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दूसरा बाब-हसद बुरी बला है

8 फरवरी 2022

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लाल बदरीप्रसाद साहब अमृतराय के वालिद मरहूम के दोस्तों में थे और खान्दी इक्तिदार, तमव्वुल और एजाज के लिहाज से अगर उन पर फ़ौकियत न रखते थे तो हेठ भी न थे। उन्होंने अपने दोस्त मरहूम की जिन्दगी ही में अमृतराय को अपनी बेटी के लिए मुन्तख़ब कर लिया था अगर वो दो बरस भी जिन्दा रहते तो बेटे का सेहरा देख लेते। मगर जिन्दगी ने वफा न की, चल बसे। हाँ, दमे मर्ग उनकी आखिरी नसीहत ये थी कि बेटा, मैंने तुम्हारे वास्ते बीवी तजवीज़ की है, उससे ज़रुर शादी करना। अमृतराय ने भी इसका पक्का वादा किया था मगर इस वाकये को आज पाँच बरस बीत चुके थे। इस बीच में उन्होंने वकालत भी पास कर ली थी और अच्छे खासे अंग्रेज बन बैठे थे। इसी तबदीले तर्जे मुआशरत ने पब्लिक की नज़रों में उनका विकार कम कर दिया था। बर अक्स इसके लाला बदरीप्रसाद पक्के हिन्दू थे, साल भर बारहों मास उनके यहाँ भागवत की कथा हुआ करती थी, कोई दिन ऐसा न जाता कि भंडारे मे सौ-पचास साधुओं का जेवनार न बनता हो। इन फ़य्याजियों ने उनको सारे शहर में हरदिल-अज़ीज बना दिया था। हर रोज अलस्सबाह वो पैदल गंगा जी के स्नाना को जाया करते और रास्ते में जितने आदमी उनकी बुजुर्गाना सूरत देखते, सरे नियाज़ ख़म करते और आपस में कानाफुस्की करते वक्त़ दुआ करते कि यह गरीबों का दस्तगीर यूँ ही सरसब्ज़ रहे।
गो मुंशी बदरीप्रसाद अमृतराय की अंग्रेजियत को जिल्लत व हिकारत की निगाहों से देखते थे और बार उनको समझाकर हार भी चुके थे मगर चूँकि उनकी अपनी जान से अज़ीज बेटी प्रेमा के लिए मुन्तख़ब कर चुके थे इसलिए मजबूर थे, क्योंकि उनको उस शहर में ऐसा होनहार, खुशरु, बाख़बर और अहले-सर्वत दामाद नहीं मिल सकता था और दूसरे शहर में वो अपनी लड़की की शादी किया नहीं चाहते थे। इसी ख़याल से कि लड़की अमृतराय की मर्जी के मुआफ़िक हो उसको अँग्रेंज़ी व फ़ारसी और हिन्दी की थोड़ी-थोड़ी तालीम दी गयी थी और उन इक्तसाबी कमालात पर फ़िरती अतियात सोने में सुहागा थे। सारे शहर की जहाँदीदा और नुक्तारस मुत्तफ़िकुल बयान थी कि ऐसी हसीन व खुशरु लड़की आज तक देखने में नही आयी। और जब कभी वो सिगांर करके किसी तक़रीब में जाती थी तो हसीन औरतें बावजूद हसद के उके पैरों तले आँखें बिछाती थी। दूल्हा-दूल्हन दोनों एक-दूसरे के आशिके जार थे। इधर एक साल से दोनों मे खतो-किताब भी होने लगी थी। गो मुंशी बदरीप्रसाद साहब इस चिठियाव क सख्त बरखिलाफ थे मगर अपने बड़े बेटे की सिफारिश से मजबूर रहते जो नौजवान होने के बाइस इन चाहनेवालों के ख़यालात का कुछ अंदाज कर सकता था।
