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ऐ जि़न्दगी ले चल मुझें वहाँ

2 दिसम्बर 2022

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ऐ जि़न्दगी ले चल मुझें वहाँ 

जहाँ नफरतों की दिवारें न हो ,

इंसान का इंसान से, इंसानियत का नाता हो,

हर सुबह मस्जिद मे आज़ान हो

मंदिर मे घंटो की आवाज़ हो

चर्चो में प्रभु इशु की प्रार्थनाएं

गुरुद्वारे गुरू वाणी हो ।

 ऐ जि़न्दगी ले चल मुझें वहाँ 

जहाँ नफरतों की दिवारें न हो 

जहाँ हर दिलों मे इंंसानियत के

ज़ज्बे आम हो ।

जहाँ हर मज़हपों की शान में

श्रृद्दा से सर क्षुकते हों ।

 ऐ जि़न्दगी ले चल मुझे वहाँ 

जहाँ नफरतों की दिवारें न हो 

जहाँ अमन चैन की बाते हों

जहाँ इंसान इंंसानियत के खून का प्यासा न हो,

जहाँ इंसानी ब़ासिन्दों की नफ़रती तासीर ना हो

 ऐ जि़न्दगी ले चल मुझे वहाँ 

जहाँ नफरतों की दिवारें न हो 

जहाँ हर इंसानों की प्यास बुक्षायें

बहती ऐसी गंगा धारा हो ।

जहाँ हिंदू ,मुस्लिम ,सिख, इसाई

गंगा जमनी तहज़ीब की पहचान हो ।

 ऐ जि़न्दगी ले चल मुझे वहाँ 

जहाँ नफरतों की दिवारे न हो ।

सारे जहाँ मे हम अमन चैन की एक मिसाल हो  

जहाँ मुल्क के हर बासिन्दों के सर

देश की शान मे कटने को तैयार हो ।

जहाँ राम की रामायण हो

प्रभु इशू की पवित्र बाईबल हो 

अल्हा की आसमानी पाक किताबें कुरान हो ।

 ऐ जि़न्दगी ले चल मुझे वहाँ 

जहाँ नफरतों की दिवारे न हो 

डाँ. कृष्णभूषण सिंह चन्देल 

सागर म.प्र.

मो. 9926436304

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रचनाएँ
साहित्य उन्माद
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साहित्यिक कहानियां एंव कविता
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शराबी

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मुंशी जी

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मुंशी जी पंडित सीताराम वैध ,पके कान की उत्‍तम दबा । हरदत्‍त पाण्‍डे मोटे कानून के जानकार ।। मल्‍थू वैध कनेरा  आर्युवेदिक जडीबुटी के जानकार बुन्‍देली माटी के इन दो सपू‍तों को शायद ही कोई स्‍थानीय

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नही कामराज मुग्धा हुऐ थे , रति तेरे श्रृगारों से । ना ही तेरे यौवन को , आभूषणों ने सवारा ।। रुपसी तेरा सौन्द्धर्य तो , तेरा यौवनाकार है ।। तेरे घने केश मृगनयनी, गहरी नाभी ही तेरा श्रृंगार है ।।

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सस्ती है वो चींज

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जो चीज सबसे सस्ती है , वही सबसे अनमोल जीवनदायिनी है ।। जो वस्तु मंहगी है , वही जीवन अनुपयोगी  है।। सस्ते अनमोल ,उपहार,जो कुदरत ने दिये , पंच तत्वों में अग्नि, जल,पृथ्वी वायु और आकाश है ।

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                 सुनो सुनो ऐ दुनियां वालों सुनो सुनो ऐ दुनियां वालों । ये हिन्दुस्तान हमारा है ।। यहाँ के हर पर्वत, हर नदियों पर, अधिकार हमारा है ।। सुनो सुनो ऐ दुनियां वालों । ये हिन्दुस्तान हम

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 ये कफन के सौदागरो , किस बात का गु़मान करते हो । एक ना दिन तो तुम्हें भी , कफन ओढ कर समशान तक जाना है

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अंधेरे तुम अपनी काली चादर ,

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अंधेरे तुम अपनी काली चादर , कितनी भी फैला दो । हम इंसान है , हर सितम से वाकिफ़ है । आज नही तो कल , मंझिल ढूढ ही लेगे । अंधेरे तब तेरा क्या होगा । रोशनी तो हमे रास्ता दिखला ही देगी , अंधेरे तुझे

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मत डर रे राही ,

20 अगस्त 2022
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 मत डर रे राही , अब मंझिल आने को है । मत डर रे राही, अब मंझिल आने को है । रात निकाल गई, अब सुबह होने को है ।  मत डर रे राही , अब मंझिल आने को है । गम के बादल छट गये , अब बहारे आने को है ।  म

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ओओं हम सब मिल कर एक नया भारत बनाये

24 अगस्त 2022
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ओओं हम सब मिल कर एक नया भारत बनाये जिसमे मजहपों के नाम नफरत न हो । जातीपात ऊच नीच की दीवार न हो । मंदिर मे हो शंख नांद, मस्जिद मे आजान हो, गुरुद्वारे की गुरुवाणी , चर्चो में घन्टो की आवाज हो ।

