देवदास' शरतचंद्र की सबसे मशहूर कहानियों में से एक है। मेरी बहुत पहले से इच्छा थी कि देवदास पढूं। आखिरकार मुझे इस किताब को पढ़ने का मौका मिल गया। यह कहानी है देवदास, पार्वती (पारो) और चंद्रमुखी की। बचपन के प्यार को देवदास समझ नहीं पाता है पर जब पारो उससे दूर होती है तब उसे आभास होता है कि उसने क्या खोया है। दरअसल देवदास हम लोगों के जैसा ही है। दो धाराओं में फंसा हुआ विचलित प्राणी, जो खुद को संभाल नहीं पाता है, जो विद्रोह कर रहा है पर किससे यह उसे खुद भी मालूम नहीं है। पारो एक सशक्त लड़की है, जिसे आगे बढ़ना आता है पर पारो भी फंसी होती है। वह प्यार जो उसे बचपन में देव से हुआ था, वह ना चाहते हुए भी उसे भुला नहीं पाती है। जब देवदास अपने गांव लौटता है, जो अब उन्नीस साल का एक सुंदर लड़का है, तो पारो उससे शादी करने के लिए कहती है। लेकिन देवदास अपने माता-पिता के विरोध के कारण पारो से शादी नहीं कर पाता है आख़िर क्या होगा पढ़िए इस उपन्यास में...।
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