इस शादी का चर्चा अर्से से सारे में था। जब चन्द भलोमानस इकट्ठा बैठते तो बातचीत होने लगती की क्या लाला साहब अपनी बेटी की शादी उस ईसाई से करेगे? क्या दूसरा घर नहीं है। मगर जब उनके बराबरवालो घरानों को गिनते तो मायूस हो जाते। अब शादी के दिन बहुत करब आ गये थे। लाल साहब ने अमृतराय को मजबूर किया था अब मैं कुछ दम का और मेहमान हूँ, मेरे जीते-जी तुम इस जवाहर को अपने कब्जें में कर लो। अमृतराय ने भी मुस्तैदी जाहिर की थी, गो ये वादा करा लिया था। कि मैं बेमानी रस्मियात में से एक भी न अदा करुँग। लाला साहब ने तूअन व करहन इस बात को भी मुजूर कर लिया था। तैयारियाँ हो रही थीं। दफ़अतन आज लाला साहब को मोनबर खबर मिली कि अमृतराय ईसाई हो गया है और किसी मेम से शादी यिका चाहता हैं।
जैसा किसी हरे-भरे दरख्त पर बिजली गिर पड़ी, यही हाल लाला साहब का हुआ। पीरानासाली की वजह से आज़ा मुज़महिल हो रहे थे ये ख़बर मिली तो उनके दिल पर ऐसी चोट लगी। कि सदमे को बर्दाश्त न कर सके और पछाड़ा खाकर गिर पड़े। उनका बेहोश होना था कि सारा भीतर-बाहर एक हो गया। तमाम नौकर-चाकर, खेश-ओ-अकरिब इधर-उधर से आकर इकट्ठे हो गये। क्या हुआ। क्या हुआ? अब हर शख्स कहता फिरता है कि अमृतराय ईसाई हो है, उसी सदमे से लाला साहब की ये हालत हो गयी है। बाहर से दम के दम में अन्दर ख़बर हो गयी। लाला बदरीप्रसाद की बीवी बेचारी अरसे से बीमार थीं और उन्हीं का इसरार था कि बेटी की शादी जहाँ तक जल्द हा जाए अच्छा है। गो पुराने ख़यालात की औरत थीं और शादी-ब्याह के तमाम मरासिम और बेटी की हया व शर्म के पुराने ख़यालात उनके दिल में भरे हुए थे, मगर जब से उन्होंने अमृतराय को एक बार सहन में देख लिया था उसी वक्त़ से उनकी ये धुन सवार थी कि मेरी बेटी की शादी हो तो उन्हीं से हो। बेचारी बैठी हुई अपना प्यारी बेटी से बातें कर रही थी कि दफ़अतन बाहर से यह खबर पहुँची। सुनते ही तो माँ के तो होश उड़ गये। वो बेचारी अमृतराय को अपना दमाद समझने लगी थी। और कुछ तो न हो सका अपनी बेटी को गले लगाकर ज़ार-ज़ार रोने लगी और प्रेमा भी बावजूद हज़ार के जब्द न कर सकी। हाय, उसके बरसों के अरमान इकबारगी ख़ाक में मिल गये उसको रोने की ताब न थी। एक हौलदिल-सा हो गया। अपनी मुँह से सिर्फ इतना निकाला-नारायण, कैसे जिऊँगी यह कहते—कहते उसके भी होश जाते रहे। तमाम घर की लौंडियाँ इकट्ठी हो गयीं। पंखा झला जाने लगा। अमृतराय की फ़र्जी हिमाक़त पर भीतर—बाहर अफ़सोस किया जा राह था। प्रेमा के भाई साहब को इस बात का इकबारगी यक़ीन न हुआ, मगर चूँकि ये बात बाबू दाननाथ की ज़बानी सुनी थी और दाननाथ की बातों को हमेशा से सच मानते आये थे, शक का कोई मौका न रह गया। हाँ इतना अलबत्ता हुआ कि जरा से वाकये ने हज़ारों ज़बानों पर जारी होकर और ही सूरत अख्तियार कर ली थी। दाननाथ ने सिर्फ इतना कहा था कि बाबू अमृतराय की नियत कुछ डॉँवाडोल मालूम होती है। वो रिफार्म की तरफ झुके हुए हैं। इसकी एक सादी-सी बात को लाला बदरीप्रसाद ने ईसाइत समझ लिया था और घर-भर में इसी पर कोहराम मचा हुआ था।
