14 मई 2022
शनिवार
समय 8:30 शाम
मेरी प्यारी सहेली,
खुश रहने के लिए किसी कारण की आवश्यकता नहीं होती। हर कोई यह बात कहता है कितनी ही बार सुविचारों में भी यह बात पढ़ने को मिल जाती है।
आज स्टेशन पर इस बात को फली भूत होते देख लिया। कुछ नौजवान युवा पीढ़ी कंधे पर बस्ता थामें, प्लेटफार्म पर बैठे हुए थे। अचानक तभी सचखंड एक्सप्रेस के आने की घोषणा हुई। न जाने क्यों एक साथ वे सभी ओए होए ओए होए कहने लगी।
उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था मानो उनकी लॉटरी लग गई हो। इतना खुश तो कई बार इंसान बहुत कुछ मिलने के बाद भी नहीं होता।
खुशी देखनी है तो नन्हे बच्चे की आंखों में देखनी चाहिए। हंसता, मुस्कुराता हुआ उसका चेहरा मन को कितनी राहत देता है। मन को सुकून देने वाले लम्हें ही खुशी है।
कुछ बहुत कुछ पाकर भी खुश नहीं हैं और कोई कुछ भी ना होते हुए भी खुश हैं। किसी को देने में खुशी मिलती है तो किसी को छीनने में।
कोई दान देकर खुश होता है, तो किसी को बाजार से नई नई चीज़े खरीद के खुशी मिलती है।
किसी को सब कुछ पा लेने से भी खुशी नहीं मिलती और किसी को अपने कमाये हुए पैसे अपने परिवार पर ख़र्च करते हुए।
आज कल अपने परिवार को अच्छी परवरिश देना घर मे सकून शांति से जीना भी खुशी है।
गर्मी की छुट्टियों में नानी के घर जाने का सिलसिला कोरोना के बाद से थोड़ा कम हो गया था। किन्तु इसने फिर से रफ्तार पकड़ ली है।
नानी के घर का पूरा साल इंतजार रहता था। बचपन में कितनी ही कहानियां, कविताएं नानी के घर से संबंधित पढ़ते थे। हां आज भी याद है एक कहानी।
जितना मुझे याद है एक मैंने बच्चे और नानी से संबंधित थी यह कहानी। जिसमें वह बच्चा नानी के घर जाता है। लेकिन जाने के लिए उसे जंगल का रास्ता चुनना होता है।
जंगल में जंगली जानवरों से बचने के लिए वह एक ढोलकी बनवाता है। लेकिन ढोलकी को अंदर से पोला रखवाता है और उसके अंदर घुसकर लुढ़कते लुढ़कते जंगल के रास्ते से होता हुआ नानी के घर जाने की तैयारी करता है।
जंगल में लोमड़ी, सियार और शेर उसे मिलते हैं। किंतु जब भी जंगली जानवरों उसे रोकते हैं, वह कहता है
नानी के घर जावा दे,
खूब मलाई खावा दे।
मोटा होकर आवा दे,
फिर खावे तो खा लीजो।।
कहता हुआ वह जाता है और नानी के घर पहुंच जाता है।
बचपन में बच्चों को सुनाई जाने वाली कहानियां सदैव ही बच्चों को गुदगदाती है।
हमारे पास टाइम मशीन होता तो शायद हम दोबारा बचपन में लौट जाते। खुशियां ही खुशियां चहूं ओर। परेशानी दुःख का तो कहीं कोई नामोनिशान तक नहीं है।
कई बार जगजीत सिंह की वह ग़ज़ल याद हो आती है -
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो,
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी।
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन,
वो काग़ज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी।।
अभी के लिए इतना ही फिर मिलते हैं।
शुभरात्रि🙏🏼