महापण्डित राहुल सांकृत्यायन को हिन्दी यात्रा साहित्य का जनक माना जाता है। हिंदी में राहुल साकृत्यायन
जैसा विद्वान, घुमकड़ व 'महापंडित' की उपाधि से स्मरण किया जाने वाला कोई अन्य साहित्यकार न
मिलेगा ।
महापंडित राहुल सांकृत्यायन का जन्म 9 अप्रैल 1893 को अपने ननिहाल पंदहा जिला आज़मगढ़, उत्तर
प्रदेश में हुआ था। उनके पिता श्री गोवर्धन पाण्डेय, कनैला (आजमगढ़, उत्तर प्रदेश) के निवासी थे, अत:
आपका पैतृक गांव कनैला था। आपके बाल्यकाल का नाम केदारनाथ पाण्डेय था।
गोवर्धन पाण्डेय के चार पुत्रों (त्रों केदारनाथ, श्यामलाल, रामधारी और श्रीनाथ) और एक पुत्री (रामप्यारी) में
आप ज्येष्ठ पुत्र थे। केदारनाथ की माँ कुलवन्ती नाना रामशरण पाठक की अकेली संतान थीं।थीं
राहुल सांकृत्यायन तो उनका अपना दिया नाम था । वास्तविक मूल नाम था- केदारनाथ पाण्डेय। कुछ वर्षों
तक आप रामोदर स्वामी के नाम से भी जाने जाते थे ।
रामशरण पाठक आजमगढ़ के पंदहा गांव के निवासी थे। केदारनाथ का बचपन ननिहाल में ही बीता।
बालक केदार वर्ष के कुछे दिन अपने पैतृक गांव कनैला में भी बिताते थे। जब वे पाँच वर्ष के हुए तो पंदहा
से कोर्इ डेढ़ किलोमीटर दूर रानी की सराय की पाठशाला में नाम लिखा दिया गया। उस समय उर्दू
अधिक प्रचलित थी। केदारनाथ का नाम मदरसे में लिखाया गया।
आपके नाना रामशरण पाठक फौज में बारह साल नौकरी कर चुके थे। अपनी नौकरी के दौरान कर्नल
साहब के अर्दली के रूप में जंगलों में दूर-दूर तक शिकार करने जाते थे। उन्होंनेन्हों साहब के साथ दिल्ली,
शिमला, नागपुर, हैदराबाद, अमरावती, नासिक आदि कर्इ शहर देखे। फौजी नाना अपने नाती को
शिकार-यात्राओं की कहानियाँ सुनाया करते थे। इन्हीं कथा-कहानियों ने केदारनाथ के किशोर मन में
दुनियाँ को देखने की लालसा का बीज अंकुरित किया।