जब इस हादसे की खबर मुहल्ले में पहुँची तो हमदर्दी के लिहाज़से बहुत सी औरतें इकट्ठी हो गयीं मगर किसी से कोई इलाज न बन पड़ा। दफ़अतन एक नौजवान औरत आती हुई दिखायी दी। उसको देखते ही सारी औरतों ने गुल मचाया—लो, पूर्णा आ गयी। अब बच्ची बहुत जल्द होश मे आयी जाती है।
पूर्णा एक ब्रह्मणी थी। बरस बीस एक का सिन था। उसकी शादी बंतकुमार से हुई थी जो किसी अंग्रेजी दफ्तर में क्लर्क थे। दोनों मियाँ-बीवी पड़ोसी ही में रहते थे और दस बजे दिन को जब पंडित जी दफ्तर चले जाते तो पूर्णा तनहाई से घरबराकर प्रेमा के पास चली आती और दोनों में राज़ों-नियाज़ की बातें शाम तक हुआ करतीं। चुनांचे दोनों सखियों में हद दर्जें की मुहब्बत हो गयी थी। पूर्णा गो एक ग़रीब घराने की लड़की थी और शादी भी एक मामूली जगह में हुई थी मगर फ़ितरतन निहायत सलीक़ामन्द, जूद-संजीदा-मिज़ाज और हरदिल अज़ीज औरत थी। उसने आते ही तमाम औरतों से कहा—हट जाओ, अभी दम के दम में उनको होश आया जाता है। मजमा हटाकर उसने फ़ौरन प्रेमा को अतरियात सुँघायें, केवड़े और गुलाब का छींटा मुँह पर दिलाया, आहिस्ता-आहिस्ता उसके तलवे सहलाये। सारी खिड़कियाँ खुलवा दीं। जब दिमाग पर सर्दी पहुँची तो प्रेमा ने आँखें खोल दीं और इशारे से कहा—तुम लोग हट जाओ.मैं अचछी हूँ।
औरतों के जानमें जान आयी। सब अमृतराज कोकोसती और प्रेमा के सोहाग बढने की दुआ करती अपने-अपने घरकोसिधारीं। सिर्फ पूर्णा रह गयी। दोनों सहेलियों में बातें होने लगी ।
पूर्णा –प्यारी प्रेमा, आँखें खोलो ये क्या गत बना रक्खी है ?
प्रेमानेनिहायत गिरी हुई आबाज में जवाब दिया-हाय सखी.मेरें तो सब अरमान खाक में मिल गये ।
पूर्णा –प्यारी ऐसी बातें न करो, तुम जरा उठ तो बैठो। ये अब बताओ तुमको ये खबर कैसी मिली ।
प्रेमा- कछ न पूछो सखी, मैं बड़ी बदकिस्मत हूँ (रोकर) हाय, दिल भर आता है, मैं कैसे जिऊँगी ?
पूर्णा –प्यारी, जरा दिलको ढाढ़स दो । मैं अभी सब पता लगाये देती हूँ। बाबु अमृतरय के निस्बत सजो कुछ कहा गया है वोसब झूठ है, किसी अनदेख ने यह पाखण्ड़ फैलाया है।
प्रेमा-सखी तुम्हारें मुँह में घी शक्कर ? तुम्हारी बातें सब सच हों, मगर हाय, कोई मुझें उस जालिम से एक दम के लिये मिला दे । हाँ सखी, एक दम के लिए उस कठकलेजे को पा जाऊँ तों मेरी जिन्दिगी सुफल हो जाए फिर मुझे मरने का अफसोस न रहे।
पूर्णा-प्यारी, ये क्या बहकी –बहकी बातें करती हो। बाबू अमृतराय ने हरगिज ऐसा न किया होगा। मुमकिन नहीं कि वो तुम्हारी मुहब्बत न करें। मैं उनको खूब जानती हूँ । मैने अपने घरके लोगों को बार-2कहते हुए सुनाहै कि अम्रतराय को अगर दुनिया में किसी से मुहब्बत है तो प्रेमा से ।
प्रेमा- प्यारी, अब इन बातों पर विश्वास नहीं आता । मैं कैसे जानूँ कि सउनको मुझसे मुहब्बत है। आज चार बरस हो गये, हाय मुझे तो एक एक दिन काटना दूभर हो जाता है और वहाँ खबर ही नहीं होती । अगरमें खुद मुख्यतार होती तो अब तक हमारा रच गया होता । बर्ना उनको देखो कि सालों से टालते चले आते हैं । प्यारी पूर्णा, मुझे बाज बक्त उनके इस टालमटोल पर ऐसा गुस्सा आता है कि तुमसे क्या कहँ मगर अफसोस, दिल कम्बख्त बेहया है।
