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दीपगीत

महादेवी वर्मा

4 अध्याय
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2 पाठक
24 फरवरी 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

दीपगीत महादेवी वर्मा की दीपक संबंधी कविताओं का संग्रह है। दीप महादेवी वर्मा का प्रिय प्रतीक है। डॉ शुभदा वांजपे के विचार से दीप महादेवी वर्मा का महत्त्वपूर्ण प्रतीक है। प्रो श्याम मिश्र महादेवी की कविता में दीपक को साधनारत आत्मा का प्रतीक मानते हैं और प्रकाशक का कहना है कि अंधेरे में आलोक को नए नए अर्थ देती दीपगीत की कविताएँ मानवीय करुणा को रेखांकित करती हैं। निःसंदेह इन कविताओं के दीपकों में आशा की किरन और तिमिर से जूझने का साहस दिखाई देता है। उनकी कविताएं हिन्दी साहित्य की एक सार्थक कालजयी उपलब्धि हैं। छायावाद की इस कवयित्री की हिन्दी साहित्य में अपनी एक अनूठी पहचान है। ‘दीप’ महादेवी जी का प्रिय प्रतीक था। अंधेरे में आलोक को नए-नए अर्थ देतीं ‘दीपगीत’ की कविताएं मानवीय करुणा को रेखांकित करती हैं। 

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पुस्तक के भाग

1

बाँच ली मैंने व्यथा

24 फरवरी 2022
2
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बाँच ली मैंने व्यथा की बिन लिखी पाती नयन में ! मिट गए पदचिह्न जिन पर हार छालों ने लिखी थी, खो गए संकल्प जिन पर राख सपनों की बिछी थी, आज जिस आलोक ने सबको मुखर चित्रित किया है, जल उठा वह कौन-सा दी

2

दीप मेरे

24 फरवरी 2022
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दीप मेरे जल अकम्पित, धुल अचंचल ! सिन्धु का उच्छ्वास घन है, तड़ित् तम का विकल मन है, भीति क्या नभ है व्यथा का आँसुओं से सिक्त अंचल ! स्वर-प्रकम्पित कर दिशाएँ, मीड़ सब भू की शिराएँ, गा रहे आँध

3

बुझे दीपक जला लूँ

24 फरवरी 2022
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सब बुझे दीपक जला लूँ! घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूँ! क्षितिज-कारा तोड़ कर अब गा उठी उन्मत आँधी, अब घटाओं में न रुकती लास-तन्मय तड़ित् बाँधी, धूलि की इस वीण पर मैं तार हर तृण का मिला ल

4

शेष कितनी रात ?

24 फरवरी 2022
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पूछता क्यों शेष कितनी रात ? अमर सम्पुट में ढला तू, छू नखों की कांति चिर संकेत पर जिन के जला तू, स्निग्ध सुधि जिन की लिये कज्जल-दिशा में हँस चला तू ! परिधि बन घेरे तुझे वे उँगलियाँ अवदात ! झर गए ख

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