकरिया और कहीं नहीं पाई जातीं। ख़ुदा मालूम तक़सीम के बाद वो कहाँ

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फ़ूभा बाई

7 अप्रैल 2022
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हैदराबाद से शहाब आया तो इस ने बमबई सैंट्रल स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहला क़दम रखते ही हनीफ़ से कहा। “देखो भाई। आज शाम को वो मुआमला ज़रूर होगा वर्ना याद रखो में वापस चला जाऊंगा।” हनीफ़ को मालूम था कि वो मु

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फूलों की साज़िश

7 अप्रैल 2022
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बाग़ में जितने फूल थे। सब के सब बाग़ी होगए। गुलाब के सीने में बग़ावत की आग भड़क रही थी। उस की एक एक रग आतिशीं जज़्बा के तहत फड़क रही थी। एक रोज़ उस ने अपनी कांटों भरी गर्दन उठाई और ग़ौर-ओ-फ़िक्र को बालाए ताक़

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फुंदने

7 अप्रैल 2022
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कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

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फाहा

7 अप्रैल 2022
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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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बग़ैर इजाज़त

7 अप्रैल 2022
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नईम टहलता टहलता एक बाग़ के अन्दर चला गया उस को वहां की फ़ज़ा बहुत पसंद आई घास के एक तख़्ते पर लेट कर उस ने ख़ुद कलामी शुरू कर दी। कैसी पुर-फ़ज़ा जगह है हैरत है कि आज तक मेरी नज़रों से ओझल रही नज़रें ओझल इ

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बदतमीज़ी

7 अप्रैल 2022
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“मेरी समझ में नहीं आता कि आप को कैसे समझाऊं” “जब कोई बात समझ में न आए तो उस को समझाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए” “आप तो बस हर बात पर गला घूँट देते हैं आप ने ये तो पूछ लिया होता कि मैं आप से क्या कहना

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पेशावर से लाहौर तक

20 अप्रैल 2022
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वो इंटर क्लास के ज़नाना डिब्बे से निकली उस के हाथ में छोटा सा अटैची केस था। जावेद पेशावर से उसे देखता चला आ रहा था। रावलपिंडी के स्टेशन पर गाड़ी काफ़ी देर ठहरी तो वो साथ वाले ज़नाना डिब्बे के पास से कई

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क़ीमे की बजाय बोटियाँ

20 अप्रैल 2022
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डाक्टर सईद मेरा हम-साया था उस का मकान मेरे मकान से ज़्यादा से ज़्यादा दो सौ गज़ के फ़ासले पर होगा। उस की ग्रांऊड फ़्लोर पर उस का मतब था। मैं कभी कभी वहां चला जाता एक दो घंटे की तफ़रीह हो जाती बड़ा बज़्लास

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ख़ाली बोतलें, ख़ाली डिब्बे

20 अप्रैल 2022
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ये हैरत मुझे अब भी है कि ख़ास तौर पर ख़ाली बोतलों और डिब्बों से मुजर्रद मर्दों को इतनी दिलचस्पी क्यूं होती है?...... मुजर्रद मर्दों से मेरी मुराद उन मर्दों से है जिन को आम तौर पर शादी से कोई दिलचस्पी

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ख़ुवाब-ए-ख़रगोश

20 अप्रैल 2022
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सुरय्या हंस रही थी। बे-तरह हंस रही थी। उस की नन्ही सी कमर इस के बाइस दुहरी होगई थी। उस की बड़ी बहन को बड़ा ग़ुस्सा आया। आगे बढ़ी तो सुरय्या पीछे हट गई। और कहा “जा मेरी बहन, बड़े ताक़ में से मेरी चूड़ियो

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गर्म सूट

20 अप्रैल 2022
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गंडा सिंह ने चूँकि एक ज़माने से अपने कपड़े तबदील नहीं किए थे। इस लिए पसीने के बाइस उन में एक अजीब क़िस्म की बू पैदा होगई थी जो ज़्यादा शिद्दत इख़तियार करने पर अब गंडा सिंह को कभी कभी उदास करदेती थी। उस

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चन्द मुकालमे

20 अप्रैल 2022
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“अस्सलाम-ओ-अलैकुम” “वाअलैकुम अस्सलाम” “कहीए मौलाना क्या हाल है” “अल्लाह का फ़ज़ल-ओ-करम है हर हाल में गुज़र रही है” “हज से कब वापस तशरीफ़ लाए” “जी आप की दुआ से एक हफ़्ता होगया है” “अ