यहाँ अभी यही बातें हो रही थीं कि बाबू कमलाप्रसाद (प्रेमा के भाई) कमरे में दाखिल हुए। उनको देखते ही पूर्णा ने भी घूँघट निकाल ली और प्रेमा ने भी झट आँखों से आँसू पोंछ लिये। कमलाप्रसाद ने आते ही –प्रेमा तुमेभी कैसी नादान हो सय। ऐसी बातों पर तुमको यकायक यकीन क्योंकर आ गया?
इतना सुनना था कि प्रेमा का चेहरा बश्शाश हो गया। फर्ते खुशी से आँखे चमकने लगीं और पूर्णा ने भी अहिस्ता से उसकी एक ऊँगली दबायी। अब दोनों मुन्तजिर हो गयीं कि ताजी खबर क्या मिलेगी।
कमलाप्रसाद –बात सिर्फ इतनी थी कि अभी कोई दो घण्टे हुए, बाबू दाननाथ तशरीफ लाये थे। मुझसे और उनसे बातें हो रही थी। असनाए तकरीर में शादी ब्याह का जिक्र छिड़गया तो उन्होने कहा कि मुझे तो बाबू अम्रतराय इरादे इस साल भी मुस्तकिल नहीं मालूम होते हैं। वो शायद रिफार्म पाट्री में दाखिल होनेबाले हैं। बस इतनी सी बात का लोगों ने सबतगड़ बना दिया। लाला जी उधर बेहोश होगर गिर पड़े।अब तक उनके सम्हालूँ कि ससारे घर में ईसाई हो गये, ईसाई हो गये कागुल मच गया। ईसाईहोना क्या कोई दिल्लगी है? औरफिर उनको जरुरत ही क्या है ईसाई होने की? पूजा-पाठ वो करतेही नहीं, शराबव कवाब से उनको कतई नफरत है नहीं हौ तो कुछ यूँही सी रगबत है। बँगले में रहते ही हैं, बावर्ची का पकाया खाते ही है, छूत –विचार मानते ही नहीं तो अब उनको कुत्ते ने काटा है कि खामखाई ईसाई होकर नक्कूक बनें। ऐसी बेसिर –पैर की बातों पर यकीन नहीं करना चाहिये। लो, अब रंज-कुलफत को धो डालों। हँसी-खुशी बात चीत करो। मुझे तम्हारें इसरोने –धोने से सख्त अफसोस हुआ। येकहकर बाबू कमला प्रसाद बाहर चले गये और पूर्णा ने हँस कर कहा –सुना कुछ?कहती थी कि ये सब लोगों ने पाखंड फैलाया है, लो अब मुँह मीठा कराओ। प्रेमा ने फर्ते –मसर्रत से पूर्णा को सीने से लगाकर खूब दबाया, उसके रुखसारों के बोसे लिये और बोली –मुँह मीठा हुआ या और लोगीं ?
पूर्णा – इन मिठाईयों से बाबू अमृतराय का मुँह मीठा होगा। मगर सखी, इस मनहूस खबर ने तूम्हारे थोड़ी देर तक परेशान किया तो क्या, तुम्हारी कलई खुल गयी। सारे मुहल्ले में तुम्हारे बेहोश हो जाने की खबरें उड रहीं हैं और नहीं मालूम सउस में क्या क्या काट-छॉँट की गयी है । क्यूँ अब तो न लोगीं दून की । अब आज ही मैं अम्रतराय को सब बातें लिख भेजती हूँ । देखो केसा मजा आता है।
प्रेमा- (शर्माकर) अच्छा रहने दीलिए ये सब दिल्लगी। ईश्वर जाने अगर तुमने आज की कोई बात कही तोफिर तुमसे कभी न बोलूँगी ।
पूर्णा –बला से न बोलोगी, कुछ मैं तुम्हारी आशिक तो नही बस इतना ही लिख दूँगी कि प्रेमा..
प्रेमा-(बात काटकर) अच्छा लिखियेगा तो देखूँगी । पण्डिकत जी से कहकर वह दुर्गत कराऊँगी कि सारी शराशरत भूल जाओ। पण्डित जी ने तुमको शोख बनार रक्खा है बर्ना तुम मेरी बीहन होतीं तो खूब ठीक बनाती।
