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देव, अवतरण करो धरा-मन में क्षण, अनुक्षण

30 अप्रैल 2022

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देव, अवतरण करो धरा-मन में क्षण, अनुक्षण,

नव भारत के नवजीवन बन, नव मानवपन!

जाति ऐक्य के ध्रुव प्रतीक, जग वंद्य महात्मन्,

हिंदू मुस्लिम बढ़ें तुम्हारे युगल चरण बन!


भावी कहती कानों में भर गोपन मर्मर,

हिंदू मुस्लिम नहीं रहेंगे भारत के नर!

मानव होंगे वे, नव मानवता से मंडित,

मध्य युगों की कारा से भू पर चल विस्तृत!


जाति द्वेष से मुक्त, मनुजता के प्रति जीवित,

विकसित होंगे वे, उच्चादर्शों से प्रेरित!

भू जीवन निर्माण करेंगे, शिक्षित जन मत,

बापू में हो युक्त, युक्त हो जग से युगपत्!


नव युग के चेतना ज्वार में कर अवगाहन

नव मन, नव जीवन-सौंदर्य करेंगे धारण!

शब्द mic
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रचनाएँ
खादी के फूल
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सामाजिक-राजनैतिक कविताओं (बंगाल का काल, खादी के फूल, सूत की माला, धार के इधर-उधर, आरती और अंगारे, बुद्ध और नाचघर, त्रिभंगिमा, चार खेमे चौंसठ खूँटे, दो चट्टानें, जाल समेटा) तक आते-आते बच्चन का यह काव्य-नायक मनुष्य अपने व्यक्तित्व के रूपांतरण और समाजीकरण में सफल हो जाता है ; हरिवंशराय बच्चन जो कि हिन्दी के विख्यात कवि थे, कौन अरे वो ही अपने एक्टर अमिताभ बच्चन जी के बाबूजी | उन्होनें बहुत सी कविताएं और रचनायें लिखीं जिनमें से मुख्य हैं मधुशाला, निशा निमंत्रण, सतरंगिनी, खादी के फूल, दो चट्टानें, आरती और अंगारे, मधुबाला, मधुकलश, प्रणय पत्रिका आदि |
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