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गोली

20 अप्रैल 2022
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शफ़क़त दोपहर को दफ़्तर से आया तो घर में मेहमान आए हुए थे। औरतें थीं जो बड़े कमरे में बैठी थीं। शफ़क़त की बीवी आईशा उन की मेहमान नवाज़ी में मसरूफ़ थी। जब शफ़क़त सहन में दाख़िल हुआ तो उस की बीवी बाहर निकली

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चूहे-दान

20 अप्रैल 2022
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शौकत को चूहे पकड़ने में बहुत महारत हासिल है। वो मुझ से कहा करता है ये एक फ़न है जिस को बाक़ायदा सीखना पड़ता है और सच्च पूछिए तो जो जो तरकीबें शौकत को चूहे पकड़ने के लिए याद हैं, उन से यही मालूम होता है क

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चोरी

20 अप्रैल 2022
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स्कूल के तीन चार लड़के अलाव के गिर्द हलक़ा बना कर बैठ गए। और उस बूढ़े आदमी से जो टाट पर बैठा अपने इस्तिख़वानी हाथ तापने की ख़ातिर अलाव की तरफ़ बढ़ाए था कहने लगे “बाबा जी कोई कहानी सनाईए?” मर्द-ए-मुअम्म

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ऊपर नीचे और दरमियान

20 अप्रैल 2022
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मियां साहब! बहुत देर के बाद आज मिल बैठने का इत्तिफ़ाक़ हुआ है। बेगम साहिबा! जी हाँ! मियां साहब! मस्रूफ़ियतें... बहुत पीछे हटता हूँ मगर नाअह्ल लोगों का ख़याल करके क़ौम की पेश की हुई ज़िम्मेदारिय

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क़र्ज़ की पीते थे

20 अप्रैल 2022
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एक जगह महफ़िल जमी थी। मिर्ज़ा ग़ालिब वहां से उकता कर उठे, बाहर हवादार मौजूद था। उसमें बैठे और अपने घर का रुख़ किया। हवादार से उतर कर जब दीवानख़ाने में दाख़िल हुए तो क्या देखते हैं कि मथुरादास महाजन बैठ

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कबूतरों वाला साईं

20 अप्रैल 2022
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पंजाब के एक सर्द देहात के तकिए में माई जीवां सुबह सवेरे एक ग़लाफ़ चढ़ी क़ब्र के पास ज़मीन के अंदर खुदे हुए गढ़े में बड़े बड़े उपलों से आग लगा रही है। सुबह के सर्द और मटियाले धुँदलके में जब वो अपनी पानी भर

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काली कली

20 अप्रैल 2022
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जब उस ने अपने दुश्मन के सीने में अपना छुरा पैवस्त किया और ज़मीन पर ढेर होगया। उस के सीने के ज़ख़्म से सुर्ख़ सुर्ख़ लहू का चशमा फूटने लगा और थोड़ी ही देर में वहां लहू का छोटा सा हौज़ बन गया। क़ातिल पास ख

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क़ासिम

20 अप्रैल 2022
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बावर्चीख़ाना की मटमैली फ़िज़ा में बिजली का अंधा सा बल्ब कमज़ोर रोशनी फैला रहा था। स्टोव पर पानी से भरी हुई केतली धरी थी। पानी का खोलाओ और स्टोव के हलक़ से निकलते हुए शोले मिल जुल कर मुसलसल शोर बरपा कररह

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बासित

20 अप्रैल 2022
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बासित बिल्कुल रज़ामंद नहीं था, लेकिन माँ के सामने उसकी कोई पेश न चली। अव्वल अव्वल तो उसको इतनी जल्दी शादी करने की कोई ख़्वाहिश नहीं थी, इसके अलावा वो लड़की भी उसे पसंद नहीं थी जिससे उसकी माँ उसकी शादी

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तीन मोटी औरतें

20 अप्रैल 2022
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एक का नाम मिसेज़ रिचमेन और दूसरी का नाम मिसेज़ सतलफ़ था। एक बेवा थी तो दूसरी दो शौहरों को तलाक़ दे चुकी थी। तीसरी का नाम मिस बेकन था। वो अभी नाकतख़दा थी। उन तीनों की उम्र चालीस के लगभग थी। और ज़िंदगी क