अभी दोनों सखियाँ जी भरकर खुश न होने पायी थीं कि आसमान ने फिर बेवफाई की। बाबू कमलाप्रसाद की बीवी अपनी ननद से खुदा बास्ते को जला करती है। अपने सास ससुर का हत्ता कि शोहर से भी नाराज रहतीं कि प्रेमा में कौन से चाँद लगे हैं कि सारा कुनबा उन पर फिदा होनेको तैयार है। मुझ्में और उनमें फर्क ही क्या है? यहीं न कि वह वहुत गोरी है और मैं उतनी गोरी नहीं हूँ । शक्ल –ओ सूरत मेरी उनसे खराब नहीं। हाँ मैं पढी –लिखी नहीं हूँ क्या मुझे नौकरी-चाकरी करना है । और न मुझमें कस्बियों के से कपड़ पहनने की आदत है, ऐसी बेगैरत लड़की, अभी शादी नहीं हुई मगर आपस में चिटठी –पत्तर होता है, तस्वीरें जाती हैं तोहफे आते हैं, हरजाइयों में भी ऐसी बेशर्मी न होगीं और ऐसी ही कुलवन्ती को सारा कुनबा प्यार करता है, सब अंधे हो गये हैं ।
इन्हीं असबाब से वो गरीब प्रेम से जला करती थीं। बोलती थीं तो रंजन ।मगर प्रेमा अपनी खुशमिजाजी से उनकीबातों का ध्यान में नहीं लाती थी । हत्तुलवसा उनको खुश रख्नने की कोशिश करती थी। आज जब उसने सुना कि अमृतराय ईसाई हो गये हैं तो जामे में फूली न समयी। बाबू कमलाप्रसाद ज्यूँ ही घर में आये उसने उनसे सच्ची हमदर्दी जाहिर की। बाबू साहब बेचारे बीवी पर शैदा थे। रोज ताने सुनते थे, मगर सब बर्दाश्त करते थे। बीवी की जबान से हमदर्दाना बातचीत सुनी तो खुल गये। तमाम वकाया जो कुछ दाननाथ से सुना था, बेकम – ओ कास्त बयान कर दिया। उस बेचारे को मालूम न था, कि मैं इस वक्त बड़ी गलती कर रहा हूँ। चुनांचे वह अपनी बहन की तसफकी करके बाहर आये तो सबसेपहला काम जो उन्होंने किया वो ये था किबाबू अमृतराय से मुलाकात करके उनका इंदिया लें। वो तो उधर रवाना हुऐ इधर उनकी बीवी साहबा खरामा –खरामा मुस्कराती हुई प्रेमा के कमरे में आयीं और मुस्कराकर बोलीं –क्यों प्रेमा, आज तो बात फूट गयी।
प्रेमा ने यह सुनकर शर्माकर सर झुका लिया, मगर पूर्णा बोली-सारा भांडा फूट गया । ऐसी भी कि क्या कोई लड़की, मर्दो पर फिसले
प्रेमा ने लजाते हुए जबाब दिया-जाओ तुम लोगों की बला से ? मुझसे मत उलझो।
भावज –(जरा संजीदगी से) नहीं –नहीं दिल्लगी की बात नहीं है। मर्दुए हमेशा से कठ कलेजे होते हैं, उनके दिल में मुहब्बत होती ही नही।खनका जरासा सर धमके तो हम बेचारियाँ खाना-पीना त्याग देती हैं । मगर हम मर ही क्यूँ न जायें उनकों जरा भी परवाह नहीं होती । सच है मर्द का कलेजा काठ का?
पूर्णा ने जवाब दिया – भाभी तुम बहुत ठीक कहती हो। मर्द सचमुच कठकलेजे होते हैं। मेरे ही यहाँ देखो, महीने में कम दस –बारह दिन उसमुए साहब के साथ दौरे पर रहते हैं। मैं तो अकेले सुनसान घरमें पड़े-2 कुढ़ा करती हूँ वहाँ कुछ खबर ही नहीं होती । पूँछती हूँ तो कहते हैं रोना-गाना औरतों का काम ही हैं हम रोयें – गायें तो दुनिया का काम कैसे चले।
