shabd-logo

दूधिया चाँदनी साँवली हो गई

18 अप्रैल 2022

151 बार देखा गया 151

साँस के प्रश्न-चिन्हों, लिखी स्वर-कथा

क्या व्यथा में घुली, बावली हो गई

तारकों से मिली, चन्द्र को चूमती

दूधिया चाँदनी साँवली हो गई।

खेल खेली खुली, मंजरी से मिली

यों कली बेकली की छटा हो गई

वृक्ष की बाँह से छाँह आई उतर

खेलते फूल पर वह घटा हो गई।

वृत्त लड़ियाँ बना, वे चटकती हुई

खूब चिड़ियाँ चली, शीश पै छा गई

वे बिना रूप वाली, रसीली, शुभा

नन्दिता, वन्दिता, वायु को भा गई।

चूँ चहक चुपचपाई फुदक फूल पर

क्या कहा वृक्ष ने, ये समा क्यों गई

बोलती वृन्त पर ये कहाँ सो गई

चुप रहीं तो भला प्यार को पा गई।

वह कहाँ बज उठी श्याम की बाँसुरी

बोल के झूलने झूल लहरा उठी

वह गगन, यह पवन, यह जलन, यह मिलन

नेह की डाल से रागिनी गा उठी।

ये शिखर, ये अँगुलियाँ उठीं भूमि की

क्या हुआ, किसलिए तिलमिलाने लगी

साँस क्यों आस से सुर मिलाने लगी

प्यास क्यों त्रास से दूर जाने लगी।

शीष के ये खिले वृन्द मकरन्द के

लो चढ़ायें नगाधीश के नाथ को

द्रुत उठायें, चलायें, चढ़ायें, मगन

हाथ में हाथ ले, माथ पर माथ को।

17
रचनाएँ
प्रमुख रचनाएँ
0.0
व्याख्या-कवि अपनी देशप्रेम की भावना को पुष्प की अभिलाषा के रूप में व्यक्त करते हुए कहता है कि मेरी इच्छा किसी देवबाला के आभूषणों में गूंथे जाने की नहीं है। मेरी इच्छा यह भी नहीं है कि मैं प्रेमियों को प्रसन्न करने के लिए प्रेमी द्वारा बनायी गयी माला में पिरोया जाऊँ और प्रेमिका के मन को आकर्षित करूं।
1

पुष्प की अभिलाषा

18 अप्रैल 2022
0
0
0

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ, चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ चाह नहीं, देवों के सिर पर, चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ। मुझ

2

दीप से दीप जले

18 अप्रैल 2022
0
0
0

सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें।। लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने में लक्ष्मी बँट-बँट बढ़ती आने-जाने में लक्ष्मी का आगमन अँधेरी रातों में लक्ष्मी श्रम के साथ घ

3

प्यारे भारत देश

18 अप्रैल 2022
0
0
0

प्यारे भारत देश गगन-गगन तेरा यश फहरा पवन-पवन तेरा बल गहरा क्षिति-जल-नभ पर डाल हिंडोले चरण-चरण संचरण सुनहरा ओ ऋषियों के त्वेष प्यारे भारत देश।। वेदों से बलिदानों तक जो होड़ लगी प्रथम प्रभ

4

वेणु लो, गूँजे धरा

18 अप्रैल 2022
0
0
0

वेणु लो, गूँजे धरा मेरे सलोने श्याम एशिया की गोपियों ने वेणि बाँधी है गूँजते हों गान,गिरते हों अमित अभिमान तारकों-सी नृत्य ने बारात साधी है। युग-धरा से दृग-धरा तक खींच मधुर लकीर उठ पड़े हैं चरण

5

अमर राष्ट्र

18 अप्रैल 2022
0
0
0

छोड़ चले, ले तेरी कुटिया यह लुटिया-डोरी ले अपनी फिर वह पापड़ नहीं बेलने फिर वह माल पडे न जपनी। यह जागृति तेरी तू ले-ले मुझको मेरा दे-दे सपना तेरे शीतल सिंहासन से सुखकर सौ युग ज्वाला तपना।

6

दूधिया चाँदनी साँवली हो गई

18 अप्रैल 2022
0
0
0

साँस के प्रश्न-चिन्हों, लिखी स्वर-कथा क्या व्यथा में घुली, बावली हो गई तारकों से मिली, चन्द्र को चूमती दूधिया चाँदनी साँवली हो गई। खेल खेली खुली, मंजरी से मिली यों कली बेकली की छटा हो गई वृक्ष