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लालटेन

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मेरा क़ियाम “बटोत” में गो मुख़्तसर था। लेकिन गूनागूं रुहानी मसर्रतों से पुर। मैंने उसकी सेहत अफ़्ज़ा मुक़ाम में जितने दिन गुज़ारे हैं उनके हर लम्हे की याद मेरे ज़ेहन का एक जुज़्व बन के रह गई है जो भुलाये

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क़ुदरत का उसूल

20 अप्रैल 2022
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क़ुदरत का ये उसूल है कि जिस चीज़ की मांग न रहे, वो ख़ुद-बख़ुद या तो रफ़्ता रफ़्ता बिलकुल नाबूद हो जाती है, या बहुत कमयाब अगर आप थोड़ी देर के लिए सोचें तो आप को मालूम हो जाएगा कि यहां से कितनी अजनास ग़ाय

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ख़त और उसका जवाब

20 अप्रैल 2022
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मंटो भाई ! तस्लीमात! मेरा नाम आप के लिए बिलकुल नया होगा। मैं कोई बहुत बड़ी अदीबा नहीं हूँ। बस कभी कभार अफ़साना लिख लेती हूँ और पढ़ कर फाड़ फेंकती हूँ। लेकिन अच्छे अदब को समझने की कोशिश ज़रूर करती हूँ

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ख़ुदा की क़सम

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उधर से मुसलमान और इधर से हिंदू अभी तक आ जा रहे थे। कैम्पों के कैंप भरे पड़े थे। जिनमें ज़रब-उल-मिस्ल के मुताबिक़ तिल धरने के लिए वाक़ई कोई जगह नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद उनमें ठूंसे जा रहे थे। ग़ल्ला न

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ख़ुशबू-दार तेल

20 अप्रैल 2022
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“आप का मिज़ाज अब कैसा है?” “ये तुम क्यों पूछ रही हो अच्छा भला हूँ मुझे क्या तकलीफ़ थी ” “तकलीफ़ तो आप को कभी नहीं हुई एक फ़क़त मैं हूँ जिस के साथ कोई न कोई तकलीफ़ या आरिज़ा चिमटा रहता है ” “य

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मम्मी

20 अप्रैल 2022
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नाम उसका मिसेज़ स्टेला जैक्सन था मगर सब उसे मम्मी कहते थे। दरम्याने क़द की अधेड़ उम्र की औरत थी। उसका ख़ाविंद जैक्सन पिछली से पिछली जंग-ए-अ’ज़ीम में मारा गया था, उसकी पेंशन स्टेला को क़रीब क़रीब दस बरस से

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इश्क़-ए-हक़ीक़ी

20 अप्रैल 2022
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इ’श्क़-ओ-मोहब्बत के बारे में अख़लाक़ का नज़रिया वही था जो अक्सर आ’शिकों और मोहब्बत करने वालों का होता है। वो रांझे पीर का चेला था। इ’श्क़ में मर जाना उसके नज़दीक एक अज़ीमुश्शान मौत मरना था। अख़लाक़ तीस

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यज़ीद

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सन सैंतालीस के हंगामे आए और गुज़र गए। बिल्कुल उसी तरह जिस मौसम में ख़िलाफ़-ए-मा’मूल चंद दिन ख़राब आएं और चले जाएं। ये नहीं कि करीम दाद, मौला की मर्ज़ी समझ कर ख़ामोश बैठा रहा। उसने उस तूफ़ान का मर्दाना

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उल्लू का पट्ठा

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क़ासिम सुबह सात बजे लिहाफ़ से बाहर निकला और ग़ुसलख़ाने की तरफ चला। रास्ते में, ये इसको ठीक तौर पर मालूम नहीं, सोने वाले कमरे में, सहन में या ग़ुसलख़ाने के अंदर उसके दिल में ये ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो किसी

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अब और कहने की ज़रुरत नहीं

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ये दुनिया भी अ’जीब-ओ-ग़रीब है... ख़ासकर आज का ज़माना। क़ानून को जिस तरह फ़रेब दिया जाता है, इसके मुतअ’ल्लिक़ शायद आपको ज़्यादा इल्म न हो। आजकल क़ानून एक बेमा’नी चीज़ बन कर रह गया है । इधर कोई नया क़ानून बनता

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नया क़ानून

20 अप्रैल 2022
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मंगू कोचवान अपने अड्डे में बहुत अक़लमंद आदमी समझा जाता था। गो उसकी तालीमी हैसियत सिफ़र के बराबर थी और उसने कभी स्कूल का मुँह भी नहीं देखा था लेकिन इसके बावजूद उसे दुनिया भर की चीज़ों का इल्म था। अड्ड

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