भाभी – और क्या। गोया दुनिया अकेले मर्दो ही के थामे तो थमी है, मेरा बस चले तो इन मर्दो की तरफ आँख उठाकर भी न देखूँ । अब आज ही देखो, बाबू अमृतराय की निस्बत जरा सी बात फैल गयी तो रानी ने अपनी क्या गत बना डाली। (मुस्कराकर)इनकी मुहब्बत कातो ये हाल है और वहाँ चार वरस से शादी के लिए हीला-हवाला करते चले जाते हैं। रानी खफा न होना, तुम्हारे खत जातेहैं, मगर सुनती हूँ वहाँ से शायद ही किसी खत का जबाव आता है ।ऐसे आदमी से कोई क्या मुहब्बतस करे। मेरा तो उनसे जी जलता है । क्या किसी को अपनी लडकी भारी पड़ी है कि कुएँ में फेंक दें । बला से कोई बड़ा मालदार है बड़ा खुबसूरत है, बड़ा इल्मवाला है जब हमसे मुहब्बत ही न करे, तो क्या हम उसके धन दौलत को लकर चाटें। दुनियामें एक सेस एक लाल पड़े हैं और प्रेमा जैसी दुल्हन के वास्ते दूल्हों का काल प्रेम को भाभी की यह बातें निहायत सनागवार गुजरीं। मगर पासे अदब से कुछ न वोल सकी। हाँ पूर्णा ने जवाब दिया– नहीं भाभी, तुम बाबू अमृतराय पर बडा जुल्म कर रही हो। मुझे खूब मालूम है कि उनको प्रेम से सच्ची मुहब्बत है । उनमें और दूसरे मर्दो में बड़ा फर्क्र है।
भाभी –पूर्णा, अब मुँह न खुलवाओ ? मुहब्बत नहीं सब करते है: माना कि बड़े अंग्रेजीदाँ है, कमसिनी में शादी, करनी पसंद नहीं करते । मगर अब तो दोनों मेंसे कोई कमसिन नहीं हैं। अब क्या बूढ़े होकर ब्याह करेंगे । असल बात ये है कि शादी करने की नियत ही नहीं है। टालमटोल से काम निकालना चाहते है। । यही ब्याह के लच्छन हैं कि प्रेम ने जो तस्वीरें भेजी थी वो कल पुर्जे करके पैरों तले कुचल डाली मैं तो ऐसे आदमी का मुँह न देखूँ ।
प्रेमा ने अपनी भावज के मुस्कराकर बात करते ही समझ लिया था कि खैरियत नहीं है। जब यह मुस्कराती है तो जरुर कोई न कोई आग लगाती हैं। वोउनकी गुफ्तगू का अंदाज देखकर सहमी जाती थी कि नारायण खैर की जो । भाभी की बात तीर की तरह सीने में चुभ गयी। हक्का–बक्का होकर उसकी तरफ ताकने लगी। मगर पूर्णा को बिलकुल यकीन न आया, बोली-ये क्या कहती हो भाभी भाइया अभी आये थे, उन्हौने इसका कुछ भी जिक्र-मजबूर नहीं किया। पहली बात की तरह ये भी झूठी होगी ।मुझे तो यकीन नहीं आता कि उन्हौंने अपनी प्रेमा की तस्वीर के साथ ऐसा सलुक किया होगा।
भाभी– तुम्हें यकीन ही न आये तो इसका क्या इलाज सय।ये बात तुम्हारे भइया खुद मुझसे कह रहे थे। और भी शक रफा करने के लिए वो बाबू अमृतराय के यहाँ गये हुए हैं। अगर तूमको अब सभी यकीन न आये तो अपनी तस्वीर मॉंग भेजो, देखों क्या जवाब देते हैं। अगर ये खबर झूठी होगी तो वो जरुर तसवीरें भेज देंगे, या कम-अज-कम इतना तो कहेंगे कि ये बात झूठी है।
पूर्णा खामोश हो गयी और प्रेमा के मुँह से आहिस्ता से एक आह निकली और उसकी आँखों से आँसुओं की झड़िया बहने लगीं। भाभी साहबा के चेहरे पर ननद की यह हालत देखकर शगुफ्तगी नमूदार हुई। वो वहाँ से उठी और पूर्णा से कहकर’जरा तुम यहीं रहना, मैं अभी आयी ‘अपने कमरे में चली आयीं। आइनें में अपना चेहरा देखा—‘लोग कहते हैं प्रेमा खूबसूरत है। देखूँ एक हफ्ते में वो खूबसूरती कहाँ जाती है. जब यह जख्म भरे कोई दूसरा तीर तेज रक्खूँ। 