7

एक तुम हो

18 अप्रैल 2022
0
0
0

गगन पर दो सितारे: एक तुम हो धरा पर दो चरण हैं: एक तुम हो ‘त्रिवेणी’ दो नदी हैं! एक तुम हो हिमालय दो शिखर है: एक तुम हो रहे साक्षी लहरता सिंधु मेरा कि भारत हो धरा का बिंदु मेरा । कला के जोड़-

8

वे तुम्हारे बोल

18 अप्रैल 2022
0
0
0

वे तुम्हारे बोल वह तुम्हारा प्यार, चुम्बन वह तुम्हारा स्नेह-सिहरन वे तुम्हारे बोल वे अनमोल मोती वे रजत-क्षण वह तुम्हारे आँसुओं के बिन्दु वे लोने सरोवर बिन्दुओं में प्रेम के भगवान का संगीत भ

9

कल-कल स्वर में बोल उठी है

18 अप्रैल 2022
0
0
0

नयी-नयी कोपलें, नयी कलियों से करती जोरा-जोरीचुप बोलना, खोलना पंखुड़ि, गंध बह उठा चोरी-चोरी। उस सुदूर झरने पर जाकर हरने के दल पानी पीतेनिशि की प्रेम-कहानी पीते, शशि की नव-अगवानी पीते। उस अलमस्त पवन क

10

हाँ, याद तुम्हारी आती थी

18 अप्रैल 2022
0
0
0

हाँ, याद तुम्हारी आती थी हाँ, याद तुम्हारी भाती थी एक तूली थी, जो पुतली पर तसवीर सी खींचे जाती थी। कुछ दूख सी जी में उठती थी मैं सूख सी जी में उठती थी जब तुम न दिखाई देते थे मनसूबे फीके होते

11

बेटी की विदा

18 अप्रैल 2022
0
0
0

आज बेटी जा रही है मिलन और वियोग की दुनिया नवीन बसा रही है। मिलन यह जीवन प्रकाश वियोग यह युग का अँधेरा उभय दिशि कादम्बिनी, अपना अमृत बरसा रही है। यह क्या, कि उस घर में बजे थे, वे तुम्हारे प्रथ

12

कैसी है पहिचान तुम्हारी

18 अप्रैल 2022
0
0
0

कैसी है पहिचान तुम्हारी राह भूलने पर मिलते हो। पथरा चलीं पुतलियाँ, मैंने विविध धुनों में कितना गाया दायें-बायें, ऊपर-नीचे दूर-पास तुमको कब पाया धन्य-कुसुम ! पाषाणों पर ही तुम खिलते हो तो खि

13

रोटियों की जय

18 अप्रैल 2022
0
0
0

राम की जय पर खड़ी है रोटियों की जय त्याग कि कहने लग गया लँगोटियों की जय हाथ के तज काम हों आदर्श के बस काम राम के बस काम क्यों? हों काम के बस राम। अन्ध-भाषा अन्ध-भावों से भरा हो देश ईश का सिर झु

14

जलियाँ वाला की वेदी

18 अप्रैल 2022
0
0
0

नहीं लिया हथियार हाथ में, नहीं किया कोई प्रतिकार अत्याचार न होने देंगे बस इतनी ही थी मनुहार सत्याग्रह के सैनिक थे ये, सब सह कर रह कर उपवास वास बन्दियों मे स्वीकृत था, हृदय-देश पर था विश्वास मुरझ

15

जलियाँ वाला की वेदी

18 अप्रैल 2022
0
0
0

नहीं लिया हथियार हाथ में, नहीं किया कोई प्रतिकार अत्याचार न होने देंगे बस इतनी ही थी मनुहार सत्याग्रह के सैनिक थे ये, सब सह कर रह कर उपवास वास बन्दियों मे स्वीकृत था, हृदय-देश पर था विश्वास मुरझ

16

बोल तो किसके लिए मैं

18 अप्रैल 2022
0
0
0

बोल तो किसके लिए मैं गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ? प्राणों की मसोस, गीतों की कड़ियाँ बन-बन रह जाती हैं आँखों की बूँदें बूँदों पर चढ़-चढ़ उमड़-घुमड़ आती हैं रे निठुर किस के लिए मैं आँसुओं में प्यार खो

17

संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं

18 अप्रैल 2022
0
0
0

सन्ध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं। सूरज की सौ-सौ बात नहीं भाती मुझको।। बोल-बोल में बोल उठी मन की चिड़िया नभ के ऊँचे पर उड़ जाना है भला-भला पंखों की सर-सर कि पवन की सन-सन पर चढ़ता हो या सूरज

---

किताब पढ़िए