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देखते देखते जिन्दगी क्या हो गई

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 देखते देखते जिन्दगी क्या हो गई  मुंह पुपला गया । दाँत क्षड गये  कमर क्षुक गई ।। चलना भी अब दुःश्वार हो गया देखते देखते जिन्दगी क्या हो गई । कभी कलशों से नहाया , लोटों की तरह । अब जिन्दगी बोक्

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हम जिन्दगी के उस मुक़ाम पर खडे है

24 अगस्त 2022
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 हम जिन्दगी के उस मुक़ाम पर खडे है  जहाँ कब जिन्दगी की शाम हो जाये । कोई भरोसा नही , कोई भरोसा नही । अब आगे चल नही सकता  पीछे मुड नही सकता । जीवनसंगिनी चली जीवन पथ पर अंत समय तक साथ निभाने दुःख

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होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा का उदभव

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                                                           ( होम्योपैथी के चमत्कार  भाग -2 )        अध्‍याय -3      होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा का उदभव   किसी ने सत्‍य ही कहॉ है, आवश्‍यकता आविष्‍कार क

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4 अक्टूबर 2022
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ओओं हम सब मिल कर

4 अक्टूबर 2022
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                         ओओं हम सब मिल कर  ओओं हम सब मिल कर  एक नया भारत बनाये जिसमे मजहपों के नाम नफरत न हो । जातीपात ऊच नीच की दीवार न हो । मंदिर मे हो घंटे, मस्जिद मे हो आजान  गुरुद्वारे की ग

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बेखौप जिन्दगी चलती रही ।

23 अक्टूबर 2022
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बेखौप जिन्दगी चलती रही । कभी खुशी,कभी गम की राहो में ।। कभी ठन्ड ने कपाया,कभी गर्मी ने झुलसाया । कितने सावन भादों ,आये चले गये इन राहों मे ।। बेखौप जिन्दगी चलती रही । कभी खुशी,कभी गम की राहों में

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सुनों सुनों ऐ इंसानों ,ब्याने कब्रिस्तान के ,

24 अक्टूबर 2022
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सुनों सुनों ऐ इंसानों ,ब्याने कब्रिस्तान के , मेरे सन्नाटे, इस बीराने में,एक ख़ामोश आवाज है । कब्र की लिखीं इबारतें, तुम पढ लोगे इंसानों , पर क्या तुम मेरी ख़ामोश आवाज़ को सुन सकते हो कब्र मे दफ़न हर

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जो हे भईया नओ जमानों

30 अक्टूबर 2022
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 जो हे भईया नओ जमानों सिगरट ऊगरियों मे दबी  मों में गुटखा चबा रये  पेले भईया मोटर साइकिल को फटफट केत हते , अब तो टू व्हीलर, बाईक  और कुजाने का का केरये ।  जो हे भईया नओ जमानों । पेले भईया कार

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गुन गुन करती आई चिरईयॉ,

25 फरवरी 2023
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  गुन गुन करती आई चिरईयॉ, कें बें कों शरमा रई । भीडतंत्र कों जमानों है, भईयाँ बहुमत को हे राज । लूट घसोंट (खरीद फरोक्‍त) कर सरकारें बन रई , जनता ठगी लूटी जा रई , अ, ब, स, को ज्ञान नईयॉ, सरकार,

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दद्दा बऊ की सुने ने भाईया साकें (शौक) को मरे जा रये ।

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दद्दा बऊ की सुने ने भाईया साकें (शौक) को मरे जा रये । अँगुरियों (अंगुलियों) मे सिगरट दबाये , और मों (मुँह) में गुटका खाँ रये । निपकत सो पेंट पेर रये , सबरई निकरत जा रये । दद्दा बऊ की सुने ने भाई

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अब तों फि़जओं में, वो मस्तीयॉ कहॉ

14 अप्रैल 2023
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अब तों फि़जओं में, वो मस्तीयॉ कहॉ । जहॉ देखों बिरानी ही बिरानी छॉई है ॥ बुर्जुगों से भी अब कायदा नही । ज़ाम से ज़ाम टकराने,  की तहजीब सी आई है ॥ किसे कहते हों, तुम इसान यहॉ ? यहॉ तो कपडों की तरह

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ऐ जि़न्दगी ले चल मुझें वहाँ

2 दिसम्बर 2022
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ऐ जि़न्दगी ले चल मुझें वहाँ  जहाँ नफरतों की दिवारें न हो , इंसान का इंसान से, इंसानियत का नाता हो, हर सुबह मस्जिद मे आज़ान हो मंदिर मे घंटो की आवाज़ हो चर्चो में प्रभु इशु की प्रार्थनाएं गुरुद्वार

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मुंशी प्रेम चन्द की रचना

5 फरवरी 2024
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*मुंशी प्रेमचंद जी की एक "सुंदर कविता", जिसके एक-एक शब्द को, बार-बार "पढ़ने" को "मन करता" है-_*ख्वाहिश नहीं, मुझेमशहूर होने की," _आप मुझे "पहचानते" हो,_ &

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