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रचनाएँ
हमखुर्मा व हमसवाब
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संध्या का समय है, डूबने वाले सूर्य की सुनहरी किरणें रंगीन शीशो की आड़ से, एक अंग्रेजी ढंग पर सजे हुए कमरे में झॉँक रही हैं जिससे सारा कमरा रंगीन हो रहा है। अंग्रेजी ढ़ंग की मनोहर तसवीरें, जो दीवारों से लटक रहीं है, इस समय रंगीन वस्त्र धारण करके और भी सुंदर मालूम होती है।
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पहला बाब-सच्ची क़ुर्बानी

8 फरवरी 2022
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शाम का वक्त है। गुरुब होनेवाले आफताब की सुनहरी किरने रंगीन शीशे की आड़ से एक अग्रेजी वज़ा पर सजे हुए कमरे में झांक रही हैं जिससे तमाम कमरा बूकलूमूँ हो रहा है। अग्रेजी वजा की खूबसूरत तसवीरे जो दीवारों

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दूसरा बाब-हसद बुरी बला है

8 फरवरी 2022
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लाल बदरीप्रसाद साहब अमृतराय के वालिद मरहूम के दोस्तों में थे और खान्दी इक्तिदार, तमव्वुल और एजाज के लिहाज से अगर उन पर फ़ौकियत न रखते थे तो हेठ भी न थे। उन्होंने अपने दोस्त मरहूम की जिन्दगी ही में अमृ

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तीसरा बाब-नाकामी

8 फरवरी 2022
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बाबू अमृतराय रात-भर करवटें बदलते रहे । ज्यूँ-2 वह अपने इरादों और नये होसलों पर गौर करते त्यूँ-2 उनका दिल और मजबूत होता जाता। रौशन पहलुओं पर गौर करने के बाद जब उन्हौंने तरीक पहलूओं को सोचना शुरु किया त

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चौथा बाब-जवानामर्ग

8 फरवरी 2022
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वक्त हवा की तरह उड़ता चला जाता है । एक महीना गुजर गया। जाड़े ने रुखसती सलाम किया और गर्मी का पेशखीमा होली सआ मौजूद हुई । इस असना में अमृतराय नेदो-तीन जलसे किये औरगो हाजरीन की तादाद किसी बार दो –तीन से

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छठा बाब-मुए पर सौ दुर्रे

8 फरवरी 2022
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पूर्णा ने गजरा पहन तो लिया मगर रात भर उसकी आँखो में नींद नहीं आयी। उसकी समझ में यह बात न आती थी कि बाबू अमृतराय ने उसको गज़रा क्यों दिया। उसे मालूम होता था किपंडित बसंतकुमार उसकी तरफ निहायत कहर आलूद न

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सातवाँ बाब-आज से कभी मंदिर न जाऊँगी

8 फरवरी 2022
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बेचारी पूर्णा पंडाइन व चौबाइन बगैरहूम के चले जाने के बाद रोने लगी। वो सोचती थी कि हाय, अब मै ऐसी मनहूस समझी जाती हूँ कि किसी के साथ बैठ नहीं सकती। अब लोगों को मेरी सूरत से नफरत है। अभी नहीं मालूम क्या

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आठवाँ बाब-देखो तो

8 फरवरी 2022
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आठवाँ बाब-देखो तो दिलफ़रेबिये अंदाज़े नक्श़ पा मौजे ख़ुराम यार भी क्या गुल कतर गयी। बेचारी पूर्णा ने कान पकड़े कि अब मन्दिर कभी न जाऊँगी। ऐसे मन्दिरों पर इन्दर का बज़ भी गिरता। उस दिन से वो सारे दिन

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नवाँ बाब-तुम सचमुच जादूगार हो

8 फरवरी 2022
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बाबू अमृतराय के चले जाने के बाद पूर्णा कुछ देर तक बदहवासी के आलम में खड़ी रही। बाद अज़ॉँ इन ख्यालात के झुरमुट ने उसको बेकाबू कर दिया। आखिर वो मुझसे क्या चाहते है। मैं तो उनसे कह चुके कि मै आपकी कामया

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दसवाँ बाब-शादी हो गयी

8 फरवरी 2022
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तजुर्बे की बात कि बसा औकात बेबुनियाद खबरें दूर-दूर तक मशहूर हो जाया करती है, तो भला जिस बात की कोई असलियत हो उसको ज़बानज़दे हर ख़ासोआम होने से कौन राक सकता है। चारों तरफ मशहूर हो रहा था कि बाबू अमृतरा

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ग्यारहवाँ बाब-दुश्मन चे कुनद चु मेहरबाँ बाशद दोस्त

8 फरवरी 2022
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मेहमानों की रूखमती के बाद ये उम्मीद की जाती थी कि मुखालिफीन अब सर न उठायेगें। खूसूसन इस वजह से कि उनकी ताकत मुशी बदरीप्रसाद और ठाकुर जोरावर सिंह के मर जाने से निहायत कमजोर-सी हो रही थी। मगर इत्तफाक मे

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बारहवाँ बाब-शिकवए ग़ैर का दिमाग किसे यार से भी मुझे गिला न रहा।

8 फरवरी 2022
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प्रेमा की शादी हुए दो माह से ज्यादा गुजर चुके है। मगर उसके चेहरे पर मसर्रत व इत्मीनान की अलामतें नजर नहीं आतीं। वो हरदम मुतफ़क्किर-सी रहा करती है। उसका चेहरा जर्द है। आँखे बैठी हुई सर के बाल बिखरे, पर

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तेरहवाँ बाब-चंद हसरतनाक सानिहे

8 फरवरी 2022
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हम पहले कह चुके है कि तमाम तरद्दुदात से आजादी पाने के बाद एक माह तक पूर्णा ने बड़े चैन सेबसर की। रात-दिन चले जाते थें। किसी क़िस्म की फ़िक्र की परछाई भी न दिखायी देते थी। हाँ ये था कि जब बाबू अमृतराय

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